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वाचा कट मानव

कहानी

वाचा कट मानव

वेदराम प्रजापति मनमस्त

सुबह की सैर कर, जब मैं वापिस आ रहा था तो पप्पू सेठ जी के दरवाजे पर भीड़ लगी दिखी। मेंरी भी इच्छा हूई भीड को देखने की और पैर मुड गये उसी ओर। मजमा काफी आश्चर्य चकित सा लग रहा था। वहां जाकर देखा तो दो नाथ बाबा पूजन-मूजन कर रहे थे। मेंरे मन ने धिक्कारा! क्या सोचकर इधर आये, खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।

तभी कुछ लोगों की काना-पॅूंसी ने मेंरा ध्यान उस ओर खींच लिया। मैंने पॅूछ ही लिया ऐसी कौनसी अजूबा बात है? तभी सेठ के लड़के ने कहा- अरे भाई हमारे मकान में परसों एक सांप दिखा था, वह काफी बडा था! हम तभी से घबरा रहें हैं ।

लोंगों ने कहा घर में सांप का होना अच्छा नहीं होता, इसे किसी सपेरे को बुलाकर निकलवा लेना चाहिये। उनकी बात सुनकर हम पास के गांव के सपेरो के पास गये और सारी बात बता दी। उन्होंने कहा- सुनो सेठ जी-, शासन ने हमारे ऊपर प्रतिबंध लगा दिया है कि सांप न पकडे जायें यदि ऐसा कुछ किया गाया तो तुम जेल में बंद कर दिये जाओगे। सांपो को सताना महापाप के साथ साथ अपराध भी हैं। इसलिये हम यह कार्य नहीं कर सकते। तब सेठ जी हाथ जोडकर बोले- हे नाथ बाबा- हमारे घर के सभी लोग सांप के डर से घर के बाहर ही बैठे हैं। खाना पीना सभी कुछ बंद है। तुम तो केवल सांप को घर से बाहर निकाल दो। शासन की पूरी जिम्मेदारी हम लेते हैं। यह सुनकर नाथ बाबा ने कुछ देर तक सोचा तथा सेठ जी की परेशानी को देखकर साथ चलने को राजी हो गये। अब वे उसी सांप को निकालने की कोशिश में पूजा पाठ तथा मान मनोति कर रहें हैं। तब यह सुनकर मैंने कहा- सेठ जी तुम भी बडे अजीब आदमी लगते हों, इस कारखाने में इन बोरों के बीच अब तक सांप कहीं रहा भी होगा? जिस सांप को दिखे तीन दिन हो गये हों, वह अब तक कहां से कहां चला गया होगा। ये देखो ना , कारखाने के बिल्कुल पीछे ही तो झाडी लगी हुई हैं। यह सुनकर सेठ जी वोले, बात तो आप की भी बिल्कुल सच्ची सी लग रही हैं किन्तु ऐसा कुछ करने से हमारा डर तो भाग जायेगा।

मैंने सोचा, जरा तमाशा ही देखलो। तभी शंकर नाम के नाथ बाबा ने अपने चेला विष्णु से कहा-अजी चेले, इस बीन को बजा कर तो देख, सेठ जी के इस मकान में सांप हैं भी या नहीं। तब चेले ने बीन को हाथ जोडकर प्रणाम किया और बीन का स्वर साधने लगा। स्वर साधने के साथ साथ बीन को चारों तरफ घुमाते हुये बजाने लगा। बीन का वह मधुर स्वर सभी दर्शकों को भी मोहित कर रहा था। नागिन ध्वनि पर सभी लोग अपना शिर हिला रहे थे। इसी बीच कभी कभी उसकी बीन बंद भी हो जाती थी। वह बार बार श्वांस पर अधिक जोर लगाकर बजाता था। किन्तु स्वर फिर भी बंद हो जाता था। इस प्रकार उसने सांप होने और न होने का खूब परिक्षण किया। अन्त में बीन को बंद कर बोला गुरू जी सांप तो यहां अवश्य हैं।

