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दूरी क्यों--दाम्पत्य प्रेम

प्लेटफार्म एक के अंतिम छोर पर खाली पड़ी बैंच पर वह आकर बैठ गया।जून का महीना।सूरज ढल चुका था।आसमान एकदम साफ था।शाम भी अपनी अंतिम अवस्था की ओर बढ़ रही थी।अंधरे की परतें आसमान में नज़र आने लगी थी।
उसने हाथ मे पहनी घड़ी में समय देखा।साढ़े छः बजे चुके थे।ट्रेन आने में अभी समय था।जोधपुर से आने वाली और अहमदाबाद को जाने वाली ट्रेन का क्रासिंग इसी स्टेशन और होता था।अभी ट्रेनों के आने में समय था।आज वह सोचकर आया था।चाहे जो हो जाये।आज वह पत्र ज़रूर डालेगा।
सुबह से एक के बाद एक कई कागजो में दो चार शब्द लिखने के बाद वह फाड़ने के बाद बड़ी मुश्किल से वह पत्र लिख पाया था।यूं तो जगह जगह चौराहे पर लेटर बॉक्स लगे रहते है।पत्र किसी भी लेटर बॉक्स में डाला जा सकता था।लेकिन आज रविवार था।रविवार को डाक निकलती नही।वह चाहता था।आज ही पत्र निकल जाए।जिससे कल ही मिल जाये।मैके जाते समय सालूउससे कह कर गई थी,"पत्र मत डालना।मैं एक सप्ताह मे वापस लौट आउंगी।"
लेकिन उसने वादा नही निभाया था।
पिछले तीन साल के वैवाहिक जीवन मे पहली बार ऐसा नही होरहा था।पहले वह कहकर कुछ जाती थी।लेकिन करती कुछ और थी।उसके उस तरह के व्यहार से उसका मन ससुराल से खट्टा हो रहा था।इस कारण वह कई बार ससुराल वालों को पत्र में अनर्गल बाते भी लिख देता।पर व्यर्थ।सालू पर उसकी बातो का कोई असर न पड़ता।और इसी गुस्से में वह कई बार उसके पापा को भी गुस्से में पत्र लिख देता।सालू के व्यवहार से कई बार तो उसे इतना गुस्सा आता कि वह सोचता।सालू को छोड़ दे।देखे कितने दिन उसके पापा ब्याही बेटी को पास रखते है।गुस्सा करता लेकिन सालू नही आती तो वह खुद उसे लेने जा पहुंचता।
न जाने क्यों सालू के बिना वह रह नही पाता था।वह नही समझ पाया था कि आखिर उसमे ऐसा क्या था।शादी से पहले वह कई सालों तक अकेला रहा था।नौकरी लगने पर वह घर वालो को छोड़कर यहां आया तो उसे कुछ दिनों तक बहुत बुरा लगा था।लेकिन धीरे धीरे वह अभयस्त हो गया था।ड्यूटी और ड्यूटी के बाद फालतू घूमना।घर तो वह सोने के समय ही पहुंचता था।
लेकिन जब से सालू उसकी जिंदगी में आई जीने का ढर्रा ही बदल गया था।आते ही सालू ने उसके तन मन पर अधिकार कर लिया था।सालू उसके रोम रोम में बस चुकी थी।उसकी मोहिनी मूरत उसके दिलो दिमाग मे छा चुकी थी।वह उसे जी जान से प्यार करने लगा था।सालू की उसके जीवन मे क्या अहमियत थी।इसका पता उसे तब चलता।जब वह मैके चली जाती।
सालू के चले जाने पर अकेलापन उसे कचोटने लगता ।सुना घर उसे काटने लगता।घर की हर चीज ऐसे लगती मानो सालू के गम में उदास है।उसे समझ मे नहीं आता सालू के चले जाने पर घर को क्या हो जाता है?घर के सूनेपन, खालीपन से बचने के लिए वह ज्यादातर समय घर से बाहर रहकर गुजरता।और दिन तो गुज़र जाते।पर आफिस की छुट्टी का दिन।यह दिन काटना मुश्किल हो जाता।आज का दिन कैसे गुज़रा वह ही जानता है।पूरे दिन पत्र लिखने का प्रयास करता रहा।कागज पर कागज फाड़ने के बाद एक पत्र लिख पाया।जिसे डालने के लिए वह स्टेशन आया था।
उसने घड़ी में फिर समय देखा।सात बजे चुके थे।वह उठा और धीरे धीरे चलकर स्टेशन मास्टर के ऑफिस के पास आया।बाहर लगे नोटिस बोर्ड पर कुछ नही लिखा था।उस पर ट्रेन के लेट या सही समय पर होने की सूचना लिखी जानी चाहिए।पर नही लिखी थी।नियम मात्र किताबो की शोभा बढ़ाने के लिए होते है।बस एक बार नौकरी मिल जाये। फिर उसे बेगार समझते है।जो उनकी आजीविका है।उसके प्रति निष्ठावान नही रहते।ब्लैक बोर्ड खाली देखकर वह अंदर जा पहुंचा।अधेड़ उम्र के स्टेशन मास्टर से पूछा गया,"पहले कौनसी ट्रेन आ रही है?"
