Anokhi Dulhan - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( भरोसा _३) 9

" अब तुम मुझे डरा रही हो।" वीर प्रताप ने चौकते हुए कहा।

जूही उसके करीब आई, " इसका यही मतलब है। तुम पिशाच हो। में तुमसे शादी करूंगी। ये हमारा पहला हनीमून है। I Love u।"

वीर प्रताप बस उसे देखता रहा। उसे डर क्यो नही लगता ? क्या वो जान कर भी अंजान बन रही है ? लेकिन आखिर वो मेरे पीछे यहां आई कैसे ? अनगिनत सवाल उसके दिमाग मे घूम रहे थे। लेकिन ये सवालों का वक्त नहीं था।

" में अभी तुम्हे वापस लेकर नही जा सकता इसीलिए अभी मेरे साथ चलो।" वीर प्रताप ने उसे कहा।

वो दोनो चल कर जा रहे थे। जूही किसी पाच साल के बच्चे की तरह यहां वहा भाग रही थी।


" वाउ देखो मुझे । मुझे देख कर कोई नही कहेगा की में पहली बार आई हू यहां। चलो इस तरफ।" जूही।


" मुझे उस तरफ जाना है।" वीर प्रताप उस से दूर चलने लगा।

" क्या हुवा ? खुश नहीं हो ? " जूही।

" और मुझे खुश क्यो होना चाहिए ? " वीर प्रताप।

" तुम्हे तुम्हारी दुल्हन जो मिल गई।" जूही।

" तुम मेरी दुल्हन नही हो। समझी। अब अगर तुमने एक भी बार शादी या दुल्हन मे से कोई भी शब्द पुकारा तो में तुम्हे यही छोड़ के चला जावूंगा।" वीर प्रताप ने गुस्से से उसे देखा।


" ठीक है। वैसे भी में तुम्हे कभी भी कही भी बुला सकती हू। चाहे तुम्हारी मर्जी हो या नही। भूलना मत।" जूही ने धीमी आवाज से कहा।


" क्या कहा? जरा वापस कहना?" वीर प्रताप।


" ये जगह कौनसी से है ? " जूही।


" इसे देवता ओ का बगीचा कहा जाता है। उस बोर्ड को देखो। उसका अर्थ है, परिया यहां रहती है।" वीर प्रताप।


" ओ वाउ। कही यही पे तुम्हारी मुलाकात भी एक परी से नही हुई!!! गौर से देखो मुझे। क्या मेरे अदृश पंख है। बिल्कुल नन्ही टिंकरबेल जैसे।" उसने अपने गालों पर उंगली रखी, और वीर प्रताप को देख पलके झपकाई।


वीर प्रताप ने अपना हाथ सर पर मारा, और बिना उसे जवाब दिए आगे चलने लगा।


" इतना भी बुरा जोक नही था। सुनो।" जूही। " पता है कनाडा को मेपल लीफ का देश कहते है। यहां जो भी इस गिरते हुए पते को पकड़ता है, उसे सामने वाले से प्यार हो जाता है।"


" में इतने सालो से यहां रहा हु, ये बकवास मैंने पहली बार सुनी।" वीर प्रताप।


" तुम कभी किसी के साथ घूमे हो जो तुम्हे पता होगा।" जूही ने गुस्से से मुड़ते हुए कहा।


" तुम्हे कैसे पता में दुसरो के साथ घूमता हू या नहीं।" वीर प्रताप।


" देखो अपने आप को। कितने गुस्से वाले हो ? कौन रहेगा तुम्हारे साथ?" जूही ने उसकी आंखो मे देख कहा। तभी वहा तेज हवा बहने लगती है। पेड़ों पर से एक एक कर पत्ते गिरने लगते है। " वाउ" जूही उसके सामने खड़ी हो उन पतियों को पकड़ने का प्रयास करती है। उसका वो हट्ट देख वीर प्रताप गुस्सा भूल हाथ ऊपर कर एक बार में एक पत्ती सीधी पकड़ लेता है।" तुमने क्यो पकड़ा ? दो मुझे मुझे दे दो।" उसने उसकी ऊंचाई तक पोहोचने की कोशिश पूरी की पर नाकामयाब। " जब तुम्हें मुझसे प्यार ही नहीं करना। तो उस पत्ती को रख कर क्या करोगे ?" जूही।


