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निकाह

निकाह
वह आठ साल की थी जब उसकी सलमा बाजी का निकाह हुआ था।महीनों पहले से घर में निकाह की तैयारियाँ चल रही थीं।'आयशा' बाजी के नए नए कपड़े,गहने देखकर वह बहुत खुश होती और अपनी अम्मी से कहती "अम्मी मेरा भी निकाह करा दो न"।अम्मी कहती "अभी तू छोटी है ,जब बड़ी हो जाएगी तो तेरा भी निकाह होगा"।वह फिर अम्मी से कहती "अम्मी में कब बड़ी होऊँगी"?।अम्मी कहती बस कुछ साल और फिर पता भी नहीं नहीं चलेगा और तू बड़ी हो जाएगी"।और वह एक दिन सचमुच बड़ी हो गई।बाजी अच्छे रंग रूप की थी इसलिये रिश्ते में ही आरिफ के घरवालों ने पसंद कर लिया था।आरिफ दुबई में इंजीनियर था।सलमा बाजी को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।वह जब भी इंडिया आती सबके लिये ढेर सारे तोहफे लाती।अब आयशा के लिये भी रिश्ते देखे जाने लगे थे।लेकिन इसे आयशा का नसीब कहो या उसका साधारण रंग रूप, कोई भी ढंग का रिश्ता आयशा के लिये नहीं आता।ऊपर से उसकी भाभी जुबेदा ने सारे परिवार पर दहेज और उत्पीड़न का केस लगा दिया था और खुद मायके जाकर बैठ गई।इससे आयशा के घरवाले इतना डर गए कि कल को यदि जेल होती है तो जवान लड़की की जिंदगी खराब हो जाएगी। इसलिये वह जल्द से जल्द आयशा का निकाह करना चाहते थे।आयशा के लिये रिश्ते देखे जा रहे थे,तभी घर पर आयशा की दूर की फूफी आईं उन्होंने आयशा के लिये शकील का रिश्ता बताया।उस समय तो आयशा के घरवाले कैसे भी करके आयशा का निकाह कर देना चाहते थे।शकील आयशा से दुगुनी उम्र का ,दिखने में भद्दा सा अधेड़ था।आयशा ने मारे लाज के पर्दे की ओट से उस सख्श का चेहरा तक नहीं देखा था।वह दुल्हन बनकर ससुराल चली गई।सुहागरात को जब उस सख्श ने कमरे में प्रवेश किया तब जाकर आयशा ने उसका चेहरा देखा।उसे एक जोर का झटका लगा कि ये सख्श मेरा पति है।वह आया और बोला "सो जाओ मुझे एक जरुरी काम से बाहर जाना है।और कुछ ही देर बाद कमरे से बाहर चला गया।फिर दिन निकलने पर ही घर आया।अब तो वह रातें बाहर ही गुजारने लगा।भरा पूरा दस बारह जनों का परिवार था,आयशा दिनभर काम में लगी रहती।एक दिन घर की कामवाली ने आयशा को बताया कि बीबी जी इस घर के लोग ठीक नहीं है और ये शकील गे है और धंधा करता है रातों को।इसके मर्दों से नाजायज संबंध हैं, ये सारी सारी रात बाहर रहता है। घर के बाकी जनों का भी चाल चलन ठीक नहीं है।और कुछ ऐसी बातें उन लोगों के बाबत बताईं।सुनकर आयशा के पैरों तले जमीन खिसक गई।एक दिन मौका देखकर नौकरानी की मदद से आयशा ने अपने मायके फ़ोन किया कि मुझे जीवित देखना चाहते हैं तो मुझे यहाँ से ले जायें।तभी उसका भाई उसे लिवाने चल दिया।आयशा के ससुरालवाले आयशा को भेजना नहीं चाहते थे।लेकिन उसके भाई ने कहा कि अम्मी की तबियत खराब है।तब जाकर वो माने और साथ में शौहर कहलाने वाला वह शख्श भी आया।ताकि आयशा को उसी दिन बापस ले जा सके।जब वह अपनी अम्मी से मिलने अंदर के कमरे में गई तो वहाँ उसकी बाजी भी बैठी हुई थीं ,जो निकाह के वक्त नहीं आ पाई थीं।उसे देखते ही उसे गले लगा लिया और बोली कैसी है तू।बाजी के गले लगकर आयशा की रुलाई फूट पड़ी और उसने रोते रोते सारी बातें बताईं।उसकी बाजी बोलीं अब हम आयशा को उस घर में नहीं भेजेंगे पहले ही तुम लोगों ने ऐसे आदमी से उसका निकाह करके उसकी जिंदगी खराब कर दी है।आयशा का शकील से तलाक करवाया गया।इस प्रकार आयशा निकाह शुदा से तलाकशुदा बन गई।आयशा पढ़ी लिखी तो थी ही उसकी बाजी ने उसे सलाह दी कि वह कहीं नौकरी कर ले जिससे उसका मन भी लगेगा और थोड़ी दुनियादारी भी सीखेगी।अब आयशा एक टेलीफोन बूथ पर नौकरी करने लगी।वह जहाँ भी नौकरी करती लोगों को यह पता होते ही कि यह तलाक शुदा है, उनकी नजरें उसके जिस्म को टटोलने लगतीं।इन सबसे परेशान होकर आयशा ने टेलीफोन बूथ की नौकरी छोड़कर एक स्कूल में नौकरी कर ली।