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किरायेदार


किरायेदार

मैं तुम्हारे जबाब का इन्तजार करूँगा निशा! " लेकिन याद रहे जबाब मुझे हाँ में ही चाहिए। " अधिकार से जबाब मांगा गया।
निशा को याद आ रहे थे वो दिन जब श्याम किरायेदार बन कर उसके घर रहने आया था।
शुरू- शुरु में वह भी एक अजनबी के जैसे ही घर में रहता था। सबेरे अपने दफ्तर जाता और शाम में आते ही अपने कमरे में चला जाता। निशा के मन में भी उसके प्रति कुछ खास नहीं था। कभी कभार दोनों में हल्की बातचीत हो जाती थी।
हाँ निशा के माँ- पिताजी के साथ वह शाम में बाहर बगीचे में मिलता, बातें करता और साथ में कहकहे भी लगाता। वह खुद से खाना बनाता था और अपने कपड़े सुखाने छत पर आता तो अगर निशा वहाँ होती तो दोनों बातें करने लगते। कभी- कभी पढाई और फिल्मों पर भी दोनों के बीच बहस छिड़ जाती। बाद में दोनों खूब हँसते थे। श्याम हमेशा उसे मकान मालकिन जी ही कहा करता और यह उसे सुनने में बहुत अच्छा लगता था।
एक दिन अचानक निशा की माँ बेहोश हो कर गिर गयी।
घर में कोई नहीं था, सिर्फ निशा और उसकी माँ ही थी। निशा को याद आया कि आज तो श्याम को छुट्टी है वह अपने कमरे में होगा। वह भाग कर उसे बुला लाई। श्याम जल्दी से उन्हें अस्पताल पहुँचाया। समय पर इलाज मिलने से निशा की माँ स्वस्थ हो कर घर आ गयी।
उस दिन के बाद से श्याम का उसके घर के अंदर आना बढ़ गया। अब दफ्तर से आने के बाद उसका समय यही बीतता।
एक जनवरी की शाम थी। लोग नए साल का स्वागत करते हुए इस दिन को अच्छे से मना रहे थे। निशा खिड़की के पास खड़ी गुजरे वक्त की यादें मना रही थी। खिड़की से आने वाला झोंका न सिर्फ बेहद सर्द था बल्कि नए साल की पहली बरसात की फुहार लिए हुए था, उसकी जुल्फों से अठखेलियाँ करने लगा। और वह भी पुरानी यादों में गुम हो गई। आज से आठ साल पहले श्याम उसकी जिन्दगी में आया था। देखने में बहुत ही सुन्दर, व्यक्तित्व का धनी था ।वह भी जनवरी की सर्द और खुशगवार शाम ही थी जब श्याम ने पहली बार उसे अपने प्यार से अवगत कराया था। घर के बाहर बगीचे में दोनों बारिश की रिमझिम फुहारों का लुत्फ उठा रहे थे। हवा में नमी धीरे- धीरे बढ़ती जा रही थी। हाथों को कोट की जेब में डाले वह गौर से श्याम को देख रही थी। तभी अचानक श्याम बोल पड़ा।
मकान मालकिन जी! मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है।"
जी!" श्याम के इस तरह के इजहार से वह गड़बड़ाई और फिर आश्चर्य से उसे देखने लगी।
" मैं आपको अपनाना चाहता हूँ। क्या आप मेरे साथ जिन्दगी गुजारना पसंद करेंगी?"बड़ी उम्मीद भरी नजरों से उसे देखे जा रहा था।
काफी देर खामोशी के बाद वह फिर बोला था-"मैं तुम्हारे जबाब का इन्तजार करूँगा निशा! लेकिन याद रहे जबाब मुझे हाँ में चाहिए।" अचानक से आप से तुम पर आ गया था वो।
शर्म के कारण निशा की आँखें झुक गई और गाल लाल हो गए। और श्याम को जैसे उसके सवाल का जबाब मिल गया।
"मकान मालकिन जी! आज मैं तुमसे कुछ नहीं छुपाऊंगा कि मेरा पूरा परिवार गाँव में रहता है और पूरी तरह से खेती पर ही निर्भर है।
निशा ने आश्चर्य से आँखें फाड़ कर उसे देखने लगी।