" ये क्या बकवास है। एक पत्ती पकड़ने से प्यार हो जायेगा क्या ?? और तुम भी तो ये पत्ती मेरे लिए ही पकड़ना चाहती थी ना ? " वीर प्रताप ने वो पत्ती जूही को दिखाते हुए कहा।


" बिल्कुल नही। में ये पत्ती कोने में खड़े उस हैंडसम लड़के को दूंगी।" जूही ने उस से कुछ दूर खड़े लड़के की और इशारा करते हुए कहा।


" क्या तुम्हे यकीन है, ये पत्ती तुम उसी के साथ बाटना चाहोगी।" वीर प्रताप ने जूही के करीब आते हुए कहा।


" हा। पूरा यकीन है।" जूही।


" ठीक है, तो ये लो।" वीर प्रताप उसके पास से पीछे हट गया। जूही को इसमें कुछ गडबड लगी लेकिन फिर भी उसने वो पत्ती ली और आगे बढ़ी। कुछ ही सेकंड का फासला रहा होगा उस लड़के पास जाकर वो इस तरह भागी, उसे देख वीर प्रताप की हसी निकल गई। "इस तरफ, यहां भागो। यहां जाना है मुझे।"


" हा। हा। ये अंग्रेजी भूत बोहोत ज्यादा डरवाने होते है। तुम जानते थे, की वो एक आत्मा है। फिर मुझे बताया क्यो नही।" जूही ने होटल के अंदर कदम रखते हुए कहा।


" तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहता था।" वीर प्रताप ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।


" हे मिस्टर। तुम के 17 साल की लड़की को होटल लेकर आए हो। ये गैरकानूनी है।" जूही।


" ओ। कुछ देर पहले यही 17 साल की लड़की मुझ से शादी करना चाहती थी। वो ठीक था क्या ?" वीर प्रताप ने उसके हाथ को छूते हुए कहा।


" तो मतलब तुम मानते हो। में तुम्हारी दुल्हन हू।" जूही उसके सामने खड़ी हो गई।


वीर प्रताप ने एक सांस छोड़ी, उसे धक्का दे अपने से दूर किया " नही। अब तुम यही रुको। में कुछ देर में आ जावूंगा।"


" मिस्टर। मुझे कुछ पैसे दे दो। अगर तुम्हे देर हो गई और मुझे भूख लगी तो। या फिर कही तुम मुझे यहां अकेला छोड़ इंडिया वापस चले गए तो में क्या करूंगी।" जूही ने उसे रोका।


" तुम्हे पैसों की क्या जरूरत ? अगर तुम्हे लगे तो मुझे सम्मन भेज देना। वैसे भी तुम तो मुझे मेरी मर्जी के बगैर भी बुला सकती हो।" वीर प्रताप ने उस से अपना हाथ छुड़वाते हुए कहा।


" तुमने सब सुन लिया था। मिस्टर मिस्टर सुनो तो।" जूही चिल्लाती रही पर वीर प्रताप उसे वहा छोड़ चला गया।


शाम के 6 बजने वाले थे, उसे जाकर दो घंटे हो रहे थे। वीर प्रताप जूही को एक पाच सितारा होटल मे छोड़ कही चला गया था।" ठीक है। अब उसे देर हो रही है। उसे सम्मन करूंगी, तो अच्छा नहीं लगेगा। उस से अच्छा उसे धुड लेती हू।" जूही होटल से बाहर निकली। उसने आस पास की सड़के दुकानें देखी। फिर वो एक बगीचे में पोहोची जहा पास ही में ऊची ऊची पहाड़िया थी। कई जोड़े वहा घूम रहे थे। कुछ लोक अपने बच्चो के साथ वहा पिकनिक का आनंद ले रहे थे। उसे वो जगह पसंद आई, उसने कुछ देर वहा ठहरने का निर्णय लिया। वो जैसे ही एक ऊची पहाड़ी के पास पोहोची, उसे वो दिखा।
" आखिरकार। कहा था ना तुम्हे कही से भी धूड़ लूंगी।"