Bhutiya Jungle - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

भूतिया जंगल - 2

अब तक आपने पढ़ा आशीष अपने साथ उस जंगल में हुए घटना के बारे में बता रहा है .....

अब आगे...

आशीष ने एक गिलास पानी पिया और फिर से बोलना शुरू किया -
" दिन था बुधवार , बलरामपुर स्टेशन उतर कर वहां से गाड़ी पकड़ हम पहुंचे विवेक के चाचा के घर , पहले से ही खाने पीने का इंतजाम था इसीलिए दोपहर तक भोजन करके हम लोग निकल पड़े I
विवेक में अपने चाचा - चाची से बताया कि हम लोग आसपास घूमने जा रहे हैं पर हम लोगों को जाना था बैरिया के जंगल में उस मंदिर के पास जिसे नर्क का द्वार कहते हैं I
करीब देढ़ घंटे बाद हम वहां पहुंचे , रिक्शा व कोई गाड़ी राजी नहीं हुई उस जंगल वाले गांव के पास जाने के लिए और चल कर जाने में बहुत समय लग सकता है क्योंकि वहां से दूरी लगभग 5 किलोमीटर थी I हम सोचने लगे क्या किया जाए , तभी एक रिक्शा वाले ने कहा वह हमें उस जंगल के पास छोड़ देगा लेकिन उसके लिए सौ रूपये लेगा I मानसी ने कहा था कि 5 किलोमीटर के लिए सौ रूपये नहीं नहीं लेकिन बाद में हम सब के कहने के कारण वह भी राजी हो गई I अब सोचता हूं क्यों हम लोग राजी हुए I जो भी हो रिक्शेवाले ने जब हमें वहां उतारा तब शाम के साढ़े चार बजे थे और जाते समय उस आदमी ने कहा था ज्यादा अंदर मत जाइएगा लेकिन उस समय तो हमारे दिमाग में अनजानी बातों को जानने का नशा चढ़ा था I जंगल में पैर रखते ही पूरा शरीर न जाने किस डर से कांप गया I चारों तरफ केवल सुनसान कोई भी नहीं , मानो इस जगह पर सालों से कोई आया ही नहीं I मिट्टी है या नहीं या तो दिख ही नहीं रहा था क्योंकि उस जगह के चारों ओर जंगली लताएं , पत्ते और जंगली फूलों ने घेर रखा था I वह जगह बड़े बड़े पेड़ों से इतना घना था कि सूरज की रोशनी भी नहीं आ रही थी मानो किसी काले व अंधेरी गुफा में हम लोग खड़े हैं I मुझे एक बात बहुत ही अद्भुत लगा था कि वहां के पेड़ - पौधें दूसरे पेड़ - पौधों की तरह नहीं हैं I उन पेड़ों में कुछ तो ऐसा था कि ना चाहते हुए भी मेरे नजर बार-बार उसी तरफ जा रहे थे और जितनी बार उन पेड़ों की तरफ मेरे नजर पड़ते मेरे शरीर में भय की एक लहर दौड़ जाती ।मानसी ने इस बारे में हम सभी से बार-बार कहा इसीलिए हमने तय किया कि तीस मिनट के अंदर अगर हम उस मंदिर को नहीं खोज पाए तो वापस लौट जायेंगे I धीरे धीरे हम लोग आगे बढ़ने लगे बड़े-बड़े झाड़ियों से किसी तरह हम आगे बढ़ चले पर हम जितने भी आगे जा रहे थे मानो वहां की झाड़ियां और भी घनी होती जा रही थी I ठीक उसी समय मैंने और एक बात पर ध्यान दिया कि इतने सारे पेड़ पौधे होने के बावजूद कोई कौवे व दूसरे चिड़ियों की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी या कहें वहां एक भी चिड़िया नहीं थी I यह बहुत ही अद्भुत था पर उस समय हमने ध्यान नहीं दिया I
इसी तरह लगभग 20 मिनट और चलने के बाद दिखाई दिया एक जर्जर पुरानी मंदिर , उसे देख कर हम सभी बहुत खुश हुए थे I मंदिर के पास जाने में हमें कुछ और 7 - 8 मिनट लगे लेकिन मंदिर के पास जाकर हम सभी को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उस मंदिर का कोई दरवाजा नहीं था और मंदिर चारों तरफ है पेड़ -पौधे , जंगली फूल व बड़े-बड़े लताएं I देखने से ऐसा लग रहा था मानो यह मंदिर झाड़ियों और पेड़ पौधों से ही बना है I
उस समय शाम के साढ़े पांच ही बज रहे थे लेकिन वहां पर कुछ ज्यादा ही अंधेरा था I
राहुल ने कहा कि - " भाई चलो यहां से निकल जाते हैं मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा I "
मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया I हम चारों मंदिर के अंदर गए अंदर जाकर हम सभी और आश्चर्य हो गए मंदिर के भीतर मूर्ति व कुछ और नहीं था I वैसा मंदिर विश्वास करो मैंने पहले कभी नहीं देखा इसके अलावा वह मंदिर आजकल के मंदिरों जैसा नहीं था I बहुत ही अद्भुत हिंदू मंदिरों जैसा तो बिल्कुल भी नहीं I मंदिर के दिवालों में नक्काशी किया हुआ ना पहचानने वाले मूर्ति और कई तरह के प्राचीन चिन्ह , मंदिर कितना पुराना है यह ठीक नहीं बता सकता पर वहां पर बने चिन्ह मानो जगमगा रहे थे I मैंने देखा विवेक मंदिर का फोटो भी लेना शुरू कर दिया था क्योंकि उसे इन प्राचीन
