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मास्साब movie review

* फिल्म : मास्साब

* IMDb rating : 9.4/10

* अवधि :1 घंटा 56 मिनिट

* निर्देशक : आदित्य ओम

* सिनेमेटोग्राफी : श्रीकांत असाटी

* म्यूजिक : सुदेश सावंत

* कलाकार :शिव सूर्यवंशी, शीतल सिंह, मनवीर चौधरी, हुसैन खान,

सोहित सोनी, नंदराम आनंद और चंद्रभूषण सिंह...

यह फिल्म भारत के हिंदी क्षेत्र के छोटे से गाँवों में सरकारी स्कूलों के खराब संचालन के विषय से संबंधित है।

भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ ईमानदार पुरुषों के बारे में अनगिनत फिल्में बनाई गई हैं। लेकिन इन फिल्मों में नायक आमतौर पर एक नाराज पुलिस अधिकारी होता है जिसे असामाजिक तत्वों से निपटना पड़ता है। मास्साब अलग हैं। यहां केंद्रीय चरित्र एक सरकारी स्कूल में एक शिक्षक है।

उत्तर प्रदेश के खुरंद और आसपास के गांव में 'मास्साब' का मतलब शिक्षक से है- यह कहानी आशीष कुमार (शिवा सूर्यवंशी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने पढ़ाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी IAS की नौकरी छोड़ दी है.

ग्रामीण भारत में बच्चों को शिक्षित करना। बाल सुधीर केंद्र में रहने वाले बच्चों के लिए एक स्वयंसेवक के रूप में काम करने के बाद, आशीष अब प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में देहाती क्षेत्र में चले जाते हैं। वहाँ वह शिक्षा के प्रति व्यक्तियों के पूर्वाग्रह, भ्रष्टाचार और अज्ञानता का सामना करता है। हालाँकि, उन्हें गाँव की अकेली शिक्षित उषा देवी से समर्थन और प्रोत्साहन मिलता है, जो गाँव की प्रधान भी हैं। उषा देवी के साथ आशीष का रोमांटिक एंगल सूक्ष्म है. आशीष कुमार एक शांतचित्त व्यक्ति हैं। वह जानता है कि सिस्टम कितना सड़ा हुआ है। इससे वह क्रोधित या निराश नहीं होता है और नाही वह हार मानता है बल्कि वो सिस्टम से जुड़ना चाहता है।

जबकि फिल्म का विषय गंभीर है, कथा आशीष कुमार की तरह ही एक हल्के-फुल्के मार्ग पर ले जाती है। उसी समय, निर्देशक आदित्य ओम भारत के छोटे से गाँवों में सरकार द्वारा संचालित स्कूलों की कठोर वास्तविकता दिखाने से नहीं कतराते।

ऐसे क्षण जब बच्चों के साथ-साथ ग्रामीणों के जीवन में भी बदलाव आ रहा है। आपको कुछ मौकों पर आशुतोष गोवारिकर की प्रतिष्ठित फिल्म "स्वदेस" की याद दिलाती है.

इसमें समाज सेवक के तौर पर वह ग्रामीण स्कूलों में जिस तरह के बदलाव के अरमान देखते थे, उन सभी का इसमें चित्रण किया है. यह सदेश परक फिल्म बड़े सहज ढंग से ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों के हालात का सच बयां करने के साथ साथ कई अहम बातें कह जाती है. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहो में 48 पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी है.

कुल मिलाकर, 'मास्साब' भारत में ग्रामीण शिक्षा की जर्जर स्थिति के मुद्दे से संबंधित है, जिसे सरकार से विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की वर्तमान स्थिति के प्रति वास्तविक और भरोसेमंद लगते हैं।

by vijay r prajapati

06/02/21

jay hind