Insaaniyat - EK dharm - 31 books and stories free download online pdf in Hindi इंसानियत - एक धर्म - 31 (3) 1.2k 4.4k राखी से विदा लेकर असलम और रजिया सीधे अपने गांव पहुंचे थे । उनका गांव रामपुर शहर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित था । असलम जब गांव पहुंचा शाम का धुंधलका छाया हुआ था । गांव में पूरी शांति छाई हुई थी लेकिन असलम के घर के सामने कुछ गांववालों की भीड़ जमा हुई थी । असलम के पहुंचते ही गांव के मुखिया रहमान चाचा ने असलम को गले से लगा लिया और भर्राए स्वर में बोले ” कैसा है बेटा अब तू ! तेरी गिरफ्तारी की खबर ने तो जान ही निकाल दी थी लेकिन अभी थोड़ी ही देर पहले समाचार देखकर तेरी जमानत की खबर पता चली । बस ! तबसे तेरा ही इंतजार था । सभी गांव वाले तेरे लिए चिंतित थे । ”किसी छोटे बालक की तरह रहमान के सीने से लिपटा असलम भी भावुक हो गया था । सभी लोग बारी बारी असलम से मिलकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे । सबसे मिलने के बाद असलम ने सबका शुक्रिया अदा किया और अपने घर के सामने बिछी खटिया पर रहमान चाचा को बिठाने के बाद खुद भी एक तरफ बैठ गया । रहमान चाचा उससे कुछ पूछना ही चाहते थे कि तभी भीड़ में से किसी की आवाज आई ” असलम भाई जान ! क्या जरूरत थी तुम्हें किसी दुसरे के लिए अपनी जान जोखिम में डालने की ? ” तभी किसी दुसरे व्यक्ति की आवाज आई ” सुना है वो लड़की हिन्दू थी जिसकी अस्मत बचाने के लिए इसने अपने ही एक बंदे को हलाक कर दिया और खुद भी फंस गया । ”इनकी बातें सुनकर असलम का चेहरा क्रोध से सुर्ख हो उठा था लेकिन अंधेरा गहरा जाने के कारण वह सिर्फ आवाज ही सुन सका था । बोलनेवाले का चेहरा नहीं देख सका था । क्रोध इतना अधिक भड़क चुका था कि अभी उठे और उस व्यक्ति की कनपटी पर कस कर रख दे लेकिन उसके चेहरे की बदलती रंगत को देखते हुए रहमान चाचा ने पहले ही उसकी कलाई थाम ली थी । चाहकर भी वह रहमान चाचा की पकड़ से खुद को छुड़ाने का प्रयास भी नहीं कर सका । लेकिन उसके मनोभावों को समझते हुए रहमान चाचा ने गरजते हुए कहा ” खबरदार ! अगर किसी ने अनापशनाप बात की तो ! अरे अभी अभी आया है । उसे जरा खुलकर सांस लेने दो । थोड़ा सामान्य होने दो फिर बात कर लेना चाहे जितनी और जो पुछना है पुछ लेना । अभी तो सबसे गुजारिश है कि सब लोग अपने अपने घरों को लौट जाएं और असलम को आराम फरमाने दें । ”बिना चुंचपड किये सभी गांववाले एक एक कर वहां से विदा हो गए ।सबके चले जाने के बाद रहमान चाचा ने बड़े प्यार से असलम की निगाहों में झांकते हुए कहा ” बेटा ! पूरे गांव में तेरी इज्जत है । पढ़लिखकर सरकारी नौकरी पा गया है यह तेरी समझदारी का ही सबूत है । अब हम जाहिल तुझे क्या समझा पाएंगे लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि तूने जो किया अच्छा नहीं किया । ”तब तक रजिया चाय बना कर दो कप में ले आयी । असलम ने उससे चाय लेकर एक कप रहमान चाचा को थमाते हुए सपाट स्वर में पुछा ” क्या अच्छा नहीं किया रहमान चाचा ? उस लड़की को बचाना या उस दरिंदे को मारना ? ”असलम के हाथों से चाय की प्याली थामते हुए रहमान चाचा खामोश ही रहे ।उन्हें असलम से इस सवाल की उम्मीद नहीं थी । सकपका ही गए और खामोशी से चाय पीते रहे । जैसे ही उन्होंने चाय पीकर कप नीचे रखा असलम ने अपना सवाल दुहरा दिया ” चाचा ! बताया नहीं आपने मैंने क्या अच्छा नहीं किया । ”अपना गला खंखारते हुए रहमान चाचा ने उसकी आँखों में झांकते हुए अपना प्रभाव असलम पर बढ़ाने की नीयत से कहना शुरू किया ” असलम बेटा ! अब हम तुम्हें क्या समझाएंगे ? तुम तो खुद ही पढ़े लिखे समझदार हो । दीन और ईमान की तालीम भी तुमने हासिल की हुई है । उस दरोगा को हलाक करने से पहले तुमने एक पल के लिए भी यह क्यों नहीं सोचा कि वह भी तुम्हारी ही तरह खुदा का एक