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नोट बंदी –माइक्रो व्यंग्य

नोट बंदी –माइक्रो व्यंग्य

१ सरकार कन्फ्यूज्ड हैं

यशवंत कोठारी

१९३४व १९३८ में १००० व् १०००० के नोट पहली बार चलाये गए थे.इन् नोटों को १९४६ में विमुद्रिक्रत कर दिया गया था. १९५४ में नए नोट चलाये गए थे .१७ जनवरी १९७८ को इन नोटों को तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई ने बंद कर दिया . उस समय H M पटेल वित्तमंत्री थे, जो मोरारजी के वित्त्मंत्रित्व काल में वित्त सचिव थे , नोट बंदी के समय रिज़र्व बैंक के गवर्नर I G पटेल थे. उस समय भी बैंकों को बंद कर दिया गयाथा.काले धन को रोकने की यह कवायद उस समय भी सफल नहीं हो सकी थी .इस बार भी प्रधान मंत्री व् रिज़र्व बेंक के गवर्नर गुजरात से ही हैं .

सरकार ने ८ नवम्बर की आधी रात को नोट बंदी की घोषणा की और तबसे अबतक २० दिनों में कोई २५ आदेश निकले ,मगर जनता के दुःख दर्द कम नहीं हुए .

२ अरण्य रोदन

सरकार सवाल पूछ रही हैं ,ये माज़रा क्या हैं ?सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा करने की परम्परा रही हैं ,अब सरकार सवालों की बोछार कर रहीं हैं और आम आदमी लाइन में खड़ा खड़ा भीग रहा हैं .सरकार के सवाल सरकार के ही जवाब बस यहीं प्रजातंत्र रह गया हैं.सच्चे सवालों के झूठे –सच्चे जवाब , फिर इन जवाबों के सर्वे व् विश्लेषण , वेसा जेसा सरकार चाहे , जेसा प्रशाशन चाहे.रटे रटाये सवालों के उत्तर भी रटे रटाये. आम आदमी क्या कर सकता हैं ,अब शहर में झूठ का ही बोलबाला हें श्रीमान.

पूरे दे श को भट्टी में झोंक कर मासूम सा प्रश्न आपको कैसा लग रहा हैं ?००००

३ -ए . टी एम् शरणम् गच्छामि

जनता ए टी एम् शरणम गच्छामि हो रही हें.बैंक शरणम गच्छामि हो रही हें.नोटम शरणम गच्छामि हो रही हें.कोई नहीं जानता येसब कब तक चलेगा?दो हज़ार में घर चलाओ , केसे जलाये चूल्हा . सरकार का सिद्धांत सही ,लेकिन क्रियान्वयन गलत, वेसे ही जेसे आइन्स्टीन का सिधांत इ=एम् सी स्क्वायर सही लेकिन परमाणु बम गलत .००००

4-टेक्स दो , टेक्स दो

सरकार ने नयी स्कीम निकाली हैं , अपने आप टेक्स दो रूपये को सफ़ेद कर लो, नहीं तो सरकार जुरमाना लेकर सफ़ेद कर देगी आपके पास दोनों विकल्प हें .मर्जी आपकी , गरीबो पर दोहरी मार न उगलते बने न निगलते .लेकिन जिन लोगो ने आलिशान मकान बना लिए, महँगी कारे ले ली, एशो आराम की जिन्दगी जि ली, उनसे केसे होगी वसूली, सब मामला केवल नकद जमा पर ही चलेगा, वापस इंस्पेक्टर राज का ज़माना आ गया हैं ऐसा लगता हैं .चला बेतालवा फिर डाल पर .

५-लाईन में खड़े रहो

ओसत भारतीय को लाईन खड़े रहने का बड़ा व्यापक अनुभव हैं .राशन, बैंक,अस्पताल सिनेमा,की लाईनों का अनुभव का म आरहा हहैं ,पूरा भारत क्यू मेंखड़ा है .क्यू में ही चाय पी रहा हैं , क्यू में ही पिजजा आर्डर कर रहा हैं ,वही सोने का जुगाड़ कर रहाहैं.क्यू ही जिन्दगी बन गयी हैं , मेने किसी बड़े आदमी , पेसे वाले को क्यू में खड़ा नहीं देखा .

सरकार की नियत साफ हो सकती हैं ,लेकिन व्यवस्था असफल हैं .

6-सभी नेता अपनी अपनी सम्पत्ती की घोषणा करे जल्दी जल्दी ,नहींतो चुनाव में जाना पड़ेगा .

६-शायर का कलाम-

कहाँ तो चराग तय था हरेक के लिए

कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए .

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कार