"पहले जोधपुर।अहमदाबाद लेट है।"
वह मन ही मन सोचता हुआ बाहर आया।फोर्ट से ही ट्रेन चलती है,लेकिन लेट है।शायद ही कोई ट्रेन हो जो समय पर चलती हो।वह टहलता हुआ,छोटी लाइन के प्लेटफार्म पर आ गया।प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने का ििइंतजार कर रहे लोग आपस मे बाते कर रहे थे।ट्रेन आने की घण्टी बज चुकी थी।वह भी एक जगह आकर खड़ा हो गया।दूर से इंजिन की सिटी की आवाज सुनाई पड़ी।कुछ ही क्षणों बाद ट्रेन प्लेटफार्म पर प्रवेश कर रही थी।ट्रेन की गति धीमी पड़ चुकी थी।वह अपने सामने से गुजरते डिब्बे देखने लगा।एक डिब्बे के दरवाजे पर सालू खड़ी नज़र आई,तो वह चोंक पड़ा।वह आगे बढ़ने लगा।ट्रेन रुकते ही सालू उतरी थी।सामने उसे देखकर आश्चर्य से बोली,"तुम्हे कैसे पता चला।मैं आ रही हूँ।"
"वैसे ही चला आया था"।वह पत्र डालने वाली बात को छिपा गया।वह सालू के साथ स्टेशन से बाहर आया।बाहर आकर उसने रिक्शा किया था।रास्ते मे सालू लगातार बोलती रही।लेकिन उसने उसकी किसी बात का जवाब नही दिया।उसने मन ही मन सोच लिया था।नही बोलेगा वह उससे।उसे पता चलना चाहिए उसकी मनमानी की क्या सजा है?उसका लिखा पत्र उसकी जेब मे पड़ा था।
घर आकर सालू बोली,"बहुत गर्मी है।"
वह बाथरूम में चली गई।नहाने के बाद उसने खाना निकाला।वह खाना साथ लेकर आई था।
"चलो खाना खा लो।"
"मुझे अभी भूख नही है।"वह नही चाहता था।उसके साथ खाना खाएं।
"खाओगे कैसे नही।"और सालू ने उसे ज़िद्द करके अपने साथ बैठा लिया था।जो घर खाली खाली,सुना सुना नज़र आ रहा था।सालू के आते ही भरा भरा नज़र आने लगा था।उसने सोचा था।सालू से नही बोलेगा।वह बोलेगी,तो उसे फटकार देगा।डांट देगा।भला बुरा कहेगा।उसे जली कटी बाते सुनाएगा।लेकिन सालू के आ जाने पर वह मन ही मन मे चाहकर भी ऐसा नही कर पाया।
सालू की मुस्कराहट, उसकी हंसी,उसके बदन से उठती महक उसके सोचे पर पानी फेरने का प्रयास कर रही थी।वह जैसे तैसे अपने पर काबू रख पा रहा था।
खाना खाने के बाद वे पलंग पर आ लेटे।कमरे में नील रंग का प्रकाश फैला था।छत पर लगा पंखा अपनी गति से घूम रहा था।सालू का गोरा बदन,बिखरी जुल्फे,माथे पर बिंदी और अंग प्रत्यंगों से उठती भीनी भीनी महक उसे विचलित कर रही थी।वह सालू के जवान जिस्म से दूरी बनाए रखने का असफल प्रयास कर रहा था।चेहरे पर बनावटी क्रोध था,लेकिन मन मे हलचल मची थी।उसे अपने से दूर चुप लेटा देखकर वह बोली,"चुप क्यों हो?नाराज हो मुझसे?अपनी बीबी से नाराज
और उसने अपनी गोरी गोरी नाज़ुक बांहे उसकी तरफ बढ़ा दी।और उससे जा सटी।
सालू के जवान जिस्म की गर्मी में वह अपने पर काबू न रख सका।और सारा गुस्सा न जाने कहाँ काफूर हो गया