नेक बंदा था कोई काफ़िर नहीं ? इतनी बेरहमी से तो कोई काफ़िरों की हत्या भी नहीं करता जिस तरह से तुमने किया है । मैंने सुना है कि वह दरोगा पक्का पांचों वक्त का नमाजी था और अल्लाह ताला की शान में तकरीरें भी करता था । अब तुम मानो या न मानो तुम्हारे हाथों गुनाह बड़ा हो गया है और अल्लाह के कहर से बचने के लिए तुम्हें तौबा करना चाहिए ……”बड़े धैर्य से असलम ने उनकी बात सुनने की कोशिश की थी लेकिन रहमान चाचा कुछ ज्यादा ही समझदारी का प्रयास करने लगे यह असलम को नागवार गुजरने लगा । आखिर असलम से न रह गया और बीच में ही टोक पड़ा ” रहमान चाचा ! हमें आपसे इस तरह की बातें सुनने की कोई उम्मीद नहीं थी । आपने कहा वह काफिर नहीं था इसका मतलब अगर वह काफिर होता और मेरे हाथों ऐसा गुनाह हो जाता तब आप खुश होते न ? क्यों ? रहमान चाचा क्यों ? क्या काफिरों के जान की कोई कीमत नहीं होती ? क्या काफिर इंसान नहीं होते ? यह ऐसी सोच क्यों है रहमान चाचा ? कभी आपने सोचा है यह गंदी जहनियत यह नफरत की आग हमें कहां ले जाएगी ? यह नफरत की आग हमारे मुल्क की शांति और सद्भाव को जलाकर खाक कर देगी और इसी आग में खाक हो जाएगी इंसान की इंसानियत । इंसान इंसान ना होकर सिर्फ काफ़िर और मुसलमान रह जाएगा । और तब जो भयानक मंजर आंखों के सामने आएगा क्या आपने उसके बारे में ख्वाब में भी सोचा है ? तब मौत का नंगा नाच होगा । गली गली में इनसानी जिस्म कराहते हुए इंसानियत की दुहाई देंगे लेकिन तब कोई किसीकी नहीं सुनेगा क्योंकि तब तक सबकी आंखों पर धर्म की मोटी पट्टी लग चुकी होगी । अच्छा एक बात बताओ चाचा ! आप तो मुझसे बड़े और समझदार हैं । आपने माशाअल्लाह काफी दुनिया भी देखी हुई है । इंसान धर्म के लिए बना है या धर्म इंसान के लिए ? बस इस एक बात का जवाब आप मुझे ईमानदारी से दे दीजिए फिर आप जैसा कहेंगे में वैसा ही करूँगा । बोलिये ! ”कहने के बाद असलम कुछ देर के लिए खामोश हो गया और रहमान के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा ।असलम के तेज तेज बोलने की आवाज सुनकर रजिया घबरा कर बाहर आ गयी थी । बाहर असलम और रहमान चाचा को खटिये पर शांति से बैठे देख उसकी जान में जान आयी । क्या हुआ था जानने के लिए उसने असलम की तरफ सवालिया निगाहों से देखा लेकिन असलम ने उसे निगाहों से ही कुछ नहीं हुआ का इशारा करके उसे आश्वस्त कर दिया था । करीब ही बैठे रहमान चाचा उन दो जीवों की बातचीत न सुन सके और न ही समझ सके ।चाय के जूठे कप लेकर रजिया पुनः घर में चली गयी थी । ‹ Previous Chapterइंसानियत - एक धर्म - 30 › Next Chapterइंसानियत - एक धर्म - 32 Download Our App More Interesting Options Hindi Short Stories Hindi Spiritual Stories Hindi Fiction Stories Hindi Motivational Stories Hindi Classic Stories Hindi Children Stories Hindi Comedy stories Hindi Magazine Hindi Poems Hindi Travel stories Hindi Women Focused Hindi Drama Hindi Love Stories Hindi Detective stories Hindi Moral Stories Hindi Adventure Stories Hindi Human Science Hindi Philosophy Hindi Health Hindi Biography Hindi Cooking Recipe Hindi Letter Hindi Horror Stories Hindi Film Reviews Hindi Mythological Stories Hindi Book Reviews Hindi Thriller Hindi Science-Fiction Hindi Business Hindi Sports Hindi Animals Hindi Astrology Hindi Science Hindi Anything राज कुमार कांदु Follow Novel by राज कुमार कांदु in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 49 Share NEW REALESED Motivational Stories पाऊस मित्र की शत्रू Ankush Shingade Love Stories भाग्य दिले तू मला - भाग ७६ Siddharth Love Stories चाहूल - पहिल्या वहिल्या प्रेमाची... 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