Dusari Aurat - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

दूसरी औरत.. - 5

हैलो! संजय,कब आ रहे हो यार??आय मिस यू सो सो सो मच!

आय नो डियर बट...मजबूर हूँ यार!

हाँ मैं समझती हूँ। तुम्हें मेरी याद नहीं आती क्या?

क्या लगता है आपको?

मैंने पूछा है,तुम जवाब दो!

सुबह शाम,उठते बैठते...हर वक्त,हर वक्त तुम मेरे साथ रहती हो जान और...ओफ्फो!!

क्या हुआ?

कुछ नहीं,तुम बात करो न!

अरे मगर हुआ क्या? तुमनें ओफ्फो क्यों बोला?

अरे यार कुछ नहीं वो कॉल वेटिंग आ रही थी!!

किसकी कॉल है? बात कर लो न!

अरे वो... घर से है!

वाइफ़ का है न तो कर लो पहले उससे...कहते हुए सुमेधा ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी।

इसके बाद सुमेधा खुद में ही खो गई!!!


मैं तो कभी ऐसी नहीं थी। मुझे आज भी याद है अपनी बैस्ट फ्रेंड सोनिका साहू...हाँ यही नाम तो था उसका, मेरी बचपन की सहेली जिसके बिना न तो मेरी सुबह उगती थी और न हीं कोई शाम ही ढलती थी मगर उस दिन जब दोपहर में वो मेरे घर आयी थी और उसनें बताया कि आज सुबह ही कोर्ट में वो अपने बचपन के दोस्त केशव से शादी कर चुकी है जबकि केशव की शादी अभी पिछले महीने ही उसके परिवार वालों की मर्ज़ी से हो चुकी है तो कितना बुरा-बुरा बोला था उससे सुमेधा नें,कितना कुछ सुनाया था उसे कि उसकी हिम्मत कैसे हुई एक शादीशुदा लड़के से सम्बंध बनाए रखने की और उसनें क्या शादी करने से पहले एक बार भी उस बेचारी बेगुनाह लड़की के बारे में नहीं सोचा?आखिर इन सबमें उसका क्या कसूर???सोनिका तुम किसी और का घर उजाड़ कर खुद का आशियाना कभी नहीं बसा पाओगी! तुम कभी भी सुखी नहीं रहोगी,अरे हाय लगेगी तुम्हें उस मासूम,बेगुनाह जान की...ये कहने के बाद मैंने कितनी बुरी तरह से उससे मुंह फेर लिया था और हमेशा-हमेशा के लिए दोस्ती भी खत्म कर दी थी। इसके बाद भी उसनें कितनी बार मुझसे मिलने की और मुझसे बात करने की कोशिश की मगर मैं...सोचते-सोचते सुमेधा की आँखें नम हो गयीं और तभी संजय की कॉल...


हैलो! क्या हुआ जान? तुम...तुम रो रही हो क्या? अरे बोलो तो हुआ क्या???

तुम्हारी बात हो गई न?

अरे हाँ हो गई,तुम वो सब छोड़ो। पहले ये बताओ कि तुम्हें क्या हुआ? बताओ न जान,तुम्हें मेरी कसम!!

यार,संजय..संजय वो...

हाँ अब बोलो भी याररर!

वो औरत है,मैं महबूबा!
वो सबकुछ है,मैं कुछ भी नहीं!

सुमेधा गाना गाने लगी और उसके जवाब में संजय भी फोन पर दूसरी तरफ से गुनगुनाने लगा...तुम सबकुछ हो,वो कुछ भी नहीं!


रोते-रोते सुमेधा नें फोन डिसकनेक्ट कर दिया और वो एक बार फिर से अतीत के पन्नों को पलटते हुए एक गहरी सोच में डूब गई और फिर नन्हे मयंक के सोकर उठकर उसके पास आने पर ही वो इस सोच के घने जाल से मुक्त हो पायी मगर क्या वो सचमुच मुक्त हो गई थी अपनी उस गहरी सोच से???नहीं,बिल्कुल भी नहीं!आज की पूरी रात सुमेधा नें करवटें बदलते ही गुजारी मगर उसके पति सुकेत को हमेशा की ही तरह आज भी सुमेधा की उलझन या परेशानी बिल्कुल भी समझ नहीं आयी और रोज की ही तरह आज भी वो सुमेधा द्वारा अपनी ज़रूरत पूरी करके करवट लेकर खर्राटे मारने लग गया।वैसे भी सुकेत तो सुमेधा को बस अपनी ज़रूरत पूरी करने का एक सामान या साधन ही समझता था मगर सुमेधा को ये बात समझने में कई साल लग गये।कभी पागलों की तरह प्यार करती थी सुमेधा सुकेत को,उसकी हर छोटी से बड़ी पसंद या नापसंद का ख्याल रखना फिर चाहे वो उसे हमेशा हर एक मौके पर स्पेशल फ़ील कराना हो या फिर हमेशा उसकी हाँ में हाँ मिलाना हो,सुमेधा कभी भी नहीं चूकती थी।समृद्ध मायके पक्ष के कारण वो सुकेत को अक्सर आर्थिक मदद भी करती रहती थी,मतलब कि सुमेधा अपने पति सुकेत के लिए अपने तन,मन और धन से उसपर न्यौछावर हुआ करती थी मगर सुकेत का आये दिन शराब पीना,लेट नाइट ऑफिस की पार्टीज़ से घर आना और सुमेधा को सिर्फ और सिर्फ अपनी हवस मिटाने का एक जरिया मात्र समझना...सुमेधा को अंदर तक तोड़ गया था और फिर कहते हैं न कि औरत को सीता बनाने के लिए उसके पति को पहले खुद राम बनना पड़ता है।


