Insaaniyat - EK dharm - 25 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 25 (3) 1.4k 5.3k 1 और फिर काफी उहापोह के बाद मुनीर ने फैसला कर लिया और शबनम से मुखातिब होते हुए बोला ” तुम बेवजह चिंता कर रही हो बेगम ! तुम्हारे होते हुए भला मुझे क्या होने लगा ? अब तुम तो जानती ही हो मैं जिस विभाग में हूं उसमें खतरों से दो चार तो होना ही पड़ता है । बस यूं ही एक वाकया हो गया था , यहीं पास में ही , तो सोचे चलो लगे हाथ अपनी बेगम से मिल आते हैं । ”अब शबनम भला क्या कहती ? लेकिन मुनीर की बात सुनकर वह संतुष्ट नहीं हुई थी । उसके कानों में मुनीर के कहे शब्द अभी भी मानो गूंज रहे थे ‘ …..हम थोड़े परेशान जरूर हैं , लेकिन गलती हमारी नहीं है । ‘ उसके नन्हें से दिमाग में विचारों के अंधड़ ने डेरा जमा लिया था लेकिन खुद को सहज दिखाते हुए उसने हाथ में थमी हुई गिलास लेकर अंदर की तरफ बढ़ते हुए बोली ” आप हाथ मुंह धो लीजिये तब तक मैं फटाफट दो रोटियां सेंक देती हूं । आप बीच रास्ते से ही इस तरफ आ गए हो तो खाना तो खाये नहीं होंगे । सालन बचा है बस पांच मिनट में गरमागरम खाना तैयार । कह कर वह रसोई में पहुंच गई लेकिन उसके दिमाग में उठे रहे विचारों के थपेड़े अभी तक शांत नहीं हुए थे ‘ ऐसा क्या वाकया हो गया जिसके लिए मुनीर के लबों पर खुद ब खुद सफाई देने वाले अल्फाज आ गए । ऐसा तो बस एक ही सूरत में होता है जब किसी से कोई गुनाह हो गया हो और वह उसे छिपाने की कोशिश करे । लेकिन गुनाह ? और मुनीर के हाथों ? ‘ तभी उसके अवचेतन मन ने सरगोशी की ‘ शबनम ! क्या सोच रही है तू ? अपने शौहर पर शक कर रही है । उस शौहर पर जो तुम्हारी और बच्चों की अच्छी जिंदगी के लिए खुद को खतरों में डालने से नहीं हिचकता अपनी नौकरी के दरम्यान । जिंदगी के अधिकांश लम्हे उसे तन्हाई में ही बिताने पड़ते हैं । क्यों ? बारह वर्षों में उससे कोई खता नहीं हुई । अच्छे स्वभाव की वजह से वह आज भी सबका प्रिय है अपने गांव में फिर उससे कोई खता हो कैसे सकती है ? ‘ लेकिन उसके दिमाग ने उसे चेताया ‘ शबनम ! तुम भी किसकी बात पर ध्यान दे रही हो । आज भावनाओं से नहीं दिमाग का इस्तेमाल करके जीने का जमाना है और अगर दिमाग का इस्तेमाल करो तो फिर यह बात साफ है कि कुछ तो हुआ है ऐसा जो मुनीर तुम्हें नहीं बताना चाहता । वह जरूर तुमसे कुछ छिपा रहा है । ‘ तवे पर रोटी पलटती हुई शबनम बुदबुदाई ‘ सचमुच ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है जैसे वो कोई बात है जो मुझे बताना नहीं चाहते । आखिर ऐसी क्या बात हो गयी ? कैसे पता करूँ ? या अल्लाह ! इस मुसीबत से निजात दिला दे मेरे मौला ! ‘सब्जी गरम करके थाली में परोसते हुए वह गांव के पीर बाबा से मन्नतें मांगे जा रही थी ” या गाजी पीर बाबा ! या मौला ! मेरे शौहर से अगर कोई खता हो गयी हो तो उन्हें राहत अता फरमा मेरे मौला । उनके गुनाहों को माफ कर बाबा । जुमेरात को तेरी मजार पर मलूदा और सिन्नी चढ़ाऊंगी । ”हाथ में खाने की थाली लिए शबनम ने कमरे में प्रवेश किया ।मुनीर के भोजन करने के दौरान शबनम ने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोला लेकिन वह उसके सामने बैठ कर बड़े ध्यान से उसका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रही थी । मुनीर भी जैसे उसकी मंशा को भांप चुका हो , चुपचाप भोजन करते हुए शबनम की तरफ से अपने आपको लापरवाह दिखाने की भरपूर चेष्टा कर रहा था और शायद वह कामयाब भी रहा था । लाख कोशिशों के बावजूद शबनम उसके चेहरे पर लिखी उसके दिल की इबारत पढ़ने में नाकामयाब रही थी ।भोजन करने के बाद रसोई घर में बनी हाथ धोने की जगह पर हाथ धोते हुए मुनीर ने शबनम की तरफ देखे बिना ही कहना शुरू किया ” बेगम ! हो सकता है मुझे सुबह बड़े सबेरे ही निकलना पड़े इसलिए मेरा बिस्तर यहीं दालान में ही लगा दो । मैं तुम्हें सुबह सुबह परेशान नहीं करना चाहता । ”” कैसी बातें कर रहे हैं आप ? शौहर की खिदमत करके कोई कनीज भला परेशान होती है क्या ? ” दालान में से जूठे बर्तन समेटते हुए शबनम ने हैरानी जताई थी ।