"तुम शहर की हो तो तुम्हें अचरज होगा ही।"
आज मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी मेहनत और जिद की वजह से हूँ। वरना मेरे खानदान के लोग मेरे शहर आ कर नौकरी करने के खिलाफ थे।खानदान को छोड़ो, मेरे माता- पिता, भाई- बहन सभी खिलाफ थे। इसे सब मेरी कामचोरी मानते थे कि मैं खेती से जी चुरा कर भागना चाहता हूँ। लेकिन ईश्वर की कृपा से मैं आज अपने मकसद में कामयाब हूँ। वह उसे अपने बारे में बता रहा था और निशा आश्चर्य से सोच रही थी कि अगर वह नहीं बताता तो वह कभी जान नहीं पाती, क्योंकि देखने से तो नहीं लगता है कि यह किसी पुराने ख्यालात के किसान परिवार से है?
" तुम चिंता मत करो निशा! तुम्हें गाँव में नहीं रहना पड़ेगा।" हाँ, कभी किसी समारोह में गाँव जाना होगा पर एक दो दिन के लिए। पर वहाँ तुमसे कोई कुछ नहीं कहेगा और काम भी नहीं करना पड़ेगा तुम्हें। वो लोग बहुत अच्छे हैं। तुम्हें कोई शिकायत नहीं रहेगी। बस तुम हाँ में जबाब दे दो।
"निशा यार! खिड़की बन्द कर दो। ठंडी हवा अंदर आती है। देवेश ने बेड पर लेटते हुए कहा और उसे भी अपने पास बुलाया। मैंने चूल्हे पर दूध रखा था। कहीं उबल न गया हो। कहकर वह तेजी से बाहर निकल गयी।
निशा की बड़ी बहन की शादी में श्याम घर के सदस्य की तरह हर काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।
श्याम हमेशा उसकी खूबसूरती की तारीफ करते रहता।
जिन्दगी खूबसूरत से खूबसूरत होती जा रही थी। हर सुबह एक नया जोश और हर शाम एक नई तरंग। निशा पूरी तरह से श्याम के प्रेम में डूब चुकी थी और जीवन साथी के रूप में उसे ही देखने लगी थी। दिन रात श्याम के सपने देखने लगी थी।

दूध उबल उबल कर चूल्हे पर गिर रहा था और निशा किसी गहरी सोच में गुम थी। देवेश ने चूल्हा बंद किया वह तब भी नहीं समझ पाई और न ही उसे देवेश के आने की खबर हुई।
वह कुछ देर उसे देखता रहा फिर शरारत करते हुए उसे बाहों में भर लिया तब उसका ध्यान टूटा और घबरा कर उसके बाहों के घेरे से निकल गयी। " निशा! कहाँ खो जाती हो? " देवेश ने ऐसे ही पूछा कि कही निशा बुरा न मान जाए।
देवेश और निशा के बीच कुछ ऐसे ही रिश्ते थे, जैसे ट्रेन में बैठे दो यात्री जो वक्त गुजारने के लिए बातचीत कर लेते हैं और अपने गंतव्य पर आकर अलग हो जाते हैं। निशा का रवैया देवेश के साथ बहुत अच्छा नहीं था तो बुरा भी नहीं था। वह देवेश की हर जरूरत बिना कहे पूरी करती। उसने देवेश को किसी काम या किसी चीज के लिए कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था।
उसकी हर जरूरत का ख्याल रखने के बाद भी उसे देवेश से वह प्रेम और लगाव नहीं था जो इस रिश्ते में होनी चाहिये। देवेश उसके कम बोलने को उसकी आदत समझता था इसलिए दोनों की अच्छी निभ रही थी। दो बच्चों की माँ बनने के बाद भी उसका दिल उसके बस में नहीं था और आज भी श्याम के लिए धड़कता था।
उसने गहरी साँस लेकर आलमारी का दरवाजा खोला। लाल गुलाब से सजा नए साल का कार्ड। " जनवरी की पहली शाम की बधाई " श्याम की तरफ से मिलने वाला नए साल का कार्ड खूबसूरत अक्षरों से लिखा प्रेम को व्यक्त करता हुआ। वह आज तक उस लिखे हुए शब्दों के जादू से नहीं निकल पाई थी। दिसंबर का आखिरी दिन और एक जनवरी के आने का इन्तजार। श्याम की यादों का जंगल घना हो जाता और किसी तरफ निकलने का रास्ता नहीं मिलता।

" वह न जाने कहाँ होगा? "
" वह कैसा होगा? "
" अब न जाने क्या करता होगा? "
"अब भी मुझे याद करता होगा या नहीं? "

