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सच का सामना





कई दिनों से अमर की रजनी से बात नहीं हो पा रही थी । उम्र का अर्ध शतक लगाने के बाद उसकी मुुुलाकात आभासी दुनिया में एक आकर्षक महिला रजनी से हुई थी और उसी की पहल पर वह आकंठ उसके प्रेम में डूबता चला गया । दीन दुनिया से बेखबर उसके प्रेम में वह अपनी अच्छी खासी गृहस्थी व दिनचर्या को भी भूला बैठा था । रजनी बड़ी गर्मजोशी से उससे मिलती रही । परस्पर प्रेम भरी अभिव्यक्तियों के साथ उम्र भर साथ निभाने की कसमें खाती रही । अमर ने भी हमेशा उसका साथ निभाने का वादा कर लिया था ।
धीरे धीरे वह उसका इस कदर अभ्यस्त हो गया कि अगर कभी रजनी किसी वजह से उससे बात नहीं कर पाती तो वह जल बिन मछली की भाँति तड़प उठता था । उसकी नजर हर वक्त मोबाइल पर ही टिकी रहतीं और रजनी के दस्तक का इंतजार करतीं । उसकी दीवानगी से बेखबर रजनी उसके हमेशा ऑनलाइन रहने पर सवाल खड़े करने लगी जबकि हकीकत में अमर तो हमेशा उसी के लिए ऑनलाइन रहता था । धीरे धीरे रजनी ने खुद को समेटना शुरू कर दिया । दिन में कई बार अमर से बात करनेवाली रजनी मुश्किल से उससे दिन भर में एकाध बार बात करने लगी और इसी के साथ हर बीते पल के साथ बढ़ती गई अमर की बेकरारी , बेचैनी और दीवानगी ।
अचानक रजनी ने उससे बात करना बंद कर दिया और अमर के संदेशों से तंग आकर एक दिन उसने अमर को व्हाट्सएप से भी ब्लॉक करने की धमकी दे डाली । अमर ने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी । वह अंदर ही अंदर बुरी तरह टूट चुका था । मर्द था सो खुलकर रो भी नहीं सकता था लेकिन चश्मे के पीछे छिपी उसकी पलकें हमेशा गीली रहती थीं ।
इसी अवस्था में पंद्रह दिन निकल गए जब उसने रजनी से अंतिम बार बात की थी । दिन भर पागलों की तरह फेसबुक पर उसकी प्रोफाइल निहारने और उसकी याद में तड़पने के अलावा उसके पास और कोई काम नहीं था । रजनी पंद्रह दिनों से फेसबुक से भी लगभग गायब थी । न कोई पोस्ट और न कोई कहीं प्रतिक्रिया । यह स्थिति अमर के लिए और चिंताजनक थी । रजनी की हल्की सी परेशानी भी उसे एकदम से बेचैन कर देती थी और अब बिना किसी खबर के अचानक उसका यूँ गायब हो जाना अमर बरदाश्त नहीं कर पा रहा था । पता नहीं कैसी और किस हाल में होगी वह ?
हालाँकि अमर ने अब स्वीकार कर लिया था दिल से कि अब वह रजनी की पसंद नहीं रहा लेकिन उसका प्यार तो रूहानी था , रूह की गहराइयों से उसे चाहा था । इसलिए वह रजनी की खुशी में ही खुद को खुश रखने का प्रयास करता । लेकिन इस स्वीकारोक्ति के बाद भी वह खुद को रजनी की यादों से मुक्त नहीं कर पा रहा था । उसे खुद पर हैरत हो रही थी कि वह रजनी की मोहब्बत के बिना आखिर जिंदा भी क्यों है ?