उसके घरवाले उसका दूसरा निकाह कर देना चाहते थे,लेकिन उसका कहीं रिश्ता नहीं हो पा रहा था।उसकी उम्र भी बढती जा रही थी।और फिर उसके अब्बू और अम्मी भी इस दुनिया में नहीं रहे।अब वह बिल्कुल तन्हा हो गई थी और दिन रात अपनी किस्मत को कोसा करती थी।कि अल्ला ताला ने मेरा निकाह भी करवाया तो कैसा।औरत एक मर्द के साये में ही खुद को मुक्कमिल महसूस करती है।यही हाल आयशा का था, वह दिन रात अल्लाह को कोसा करती कि उसने उसकी किस्मत ऐसी बनाई।कुछ साल बीतने पर किसी दूर के रिश्तेदार ने इरफान मोहम्मद का रिश्ता बताया। उनकी बीबी का इंतकाल हो चुका था,बेटे बेटियाँ सबका निकाह हो चुका था,पोते पोती वाले थे।आयशा ने अपने अकेलेपन से आजिज आकर वह रिश्ता कुबूल कर लिया और इरफान से निकाह कर लिया।इरफान वैसे तो बहुत नेक इंसान थे लेकिन एक तो वह उम्रदराज दूसरे वह अपनी पहली पत्नी से बेहद प्रेम करते थे।इसलिये उनका रिश्ता महज जरूरत भर का था।इसे आयशा और इरफान के बीच उम्र का जो फासला था,उसे वह तय नहीं कर पाए और आयशा की जवान हसरतों को पूरा करने में नाकाम रहे।आयशा दो निकाह करके भी अतृप्त ,अधूरी और मातृत्व की खुशियों से महरूम रही।हाँ इरफान के साये में आयशा आर्थिक रूप से कभी परेशान नहीं रही।अच्छा खाना, कपड़ा, घूमना,फिरना सब कुछ उसे मयस्सर था।लेकिन ये छोटी सी खुशी भी उसके नसीब में ज्यादा दिन न टिक सकी।निकाह के करीब सात साल बाद मोहम्मद इरफान का इंतकाल हो गया।एक बार फिर आयशा अपने बुरे नसीब के साथ अकेली रह गई।फिर कुछ समय बीता शौहर के बेटे चाहते थे कि आयशा घर खाली कर दे और मायके चली जाए शौहर के बैंक बैलेंस को वह पहले ही हथिया चुके थे।लेकिन आयशा मायके स्थाई रूप से जाने को तैयार नहीं थी।आयशा के सौतेले बेटों ने आयशा से जोर जबदस्ती तो नहीं की लेकिन उसका ख़र्चा उठाने से इनकार कर दिया। अब वह फिर से भाई पर आश्रित हो गई।लेकिन घर नहीं छोड़ा, घर खर्च के लिये राशन पानी का इंतजाम आयशा का भाई ही करता था।आयशा उस घर में रह तो सकती थी लेकिन अपने शौहर की किसी चीज या जायदाद पर आयशा का कोई हक नहीं था, ऐसी उन्होंने वसीयत की थी।मायके में भी वह रहना नहीं चाहती थी क्योंकि मायके में रहने का अर्थ था भाभी को मुफ्त की नौकरानी मिलना।और आयशा ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी।भाई भी कब तक उसके खर्चे उठाता उसका अपना परिवार था।भाई चाहता था कि आयशा का फिर से निकाह हो जाये क्योंकि अभी तो बहुत जिंदगी पड़ी थी उसके सामने।दुबारा निकाह की सुनते ही आयशा की दबी हुई ख्वाहिशें जाग उठीं।क्या पता इस निकाह से वह माँ बन जाये।लेकिन 48 की उम्र में अच्छा रिश्ता कहाँ मिलता।पहले ढंग का रिश्ता मिलता तो आज वह इस मोड़ पर नहीं खड़ी होती। एक रिश्ता आया एक 75 साल के एक बुजुर्ग का वह सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे।आयशा ने सोचा कम से कम वह आर्थिक रूप से तो परेशान नहीं रहेगी, क्योंकि जिन महाशय का रिश्ता आया था उनको अच्छी पेंशन मिलती थी।इसलिये आयशा ने रिश्ते के लिये हाँ कह दी।लेकिन अंदर कहीं गहरे तक मलाल ही रहा कि तीन तीन निकाह करके भी उसे वो सब नसीब नहीं हुआ जिसकी एक औरत को जरूरत होती है।उसे बचपन में निकाह का शौक़ था उसका यह शौक ऐसे पूरा होगा उसने सपने में भी नहीं सोचा था।आयशा को समझ नहीं आ रहा था कि खुश हो कि रोये।अपनी अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिये बहकने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाई थी।कभी कभी वह मन ही मन अल्लाह से लड़ती कि जब उसे औरत का जन्म दिया उसके अहसास दिए तो उसकी किस्मत ऐसी क्यों लिखी।आयशा इन्हीं ख्यालों में गुम थी कि तभी अपनी भाभी रेहाना की आवाज सुनकर आयशा की तंद्रा भंग हुई "आयशा बाजी चलो निकाह का वक्त हो गया है"।और वह भारी मन से अपनी भाभी के साथ उस कमरे की और रवाना हो गई जहाँ उसका निकाह पढा जाना था ।