Insaaniyat - EK dharm - 30 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 30 (4) 1.3k 5.9k सिपाहियों ने आकर पांडेय जी को सलूट किया । हल्के से गर्दन हिलाकर पांडेय जी मुनीर के घर से बाहर निकल कर थोड़ी दूर जाकर रुक गए । उनके पीछे दोनों सिपाही भी थे । आसपास कोई भी न था यह देखकर पांडेय जी बोले ” कहो ! क्या खबर लाये हो ! कुछ पता चला ? ”” साहब ! गांव में हमने कई लोगों से पूछताछ की ,मुनीर का पता जानना चाहा लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया । उसके रिश्तेदारों के बारे में भी किसीने नहीं बताया । सबने एक ही बात कही यह छोटे पर से ही इसी गांव में रह रहा है और अनाथ है तो फिर इसके और रिश्तेदार कहाँ से होंगे । किसी से कोई जानकारी नहीं मिली । सबने उसको भला आदमी और सबसे मिलजुल कर रहनेवाला बताया । ” एक सिपाही ने पूरी बात बता दी । दूसरे सिपाही ने भी सहमति में सिर हिलाया । चिंतित से पांडेयजी ने उन्हें बताया ” यहां भी लगभग ऐसा ही है । अब क्या करें ? उसे कहाँ खोजा जाए ? ”” सर् ! उसके मोबाइल का लोकेशन ट्रेस किया जाए , इसके अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आता । ” एक सिपाही ने सुझाव दिया था ।पांडेय जी ने सहमति जताते हुए कहा ” तुम ठीक कह रहे हो । हमें मुनीर और उसकी बेगम दोनों का मोबाइल नंबर अपनी निगरानी में रखना होगा । अब यहां रुकने का कोई फायदा नहीं । चलो चलें । ”कहते हुए पांडेय जी मुनीर के घर के सामने जमा लोगों की भीड़ के बीच पहुंचते हुए रामु काका से बोले ” अभी तो हम वापस जा रहे हैं ,लेकिन मुनीर को हम तलाश करके रहेंगे । अभी भी आप लोगों में से कोई जानता हो मुनीर के बारे में तो कृपया बता दें । याद रखो ! गुनाहगार का साथ देनेवाला भी गुनाहगार होता है । ”रामु काका ने अपनी गंभीर आवाज में जवाब दिया ” हमें कानून की abcd मत पढ़ाओ इंस्पेक्टर ! हमने ये बाल धूप में नहीं सफेद किये हैं । हम गांव वाले सीधे सादे और ईमानदारी का जीवन जीना पसंद करते हैं । ये दांव पेंच की जद्दोजहद भरी जिंदगी तुम शहर वालों को ही मुबारक । अपने देश के कानून का हम सम्मान करते हैं और इतना ध्यान रखो अगर मुनीर दोषी हुआ तो हम गांववाले खुद उसको तुम्हारे हवाले कर देंगे । अब जाओ और अपना काम करो । ”गांव वालों के सख्त तेवर देखकर और मौके की नजाकत को समझकर दरोगा पांडेय जी दोनों सिपाहियों के साथ वहां से खामोशी से निकल आये । रामु काका का व्यवहार अचानक उन्हें बदला बदला सा लग रहा था । उन्हें साहब साहब कहकर सम्मान देनेवाला शख्स जब अचानक उन्हें इंस्पेक्टर और तुम कहकर संबोधन करने लगे तो विचित्र तो लगेगा ही । पांडेय जी की भी यही अवस्था थी । पैदल चलते हुए पांडेय जी गांव के बाहर उस कच्ची सड़क पर आ गए जहां उनकी जीप धूप में ही खड़ी थी । पांडेय जी ने कलाई पर बंधी घड़ी में नजर डाली और चौंक गए । लगभग ग्यारह बज चुके थे और अभी उन्हें बहुत कुछ करना बाकी था । मुख्य अभियुक्त असलम उनकी हिरासत में था और उसे न्यायालय में पेश करके उसे रिमांड पर लेने की कार्यवाही पूरी करनी थी । जीप में बैठते हुए पांडेय जी ने सिपाही को रामनगर थाने की तरफ मोड़ने का निर्देश दिया और कुछ देर बाद उनके निर्देश के मुताबिक जीप कच्ची सड़क पर अपने पीछे धूल का गुबार छोड़ते हुए अपनी मस्तानी चाल से हिचकोले खाते रामनगर थाने की दिशा में बढ़ी चली जा रही थी ।