निशा के लाख चाहने के बाद भी उसकी शादी श्याम से नहीं हो सकी।
उसने जैसे ही घर में अपने और श्याम के प्रेम संबंध को बताया, मानो घर में भूचाल आ गया।
"हमारे इतने भी बुरे दिन नहीं आए हैं कि हम तुम्हें एक किरायेदार के साथ ब्याह दें।" पता नहीं कितना झूठा है ये श्याम। दो कमरे के मेरे मकान में रहता है और तुम्हें महलों का ख्वाब दिखा रहा है! दूसरे दिन ही श्याम को बेइज्जत करके एक हफ्ते के अंदर मकान खाली करने को कह दिया गया।
आंटी जी अंकल जी कृपया मेरी पूरी बात तो सुन लें।
मेरी बातों को सुनने के बाद आपको मुझ से कोई शिकायत नहीं रहेगी। मैं भी अच्छे खानदान का हूँ, निशा को कभी कोई दिक्कत नहीं होने दूँगा उसे शहर में ही रखूँगा। हर सुख सुविधा दूँगा।
श्याम विनती करता रहा पर उनलोगों ने उसकी एक नहीं सुनी।
निशा की तो जैसे दुनियाँ ही उजड़ गयी। पहला प्रेम भुलाना इतना आसान कहाँ होता है। उसे भी साल लगा सम्हलने में और फिर वह दुल्हन बन कर देवेश के घर आ गयी। मगर दिल? दिल तो आज भी श्याम के लिए ही धड़क रहा था। बीते दिनों की बातें उसे याद आती और वह बैठे- बैठे खो जाती थी। श्याम के साथ गुजारे हुए दिन याद आ जाते जैसे कल की बात हो। जब पहली बार श्याम ने अपने प्रेम का इजहार किया था, किसी चलचित्र की भाँति उसके आँखों के सामने घूमने लगते।

"बास के घर जाना है परसो।" देवेश ने कहा।
"अच्छा।" वह सर हिला कर बोली। " जो उपहार देना है साथ चल कर खरीद लो।"देवेश ने कहा। बॉस के घर में उनकी बेटी की सगाई का समारोह था।
" जो भी देना है आप खुद ले आए।" वह बेजारी से बोली। "सोच लो फिर बाद में कुछ मत कहना। " देवेश ने कहा और निशा की बेदिली देख कर बाहर चला गया।
दिसंबर के आखिरी दिन आते ही निशा दुःख में डूब जाती थी, जब से श्याम उसकी जिन्दगी से गया था तब से हर साल यही होते आ रहा था। दिसंबर का आखिरी दिन और जनवरी का पहला दिन निशा का बहुत खराब गुजरता था।
अपने भरे पूरे घर के बाबजूद उसने एक ख्यालों की दुनियाँ बसा रखा था।
निशा आज तक दो जिन्दगी जी रही थी। हकीकत में देवेश की पत्नी बन कर और ख्याल में श्याम के साथ। और यह भी सच था कि देवेश की मुहब्बत पर श्याम का ख्याल भारी पड़ा हुआ था।
"कंगन तो बहुत खूबसूरत हैं।" निशा चहकी। " पहनने वाले हाथ भी बहुत खूबसूरत हैं।"श्याम ने कहा। " देने वाले हाथ भी कम नहीं हैं।" निशा ने शरारत से कहा। आज बहुत दिन बाद उसने श्याम के दिए कंगन को निकाला तो उसे उसके साथ हुई बात याद आ गयी। श्याम ने यह कंगन बड़े प्रेम से दिया था और वह उसे आज तक सम्हाल कर रखी थी।
आज दिसंबर की आखिरी रात थी और आज की रात वह श्याम की यादों के साथ गुजारना चाहती थी पर उसे देवेश के साथ बॉस के घर आना पड़ा था।

समारोह में खूब रौनक थी, जैसे होते हैं, रंग, रौशनी, खुशबू, हँसी, मुस्कुराहटें और कहकहे। मगर वह एक बनावटी मुस्कान के साथ उसमें शामिल थी। उसे तो आज श्याम की याद में रहना था पर बेमन से दुनियादारी निभा रही थी क्योंकि? इसे भी निभाना जरूरी था। पर बार बार दिल से आवाज आ रही थी, कि" काश! कही एक बार मिल जाए वो।"

दिल की गहराइयों से जो आवाज निकलती है वह जरूर पूरी होती है। सामने से आता एक चेहरा श्याम से बहुत मिलता जुलता था। खुद को बहुत रोकने के बाद भी वह पुकार उठी- "श्याम!"
गुजरने वाले ने पलट कर उसे देखा।
"तुम... मेरा मतलब आप... श्याम हैं ना?" निशा ने बेचैनी से पूछा।
"जी बिल्कुल मगर आप कौन हैं मैंने आपको पहचाना नहीं।" वह उलझ कर बोला।
श्याम पूरा सवाल बना खड़ा था।
निशा ने आश्चर्य से उसे देखा और कहा " मुझे नहीं पहचाना आपने?" उसके शब्दों में बहुत ही दर्द था।
" मैं निशा हूँ।"वह बेकरारी से बोली। पता नहीं श्याम जानबूझ कर अनजान बन रहा था या सच में उसे भूल चुका था।
" निशा।" श्याम ने जरा ऊँचे स्वर में कहा। " ओह! अच्छा अच्छा याद आया। मेरी मकान मालकिन थीं न। ओहो, हम तो हैं ही किरायेदार। जब तक जिन्दगी है शायद यूँ ही दर ब दर फिरते रहेंगे हम तो। किरायेदार का कोई घर नहीं होता न, आज इस शहर कल उस शहर।
उसका परिवार नहीं होता और न ही उसके दोस्त और रिश्तेदार होते हैं। मकान मालिक के दिल में ये बातें घर बना कर बैठा हुआ रहता है कि किरायेदार के पास अपना कुछ नहीं होता! अगर मकान मालिक अपना घर उसे किराये पर नहीं दें तो वह बेघर ही रहेगा।"है न मकान मालकिन जी।"