रातभर करवटें लेती रही सुमेधा का आज जल्दी उठने का बिल्कुल भी मन नहीं था मगर उसे आज संजय से कुछ ज़रूरी बात करनी थी जिसके लिए आज मयंक को स्कूल भेजना बहुत आवश्यक था,बस यही सोचकर अलसाई हुई सुमेधा नें न चाहते हुए भी बिस्तर छोड़ दिया और सुकेत के ऑफिस और मयंक के स्कूल जाने के बाद उसनें सबसे पहले संजय को कॉल मिलायी।


संजय मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है और प्लीज़ तुम पहले मेरी बात बिल्कुल चुप होकर सुनना,बीच में मुझे टोंकना नहीं और हाँ ये मज़ाक तो बिल्कुल भी नहीं है।आज मैं बहुत सीरियस हूँ संजय!अब कुछ बोलोगे भी?

अरे!अभी तुम्हीं ने तो कहा कि चुपचाप सुनो।

संजय,प्लीज़ याररर!! मैं वैसे ही बहुत परेशान हूँ,मुझे और परेशान मत करो।संजय मैं...मैं तुमसे अब...मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या कहूँ,कैसे कहूँ???

सुमि,जो बात समझ में न आये,हमें उसे बिना समझे ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि हमारी जिंदगी में कई ऐसी उलझनें होती हैं जो सुलझाने से और भी ज्यादा उलझ जाती हैं और...

तुमनें क्या कहा?सुमेधा नें संजय को उसकी बात के बीच में ही टोंकते हुए कहा...

मैंने कहा कि कुछ उलझनों को हमें सुलझाने की बजाय वक्त और हालात पर ही छोड़ देना चाहिए!

नहीं उससे पहले क्या कहा?

उससे पहले..मैं समझा नहीं सुमि!

उफ्फ़...हाँ बस यही...यही संजय,एक बार फिर से कहो न!

क्या...सुमि!

हाँ...हाँ..यही!

सुमि..सुमि..मेरी सुमि,मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ सुमि!!

तरस गयी थी मैं अपने इस नाम को सुनने के लिए संजय।माँ और पापा के अलावा एक तुम ही तो थे जो मुझे मेरे इस प्यार वाले नाम से पुकारा करते थे और माँ-पापा के जाने के बाद तुम भी न जाने कहाँ खो गए थे इस स्वार्थी दुनिया की भीड़ में और..सुमेधा रोती ही जा रही थी।

प्लीज़ सुमि तुम रो मत मेरी जान...चुप हो जाओ प्लीज़,तुम्हें मेरी कसम सुमि!

नहीं संजय आज मुझे कह लेने दो मेरे मन की!तुम्हें पता है संजय मैंने शुरू-शुरू में सुकेत को कितनी बार बताया था कि माँ-पापा मुझे प्यार से सुमि कहकर बुलाते थे मगर,मगर उस इंसान नें तो जैसे मेरी कोई बात कभी सुनी ही नहीं और..सुमेधा की हिचकियाँ बंध चुकी थीं।

अच्छा सुनो!मुझे अब जाना होगा,दरअसल मेरी मीटिंग का टाइम हो गया है।सुमि मैं तुम्हें एक घंटे बाद कॉल करता हूँ,तब तक तुम्हें मेरी कसम तुम बिल्कुल भी रोना मत और हाँ अब तुम आराम करो।आज लंच में कुछ हल्का सा बना लेना।मैं वापिस आकर तुम्हारी सारी बात सुनूँगा,बाय डियर,लव यू एंड टेक केयर,कहकर संजय ने फोन रख दिया!

न जाने सुमेधा की ये कश्मकश उसका रुख किस मंजिल की तरफ़ मोड़ देगी???

जानने के लिए हम भी हैं बेताब और इसी तरह रहेगा हमारा साथ बरकरार,हैं न? मुझे पता है हम सबका जवाब है...हाँ!😊

क्रमशः...

निशा शर्मा...