बेचैनी और तड़प की इसी अवस्था में वह एक दिन रेल की पटरी पर जा पहुँचा । सोचकर तो यही आया था कि तिल तिल कर मरने से बेहतर है एकबार में ही इस तड़प से मुक्ति पा लिया जाए लेकिन उसकी खुशकिस्मती या बदकिस्मती लगभग आधे घंटे के इंतजार के बाद भी किसी तरफ से कोई ट्रेन नहीं आई । उसकी खुशकिस्मती या बदनसीबी पता नहीं लेकिन लॉक डाउन की वजह से ट्रेनों का संचालन लगभग बंद था। यादों के बवंडर में डूबते उतराते अचानक उसके अंतर्मन ने उसे झकझोरा ' ये क्या करने जा रहा है तू ? कभी ये भी सोचा कि तेरे बाद तेरे घरवालों का क्या होगा ? पत्नी का क्या होगा ? बच्चों का क्या होगा ? '
अपने अंतर्मन से संघर्ष करते हुए उसका जवाब था ' लेकिन सबकी फिक्र करते हुए मैं क्यों आखिर तड़पाऊं खुद को , कब तक यह सजा भुगतुं ? '
अंतर्मन के जवाब के आगे वह खुद ही निरुत्तर हो गया जब जवाब आया ' सही कह रहे हो , तुम तो यहाँ ट्रेन की पटरी पर सोकर खुद को सभी परेशानियों से मुक्त कर लोगे ,लेकिन इसका नतीजा क्या होगा यह भी कभी सोचा है ? तुम्हारे जाननेवाले जो तुम्हारी इतनी इज्जत करते हैं आखिर इसकी वजह के बारे में क्या कयास लगाएंगे ? तुम्हारे घरवाले आखिर किसी को क्या जवाब देंगे ? उनकी समाज में क्या इज्जत रह जायेगी ? '
यह सोचकर ही उसके हृदय की धड़कनें तेज हो गईं कि वाकई इस कदम से तो उसके घरवालों की परेशानी ही बढ़ेगी और फिर बदनामी तो उसकी भी होगी । न चाहते हुए भी उसके कदम एक बार फिर अपने घर की तरफ मुड़ गए ।
लंबी साँस लेते हुए उसने सोफे पर बैठकर जैसे ही टेलीविजन शुरू किया खबर आ रही थी ' देश में कोरोना से मरनेवालों की संख्या लगभग एक लाख के करीब पहुँची । '
इस खबर को देखते हुए ही उसके मन ने एक योजना बना ली । गहरी तड़प के साथ ही एक रहस्यमयी मुस्कान उसके अधरों पर पसर गई । अपनी योजना के मुताबिक वह मौके का इंतजार करने लगा और उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब अगले दिन ही उसे वह मौका मिल गया जिसका उसे इंतजार था ।
उसकी सोसाइटी में बगलवाले विंग में एक वृद्ध दंपत्ति रहते थे जिनके कोरोना पॉजिटिव होने की शिकायत पर प्रशासन के लोग और अस्पताल वाले एम्बुलेंस लेकर उन्हें लेने आये थे । सोसायटी के अन्य लोगों की तरह ही वह भी उस विंग के समीप जाकर खड़ा हो गया । नगरपालिका के कर्मचारी हालाँकि उससे बार बार वहाँ से दूर हटने का निवेदन कर रहे थे लेकिन वह भला क्यों मानता ? उसे तो अपनी योजना को अंजाम देना था । अस्पताल के कर्मचारी जैसे ही उस वृद्ध को सहारा देते हुए विंग से बाहर निकले अमर अचानक उससे लिपटकर उसे दिलासा देने व हौसला रखने के लिए कहने लगा । उस वृद्ध का हाथ अपने हाथों में लेते हुए उनसे बोला ," आपको कुछ नहीं होगा । बस हौसला बनाये रखना और कोई भी दिक्कत हो तो मुझे जरूर फोन करना । "
सोसाइटी के लोग उसके इस कदम से भौंचक्के थे लेकिन इसे उसकी भावुकता समझकर सब उससे किनारा करते हुए और उसे नसीहत देते हुए अपने अपने घरों को चले गए । अपनी योजना की कामयाबी पर मन ही मन खुश होता अमर भी अपने घर की तरफ बढ़ा । संयोगवश उस समय घर में कोई नहीं था । अमर ने घर में जाकर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया ।
कुछ देर बाद श्रीमतीजी दाखिल हुईं और आते ही आसमान सिर पर उठा लिया ," क्या जरूरत थी तुम्हें उनको छूने की ? अस्पताल वाले थे न ? " उन्हें शायद बाहर ही किसीने बता दिया था । खैर काफी बड़बड़ के बाद जी भर रो लेने के बाद ही उनकी भड़ास थोड़ी कम हुई ।
बेहद संजीदगी से अमर कमरे में बैठा रजनी की कल्पना में खोया हुआ था । मन की तड़प पर काबू पाते हुए अब उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था जब ये भयानक वायरस उसके जिस्म पर हमला करेगा और थोड़ी तड़प के बाद उसे इस दुःखी व अंतहीन तड़प से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा ।
अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा । दो दिन बाद ही उसे सर्दी और बुखार के साथ सीने में जकड़न की शिकायत हुई । तुरंत दवाई आई लेकिन दवाई की तीन खुराक खाने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ तो डॉक्टर की सलाह पर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहाँ दाखिल होते ही उसका कोरोना टेस्ट कराया गया । कुछ ही घंटे बाद उसका रिपोर्ट आ गया जिसमें वह पॉजिटिव पाया गया । अस्पताल की सबसे ऊपर की मंजिल पर अन्य कोरोना मरीजों के साथ उसे शिफ्ट कर दिया गया ।
पैसा पानी की तरह बह रहा था लेकिन उसे इसकी कोई चिंता नहीं थी । उसे तो सम्मानपूर्वक इस दुनिया से विदा लेना था और अपने दुःखों से निजात भी पाना था । कभी कभी वह अपनी योजना पर खुश भी हो जाता कि उसकी खुशकिस्मती से ही इस बीमारी का आगमन हुआ है नहीं तो वह भला और क्या उपाय अपनाता स्वयम को मुक्त करने का इन झमेलों से ।
डॉक्टरों के प्रयास के बावजूद उसकी तबियत खराब होती गई । शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती गई और उसे मर्मांतक पीड़ा का अनुभव हुआ । उसे यह अंदाजा न था कि इस बीमारी में इतना तड़पना भी पड़ेगा मरने से पहले । अंतिम बार बात करने का प्रयास करते हुए उसने रजनी को ईमेल के जरिये अपनी बीमारी से अवगत कराया । एक दिन अचानक रजनी का संदेश पढ़कर वह खिल गया । संदेश अंग्रेजी में था जिसका मतलब इतना ही था ' सब ठीक हो जाएगा , आप जल्दी स्वस्थ हो जाइए ' !
