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खास हलवा

एक थी लड़की, नाम था सोना. एक दिन जब उसका जन्मदिन आया तो वह मां के पास आकर बोली,

‘‘ मां-मां मैं हलवा खाऊंगी.’’

वैसे तो वे गरीब लोग थे और हलवा-पूरी या पुलाव-बिरयानी के बारे में कभी नहीं सोचते थे, फिर उस खास दिन की परवाह करते हुए मां ने सूजी की जगह आटे से काम लिया, चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल किया, घी की जगह पानी से काम चलाया और इस तरह बनाया, सोना के जन्म दिन का खास हलवा.

अब पत्ते का एक दोना बनाकर, उसमें हलवा डालकर मां ने सोना को समझाया, ‘‘ प्यारी बेटी, यहीं बैठ-बैठकर खाना. बाग में कतई न जाना. और जो वहां गई तो हलवे का गीत हर्गिज न गाना.’’

लेकिन सोना की तो हर बात उल्टी थी. उसे जो काम करने को मना किया जाता था, वो उसी को सबसे पहले करती थी. उसे जहां जाने को मना किया जाता, वो वहीं सबसे पहले जाती थी. सो जो होना था वही हुआ. यानी हलवा हाथ में लिए सोना बाग में जा पहुंची और जोर-जोर से गाने लगी.

वहीं बाग के पीछे एक गंदा नाला था, जिसमें तमाम कूड़ा फेंका जाता था और हर घर, कारखाने का गंदा पानी वहां आकर जमा होता था. उस समय वहीं बैठा था एक मक्कार भेड़िया. भेड़िया रोज गंदा पानी पीने वहां आया करता था क्योंकि साफ पानी से उसे शैतानी करने की इच्छा नहीं होती थी.

अत: ऐसे में जब उसने एक लड़की को हलवे का गीत गाते सुना तो उसके कान खड़े हो गए और वह लड़की को मजा चखाने तथा उसका हलवा खुद चखने की तिकड़म सोचने लगा. फिर तुरंत ही एक कलाबाजी खाकर वह कूड़े के ढेर पर जा पहुंचा. ढूंढ-ढूंढ कर एक खाकी कुर्ता खोज निकाला. उसे पहना. एक लाल टोपी ढूंढ निकाली. उसे पहनी. थोड़ी देर पागलों की तरह नाचा, फिर थोड़ा हंसकर, मुंह छिपाकर, पूंछ समेटकर सोना की तरफ चल दिया.

सोना ने अभी हलवा खाना शुरू नहीं किया था. वह तो बस हलवे की खुशी और अपने जन्मदिन के उत्साह में गाए जा रही थी.

पास आकर भेड़िया ने उसके हलवे के दोने में झांका और मुंह बनाकर बोला, ‘‘छीं....छीं गुड़ का हलवा. ना काजू... ना किशमिश!’’

सोना रूकी. हैरानी से खाकी कपड़ों में लिपटे भेड़िए की ओर देखा और उसे बिना पहचाने भी डर कर पूछा, ‘‘ कौन हो तुम?’’

‘‘ खास हलवा वाला’’ भेड़िए ने मक्कारी से कहा.

‘‘ खास हलवा कैसा होता है?’’ सोना ने पूछा

‘‘ उसमें केसर-पिस्ता होता है, काजू-किशमिश होता है.उसे दूध-घी से बनाया जाता है और इतना तर होता है कि खाने के तीन दिन बाद तक भी हाथ तर रहता है.’’ भेड़िए ने कहा.

सोना ने अपने दोने की तरफ देखा. उसका हलवा बदरंग और सूखा-सूखा सा था.

‘‘ तुम्हें काजू और किशमिश चाहिए तो मेरी जेब में हाथ डालो और निकाल लो.’’ भेड़िए ने कहा.

सोना ने झटपट से भेड़िए की जेब में हाथ डाला पर भेडिए की जेब में कहां से काजू-किशमिश आते. उल्टे उसकी जेब फटी हुई थी और उसमें दो-तीन कंकड़ अटके थे. उस पर सोना के हाथ में भेड़िए की झबरी झाड़ सी पूंछ आ गई.

हाथ बाहर निकालकर कंकड़ों को दिखाकर सोना ने पूछा, ‘‘ यही है काजू-किशमिश?’’

भेड़िए ने हंसकर कहा, ‘‘ ये तो पैसे है. इनसे काजू-किशमिश खरीदे जा सकते है.’’

हलवे की महक से लालची भेड़िए का बुरा हाल था. उससे और सब्र ही नहीं हो रहा था. लेकिन बाग में वह जबरदस्ती उससे हलवा छीन कर भाग नहीं सकता था. अत: उसने एक चाल चली. सोना के हाथ से कंकड़ों को लेकर वह बोला. इन पैसों से मैं जादू के जोर से काजू किशमिश मंगाता हूं.’’

इतना कहकर उसने कुछ अगड़म-बगड़म बड़बड़ाते हुए वे कंकड़ चारों तरफ फेंकदिए.

उसके बाद कुर्ते के भीतर से अपनी पूंछ को बाहर निकालते हुए जमीन की ओर इशारा करके बोला,

‘‘ हलवे को यहां रखो. मैं अब जादू से हलवे को तर करता हूं.’’

भेड़िए की पूंछ को हैरानी से देखते हुए सोना हलवे का दोना नीचे रख दिया.

अब भेड़िए ने अपना काम शुरू किया. तीन कलाबाजियां खाकर दांत किटकिटाए. फिर एक अजीब सा गीत गाते हुए हलवे के चारों और चक्कर काटते हुए दोने में अपनी पूंछ डुबोकर उसे चाटने लगा और चटकारे से ले लेकर खाने लगा.

इधर दूसरी तरफ क्या हुआ ? भेड़िए ने जो कंकड़ उछाले थे, उनमें से एक कंकड़ जाकर एक गुस्सैल कुत्ते के सिर पर लगा. वह रात भर जागा था, सो पत्थर खाकर उसे इतना क्रोध आया कि वह उसी दिशा को सूंघ कर तीर सा दौड़ा और टूट पड़ा पत्थर फेंकने वाले पर.

भेड़िए को समझने और बूझने का मौका भी नहीं मिला. और कुत्ते ने झट से उसकी पूंछ अपने जबड़े में दबा ली. भेड़िया दर्द से चींख कर इतनी जोर से छटपटाया कि उसकी पूंछ कुत्ते के मुंह में ही कट कर रह गई. और वह पूंछ कटाकर जान बचा कर किसी तरह जंगल की ओर भागा.

इधर कुत्ते और भेड़िए की आवाज सुनकर सोना के माता-पिता बाग में आए तो अपनी मुर्गियों के दुश्मन भेड़िए की पूंछ पाकर और सोना को सही सलामत देखकर बड़े प्रसन्न हुए. सोना के पिता ने भेड़िए की पूंछ उठा ली. वह काम की चीज थी जिसे बाजार में बेचकर छ: मुर्गिया खरीदी जा सकती थी.

इधर सोना बहुत डर गई थी. मगर उसकी बेवकूफी की कहानी सुनकर उसके माता-पिता दोनों हो-हो कर हंस दिए.