My story is my word in Hindi Short Stories by Deepak Pradhan books and stories PDF | मेरी कहानी मेरी जुबानी

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मेरी कहानी मेरी जुबानी

मै दीपक प्रधान मेरा जन्म 1जुलाई1993 में मध्यप्रदेश के धार जिले के धामनोद शहर में हुआ था। मैं एक साधारण परिवार का सदस्य हूँ, हम परिवार में कुल 5 सदस्य थे पापा का नाम जगदीश प्रधान माता का नाम प्रमिला प्रधान मेरी बड़ी बहन का नाम माया प्रधान जो मुझ से 2 साल बड़ी है और मुझसे छोटा एक भाई है। मेरे बचपन में ही मेरे मां का स्वर्गवास हो गया था। मैं पढ़ाई करता हूं साथ ही जॉब भी करता हूं दीदी की शादी हमने हाल ही में की पापा मजदूरी करते हैं। हम बहुत ही साधारण परिवार से हैं पापा इतना नहीं कमा पाते कि हम को पढ़ा पाए इसीलिए हम भी काम करके पढ़ाई करते हैं। मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती थी और मेरी मां का सपना था कि मैं सिर्फ एक अच्छा लेखक बन सकूँ इसलिए मैं लिखने का प्रयास करता हूं और मुझे मेरी मां का सपना पूरा करना है एक अच्छा लेखक बनना है इसीलिए लेखन की दुनिया में मैं निरंतर प्रयासरत हूं। आज मेरे पास मेरी मां नहीं है पर आज जो कुछ भी हूं मैं मेरी मां की वजह से हूं और मैं आज पढ़ लिखकर ग्रेजुएट हो गया हूं और मैंने स्व् लिखित मेरी दो डायरिया लिखदी मेरी माँ के ऊपर में आज जो कुछ भी हु मेरी माँ के आशिर्वाद के दम प्र हु बैंक में सहायक कर्मचारी के पद पर कार्यरत हूं।
मेरी कहानी मेरी जुबानी पार्ट-2


आज 1 नवंबर 2003 दिवाली की धनतेरस की रात है यह दिन मेरीे जिंदगी का सबसे मनहूस दिन था उस दिन शनिवार का दिन था दीवार घड़ी में 6:00 बज कर 30 मिनट समय हो रहा था आज के दिन ने मुझसे मेरा सबसे कीमती मेरी मां को उस ऊपर वाले ने छिन लिया था।
अगली सुबह मैंने मेरी मां को आखिरी मुखाग्नि दी और कसम खाई कि मैं मेरी मां का आखिरी सपना हूँ और मैं उनका प्यारा सपना पूरा करूंगा।
आज जब मेरी मां के चले जाने के 2 माह बाद मेरी पांचवी कक्षा का नतीजा आने वाला था और नतीजा असफल रहा में फेल हो गया था क्योकि मम्मी को लंबे समय से ब्लड कैंसर जैसी भयंकर बीमारी थी तो लंबे समय से मैं भी ठीक से पढ़ नहीं पाया था फिर भी मैंने अपनी हिम्मत नहीं हारी और असफलता मिलने के बाद भी सफलता पाने को फिर स्कूल जाने लगा और अपना घर खर्च चलाने के लिए रोजगार भी करने लगा क्योकि हिम्मत करने वालो की कभी हार नही होती।
और आज मैं अपने दोनों कामों में कामयाब हो गया आज सन 2004 को मैंने कक्षा 5वी.मैंने अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कर ली थी।
-मुश्किलें दिलों के इरादे आजमाती है,
स्वप्न के परदे आँखों से हटाती है,
उम्मीद मत हार कर बैठ जा तू,
असफलता ही सफलता की नही राह दिखती है।ओर में आज लेखन की दुनिया में भी बहूत अग्रशर हूँ अच्छा लिखता हु बहुत लोग पसंद करते हे मुझे प्रोत्शाहित करते हे लिखने के लिए ओर मेरा दावा हे में एक दिन अग्रिम लेखको की दुनिया में कदम रखूँगा।