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चिन्तामणि की आंखें

गोल कोटर में धंसी लाल-पीले चकत्तों वाली उसकी आंखें आश्चर्य थी. वे आंखें दस मील, बीस मील, पचास मील और उससे भी आगे देख सकती थी. हवा में पानी में, आग और अंधेरे हर जगह उसकी आंखे सार्थक थी.

मनुष्य होते हुए भी वह गिद्ध, चमगादढ़ और मछलियों से बढ़कर था. सचमुच चिन्तामणि हम बच्चों की दुनिया का सबसे अजीब आदमी था. महत्त्वपूर्ण तो था ही. एक दिन प्रयाग ने कक्षा में अचानक ही कहा था- अरे, वो टीले पार मोड़ में वो आदमी है ना, उसे दिन में भी तारे दिखाई देते हैं. सिर्फ़ तारे ही नहीं वह आकाश गंगा के बारे में भी बतलाता है.उसका नाम है चिन्तामणि.

इसके चार दिन बाद ही उसने नई बात बतायी थी कि चिन्तामणि ने हजार मील की ऊंचाई से एक उड़न तश्तरी को जमीन की तरफ आते देखा है.

सचमुच दो-तीन दिन बाद एक अखबार में कनाडा के निर्जन इलाके में उड़न तश्तरी के देखे जाने की खबर भी छपी और यही खबर हमें एक दिन चिन्तामणि के पास ले गयी.

हमें यानी मुझे, प्रयाग और जुगल को. हम तीनों सहपाठी के अलावा दोस्त भी थे. चिन्तामणि के साथ परिचय शीघ्र ही घनिष्ठता में बदल गई. अत: हम प्राय: ही स्कूल की छुट्‍टी के बाद चिन्तामणि के घर की ओर मुड़ लेते.

चिन्तामणि हमें दूर से ही इंतजार में खड़ा मिल जाता. देखते ही मुस्करा कर कहता, ‘‘ मैंने तुम लोगों को स्कूल से निकलते ही देख लिया था. विनीत तुमने विन्नूराम चूरणवाले के खोमचे के पास जरा धीमें होकर अपनी जेबें टटोली थी कि नहीं?’’

मैं हंसकर बोलता , ‘‘ सही है.’’

तब वह आगे बोलना जारी रखता, ‘‘और जुगल तुमने यहां तक आने में तीन बार गर्दन खुजलायी है.’’ यह बात तो सत्य सिद्ध होती . लेकिन उसकी सत्यता को सर्टिफिकेट तब देना ही पड़ा, जब एक सुनहरी धूप वाले दिन आकाश की ओर ऊंचा देखते हुए कहा- दस मिनट के अंदर ही ओले पड़ेंगे.

जल्द ही उसके चाहने वाले हम बच्चों की संख्या तीन से बढ़कर सात हो गई. और छुट्‍टी के एक दिन ग्यारह बजे जब हम उसके घर पहुंचे तो उसे आकाश की ओर एक टक देखते हुए पाया .

हमें आया जान कर ध्यान भंग किए बिना ही वह बोला, ‘‘ आज सुबह से गजब हो रहा .. अरे...अरे.. वो गया...च...च.’’

हम सब चकराए, ‘‘ क्या बात है?’’

एक हाथ अपनी गर्दन पर रखते हुए वह बोला, ‘‘ ऊपर युद्ध हो रहा है. लगभग चार हजार मील ऊपर. बड़ी मुश्किल से आंखों को जमा पाया हूं. आधे घंटे में

हमने देखा चिन्तमणि की आंखें पहले से ज़्यादा फैली हुई है और कोटरों के भीतर पुतलियां बिल्कुल स्थिर हैं.

जुगल ने पूछा, ‘‘ कैसा युद्ध, किससे युद्ध?’’

चिन्तामणि बोला, ‘‘ दो उपग्रहों का युद्ध. अरे... अरे... नीली रोशनी की धार. नहीं, बेकार गया. ये दो उपग्रह एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए हैं. अत: दोनों ही उपग्रह के वासी यह चाह रहे है कि दूसरे को नष्ट कर दें. बैंगनी उपग्रह से गोले छोड़े जा रहे हैं, लेकिन पीले उपग्रह पर उसका कोई असर ही नहीं हो रहा है. सब गोले फिसले जा रहे हैं. पीले उपग्रह को छूकर . ओ पीले उपग्रहों से लाल रोशनी... बैंगनी उपग्रह लड़खड़ाने लगा है.’’

तभी नगरपालिका का एक ट्रक इतनी धूल उड़ाता हुआ गुजरा कि चिन्तामणि को भी गर्दन नीची करनी पड़ी और गर्दन नीचे करके आंखे बंद करते ही उस अपूर्व आकाशीय दृश्य से संबंध टूट गया. चिन्तामणि ने फिर दोबारा कई मिनटों तक कोशिश की, पर सब व्यर्थ.

दूरदर्शक यंत्रों की एक सीमा होती है. अंधेरा, जल, अग्नि आदि दूरदर्शकों के मार्ग में बाधा डालते हैं किंतु चिन्तामणि की आंखें तो एक ऐसा दूरदर्शक थी जो संभवत: ऐसी परिस्थितियों में जय लाभ के लिए बनी थी.

