Pawan Granth - 12 in Hindi Mythological Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 12

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 12



परमात्मा सब जीवों में रहता है ।वह सौम्य
सुंदर जीव में भी है जिन्हें हम प्यार करते हैं, दुलार करते हैं और गले लगाते हैं ।उन्हें छूकर उन्हें प्यार का अहसास कराते हैं । परमात्मा ख़ूँख़ार दुष्ट प्रवृत्ति के जीवों में भी है लेकिन उन्हें हम पास जाकर प्यार नहीं कर सकते न ही हम गले लगा सकते है ।

अनुभव तुमने देखा है लोग बहुत से जीवों से प्यार करते हैं लेकिन सॉंप, बिच्छू, बाघ आदि को देख कर दूर हो जाते है ।उनमें भी परमात्मा है लेकिन उन्हें गले नहीं लगाते ।
पापी, दुर्जनों,पापात्माओं से दूर रहो।

दादी जी— अनुभव ,तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ ।


कहानी (8) अदृश्य

एक दिन अध्यापक विकास-सिद्धांत बच्चों को समझा रहे थे ।

अध्यापक ने एक छोटे बच्चे से पूछा, “सूरज, क्या तुम्हें बाहर एक पेड़ दिखाई देता है ?

सूरज — “जी हॉं मुझे एक पेड़ दिखाई दे रहा है ।”

अध्यापक— “सूरज तुम बाहर जाओ और देखो कि तुम आकाश को देखते हो या नहीं ।”

सूरज— “अच्छा” । (कुछ मिनटों में लौट कर) “ हॉं मैंने आकाश देखा गुरु जी ।”

अध्यापक— तुमने कहीं परमात्मा को देखा ?

सूरज— “नहीं” गुरु जी ।

अध्यापक— “ यही तो मैं कहता हूँ हम परमात्मा को नहीं देख सकते क्योंकि वह है ही नहीं, उसका अस्तित्व ही नहीं ।”

कक्षा में एक छोटी लड़की भी बैठी थी । वह एक छोटी लड़की बोल उठी । वह सूरज से कुछ प्रश्न पूछना चाहती थी । अध्यापक ने अनुमति दे दी ।

छोटी लड़की ने सूरज से पूछा— “ सूरज तुमने बाहर पेड़ को देखा ?”

सूरज—“ हॉं मैंने पेड़ को देखा ।”

छोटी लड़की— “ सूरज बाहर तुम्हें घास दिखाई देती है ?”

सूरज—“ हॉं , मुझे घास दिखाई देती हैं ।”

छोटी लड़की— “सूरज तुम गुरु जी को देखते हो ?”

सूरज— “ हॉं ।”

छोटी लड़की— “ क्या तुम उनके मन या मस्तिष्क को देखते हो?”

सूरज— “ नहीं मैं नहीं देख सकता गुरु जी के मन और मस्तिष्क को।

छोटी लड़की— “फिर तो जो आज हमें स्कूल में पढ़ाया गया, उसके अनुसार उनके मन होगा ही नहीं ।”
कुछ चीज़ें अदृश्य है लेकिन वह है , जो हमें दिखाई नहीं देता तो उसके न होने का प्रमाण हम नहीं दे सकते ।
परमात्मा हमारी भौतिक ऑंखों से नहीं देखा जा सकता । उसे केवल ज्ञान, आस्था ,भक्ति और विश्वास की आँखों से देखा जा सकता है । हम दृष्टि से नहीं विश्वास से चलते हैं । वह हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देता है और उन्हें सुनता है।

हम जब भी किसी परेशानी या गहरे संकट में होते हैं तो अनायास ही हम मन में प्रार्थना करते हैं । ऑंखों को बन्द करके मन ही मन प्रार्थना करते हुए बिना बोले ही विनम्र भाव से बिनती करने पर परमात्मा हमारी सुन ही लेता है ।यह हमारा परमात्मा पर परम विश्वास है ।जबकि परमात्मा कभी हमें दिखाई नहीं देता ।

दादी जी— हमें भगवद्गीता पढ़नी चाहिए । कुछ लोगों का कहना है कि भगवद्गीता बुढ़ापे में पढ़ने की पुस्तक है ।
जब हमें किसी परेशानी का हल समझ नहीं आता तो भगवद्गीता का कोई भी पृष्ठ हम पढ़ते हैं तो आसानी से हल निकल आता है । हर उम्र के व्यक्तियों को भगवद्गीता पढ़नी चाहिए क्योंकि सभी समस्याओं के हल उसमें हमें मिल जाते हैं । किसी भी धर्म का व्यक्ति भगवद्गीता को पढ़ कर अपनी समस्याओं का हल आसानी से निकाल सकता है ।बहुत से लोगों का जीवन भगवद्गीता पढ़ने से सफल हुआ है ।

अध्याय सात का सार— परमात्मा एक ही है जो अनेक नामों से पुकारा जाता है । हमारे धर्म में देवी - देवता या प्रतिमाएँ उसी एक परम प्रभु की भिन्न शक्तियों के नाम हैं ।
देवी -देवता हमें पूजा और प्रार्थना में सहायता करने के लिए
भिन्न-भिन्न नाम और रूप है । सारी सृष्टि प्रकृति के पॉंच मूल तत्वों ( पृथ्वी, जल , अग्नि, वायु और आकाश) और आत्मा से बनी है । परमात्मा निराकार भी है और साकार भी। वह कोई भी रूप धारण कर सकता है । बिना आध्यात्मिक ज्ञान और गुरु के कोई परमात्मा को नहीं जान सकता ।

अनुभव आज इतना ही कल मैं तुम्हें अध्याय आठ को सरल शब्दों में समझाने का प्रयास करूँगी ।


क्रमशः ✍️