मंदिरों व प्राचीन मूर्तियों से बहुत लगाव था I मैंने यह सब ना देख और भी अंदर देखना चाह पर सभी मुझे रोकने लगे मैंने भी उनकी बात मान लिया था लेकिन तभी मेरे नजर में आया मंदिर के अंदर दाहिने तरफ एक छोटा सा कमरा , मैंने कहा कि उस कमरे में क्या है यह एक बार देख लेते हैं फिर हम यहां से निकल जाएंगे I कमरे के अंदर जाकर देखा वहां कुछ भी नहीं केवल फर्श पर लकड़ी का बना दरवाजा है I उसेदेख मेरा कौतूहल और बढ़ गया सभी के मना करने के बाद भी मैं वहां जाकर उस दरवाजे को जोर से खींचकर खोला Iदरवाजे के खुलते ही अंदर से सड़े - गले की बदबू बाहर निकल आए I सामने झुक कर देखा बड़ा काला सा गड्ढा दरवाजे के उस पार से न जाने कहां अनजाने जगह पर चला गया है I उसका अंत कहां है कोई भी नहीं जानता I विवेक धीरे से बोला - " नर्क का द्वार "
लेकिन क्यों इसको नर्क का द्वार कहते हैं यह समझ नहीं पा रहा था I कुछ देर बाद ही एक अद्भुत आवाज हम सभी के कानों में आने लगी मानो यहां के झाड़ियों में कोई धीरे-धीरे चल रहा है लेकिन इस सुनसान जगह पर हम चारों के अलावा तो कोई और नहीं है I अब मुझे बहुत ज्यादा डर लगने लगा बाकी तीनों का भी एक ही हाल था I हम सभी ने निश्चय किया कि तुरंत ही हम यहां से निकल जाएंगे I
दिसंबर महीना ठंडी धीरे-धीरे बढ़ रही है इसीलिए कोहरे की एक चादर जंगल को चारों तरफ से घेर रखा है I शाम जितना ही बढ़ रहा है कोहरा और भी घना होता जा रहा है I विश्वास करिए इतना घना कोहरा मैंने इससे पहले कभी नहीं देखा I जंगल से निकलने का रास्ता तो दूर हम एक दूसरे के हाथ पैर भी ठीक से नहीं देख पा रहे थे I घने कोहरे को भेदकर आगे बढ़ते हुए ऐसा लगा कि हम लोगों ने बाहर निकलने का रास्ता खो दिया है I हमें ऐसा लगा जंगल के पेड़ पौधे, लताएं सभी मानो एक साथ सिर हिला रहे हैं हमने सोचा शायद तेज हवा चल रही होगी I ऊपर देखा तो कोहरे का एक आवरण हम चारों को ढक रहा है I एक फॉग बॉल जैसा कुछ बना है जो हमें चारों तरफ से घेर रहा है I ऐसा नजारा मैंने पहले कभी नहीं देखा पर यह सब सोचने का वक्त नहीं था I शाम के छः बज रहे थे पर चारों तरफ था काला अंधेरा , टॉर्च जलाने कभी कोई फायदा नहीं क्योंकि उस घने कोहरे के आगेटोर्च की रोशनी मानो जैसे जुगनू की रोशनी I हम चारों को बहुत ज्यादा डर लग रहा था फिर तभी एकाएक आसपास के पेड़ों और झाड़ियों से न जाने कैसी अद्भुत आवाजें आने लगी मानो यह पेड़ पौधे हमारी तरह ही बात कर रहे हैं I तभी ऐसा लगा कि आसपास के पेड़ - पौधे , झाड़ियां , लताएं सभी अद्भुत तरीके से हिलने लगे हैं । वह सभी मानो किसी भयानक जानवर की तरह जीवित है I तभी मैंने अनुभव किया कि मुझे किसी ने पीछे से जकड़ लिया है पीछे देखा तो एक जंगली फूल के जैसा कुछ मेरे पीठ से चिपक गया है और वहां से खून चूस रहा है I यही सब बाकी तीनों के साथ भी हो रहा था I पास ही देखा तो लताओं ने मानसी , राहुल और विवेक तीनों को पकड़ कर उसी तरह उनका भी खून चूस कर बार-बार चोट पहुंचा रहे हैं I मैं किसी तरह उन भयानक जीवों से अपने आप को छुड़ाकर डर के मारे पागलों की तरह आगे भागा लेकिन आगे दौड़ते हुए भी मेरे ऊपर बहुत सारे भयानक चीजों के हमले
हुए और उस कोहरे में रास्ता भटक एक ही जगह बार -बार पहुंचता रहा और हर वक्त ऐसा लगता कि कोई उस घने कोहरे में छिपकर मेरा पीछा किए चला आ रहा है लेकिन जितनी बार भी देखता उस घने कोहरे कोई जीवित जंतु का अस्तित्व नहीं था I ऐसा लग रहा था इस जंगल का कोई भी अंत नहीं है I जिधर भी नजर जाती उधर केवल कोहरे से ढका दैत्याकार पेड़ों की पंक्तियां दूर तक फैला हुआ हैलेकिन कुछ देर पहले जंगल ऐसा नहीं था I ऐसे ही भटकते हुए अंत में किसी तरह उस भयानक जंगल पर बाहर निकल पाया I अद्भुत तरीके से मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि उस भयानक जंगल में भटकते हुए बीच में 1 दिन बीत चुका है समय मानो अपने आप ही बढ़ गया था उस जंगल के अंदर I जो भी हो तब तक मेरे पूरे शरीर की शक्ति खत्म हो चुकी थी साथ में पानी लेकर नहीं गया था क्योंकि सोचा था तीस मिनट के अंदर ही हम लोग वापस लौट जायेंगे I किसी तरह साक्षात मौत के हाथ से बचकर बाहर निकल पाया मैं ""

