स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 9

उसका यह सौभाग्य था कि उसे ब्रिटिश ध्वज की छाया मिल रही थी.

इंडोनेशिया का लोकतंत्र ब्रिटिश एंपायर की निगरानी में चल रहा है.


बेशक यहां लोकतंत्र तो है मगर आज भी ब्रिटिश रजवाड़ों को यहां से रॉयल्टी जाती है. और इसके एवझ मैं ब्रिटिश हुकूमत इन्हें सुरक्षा का वादा करती है.

खैर, इन सब बातों से कोई मतलब नहीं. दरअसल बात यह है कि इंडोनेशिया नादर होने की कगार पर आ खड़ा हुआ है,और देश अपना सारा हीर गवा चुका है.


संसार में अब शायद ही कोई ऐसा अर्थशास्त्री है जो इंडोनेशिया को बचा सकता है.

ब्रिटिश हुकूमत ने हाथ ऊपर कर दिए हैं, और रिजर्व बैंक ने सरकार को छोड़कर व्यापारियों से मशवरा शुरू कर दिया है. जिसके अंजाम यह भी हुवे की एक सौ की नोट का स्थान 1 लाख की नोट ने ले लिया और सिक्के बाजार में से गायब होने लगे.


सरकार की भूमिका महस मध्यस्थि बन कर रहे गई और पूरा देश रिजर्व बैंक और व्यापारी मंडल चलाने लगे.


जिसके भी परिणाम यह आए के वास्तविक आर्थिक तंगी का त्रिस प्रतिशत भाग कृत्रिम था, यानी के व्यापारियों की बनी बनाई तंगी.

मेझ पर ब्रिटिश नेवी का आईकॉनिक फ्लैग पड़ा दिख रहा है और सभ्य गति से कक्ष का दरवाजा खुलता है.

मेझ पर पड़ी तख्ती से मालूम पड़ता है की चेयर पर बैठा हुआ आदमी आदमी एडमिरल है.

दरवाजा खुलते ही एक व्यक्ति अंदर प्रवेश करके बोलता है, सुहर्तो के राष्ट्र में अंधाधुन की फैली हुई है.

एडमिरल ने अपने उद्यम की निजी भाषा में कहा इसु ऊप द्वीप अब कोई नहीं बचा सकता.

एडमिरल गैरी कर्टन के कहने का भाव यही था कि इंडोनेशिया की महंगाई सामान्य से 90% ऊपर चल रही है. सारे प्रयास किए जाएं तो भी यह स्तर 50% से कम नहीं हो सकता. एक तो इंडोनेशिया में पारंपरिक व्यवसायो से अतिरिक्त ऐसा कोई उद्योग नहीं है जो देश की आर्थिक समृद्धि में योगदान दें और बेकारी को घटाएं. नहीं ऐसी कोई इंडस्ट्री है जो सरकार को मातबर रेवन्यू दिला सके. ऐसे में सरकार के पास व्यापारी गणो पर अधीन रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.
खैर, जो भी हो मगर बात यही है कि इंडोनेशिया में इन्फ्लेशन आ गया है. और इतने छोटे आईलैंड के इन्फ्लेशन को रोकना बहुत ही कठिन कार्य है.


दोस्तों, जब जब अर्थ तत्व महाभिनिष्क्रमण की और यानी की एक प्रकार के संन्यास की और प्रयाण करता है तब तब उस राष्ट्र की प्रजा की इच्छा शक्ति लगभग 0 सी हो जाती है. यानी कि भौतिक साधनों की उन्नति को प्राप्त करने की इच्छा मर जाना.

आप चाहे महंगाई कहो या अर्थ सन्यास यह दोनों बातें एक ही है. इन दोनों में भौतिक वैराग्य के ही फल उत्पन्न होते हैं.

इंडोनेशिया की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. जीवन के संरक्षनात्मक ( जीवन निर्वाह) पासे सूज गए हैं और भौतिक इच्छाएं समाप्त हो चुकी है.

जिसे देखो वो सब अपने लालन-पालन में है झुट गया है. और उन्नति के विचार कोसों दूर चले गए हैं.

दोस्तों, यदि आप चाहते हो की आपकी विचार शक्ति उन्नत हो तो सर्वप्रथम आपको स्वयं को अर्थपूर्ण करना पड़ेगा और पश्चात राष्ट्र को अर्थपूर्ण बनाने का योगदान देना पड़ेगा. इन दोनों विषयों का त्याग करके आप अपनी विचार शक्ति उन्नत नहीं कर सकते.