Anokhi Dulhan - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( मौत का सौदागर_१) 13

" क्या हुवा ? ये तुम्हारे कपड़े नही है। ओ.... तुम्हे इन कपड़ो की जरूरत नही है।" यमदूत ने उन कपड़ो की तरफ देखते हुए कहा। " क्या ये पिशाच अभी भी एक मर्द है ????" यमदूत वीर प्रताप की तरफ आगे बढ़ा। " अगर मुझे परेशान करोगे तो खुद भी परेशानियां सहने के लिए तैयार रहना।"

वीर प्रताप अपने कमरे मे बिस्तर पर सिकुड़ा हुआ पड़ा था। तभी राज दरवाजा खोल उसके कमरे मे गया।

" अंकल क्या हुवा ? आप बीमार है।" उसने पूछा।

" राज। तुम आ गए।" वो अपने बिस्तर पर बैठ गया। "आओ । मुझे लगता है, अब वो सही वक्त आ गया है। जब मुझे तुम्हे हमारे परिवार का सच बता देना चाहिए। उम्मीद करता हु, तुम इस सच को अपना लोगे।" इतना कह वो अपनी बैठी जगह से धीरे धीरे हवा मे उड़ने लगा। " में कोई मामूली इंसान नही हु। में एक जीता जागता पिशाच हु। एक अमर अपराजित पिशाच।"

" वो। मुझे पता है।" राज।

" तुम्हे पता है ???? मतलब " वीर प्रताप ने पूछा।

" आप जिस रात यहां आए थे। तभी से मुझे आपके बारे मे पता है।" राज ने जैसे ही ये कहा वीर प्रताप को २० साल पुरानी बात याद आ गई।

जब वो कैनेडा से इंडिया आया था। मिस्टर कपूर उसका इंतजार इसी घर मे कर रहे थे। अपने ६ साल के पोते के साथ।
" मेरे महाराज आपका स्वागत है।" उन्होंने हाथ जोड़ प्रमाण किया। " ये मेरा पोता है, राज जिसके बारे मे मैने खत मे लिखा था।"
वीर प्रताप ने उस बच्चे को अपने पास बुलाकर कहा था, " तुम बिल्कुल उसी लड़के जैसे दिखते हो जिसने तुम्हारे पूर्वजों मे मेरी सेवा की कसम खाई थी। ठीक से देखो मुझे राज में आज के बाद तुम्हारा अंकल, भाई और बेटा तक केहलावूंगा।"

" मुझे बस इतनी बात ही याद है।" वीर प्रताप ने कहा।

" आपको कैसे याद होगी आगे की बात उसके बाद आप नशे मे जो थे। सुनिए मे समझाता हूं।" राज ने उसे आगे की कहानी याद करवाई।

जब वो इंडिया पोहोचा था। उसने पूरी रात शराब पी थी। वो इतना नशे मे था, की एक ६ साल के बच्चे से शर्त जितने के लिए उसने रिजर्व बैंक से सोना घर पर प्रकट किया था।

" मतलब अपनी ६ साल की उम्र से तुम्हे पता था की में कोई इंसान नही हु।" वीर प्रताप ने गुस्से मे उसे पूछा।

" हा।" राज अभी भी बिना डरे उसे जवाब दिए जा रहा था।

" फिर भी तुमने हर वक्त मुझसे बतमीजी से बात की।" वीर प्रताप के एक एक लब्ज़ के साथ बिजली कड़क रही थी।

" हा।" राज।

" तुम्हे नही लगता अगर तुम एक मामूली इंसान हो तो तुम्हे मुझसे डरना चाहिए ?" वीर प्रताप।

" नही। वो भला क्यों ??" राज।

" आ......... तुम तुम्हारी वजह से मुझे उस यमदूत को सहना पड़ रहा है। तुम्हे तो मे छोडूंगा नही।" वीर प्रताप ने जैसे ही ये कहा राज वहा से भाग निकला।

दूसरी तरफ होटल मे काम करते हुए, जूही खबरे सुन रही थी। किस तरह बिन मौसम की बारिश ने सब जगह हा हा कार मचा रखा है। हर तरफ बस तूफान और बारिश की खबरे थी।

" मुझे ये बारिश बोहोत पसंद है। दिल खुश कर देती है।" उसके होटल की मालकिन सनी ने जूही से कहा।

" मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। सब भीगा देती है।" जूही।

" भीगना क्यों है। अगर तुम छाता नही लाई, तो उन मे से ले जाओ।" सनी ने पास ही रखी छातो से भरी बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए कहा।

" इतने सारे छाते।" जूही।

" हा। में घर से इन्हे ले तो आती हू। पर वापस इन्हे ले कर नही जाती। इसलिए सभी यही पड़े है। तुम्हे जो भी चाहिए ले लो। अपने पास रखना।" सनी।

" सच में। अब मेरे पास भी छाता होगा।" जूही।

" तुमने आज तक छाता नही देखा क्या? इतना खुश होने वाली क्या बात है ? अच्छा सुनो मुझे आज बाहर जाना है। मेरे बाद तुम भी होटल बंद कर घर चली जाना।" सनी

