Karn Pishachini - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

कर्ण पिशाचिनी - 5

                     देखते ही देखते शनिवार आ गया । उधर शुक्रवार से ही गोपालेश्वर अपने काम में व्यस्त है । यज्ञ कुंड बनाया जा रहा है और इस बार वह पंचमुंडी के आसन पर साधना करना चाहता है । उपर्युक्त पेड़ के नीचे पंचमुंडी का आसन बनाया जा रहा है । इसमें लगने वाले पांच सिर शनिवार शाम तक जुगाड़ हो जाएंगे । नाग , बंदर , सियार , चंडाल और अकाल मृत्यु से मरे किसी मनुष्य का सिर , इन पांच कटे सिर की जरूरत होगी । आसन के नीचे उसे पांच  कोनों में गाड़ देना होगा । उसके ऊपर आसन तैयार करके गोपालेश्वर साधना करने बैठेगा । शनिवार 24 घंटे में चार बार चावल , मांस और शराब देकर पिशाच को भोग लगाना होगा तभी वो संतुष्ट होंगे । सभी आवश्यक चीजों का इंतजाम हो गया है । शनिवार रात गोपालेश्वर को साधना करने बैठना है ।

शुक्रवार को विजयकांत स्कूल नहीं गया । वह घर की दरवाजा व खिड़कियों कों बंद करके बैठे रहे । आज शनिवार है , चिंता की वजह से विजयकांत पूरी रात सो नहीं पाया । भोर होते ही कोई उसके दरवाजे कों खटखटाने लगा। बहुत देर तक वह डर के कारण बिस्तर से नहीं उठा । वह बिस्तर पर तब तक बैठा रहा जब तक बाहर से गुरुदेव महानंद की आवाज नहीं सुनाई दिया ।
गुरुदेव के आवाज को सुनते ही वह दौड़कर गया और दरवाज़े को खोल दिया फिर उनके चरणों में गिरकर रोता रहा । महानंद जी ने उसे शांत कराया । विजयकांत ने पिछले 1 महीने के घटनाएं गुरुदेव से बता दिया ।
सब कुछ सुनकर महानंद आचार्य बोले ,
" आज उपवास रहो क्योंकि तुम्हें बहुत सारे कार्य करने हैं । मैं भी उपवास रहूंगा । मुझे नल दिखाओ पहले मैं नहा लेता हूं । तुम भी नहा लेना तब तक मैं एक बार श्मशान होकर आता हूं । लौटकर सब कुछ बताऊंगा तबतक जप करना क्योंकि मन को सख्त करना होगा । आज तुम्हें बहुत कुछ करना है । "
विजयकांत ने गुरुदेव के कहे अनुसार सभी कार्य किए ।
गुरुदेव के शमशान जाने के बाद वह नहा धोकर गुरुदेव के बताए मंत्र का जप करने लगा ।
महानंद जी लौटकर विजयकांत से बोलते रहे । ,
" मैंने चिट्ठी पाकर तुम्हारे ग्रह नक्षत्र की गणना किया था ।
जल्द ही कोई मुसीबत आने वाली है इसमें प्राण हानि का योग भी है । इसीलिए समय न व्यर्थ करते हुए मैं यहां पर आने के लिए रवाना हो गया था । मुझे हमेशा संदेह था कि गोपालेश्वर इतनी आसानी से अपने साधना भंग करने वाले को नहीं छोड़ेगा । लेकिन इतनी जल्दी वह तुम्हें खोज लेगा यह मैंने नहीं सोचा था । लेकिन मुझे पहले ही सोचना चाहिए था कि इनके पास वशीभूत प्रेत - पिशाच भी रहते हैं । जो तांत्रिक के कई कार्यों को करते हैं । शायद यही प्रेत तुम्हें परेशान कर रहे थे । तुम्हारा देह - बंधन था इसलिए कुछ नहीं कर पाए । लेकिन आज फिर गोपालेश्वर कर्ण पिशाचिनी साधना में बैठेगा । मैं उसके सामग्री व साधना स्थल को देखकर आ रहा हूं । इस साधना का प्रभाव तुम्हारे ऊपर पड़ेगा । वह तुमको खींच कर ले जाने की कोशिश करेगा लेकिन तुम उसे रोक नहीं पाओगे क्योंकि आज वह पंचमुंडी के आसन पर बैठकर साधना करेगा । वहां पर बैठकर वह और भी शक्तिशाली हो जाएगा । "
रोते हुए विजयकांत बोला ,
" गुरुदेव तो क्या आज ही मेरा अंतिम दिन है । आज ही है  मेरा अंतिम दिन ।.........."
" नहीं बेटा इतना मत टूट जाओ । शुभ दिन तुम्हारा जन्म हुआ है , तुम पर भगवान की कृपा है । "
" लेकिन गुरुदेव आपने ही तो बोला कि वह मुझे खींच कर ले जाएगा । "
" विजयकांत मैंने तंत्र साधना नहीं किया है लेकिन उस बारे में बहुत कुछ पढ़ा और जाना है । तंत्र साधना में हमेशा पिशाच व यक्षिणी को संतुष्ट रखना पड़ता है । अगर क्रिया में कुछ भूल हुई तो इसी भयानक पिशाच के हाथों उस तांत्रिक की मृत्यु होगी । हमें इस मौके का फायदा उठाना होगा क्योंकि गोपालेश्वर अपने साधना को कभी अच्छे कार्यों में नहीं लगाएगा । हम उसे सफल नहीं होने देंगे । मैं हमेशा जिंदा नहीं रहूंगा मेरे जाने के बाद तुम्हें कौन बचाएगा । कुछ तांत्रिक हमेशा बदला लेने के लिए जलते रहते हैं लेकिन मैं किसी पिशाच साधक के साथ कैसे लडूंगा । उसके क्रिया में कुछ ना कुछ ऐसा करना होगा कि उसकी साधना गलत हो जाए । और इसे तुम्हें ही करना होगा । तुम्हें हानि पहुंचाने की साधना करने से पहले ही तुम वहां पर जाओगे । बाकी सब कुछ मैं तुम्हें सिखा दूंगा । वहां से कुछ ही दूरी पर मैं रहूंगा , तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं । "

