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अनोखी दुल्हन - (असलियत_२) 17

सुनसान सड़क, एक गाड़ी जिसमे लड़की को किडनैप किया गया था। जंगल की तरफ पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी। जूही की आखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। तभी अचानक से गाड़ी चलाने वाले ने ब्रेक लगाया।

" आ....." जूही।

" A ... जिम्मी गाड़ी क्यों रोक दी?" जूही से पूछताछ कर रहे आदमी ने ड्राईवर से पूछा।

" आगे रास्ते पर देख।" उसने जिझकते हुए कहा, मानो वो किसी अनजान चीज को देख डर गया हो। दूर से एक एक कर रास्ते की रोशनी बंद होने लगी थी। बंद होती रोशनी के पीछे दो आदमी चल रहे थे। उनका हर आगे बढ़ता कदम, दिए को बुझा रहा था। जहा गाड़ी रोकी गई थी वो वहा आकार रुके। जैसे ही वो गाड़ी के पास पोहोचे, गाड़ी की हेड लाइट बंद हो गई। जूही इतने अंधेरे मे भी उसकी परछाई को पहचान चुकी थी। अब उसे डर नहीं लग रहा था, लेकिन आंसू फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

" गाड़ी भगा जल्दी।" पीछे बैठे आदमी ने ड्राईवर से कहा।
जैसे ही उसने गाड़ी शुरू की और आगे बढ़ा। वीर प्रताप ने अपनी तलवार से गाड़ी बीच मे से काट दी। गाड़ी के एक टुकड़े की तरफ जूही बैठी थी और दूसरी ओर वो दो गुंडे। यमदूत ने जूही वाली बाजू पकड़ कर गाड़ी रोक दी। जब की गुंडों वाली बाजू आगे जाकर उन्हीं के उपर गिर गई। यमदूत ने जूही का पसंदीदा स्कार्फ गुंडों की तरफ से छीन लिया था। जूही अभी भी सदमे मे थी। वीर प्रताप उसके पास आया उसने उस आधी गाड़ी का दरवाजा खोला। अपना हाथ दे कर जूही को गाड़ी मे से उतरने मे मदद की।

" क्या तुम ठीक हो???? कही चोट तो नही लगी???" वीर प्रताप ने उस से पूछा।

" हा। क्या कहा तुमने??? क्या मुझे कही चोट नहीं लगी???" जूही ने आशचर्य से पूछा। " जिस गाड़ी मे में थी, उसे बीच मे से आधा काटने के बाद तुम मुझसे पूछ रहे हो। क्या में ठीक हु।" जूही ने बिना उसकी मदद खड़े होने का प्रयास किया, पर शायद वो अभी भी डरी हुई थी। उसने जैसे ही वीर प्रताप का हाथ छोड़ा वो गिरने लगी। तभी फिर से वीर प्रताप ने उसका हाथ पकड़ उसे अपनी तरफ खींचा। उसे कस के गले लगा लिया, वो उसके कंधे को थपथपा रहा था।

" तुम्हे मेरे सर पर हाथ रखना चाहिए।" जूही ने रोते हुए कहा।

वीर प्रताप ने मुस्कुराहट के साथ उसके सर पर से हाथ घुमाया। जूही ने उसे कस कर पकड़ लिया और रोने लगी।
" और कितनी देर तुम्हारा ये मिलन चलेगा???" यमदूत ने इशारों से वीर प्रताप को पूछा।

" अपने काम ध्यान दो।" वीर प्रताप का जवाब सुन यमदूत जूही वाली बाजू छोड़ गुंडों की तरफ आगे बढ़ा। उसके वहा से हटते ही गाड़ी जोर की आवाज के साथ जमीन पर गिरी। जूही फिर से सहम गई। यमदूत ने जूही का स्कार्फ वीर प्रताप की तरफ फेंका। वीर प्रताप ने जूही को अपने से दूर कर उसके आसू पोछे और स्कार्फ उसे पहनाया।