" बिल्कुल नही बॉस। में वक्त पर बंद कर के ही जाऊंगी।" जूही।

" सुनो। तुम अभी बच्ची हो।जब बॉस आस पास ना हो तो काम जल्द खत्म कर खेलने के लिए चले जाना चाहिए। तुम्हे सिर्फ मेरे सामने ज्यादा काम करने की जरूरत है। पीछे नहीं। जाओ ।" इतना कह सनी ने बैग उठाई और कही चल पड़ी।

" वाउ। कितनी कुल बॉस मिली है मुझे। अगर आज जल्दी छूट रही हूं तो क्यों न उसे बता दू। हा बाद मे बुलाती हु।" जूही ने काम जल्दी जल्दी करना शुरू किया।

अपने होटल से निकली सनी एक भविष्य बताने वाली ओझा के मकान के सामने आकर रूकी।

" ह........ म। अब बताओ भी। मैने इतने लड़के देखे, मुझे कोई पसंद क्यो नही आता।" सनी ने पूछा।

" जब तुम्हारी जिंदगी में पहले से एक मर्द है। तो तुम्हे कोई ओर पसंद क्यो आएगा ????" उस ओझा ने जवाब दिया।

" बकवास। मेरी जिंदगी मे कोई होता तो क्या में इतनी हसीन शाम तुम्हारे साथ बिताती। अगर तुम कुछ देख नही सकती, तो मेरे पैसे लौटा दो।" सनी।

" में कोई बकवास नही कर रही हु। वो काफी पहले से तुम्हारी जिंदगी मे है। बस अब तक तुम उस से मिली नही हो। में साफ साफ देख सकती हू। पर रुको ये क्या ?????" उस ओझा की सांसे तेज हो गई।

" क्या ? क्या हुवा ? वो कब मिलेगा? बताओ।" सनी की बैचैनी बढ़ती जा रही थी।

" नही। ऐसा नहीं हो सकता। ये लो तुम्हारे पैसे। वापस ले जाओ।" उस ओझा ने सारे पैसे सनी को वापस दे दिए।

" क्या हुवा ? मुझे बताओ तुम्हे और पैसे चाहिए में दूंगी।" सनी " मुझे जानना है, वो कौन है।"

" वो मौत है। उसका आना मतलब आस पास कोई मौत होगी। तुम्हारी किस्मत उस सौदागर से बंधी हुई है। तुम्हारा दिल सिर्फ उस के लिए धड़क रहा है। भरी दौपेहरी, ठंडी हवा और एक पुरानी निशानी। तुम्हे उस तक पोहोचा देंगी। पर मेरी मानो उस से आंखे मत मिलाना। दर्द के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।" ओझा ने अपनी सांसों को काबू मे करते हुए कहा।

" में इन सब मे नही मानती। अगर मेरा उस मौत के सौदागर से मिलन लिखा हूवा है। तो कोई कुछ भी कर ले वो हो कर रहेगा। वैसे वो खूबसूरत तो है ना ????" सनी

" हा । मौत हमेशा खूबसूरत ही होती है।" ओझा।

" चलो शुक्रिया। बस यही जानना था। मुझे कोई अपने जैसा ही चाहिए। बेहद खूबसूरत।" इतना कह पैसे उसे लौटा कर सनी वहा से चली गई।

" ये कैसी किस्मत बनाई है आपने ए मेरे खुदा। उसके पिछले जन्म की सजा इस लड़की को इस जन्म मे क्यो मिले। दिल टूटने से बड़ी सजा कोई नही होती। जिंदा रह कर भी मौत का इंतजार करना होगा इसे। पिछले जन्म मे तुमने जो गलती की थी, इस जन्म मे भी दोहरावोगी। अल्लाह मालिक।" ओझा ने दुवा की , जितनी जिसकी तकलीफ कम हो उतना अच्छा।

शाम के सात बज गए थे, यमदूत अपने कपड़े पहन कही जा रहा था। तभी वीर प्रताप ने उसे टोका।

" कही जा रहे हो ??? बाहर ????"

" हा। इसे सिर्फ ड्राइक्लीन कर सकते है। पहले वहा जावूंगा फिर अपने काम पर।" यमदूत ने अपने हाथ मे पकड़ी टोपी दिखाते हुए कहा।

" अच्छा तरीका है उनका। मतलब इंसान पहले मर जाए। फिर तुम्हे देख हंसते हंसते दूसरी दुनिया मे प्रवेश करे।" वीर प्रताप।

" ये टोपी भले कैसी भी क्यो ना हो। इसका काम सबसे महत्व पूर्ण है। इस से आत्माएं आसानी से हमे पहचान लेती है। और इसे पहनने के बाद इंसान हमे देख नही सकते।" यमदूत।

" हा। लकी इंसान। अच्छा है वो नही देख सकते। नही तो कितनी सारी मौते होती हंसते हंसते।" वीर प्रताप ने हंसते हुए कहा।

" आज अगर मौत से मजाक करोगे। तो कल मौत कही तुमसे मज्जाक ना कर बैठे।" यमदूत ने लाल बड़ी आंखे कर वीर प्रताप को देखा।

"जाओ। तुम्हारी आत्मा, जोक देखने के इंतेजार मे होगी।" वीर प्रताप की ये बाते सुन यमदूत गुस्से मे वहा से चला गया।

आज पूरा दिन बस खत्म होने ही वाला था। ८ बजने वाले थे, उसने अब तक वीर प्रताप को नहीं बुलाया था। यमदूत के जाने भर से ही हाथो मे किताब थामे वो उसके बुलावे का इंतजार कर रहा था।