धीरे-धीरे शाम हुई । विजयकांत गुरुदेव के कहे अनुसार श्मशान में बने देवी काली मंदिर के पास जाकर बैठा ।
श्मशान में थोड़े अंधेरे वाले स्थान पर गोपालेश्वर ने अपने साधना स्थल को सजाया है । गोपालेश्वर नदी में नहाने के लिए जाने वाला है । विजयकांत सब कुछ देख रहा है और कुछ ही दूरी पर महानंद जी भी सब पर ध्यान रख रहे हैं ।
गोपालेश्वर नहाने के लिए नदी की तरफ गया । आसन के पहरे के लिए उसने अपना चेला वहाँ बैठाकर रखा है ।
गोपालेश्वर नहाने के बाद यज्ञ कुंड के सामने आकर बैठ गया । उसने मंत्र पढ़ते हुए पूजा कों आरंभ किया ।
चारों तरफ का परिवेश क्रमशः बदलता गया । साधना स्थल के आसपास तेज हवाएं बहने लगी तथा चारों तरफ एक सड़ा गंध फैलने लगा ।
धीरे-धीरे बिना आवाज किए विजयकांत वहां खड़ा हुआ जहां पर गोपालेश्वर का चेला पंचमुंडी आसन तैयार कर रहा है । चेला पांचो सिर को मिट्टी खोदकर वह सजा रहा था । विजयकांत वहीं पर बैठ गया , उसे देखकर चेले ने जल्दी से पांचों सिर को पांच कोने में गाड़ दिया ।
यह देख विजयकांत को उल्टी आ रही थी । पूरे दिन का उपवास शरीर , आतंकित मन तथा उसके ऊपर यह भयानक दृश्य व दुर्गंध उसे पागल करने लगे ।
विजयकांत इच्छा हुआ कि यहां से भाग जाए लेकिन इससे तो उसका कोई लाभ नहीं होगा । मन को सख्त करके विजयकांत वहीं पर बैठा रहा ।
इधर एक बार विजयकांत को देखकर गोपालेश्वर और भी उत्तेजित हो गया । उसने सोचा कि शायद उसके मंत्र ने काम करना शुरू कर दिया है ? इसी वजह से गोपालेश्वर और भी तेजी से मंत्र पढ़ने लगा ।  यज्ञ समाप्त करके वह पंचमुंडी के आसन पर बैठेगा । बीच-बीच में वह अपने गले में शराब डाल रहा है क्योंकि इस साधना का एक सबसे महत्वपूर्ण उपकरण शराब है ।
पंचमुंडी आसन लगभग तैयार हो चुका था । विजयकांत ने देखा कि उसके पास सामने ही गोपालेश्वर के चेले ने बंदर का सिर मिट्टी में गाड़ा था । आसन का कार्य समाप्त करके वह चेला नदी की तरफ चला गया ।
यही तो सही मौका है । जो भी करना है अभी करना होगा । गोपालेश्वर उधर यज्ञ को घी पिलाने में मस्त थे । आते वक्त लाए एक खुरपी को अपने जेब से निकाल विजयकांत ने जल्दी से बंदर के सिर को वहाँ से खोदकर बाहर निकाला फिर उसे पीछे नदी की तरफ फेंक दिया ।
इस काम को करते वक्त विजयकांत का हाथ कांप रहा था   ऐसा लग रहा था कि वह बेहोश हो जाएगा लेकिन फिर भी किसी तरह उस जगह को पहले जैसा मिट्टी से भर दिया । अब यहां से भागना होगा । विजयकांत चुप - चाप वहाँ से उठकर काली मंदिर की तरफ चलता बना । वहां पर गुरुदेव हैं ।