उसका दिल चाहा कि वह ठहाके लगाए और फिर अचानक पागलों की भाँति वह फूट फूटकर रो पड़ा ।
मौत दबे पाँव उसकी तरफ बढ़ रही थी । उसकी आत्मा उसके जिस्म से अलग होने का पूरा प्रयास कर रही थी और इस प्रयास में जिस्म भयानक दुःख सहन कर रहा था और अमर ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था ' हे भगवान ! अब तो दुःखों से छुटकारा दिला ! '
एक दिन सुबह सुबह उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका जिस्म काफी हल्का हो गया है और वह हवा में उड़ रहा है। उसने नीचे देखा , वाकई उसे नीचे अस्पताल की वह इमारत दिखाई पड़ रही थी जिसमें वह भर्ती था और अस्पताल के सामने की सड़क पर लोग पूर्ववत ही आ जा रहे थे।
वह नीचे की तरफ आया और अस्पताल के सामने खड़ी एक शव वाहिनी पर उसकी नजर गई। अपने आप को पूरी तरह किट की मदद से ढंके हुए कुछ अस्पताल कर्मी किसी बोझ की मानिंद शवों को उसमें ठूँस रहे थे। अचानक एक शव के जिस्म पर चढ़ाया गया आवरण हट गया और उसे देखकर वह तड़प उठा। ' अरे ! यह तो उसका ही जिस्म था। इसका मतलब अब वह मर चुका है और आत्मा के रूप में यह सब देख रहा है ?'
कुछ पल वह हताश और निराश अपना जिस्म उस शववाहिनी में डालने से अस्पताल कर्मियों को रोकने का प्रयास करता रहा लेकिन वह तो उन्हें छूने में भी असमर्थ था। थक हार कर वह उनसे अलग एक तरफ खड़ा हो गया और सोचने लगा, ' अब तो मैं अपने इस जिस्म का बोझ ढोने से मुक्त हो चुका हूँ। चलकर देख लूँ एक नजर अपनी रजनी को ..किस हाल में है ? '
पलक झपकते ही वह रजनी के घर के सामने था। उसे बेहद आश्चर्य हो रहा था। 'हजारों मील की दूरी और एक पल में अपनी प्रियतमा के पास ! कितना खुशनसीब हूँ मैं !'
रजनी उसे अपने कमरे में ही दिख गई। गुलाबी साड़ी में वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। आज पहली बार वह उसे देख रहा था और बस अपलक उसे देखे ही जा रहा था , खामोशी से और रजनी .....! रजनी हाथों में मोबाइल लिए व्हाट्सएप पर व्यस्त थी। वह खामोशी से उसके पास पहुँच गया और मोबाइल के स्क्रीन पर नजर पड़ते ही उसका खून खौल उठा। रजनी किसी राकेश नाम के व्यक्ति के साथ प्रेमालाप में व्यस्त थी। उन लिखे हुए अक्षरों को दुबारा पढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। सच का सामना करना बेहद भयावह और दुःखद था उसके लिए।

उसे अब रजनी की बेरुखी की वजह का पता चल गया था। उसका जी चाह रहा था कि अभी उस बेवफा का गला घोंट दे और उसने प्रयास भी किया लेकिन वह बेबस ही रहा। वह उसे छू पाने में भी असमर्थ था। इतना बेबस उसने खुद को कभी नहीं महसूस किया था। जिस आभासी दुनिया के आभासी प्यार के लिए उसने अपनी हँसती खेलती गृहस्थी में आग लगा लिया था, खुद को मिटा दिया था जिसके प्यार में वह बेवफा किसी और के साथ प्रेम की पींगें बढ़ाने में मशगूल थी। अब उसे अपने किए पर काफी पछतावा हो रहा था और अपने बीवी बच्चों की याद आ रही थी ' पता नहीं उनपर मेरी मौत से क्या बीत रही होगी ? कैसे होंगे सब ?' और इसी तरह विचार करते हुए वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हुए सोच रहा था ' काश ! उसे अपने बीवी बच्चों से माफी माँगने का एक मौका मिल जाता ..!'
तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसे कोई झिंझोड़ कर जगा रहा हो और उसकी आँखें खुल गई। उसने खुद को अस्पताल के बेड पर पड़ा पाया और देखा सामने अस्पताल का वार्ड बॉय उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। वह कह रहा था ," कितनी गहरी नींद सोते हैं साहब आप ? आपको तो हिलाहिलाकर मैं थक गया ! फटाफट नीचे आ जाओ ! , नीचे टेस्टिंग रूम में आपका कोरोना चेक होगा और रिपोर्ट नेगेटिव आते ही आपकी छुट्टी हो जाएगी। "
उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद अदा किया और चल पड़ा नीचे की मंजिल की तरफ जहाँ उसका कोरोना परीक्षण किया जाना था।