पांडेय जी के जाने के बाद मुनीर के घर के सामने जमा भीड़ कानाफूसी करती अपने अपने घर चली गयी । कुछ गांववालों ने रामु काका से पूरा माजरा समझना चाहा लेकिन कंधे उचकाकर अपनी अनभिज्ञता दर्शाते हुए उन्होंने सभी को वापस भेज दिया । सबके जाने के बाद रामु काका ने शबनम को आवाज लगाई ” बहु ! ”” जी आयी काका ” शबनम ने प्रत्युत्तर दिया था और अगले ही पल वह बाहर के कमरे में बैठे रामु काका के सामने दुपट्टे से सिर को ढंके गर्दन झुकाये खड़ी थी ।” ये क्या हो गया बहु ? क्या सचमुच मुनीर यहां आया था ? ”” जी ! ”” और फिर बिना किसीसे मिले वापस चला भी गया ? ”” जी ! ”” कहाँ गया ? ”” मुझे कुछ नहीं बताया उन्होंने । ”” तो कहां गया होगा वो ? अच्छा ! कुछ हुआ था वह बताया था ? ”” जी नहीं ! एक बार उनके जबान से निकला था मैंने कुछ गलत नहीं किया लेकिन फिर पूछने पर नकार दिया था । कुछ नहीं बताया था । हाँ ! कुछ परेशान जरूर लग रहे थे । ”” परेशान लग रहा था ? तो मुझे क्यों नहीं बताया उसी वक्त ? ”” जब वो आये थे रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे । आधी रात को आपको परेशान करना मुनासिब नहीं लगा । ”” हाँ ! सही कहा तुमने बहु ! अब हम परेशान हो जाते । क्योंकि अब वह हमारा कुछ भी नहीं लगता न ! कितनी आसानी से तुमने हमें पराया समझ लिया बहु । कितनी आसानी से हमें दूर कर दिया । ”” नहीं ! नहीं ! काका ! हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं थी । फिर भी अगर आपका दिल दुखा हो तो हम शर्मशार हैं काका ! हमसे गलती हो गयी । हमें माफ कर दो । ”” हाँ ! तुमसे गलती हुई है बहु ! जरूर हुई है लेकिन सवाल ये उठता है कि मुनीर गया कहाँ होगा ? और पता नहीं किस हाल में होगा ? उससे क्या गलती हुई है यह भी तो ठीक ठीक नहीं पता । हम क्या करें बहु ! हम क्या करें ? ”” आप परेशान न होइए काका ! मेरा खुदा में यकीन है । उस परवरदिगार आलम का खेल भी निराला होता है । कभी कभी अपने बंदों का इम्तिहान भी लेता है । मुझे पूरा यकीन है कि वही हमारी बिगड़ी भी संवारेगा और उन्हें दुबारा हमसे मिलवाएगा । जब हमने किसीका कुछ नहीं बिगाड़ा है तो वो भला हमारी क्यों बिगाड़ेगा ? ”” शायद तुम ठीक कह रही हो बहु ! ” कहकर रामु काका मुड़े और अपने घर की ओर चल पड़े । दरवाजे पर पहुंचकर मुड़े और वहीं से बोले ” फिर भी अगर उसका कोई फोन वोन आवे तो मुझे तुरंत बताना । ” कहकर रामु काका घर के अंदर चले गए ।मुनीर बड़ी देर तक सड़क किनारे पड़ी उस बेंच पर बैठा रहा और आंखें बंद किये हुए ही आगे की योजनाओं पर विचार करने लगा । कानून के हाथ से बचे रहना उसकी पहली प्राथमिकता थी । उसे याद आ रहे थे अपने दोनों बच्चे और प्यारी सी बेगम शबनम । मन की तड़प पर काबू पाता मुनीर उठा और आगे की तरफ बढ़ने लगा । समय सुबह के लगभग दस बज रहे थे । वातावरण में गर्मी बढ़ गयी थी और तपती दुपहरिया का आगाज हो गया था । अपनी पहचान छिपाने के लिए उसने गमछे को सिर पर लपेट रखा था जिससे वह निपट देहाती ही लग रहा था , लेकिन अब उसे सिर पर बांधे रखने में उसे बड़ी दिक्कत महसूस हो रही थी । एक तो गर्मी के मारे उसका बुरा हाल था और दूजे इस गर्मी में भी उसका चेहरा ढंका होना किसी के भी मन में संदेह पैदा करने के लिए काफी था । नजदीक ही एक उद्यान का दरवाजा खुला देख मुनीर उद्यान में ही एक पेड़ के नीचे जाकर हरि मखमली चादर सी बिछी घास पर बैठ गया । यहां बैठकर उसे बड़ी शांति मिल रही थी । अब उसने आगे आनेवाली परिस्थितियों पर विचार करना शुरू किया । यह शहर उसके गृहनगर के बिल्कुल पास का शहर होने की वजह से उसके गांव के या पास पड़ोस के गांव वालों के आने की संभावना अधिक थी । इसकी वजह से वह किसी दिन किसीकी निगाहों में भी आ सकता था , पहचाना जा सकता था और फिर पकड़ा जा सकता था । इसका मतलब उसका यहां रहना खतरे से खाली नहीं था । तो फिर कहाँ जाए वो ? क्या करे ? ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 29 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 31 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Science-Fiction એક પંજાબી છોકરી - 9 Dave Rupali janakray Motivational Stories દિલ ખાલી તો જીવન ખાલી - ભાગ 4 Shailesh Joshi Detective stories શિવકવચ - 8 Hetal Patel Classic Stories શિખર - 25 Dr. Pruthvi Gohel Horror Stories કોણ હતી એ ? 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