यह सब देख कर मेंरे मन में विचार आया, बीन बजाने बाला यह स्वयं हैं जब चाहें तब रोक भी तो सकता हैं और जब चाहे तब बजा भी सकता हैं। यह सब नाटक, सेठ जी को डराने का तथा रूपये ठगने का सा लगता हैं, जिससे सेठ डरकर कुछ अधिक ही भेट दे देगा। यह सब सुनकर सेठ डर गाया और बोला भाई नाथ बाबा यदि सांप हैं तो इसे अवश्य निकाल दो मैं भेट नजराना भी दूंगा पर जब सांप निकल जायेगा। शंकर सपेरा मुस्कुराते हुये बोला सेठ जी आपकी यह बात हमने मान ली। आज हमारी इस बीन का ही कमाल तथा हमारी सच्चाई का ही परिक्षण कर लो। हम गरीब लोग हैं, मांग कर खा सकते हैं, मेंहनत करना हमारा काम हैं किन्तु धोखाधडी नहीं करते। उस मालिक भगवान शंकर की मर्जी पर ईमानदारी से जीते है, चोरीयां भी नहीं करते।

यह सब सुनकर मजमें के सभी लोग बडा आश्चर्य कर रहें थे तथा में भी यह सब बडे गौर से देख रहा था कि सपेरे बहुत चालाक होते है, कहीं ये अपनी जेबो में सांप न रखे हो और लोगों को बातों में लगाकर तथा और कोई चकमां देकर धीरे से जेब में रखे सांप को भी छोड सकते हैं । मजमे के लोगों की ऐसी मनसा को देखकर नाथ बाबा ने अपनी नंगा झोली दे डाली। उसकी जेबों में कोई भी सांप नहीं था, बीन के अलावा कोई टिपारा भी नहीं था। मैं आश्चर्य में पड गया ऐसा कैसे हो सकता है। कि बीन के इसारे पर सांप बाहर आजाये। कहां विचारे ये गरीब सपेरे, जो भजन पूजन भी अच्छी तरह करना नहीं जानते, म्लेक्षों की तरह रहते हैं और कहां ये नागदेवता जो इनकी बात मानकर बाहर निकल आयें। इन सपेरो का रहन सहन खान पान भी अजब ढंग का हैं जिसमें कोई भी सात्विकता नहीं हैं। फिर भला सांप इनकी बात कैसे मानेंगे? बिल्कुल असंभव हैं ये तो उनकी बात मानते हैं जो नित्य पूजा पाठ, कर्म काण्ड, भजन पूजन, ध्यान धारणा तथा समाधि जैसे अनुष्ठान करते हैं। इन भिकमंगों की बात कभी सुनी भी नहीं जा सकेगी।

जब मेंरा ध्यान चिंतन से हटा तो मैंने देखा वे दोनों सपेरे कुछ जड़ी बूटियों पर अगरबत्ती लगा रहे थे तथा सामने रखी एक प्लास्टिक की डिब्बी से कुछ अनजानी चीजे भी निकाली जिन्हें अपने मस्तक से लगा कर डिब्बी में रख दी। लोटे में भरे जल से उन जडी बूटियों पर जल छिडका, नारियल से उसारा किया, उडद के दानों को कई बार पढा और कारखाने के चारों कोनों में फेक दिया। इसके बाद सभी लोगों की तरफ मुखातिव होकर और हाथ जोडकर कहा आप सभी लोग जहां बैठे हो वहीं पर बैठे रहें अब हम लोग जल से आकन्न लगाते हैं। आप सभी कुछ चुपचाप होकर देखते रहें बीच में न बोलें ।