इतना बात समाप्त कर शांत हुआ आशीष I राजेंद्र ,
जयदीप और श्याम तीनों के चेहरे पर अविश्वास की
रेखा स्पष्ट है I
राजेंद्र बोला - " झूठ वह झूठ बोल रहा है कहीं ईसने
ही तो मानसी को नहीं मार डाला शायद वही करके
आया है यह खून I "
आशीष जोर से रो पड़ा और हाथ हिलाकर ना का इशारा किया और फिर चेहरा पकड़कर रोता रहा I

इंस्पेक्टर जयदीप , राजेंद्र को सांत्वना देकर किसी
तरह बाहर ले गए और बोले - " हां पूरी बात कहानी
ही लग रही है लेकिन अभी कुछ कह नहीं सकते I
मांस खाने वाले पेड़ों के बारे में सुना है ठीक ऐसा ही
सुनने में लग रहा है लेकिन वह इतने बड़े नहीं है कि
किसी मनुष्य को मार डाले और मनुष्य की तरह दिखे ,
कुछ तो बात है I "
जयदीप कुछ सोचने वाले थे तभी पास से एक महिला
आकर बोली - " सर मैं कुछ बताना चाहती हूं I "
" हां बोलिए , वैसे राजेंद्र जी इनसे परिचय करवा दूं यह हैं विवेक की चाची जो बलरामपुर में रहती हैं I इन्होंने हीपुलिस के साथ बात करके आशीष को यहां लाने की व्यवस्था की "
" हां सर मैं कह रही थी कि बचपन से ही मैंने उस जंगल के बारे में बहुत भयानक कहानियां सुनी बहुत सारी कहानियां वहां के आसपास के लोगों में प्रचलित है I
मैंने अपने दादा जी से इस बारे में कुछ कहानियां सुनी थी लेकिन विवेक ने नहीं बताया कि वह वहां जा रहा है I वह जगह बहुत ही भयानक है सर, वह जगह शापित है I लोग कहते हैं कि उस जंगल के अंदर एक अलग ही दुनिया है जिसका हमारे दुनिया के साथ कोई मेल नहीं I अगर मैं जानता कि वह सभी कुछ शापित जंगल में जा रहे हैं तो उन्हें कभी नहीं जाने देती I "
जयदीप गुस्से में बोले - " क्या दूसरे दुनिया में जाने की
रास्ता , यह क्या पागलों जैसी बातें कर रही है I सच
एक ही है और वह यह है कि यह लड़का अपने तीन
दोस्तों की हत्या करके भाग आया है और उस जंगल में
जब तक नहीं जाएंगे इस रहस्य का समाधान नहीं होगा I "

इतना बात बहुत गुस्से के साथ बोलकर इंस्पेक्टर
जयदीप और राजेंद्र बाहर निकल गए I किसी के ना
जानते हुए उस समय भी वह महिला यानी निर्मला देवी
एक ही बात खुद के मुंह में बड़बड़ा रही थी -
" जो होना था वह तो हो ही गया नर्क का द्वार अब
खुल गया है I "...............

।। क्रमशः।।


@rahul