खैर जब कोई एकदम से मिले तो याद नहीं आता इसलिए पहचानने में जरा मुश्किल हुई।" वह बहुत अजनबी की तरह कह रहा था
निशा का रग रग दुःख के पाताल में डूब चुका था।

" अच्छा मैं चलता हूँ। मैं अपनी बेटी को दूंढ रहा था। यही बच्चों के साथ खेल रही थी।" कहता हुआ वह आगे बढ़ गया।
उसने कहीं पढ़ा था कि मर्द की मुहब्बत एक लहर की तरह होती है। जितनी तेजी से बढ़ती है उतनी ही तेजी से वापस पीछे पलट जाती है। और औरत की मुहब्बत समंदर के सीने के बीचों बीच उठता भँवर है जिसमें दायरे बनते रहते हैं। औरत इस भँवर से कभी निकल ही नहीं पाती। लेकिन निशा ने अब एक पल में फैसला कर लिया कि वह इस भँवर से जरूर निकलेगी।

" आखिर मैं उससे क्यों मिलना चाहती थी?"निशा आश्चर्य में डूबी खुद से सवाल कर रही थी कि क्या वाकई उससे मोहब्बत करती थी या सिर्फ उसके पीछे भाग रही थी। उसकी मुहब्बत का महल बड़ी बेरहमी से आग में जल कर राख का ढेर बन चुका था। और अब वह अपनी इस गुजरी हुई मुहब्बत को कोई नाम नहीं दे पा रही थी।

"तुम्हारा क्या ख्याल था कि अगर वह कभी मिला तो नए सिरे से मुहब्बत की बात करेगा?" जो बेकरारी और तड़प तुम्हारे हिस्से में आई वह सब उसके साथ भी हुई?"
किसी ने उसके अंदर से सवाल किया था।
और पहली बार इस सवाल पर उसके अंदर खामोशी छा गयी थी।
"मर्द तो डाल का परिंदा होता है। आज इस डाल कल उस डाल और तुम अब तक बैठी ढोल पीट रही हो। और वह न जाने इतने सालों में कितनी मुहब्बत करके भूल चुका होगा।"
उसे उसका जमीर बुरी तरह कचोट रहा था और वह शर्मिंदा हो रही थी।
" अरे तुम यहाँ छुपी बैठी हो । मैं कब से तुम्हें ढूँढ रहा हूँ।"
देवेश उसके पास आकर बोला तो उसकी तंद्रा भंग हुई।
" क्या बात है तुम्हारी तबियत तो ठीक है न।" देवेश ने उसके मुरझाए चेहरे को देख कर बड़ी फिक्र से पूछा था।
" जी मैं ठीक हूँ।"
" खाना लग चुका है। आओ हम भी...।
" खाने पर टूट पड़ें।" देवेश की बात उचक कर वह चंचलता से बोली।
"हा हा हा।" देवेश जोर से हँस दिया।
देवेश हमेशा से उसका बहुत ख्याल रखता था और आज पहली बार वह अपने दिल के बहुत करीब महसूस हो रहा था। देवेश उससे कितना प्यार करता है यह उसे आज पता चला।
हर तरह से ख्याल रखने वाला देवेश को वह आज तक पहचान नहीं पाई और बीते हुए मृग मरीचिका के पीछे भागती रही। वह जैसे रहती उसी में देवेश खुद को ढाल लेता था। "कोई बात नहीं।"अब जो समय मैं खो चुकी वो वापस तो नहीं आ सकता लेकिन अब बचे हुए समय में मैं पूरी तरह से देवेश की हो कर रहूँगी।

श्याम से यह आज की मुलाकात उसके लिए फायदे मन्द साबित हुई थी। देवेश उसके दिल में जगह बनाने में कामयाब हो चुका था और श्याम अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर उसके दिल से जा चुका था क्योंकि वह तो था ही किरायेदार।

श्वेता कर्ण