यज्ञ समाप्त कर गोपालेश्वर अपने आसन से उठ खड़े हुए । अब उन्हें पंचमंडी के आसन पर बैठना है । आसन के पास ही देखा तो विजयकांत अपनी जगह पर नहीं था । फिर देखा कि वह तो काली मंदिर के चौखट पर बैठा है । बैठे रहने दो , सही वक्त आने पर वह अपने आप यहां चला आएगा । पंचमुंडी के आसन पर बैठकर गोपालेश्वर ने अपनी देह शुद्धि व बंधन किया । आसन पर बैठकर जप  शुरू करते ही उन्हें कोई अदृश्य शक्ति वहाँ से हटने के लिए मजबूर करता रहा । गोपालेश्वर जितनी सख्ती से बैठने की कोशिश करने लगा प्रतिरोध उतना ही ज्यादा बढ़ता गया । हवा अब आंधी के जैसी चलने लगी थी , आसपास के पेड़ों की शाखाएं टूटने लगी । काली मंदिर के पास खड़े दो-तीन लोग यह देखकर डर गए । वो सभी श्मशान से बाहर की ओर भागे । अचानक एक बिजली गिरने की आवाज आई और तुरंत ही गोपालेश्वर के चिल्लाने की आवाज आई । विजयकांत ने देखा कि एक आग का गोला गोपालेश्वर के चारों तरफ घूम रहा है और
गोपालेश्वर के मुँह से केवल ' आआआ ' आवाज़ ही सुनाई दे रहा था । कुछ देर बाद ही सब कुछ शांत और स्वाभाविक हो गया ।
विजयकांत डर रहा था लेकिन महानंद जी आसन की तरफ गए । वहां पर पहुंच कर देखा तो गोपालेश्वर अपनी अंतिम सांसे ले रहा था ।
महानंद जी बोले ,
" गोपाल मैं महानंद , मुझे पहचाना ? "
" बचपन में मैं जिसके साथ खेला था , क्या उसे भूल सकता हूं । क्या इस कार्य को तुमने अंजाम दिया ? "
" नहीं गोपाल मैंने अपने हाथों से कुछ भी नहीं किया ।लेकिन मैं अगर ऐसा ना करवाता तो तुम एक निर्दोष की जान ले लेते । अब तुम ही बताओ ऐसा मैं कैसे होने देता ।
अंत में जो करना था तुम्हारे पिशाच ने ही कर दिया । गोपाल तुम्हारे साधन कार्य में गलती हुई है । "
गोपालेश्वर धीरे-धीरे बोला ,
" पिताजी की बात ही सत्य हुई नंद , उन्होंने मुझसे एक बार कहा था कि मेरी अकाल मृत्यु होगी । "
गोपालेश्वर वहीं अकाल मृत्यु मारा गया । इसीलिए महानंद जी ने उसके शव को नदी में डाल दिया और फिर खुद नाहकर विजयकांत के घर पहुंचे ।
अगले दिन गुरुदेव अपने घर लौटेंगे इसीलिए विजयकांत ने पूछा,
" किसने मारा तांत्रिक को और क्यों ? "
" पंचमुंडी आसन गलत है यह जाने बिना ही गोपालेश्वर साधना करने बैठा था । लेकिन कर्ण पिशाचिनी इतनी बड़ी गलती बिल्कुल भी माफ नहीं करेगी । कर्ण पिशाचिनी ने ही गोपालेश्वर को मारा । इसीलिए हां इसीलिए कर्ण पिशाचिनी साधना बहुत ही भयानक है । थोड़ी सी गलती भी जान से हाथ धोने के लिए बहुत है । जो भी हो तुम्हारे ऊपर से मुसीबत कट गई । मैं अब तुम्हारे देह - बंधन को खोल देता हूं । अब बिना किसी चिंता के अपना स्वाभाविक जीवन बिताओ । ".......

 

                @rahul