" बस थोड़ी देर यहां रुको। में अधूरा काम पूरा कर के आता हु।" वीर प्रताप ने जूही से कहा और वो गुंडों की तरफ चल पड़ा।

जूही उसके पीछे भागी और हाथ पकड़ कर उसे रोका। " क्या तुम उन्हे मारने जा रहे हो???? प्लीज़ उन्हे मत मारो।"

" फिक्र मत करो। नही मारूंगा। पर उन्हे मेरे गुस्से का सामना तो करना ही होगा।" वीर प्रताप ने जूही से कहा और फिर वो उन गुंडों की तरफ आगे बढ़ा।

वो लोग गाड़ी के नीचे बेहाल से दबे हुए थे और मदद की गुहार लगा रहे थे। वीर प्रताप उनके पास पोहोचा। " इंसान। नजाने क्यो भूल जाते है??? की वो कभी भी भगवान की बराबरी नहीं कर सकते। तुमने तो मेरी पसंदीदा चीज़ को नुकसान पोहचाना चाहा। तुम्हे कैसे छोड़ दू में???? बस यूं समझ लो की तुम्हारा नसीब अच्छा है, इसीलिए जिसे तुमने नुकसान पोहचाना चाहा वही तुम्हे बचा रही है। जितना दर्द और तकलीफ उसने इन तीन घंटो मे महसूस की है ना, उस से 3०% ज्यादा तकलीफ तुम अगले तीन दिनों तक महसूस करोगे। तीन दिनों के लिए ये सड़क नक्शे पर से गायब हो जायेगी। यहां से कोई इंसान या जानवर नही जायेगा। बिना खाना पानी के तुम इसी हालत मे तड़पोगे। दुवा करोगे, की मौत आ जाएं। पर नही आएगी। तीन दिनों बाद पुलिस तुम्हे ढूंढ ले गी।" इतना कह वो उनसे दूर हो गया।

" मेरी आखों मे देखो। तुम्हे कुछ याद नहीं रहेगा, यहां क्या और कैसे हुवा था। तुम उस लड़की को नही पहचानते। तुम दोनो ने शराब पी कर एक दूसरे से लड़ाई की और घायल हो गए। " यमदूत ने उन गुंडों को सम्मोहित कर कहा। इसी के साथ ये किस्सा खत्म हो गया।


फिर से वही लंबी सड़क, वही जंगल का रास्ता और तीन लोग।

" क्या में मर गई हु?? ये मरने के बाद वाले जीवन का रास्ता है?????" जूही ने आगे चलते हुए पूछा। एक त्रिकोण बना कर वो तीनो चल रहे थे। जूही आगे थी और यमदूत वीर प्रताप के साथ पीछे चल रहा था।

" नही । तुम जिंदा हो। हमने अभी अभी तुम्हे बचाया है।" वीर प्रताप ने कहा।

" ये हमे उसे बचाने के लिए शुक्रिया कब कहेगी।" यमदूत ने इशारों मे वीर प्रताप से पूछा।

" अभी चुप रहो। वो सहमी हुई है। उसे वक्त दो। वो कहेगी।" वीर प्रताप ने उसे समझाया।

" तो तुम्हारा मतलब है, तुम एक यमदूत के साथ मुझे बचाने आए। वो भी उस के साथ जो अभी कुछ दिनों पहले तुम्हारे सामने मुझे ले जाने की बाते कर रहा था।" जूही ने गुस्सा होते हुए कहा।

" मुझे अभी इस से शुक्रिया सुनना है।" यमदूत ने वीर प्रताप को इशारे किए।

" A कहा ना चुप रहो।" वीर प्रताप ने यमदूत पर गुस्सा होने के चक्कर मे चिल्लाते हुए कहा।

जूही वही खड़ी हो गई, " अच्छा तो अब तुम मुझ पर चिल्लाने भी लगे हो?????"