palti mar kavi se mulakat in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | पलटी मार कवि से मुलाकात

पलटी मार कवि से मुलाकात

पलटी मार कवि से मुलाकात

यशवंत कोठारी

कल बाज़ार में सायंकालीन आवारा गर्दी के दौरान पल्टीमार कवि फिर मिल गए.बेचारे बड़े दुखी थे.उदास स्वर में बोले-क्या बताऊँ यार पहले एक संस्था में घुसा थोड़े दिन सब ठीक ठाक रहा लेकिन कुछ पुराने खबिड अतुकांत कवियों ने मुझ गीतकार को मुख्य धारा से अलग कर दिया .मेरी किताब को खोल कर भी नहीं देखा. साहित्य में छुआ छु त व अस्प्रश्य ता का ऐसा उदाहरण .हर प्रोग्राम में मेरा काम केवल माइक,कुर्सियों की व्यवस्था तक ही सिमित हो गया.चाय समोसे भी सबसे बाद में मिलते.एक पूंजीपति ने पूरी संस्था को जेब में डाल लिया,मैं देखता ही रह गया .अपनी उदासी दूर करने के लिए मैंने एक अन्य संस्था का दरवाज़ा खटखटाया ,दूसरे दल से आने वाले नेता की तरह मेरा खेरमकदम किया गया .मुझे क्या मालूम था की बकरे को काटने के पहले उसे खिलाया पिलाया जा रहा है.

इस गतिशील संस्था में मुझे चंदा लेने का काम दिया गया.एक बूढ़े कवि ने कहा कुछ जेब से भी लगाओ यार कभी अपनी सरकार आई तो सब वसूल लेंगे.लेकिन जल्दी ही इस संस्था से भी मेरा मोह भंग हो गया,ये लोग केवल अपनी कविता की तारीफ व् समीक्षा में ही व्यस्त रहते थे.नए को पढने कि सलाह देते थे.अक्सर कहते मेरी किताब खरीद कर पढो ,यह पूछने पर की कहाँ मिलेगी झोले से निकाल कर हाथ में देकर जेब से माल निकल लेते .ये कवि जनवादी थे,प्रगति शील थे.जन संस्कृति मंच में थे यहाँ तक की नई सरकार के साथ ही भगवा भी हो गए.नए नियमों के आधार पर इन लोगों ने अकादमी के गुण गान करने शुरू कर दिए.

मित्र ,क्या बताऊँ ये कवि फेस बुक पर चाटुकारिता के नए प्रतिमान गढ़ने लगे.मैं निराश,हताश दुखी होकर इन लोगों से बचने का रास्ता ढूंढने लगा.मार्क्सवादी कवि जनवादी को कवि नहीं मानता ,प्रगति वादी प्रयोगवादी को कवि नहीं मानता ,राष्ट्र वादी किसी को नहीं मानता ,कविता में बड़ा अजाब गज़ब घालमेल है भाई.

दुखी कवि ने आगे बताया मैंने पलटी मारी और इस बार दरबार में घुस गया,मगर वहां तो बड़े बड़े राज कवि शीश जुका कर चरण वंदना,चारनीय वंदना कर रहे थे.फ़िल्मी गीतकार भी बा जा बजा रहे थें.मुझे कौन पूछता.कविता का कोई महत्त्व नहीं था महत्व इस बात का था की राजा आप से क्या चाहता है? राजा के चाटुकार आप को सही’ राह दिखा सकते हैं.यहाँ भी मेरी दाल नहीं गली मैं फिर पल्टी मारने कि सौचने लगा.इस बार मैंने एक एसी संस्था पकड़ी जिस के मालिक वयोवृद्ध थे कभी भी नित्यलीला में लीन हो सकते थे.मैंने सोचा ये ठीक रहेंगे ,संस्था पर मेरा कब्ज़ा हो जायगा.

लेकिन भाग्य ने यहाँ भी मेरा साथ नहीं दिया.काफी समय तक तो वे ही जिन्दा रहे और बाद में उनकी प्रेमिका ने संस्था और मुझे दबोच लिया.मैं खूब छट पटाया,मगर कुछ नहीं हुआ.

कविता के आकाश में मैं एक ध्रुव तारा बनना चाहता था ,मगर यहाँ तो टिमटिमाना भी नहीं हो परः था.मैंने फेस बुक पर पेज बनाया किसी ने नहीं देखा ,मैं ट्विटर पर टीटीयाया किसी ने ध्यान नहीं दिया,मैंने व्हात्त्सप्प पर ग्रुप बनाया नहीं चला .मेरी कविता उन पत्रिकाओं ने भी वापस कर दी जिनको मैंने चन्दा दिया था.सब के सब मिले हुए हैं जी .

मैंने साहित्य में गहरी दुबकी लगाने की सो ची मगर डूब जाने का खतरा था.मैं तैर कर इस वैतरणी को पार करना चाहता था.

बड़ी अजीब हालत थी अतुकांत कवि गीतकार को नहीं पहचानता,गीतकार गजल का र से घ्रणा करताहै,दोहा कवि सोरठा कवि को नहीं जानता ,महाकाव्य लिखने वाला खंड काव्य वाले कवि को नहीं मानता.सब के सब आत्म मुग्ध.

लेखक संगठन केवल अपनी जाती –बिरादरी के कवियों को पहचानते,बाकि के सब अस्पर्श्य ,कवियों में छुआछूत,जातिवाद, देख कर मेरा कवि मन विचलित हो गया.आवारा दुखी कवि ने फिर कहा.साँझ घिर आई थी ,हम दोनों ने चाय सुडकी और घर को चले.

कवि का दुःख सार्वजनीन व् सार्वकालिक है ऐसा मैं मानता हूँ .

आप क्या सोचते हैं?

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Yashvant Kothari

Yashvant Kothari Matrubharti Verified 2 years ago