उस दिन की बात तो भूले नहीं भूलती. प्रयाग का चेहरा उतरा हुआ था. चिन्तामणि ने पूछा तो मालूम हुआ कि तालाब में उसका पैन गिर गया है. प्रयाग को अपने कीमती पैन पर जरा ज़्यादा ही गर्व था. पांच सौ रूपए वाले इस विदेशी पैन को जब तब वह नचाता फिरता था. अत: इस पैन के खोने पर दुखी होना स्वाभाविक था.

सो चिन्तामणि ने उसकी चिन्ता दूर करते हुए, ‘‘ चलो, मुझे ले चलो वहां. मैं तालाब के अंदर झांककर वहां पड़े पैन का अंदाजा तुम्हें दे दूंगा और तुम गोता लगाकर पैन निकाल लेना.’’

हालांकि तालाब सात हाथियों जितना गहरा था, पर फिर भी प्रयाग इसके लिए तुरंत तैयार हो गया.

हम चिन्तामणि को साथ लेकर तालाब की ओर चल दिए.

चिन्तामणि- एक सीधा सादा पंसारी. उम्र चालीस के आसपास हर समय मुंह में बीड़ी. कपड़ों में धोती-कुर्ता और पैरों में ढीले ढाले किरमिची जूते यानी हर तरफ से मामूली.

भगवान ने इस मामूली से आदमी को ऐसी असामान्य आंखें क्यों दी? ऐसा सोचते हुए मेरा मन ईर्ष्या से भर उठा-काश चिन्तामणि जैसी आंखें मेरी होती.

तालाब के निकट आकर चिन्तामणि एक ऊंची जगह देखकर बैठ गया, जहां से तालाब के बीच तक देखा जा सकता था.

एक....दो....तीन, सात और इस तरह तेरह मिनट लग गए, चिन्तामणि को तालाब की गहराई में आंख जमाने में और तब वह एकाएक ही चिल्ला उठा, ‘‘ छी-छी, आदमी का कंकाल पड़ा है. और बाप रे बाप अजगर जैसा वो... वो वहां छिप गया. ये रोहू मछली वजन बीस किलो की तो होगी ही. दूर काई कुछ देखने नहीं देती. वो क्या चमक सा रहा है? लो इस बदमाश कछुए ने पानी गंदा कर दिया. अच्छा तो प्रयाग का पैन ढूंढा जाए पहले. इस तरफ एक थाली पड़ी है वो... सांप. अरे वाह, पानी के अंदर भी फूल खिले हैं. उस बत्तख को भगाओ वहां से पानी हिला रही है.

मैं बत्तख को मारने के लिए पत्थर उठाने को मुड़ा ही था कि सामने की झाड़ी से घास उखाड़ते तीन सूट-बूट धारियों को देखकर चौंका.

घास उखाड़ता एक व्यक्ति जो उन तीनों में ज़्यादा अनुभवी लगता था, जब हाथ धोने के लिए तालाब की ओर बढ़ा तो तालाब की ओर एक टक ताकते चिन्तामणि की ओर देखते ही चौंक कर रूक गया. फिर निकट जाकर उसका कंधा झकझोरते हुए बोला, ‘‘ मिस्टर यूं बेमतलब आंखों पर जोर डालेंगे तो ये खराब नहीं होगी तो क्या होगा?

चिन्तामणि ने मुड़कर देखते ही हाथ जोड़ दिए. घबराकर मुंह से सिर्फ़ इतना ही कह सका-‘डॉक्टर साहब आप.’’

‘‘ हां तुम बच्चे तो हो नहीं, जानते हो न कितनी मुश्किल से आपरेशन हुआ था तुम्हारी आंखों का. मैं तो चाहता था कि तुम जल्द से जल्द पहले की तरह देखने लगो पर तुम... डॉक्टर का चेहरा सहानुभूति और क्रोध के मिश्रित भाव से अजीब हो उठा था.

हमने चिन्तामणि की ओर देखा. मिथ्या की ग्लानि और सत्य की अर्थहीनता से उसका चेहरा दयनीय हो उठा था. आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे थे. हमारी ओर एक नजर देखकर वह मर्माहित स्वर में डॉक्टर से बोला, ‘‘ डॉक्टर साहब आपने यह क्या किया. मेरी बची-खुशी खुशियां भी छीन ली. सारे दुखों को कष्टों को भूलकर मैं लगभग अंधा होकर भी इन बच्चों के बीच खुश था. पर डॉक्टर आज के बाद.....’’

चिन्तामणि फफक कर रो पड़ा. उसे रोते देखकर हमारी आंखों में भी आंसू आ गए.

उस दिन के बाद हमने उसे कभी नहीं देखा. मालूम नहीं वह कहां चला गया. पर हां, तीन वर्षों बाद इतना पता अवश्य चला कि कभी घर में आग लग जाने से चिन्तामणि के बच्चों और पत्नी की मृत्यु हो गई थी और वह बचा था तो भी आंखों तीन चौथाई रोशनी खोकर.