कार्य शुरू करने से पहले सेठ को नारियल और जडी बूटियों के पास बिठाया तथा कहा अब हम कारखाने में बीन बजायेगें, जब जब बीन बंद होवे तब तब तुम इन उडद के दानों को लोटे के जल में डाल दिया करें। शंकर गुरू ने विष्णु नाम के चेले को बीन बजाने भेजा। विष्णु ने गुरू जी को प्रणाम किया, धरती माता की धूल उठा कर मस्तक पर लगाई, बीन को कई वार बंदन कर कारखाने की तरफ चल पडा। वहां पहुंच कर बीन को बजाना शुरू किया। मैं इस दृष्य को अधिक गोर से देख रहा था। बीन की नागिन ध्वनि सभी को मोहित कर रही थी। बीन जब बीच बीच में रूक जाती थी तब सेठ जी उडद के दाने लोटे में डाल देते, बीन फिर बजने लगती। एक जगह बीन बार बार रूक रही थी। वह बहुत परेशान था। सभी लोग शांत चित्त होकर देख रहे थे इस बीच वह कई बार गुरू की आन लगाता, भगवान शंकर को याद करता, देवधनी बाबा तथा कारस देव को सुमिरता गंगा मईया की कसमें खबाता तथा कहता हे सर्पदेव अब तो बाहर निकल आओ। तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं करेगा। हम तुम्हें भगवान के सच्चे दरवार की कसम देते है। तभी शंकर गुरू ने अपने चेले को अधिक परेशान देखकर उसकी बीन अपने हाथो में लेली और बोला सर्प देव तुम से वादा करते है कि तुम्हें ग्यारह दिन में छोड देगें। फिर भी सर्प बाहर नहीं निकल रहा था। तुम्हें छः दिन में छोड देगें हमारी बात पर विश्वास रखो तुम्हें प्यार दिया जायेगा, दुध पिलायेगें। इतना सब कुछ कहने पर बोरों के बीच से सर्प ने अपना कुछ मुंह निकाला और थोंडा आगे भी बढ़ा किन्तु न जाने क्या सोचकर वापस लौट गया।

सभी उपस्थित लोगों ने भी सांप को निकलते देखा था। सभी के दांतो तले उॅंगली थी। वेचारे दोनों सपेरे पसीना पसीना हो रहे थे। शंकर गुरू ने आसमान की ओर देखा, हाथ जोडे और गुरू की आन लगाई। हे सर्प देव तुम सच्चे देवता हो। धरती तुम्हारे ऊपर ही टिकी हैं। इस सारी सच्चाई का परिचय दो तथा लोटा के जल को उस ओर छिडका, उडद के दाने भी फेंके तथा फिर बीन बजाने लगा। इस सारे घटना क्रम में सपेरे का ध्यान सर्प पर ही था। उसकी इन सारी आकन्नो को सुनकर सर्प उन बोरियों के बीच से निकलकर धीरे धीरे कुछ दुरी तक चला तथा अपने फन को फैलाकर ऊपर की ओर उठ गया। सर्प सपेरे की बीन की ध्वनि पर झूम रहा था। सभी लोगों ने उसे देखा जो बिल्कुल काला था। उसके फनपर पदम जैसा निषान था। सपेरे ने कहा मैं जानता हूँ तू वाचाकट नहीं हैं, सच्चा देवता हैं। यह धरती सत्य और ईमान पर ही टिकी हैं। यह सब सुनते हुये सर्प आगे बढ रहा था। पास में बैठे सपेर ने सेठ जी से कहा सर्प देव को प्रणाम करो, हो सकता हैं तुम्हारे ही कुल के ही देवता हों। तब सेठ जी ने दोनों, हाथ जोडे, नेत्रों को हल्का बंद किया और प्रणाम करने लगे। सर्प सपेरे के काफि नजदीक आ चुका था।

