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शुभि (6)



शुभि (6)

बहुत दिनों से शुभि देख रही थी कि घर में सब लोग व्यस्त हैं ।मॉं सुबह का नाश्ता फिर खाना बनाने के बाद,अतिरिक्त काम करतीं हैं ।


शुभि ने मॉं से जाकर पूछा—मॉं आप कभी रसोई में तो कभी छत पर क्या करती है?

मॉं ने शुभि को बताया—होली का त्यौहार आने वाला है,इसलिए मैं आलू के चिप्स बना रही हूँ ।इस मौसम में आलू की पैदावार होने के कारण बहुत महँगा नहीं होता और धूप अच्छी होने के कारण सूख भी जाते हैं ।चलो तुम भी देख लो कैसे चिप्स बनाये जाते हैं ।घर पर बने हुए चिप्स बहुत स्वादिष्ट होते हैं ।


पड़ौस में रहने वाली चाची जी भी अपनी छत पर बना रही थी उनकी छत मिली हुई थी सब दिखाई पड़ रहा था ।
मॉं ने आलू के छिलके छीलकर साफ किये फिर पानी में डाल दिए ।

उसके बाद उन्हें चिप्स बनाने की मशीन से काटना शुरू किया फिर दोबारा पानी में रख दिया ।चिप्स निकाल कर गर्म पानी में उबालकर छलनी में छानकर कुछ देर के लिए रख दिए ।ठंडे होने पर एक-एक निकाल कर बिछे हुए कपड़े पर डालती गईं।देख कर शुभि को अच्छा लगा,उसने भी मॉं के साथ उन्हें फैलाने में सहायता की ।

शाम को सारे चिप्स पलट दिये अगले दिन तेज धूप में सूखकर तैयार हो गये ।शुभि ने मॉं से कहा—मॉं मुझे खिलाइए तो मॉं ने बताया—इन्हें एक दिन की धूप और लगनी चाहिए फिर यह तेल या घी में तले जायेंगे तब यह खाने के लिए ठीक हो जायेंगे।


मॉं ने पापड़ भी बनाए,कुछ मैदा के,कुछ साबूदाना और कुछ पापड़ आलू के भी बनाए ।सूखने के बाद मॉं जब कंटेनर में रख रहीं थीं तो शुभि ने कहा—यह तो बहुत है मॉं कैसे खायेंगे ख़राब हो जायेंगे।

मॉं ने बताया—यह अच्छी तरह से सूख गये हैं अब इन्हें हम एक वर्ष तक सुरक्षित रखकर खा सकते हैं ।जब खाने होंगे तलकर रख लेंगे ।
शुभि ने कहा—यह तो बहुत अच्छी बात है मॉं ,इन्हें हम ज़्यादा दिन तक रखकर खा सकते हैं ।

अगले दिन चाची जी शुभि के घर आई,मॉंऔर चाची जी ने मिलकर गुझिया बनाने का काम किया ।जब सब बन गईं तो दादी जी ने गैस का चूल्हा जलाने के बाद सारी गुझिया घी में तलनी शुरू कर दी ।शुभि ने कहा—दादी जी मैं आपकी सहायता करू?—नहीं कि जब बड़ी हो जाओगी तब मॉं की सहायता करना ।यह नाज़ुक होती है तलने मैं सावधानी रखनी होगी वरना यह गर्म घी में खुल जायेंगीं ।
दादी सेक रहीं थी ।
मॉं और चाची मठरी बना रही थी गुझिया तल ली फिर मठरी और सेव भी बन गये।एक दिन दादी और मॉं ने मिलकर मिठाइयाँ भी बना ली।

अगले दिन मॉं चाची के घर पर जाकर उनकी सहायता कर रहीं थीं ।चाची जी ने भी सभी चीजें बनाईं।

शुभि ने दादी जी से कहा—दादी जी इतना सब बना है इसका क्या होगा ।
दादी जी ने शुभि को बताया कि होली का उत्सव आ रहा है ।होली पर सब एक-दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएँ देते है ।जब कोई आता है तो उसका स्वागत करते हैं।गले मिलकर एक-दूसरे को गले लगा कर बड़ों का आदर कर आशीर्वाद लेते हैं ,छोटो को स्नेह देते है ।

ख़ुशी से गुलाल लगाकर,रंगों से होली खेलते हैं ।


शुभि ने कहा—दादी जी मैं भी खेल सकती हूँ?
दादी जी ने कहा—हॉं तुम खेल सकती हो ख़ूब मस्ती करना लेकिन ऑंखें बचाकर,कान,नाक में रंग नहीं जाना चाहिए ।

होली पर परिवार के बच्चों के साथ सभी ने होली खेलने के बाद स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लिया ।सभी आने वालों को स्वादिष्ट व्यंजन खिलाकर गले मिले।

होली के बाद भी सब एक दूसरे के घर मिलने जाते रहे।कुछ दोस्तों से मिलने शुभि उनके घर गई जो उसके घर के पास रहते थे । होली के उत्सव होलिकादहन का भी आनंद लिया शुभि को बहुत अच्छा लगा ...


✍️क्रमश:

आशा सारस्वत