अपने पहले ही प्रयास में असफल मुनीर शबनम को मनाने के दूसरे बहानों पर विचार करने लगा ।दरअसल मुनीर खुद को कमजोर महसूस कर रहा था । उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी शबनम से नजरें मिलाने की । उसे डर लग रहा था कहीं हकीकत उसकी जुबान पर न आ जाये उसके साथ रहने से । इसके अलावा वह कानून से भी डरा हुआ था । वह जानता था कि इस कांड में वह भी जिम्मेदार है अतः देर सवेर जांच की दिशा उसकी तरफ भी घूमेगी । जांच की दिशा उसकी तरफ घुमते ही वह संदेह के घेरे में होगा और फिर शुरू हो जाएगी उसकी तलाश । वह किसी भी कीमत पर गिरफ्तार नहीं होना चाहता था । वह चाहता था बाहर जो चाहे हो लेकिन उसकी सही खबर उसके बीवी बच्चों को भी न पता चले ।और इसीलिए उसने शबनम से सुबह जल्दी निकलने की बात कहकर उससे झूठ बोला ।” नहीं ! नहीं ! बेगम ! तुम यही मेरा बिस्तर लगा दो । मुझे अभी नींद भी नहीं आ रही है । ” कहकर एक तरह से उसने अपना फरमान ही सुना दिया था । विवश शबनम उसके हुक्म की तामील में लग गयी । अपनी योजना पर काम करते हुए मुनीर को आंशिक सफलता मिलने की खुशी हो रही थी ।गिरफ्तारी का भय उसे इस कदर सता रहा था कि बाहर रुक रुक कर कुत्तों के भौंकने से या हल्की आहट से भी वह सिहर उठता ।तरह तरह के सवालों से जूझती शबनम ने खामोशी से दालान में ही मुनीर के लिए बिस्तर लगा दिया था और नजदीक ही पड़े मेज पर एक जग में पीने का पानी ढंक कर रख दिया और फिर मुनीर से बोली ” मेज पर पीने का पानी रख दिया है । सुबह जाने से पहले आवाज दे दीजियेगा । चाय बना दूंगी । खुदा हाफिज । ” शबनम अपने कमरे में जा चुकी थी । मुनीर उसे जाते हुए देखता रहा और फिर बिस्तर पर पसर गया ।बिस्तर पर लेटे हुए मुनीर की आंखों के सामने से पुरा घटनाक्रम किसी चलचित्र की भांति गुजरने लगा । उस गाड़ी का रुकना , फिर जांच के बहाने उस गाड़ी को ही तहस नहस कर देना , फिर उस लड़की को झाड़ियों की तरफ घसीटना , उसका कातर स्वर में उनसे मिन्नतें करना , रोना बिलखना , फिर उस युवक का उसकी मदद के लिए दौड़ना और फिर मुनीर का वो जोरदार प्रहार उस युवक के सिर पर , उसका एक तेज चीख के साथ भहरा कर गिरना और फिर इसी के साथ याद आ गया असलम का वह रौद्र रूप । उसकी याद आते ही उसे असलम के नसीब से जलन सी होने लगी । ‘ उस वक्त असलम ने कितना सही कदम उठाया था । वह खुद ऐसा क्यों नहीं कर सका ? आखिर क्या बिगाड़ा था उस युवक और उस युवती ने उसका ? क्यों उस मक्कार थानेदार का उसने साथ दिया ? वह यह क्यों भूल गया था कि उसने वर्दी कानून की सेवा करने के लिए पहनी थी , किसी दरिंदे की सेवा करने के लिए नहीं ! ‘बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में खोया मुनीर अपनी भविष्य की योजना पर भी विचार करता रहा और फिर अपने मोबाइल में सुबह पांच बजे का अलार्म सेट कर दिया और फिर शनै शनै निंदिया रानी की आगोश में खोकर बेसुध हो गया । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 24 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 26 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Fiction Stories ताश का आशियाना - भाग 40 Rajshree Horror Stories पिछल परी माया एक अनसुना किस्सा भूपेंद्र सिंह Thriller Tanmay - In search of his Mother - 52 Swatigrover Detective stories अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(६) Saroj Verma Spiritual Stories सुनसान रात - 1 Sonali Rawat Fiction Stories परछाईया - भाग 1 Dr.Chandni Agravat Film Reviews ऐ वतन मेरे वतन फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma Moral Stories खलनायक कौन ? 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