सर्प को नजदीक देखकर सभी दर्शक मन में घबरा रहें थे कि कहीं यें सर्प हमारी ओर न दौड पडे भागने की सोच ही रहें थे किन्तु आकन्न का ध्यान कर भाग नहीं सके इसी बीच शंकर गुरू ने अपने हस्तलाघव से उसकी पूंछ पकड ली। सर्प तडफडाया तब तक पास वाले सपेरे ने उसके फन को दवा लिया शंकर गुरू ने दूसरे हाथ से फन पकड लिया। वह हिल भी नहीं सका तब शंकर गुरू ने सभी दर्शकों को उसके जहरीले दांत तथा जहर पोटली जोकि सर्प के मुंह में थी। उसे दिखाई और कहा इन्हीं दांतों से पोटली में से जहर आता हैं ये इन्जेक्षन की सूई जैसा काम करते हैं और उसके उन जहरीले दांतों को अपने एक यंत्र से तोड़ दिया तथा उस जहर पोटली को भी निकाल दिया।बेचारे सर्प का मुंह लोहू से लहू-लुहान था,सर्प खूब तड़फड़ा रहा था और उस नाथ बाबा के इस कृत्य पर हजारों बद-दुआऐं दे रहा था उसकी तड़फड़ाहट में यह सब भास हो रहा था। यह सब दृष्य लोग ठंडी सांस लेकर बडे आश्चर्य से देख रहे थे। अब तक सर्प भी शांत होकर सभी की ओर देख रहा था। शंकर गुरू ने एक जडी उठाकर उसको सुघाई जिससे सर्प का फूंकारना बंद हो गया था। सभी उपस्थित लोगों ने वाचा के धनी सर्प देवता को प्रणाम किया। एक मटका मॅंगाया गया जिसमें सबसे पहले सर्प की पूंछ डाली गयी और धीरे धीरे उसके फन को भी मटके में डाल दिया तथा ढक्कन से मटके को ढककर कपडे से बांध दिया। इसके बाद ही दोनों सपेरों की जान में जान आई, ठंडी सांस लेकर बैठ गये।

शांत बैठे सपेरों को सेठ जी ने दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा पूरी श्रद्धा भाव से बहुत कुछ देकर संतुष्ट किया एवं उन्हे धन्यवाद देते हुये कहा तुमने हमारे सभी परिवार जनो को जीवन दान दिया हैं। आज में जाना की तुम ही भगवान के सच्चे भक्त हो क्योंकि तुम्हारी बात और वाचा ये हिंसक जीव भी मानते हैं। इस समय हमारा सारा पुजा पाठ ढोंग ही सावित हो रहा हैं। तुम्हारा हृदय ही सच्चाई का घर हैं। तुम गरीब भलां हो, मांग कर खाना पंसद करते हो, किन्तु बेईमानी से जीना तुम्हें नहीं आता। अतः हम सब ने जो कुछ देखा उसके मायने में हम सभी आप से बहुत पीछे हैं। तुम ही सच्चे इंसान हो। आज का मानव तो इन सर्पो से भी गया बीता जान पड रहा है, जो पूरी तरह वाचाकट हैं। कहता कुछ हैं और करता कुछ है। पल पल पर अपनी बात से बदल जाता हैं। इतना मर्यादा हीन हो गया की जंगली जीवों से भी पीछें है। ये आज भी मर्यादायें निभा रहे है। सच्चाई से कहा जाये तो ये पषु पक्षी, कीट पतंगे, सर्प बिच्छु तथा हिंसक जंगली जीव अपनी सारी मर्यादायें व. दस्तूर बनाये हैं, बस बदला है तो केवल मानव। वह तो सत्य, धर्म तथा ईमान से बहुत दूर हो गया है। आज की स्थिती में वह मानव कहलाने का हकदार भी नहीं रहा। फिर भी इतना अधिक इतराता हैं। मानो वही सच्चा भगवान हैं। इतना कहकर सेठ जी शांत होकर बैठ गये। मानव पतन की पराकाष्ठा का दृश्य मन में लिए सभी लोग चल पडे। डाल पर बैठे सुआ-सारों ने भी यह सब कुछ देखा और सारो ने सुआ से कहा यह देखकर जी घबराने लगा है,अब यहां से कहीं दूर देश चलना चाहिऐं यों कहते हुए वे दोनों फुर्र से उड़ गए। 0000

वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’

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