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उर्दू रामायण-नवलसिंह प्रधान

नवलसिंह प्रधान कृत उर्दू रामायण

बुंदेलखंड के अनेक देशी राज्यों में रहे प्रसिद्ध कवि नवल सिंह प्रधान अथवा नवल सिंह कायस्थ ने अनेक ग्रंथों की रचना की है उर्दू रामायण उनमें से एक है। रामचंद्र शुक्ल ने उनके 29 ग्रंथों के नाम दिए हैं।(1) एक बाबूलाल गोस्वामी ने उनके 32 ग्रंथों के नाम दिए हैं ।(2)दो आश्चर्य है कि शुक्ल जी को नवल सिंह के प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रजभूमि प्रकाश की सूचना नहीं मिली ।तब उनके द्वारा रचित उर्दू रामायण का उल्लेख ना होना स्वाभाविक है क्योंकि यह ग्रंथ तो उतना चर्चित भी नहीं हुआ।
शुक्ल जी के अनुसार नवल सिंह झांसी के रहने वाले थे और समथर नरेश हिंदू पथ के आश्रित थे। (3) उनका संबंध टीकमगढ़ और दतिया राज्यों से भी रहा है। दतिया राज्य से उनका केवल संबंध ही नहीं बल्कि राज्य की विशेष कृपा का वर्णन " ब्रजभूमि प्रकाश" से मिलता है। यह ग्रंथ दतिया नरेश पारीछत की ब्रज यात्रा के प्रतिदिन के वर्णन के रूप में रचित है जिसमें इतिहास भी है, काव्य भी है , ब्रज के विभिन्न देव स्थानों का वर्णन भी है और आध्यात्मिकता भी है, उसमें कवि ने लिखा है-
मैं हूं सुधि पाई इतने ब्रजहि ही जाएं नर नाथ ।
चलिके पुर बलवंत ते भयहु सेहुडे साथ ।।
श्रीवास्तव कायस्थ कुल विदित कटेरा बार ।
सेवहुँ प्रभु दरबार को पालनहित परिवार।।
(4)
इस यात्रा में कवि राजा के साथ चलने वाले विशाल दल में शामिल था। इस आधार पर बाबूलाल गोस्वामी जी ने माना है कि नवल सिंह प्रधान मूलतः कटेरा जिला झांसी के निवासी थे ।बाद में दतिया के राजा पारीछत (1801 से 39) से प्राप्त गांव बलवंत पुर में रहते थे और उन्हीं के आश्रित थे । इस तर्क से इस बात का सर्वथा निषेध नहीं हो जाता कि कभी समथर राज्य में भी रहा है। कभी अनेक राज्यों में आते जाते रहते थे और वहां के राज्य आश्रय में काव्य रचना करते रहते थे। पद्माकर इसके महत्वपूर्ण और सर्वविदित उदाहरण हैं। नवल सिंह भी इसी तरह समर्थन राज्य में रहे हो सकते हैं।" उर्दू रामायण "की समीक्ष्य क हस्तलिखित प्रति की पुस्तिका से यह प्रमाणित भी हो जाता है यह प्रति 20 सेंटीमीटर x 13 सेंटीमीटर ( 8 इंच x 5 इंच) के आकार के 61 पृष्ठों की है। पुष्पिका इस प्रकार है -
"जहां तवारीख बतौर उर्दू जबान में रामायन मेजर डंकिन मालकम साहिब बहादुर के हुकुमे मुख्तिया कार सिमथर के।। लाला लव नवल सींघ ने बनाई है।। सन अठारा सौ चौअन सात ही अप्रेल में मुताबिक संवत 1911 चैत्र सुदी 9 शुकरे को तमाम हुई।। इति श्री सरण रामानुज दास प्रधान नवल सिंह विरचिते उर्दू रामाइन संपूरन स्थापत।। मिती फागुन बदी 3, रववार संवत 1918 ।।(6)
इस पुस्पिका से कई तथ्य स्पष्ट हो जाते हैं ।।कवि समथर के मुख्त्यार पद पर रहा है ।उनका रचनाकाल सात अप्रैल 1अठारह सौ चौअन है प्रस्तुत प्रति का लिप्यान्तरण फागुन बदी 3 ,रविवार सम्मत 1918 है , अर्थात रचना काल के लगभग 7 वर्ष बाद का है । कवि अपने जीवन के उत्तरार्ध में रामानुज संप्रदाय में दीक्षित होकर श्री शरण रामानुज दास के नाम से जाने जाते थे। उनके अनेक ग्रंथों में यही नाम रचनाकार के रूप में लिखा मिलता है। इसके अलावा यह तथ्य भी स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने इसकी रचना मेजर डंकिन मालकम की आज्ञा से की है तथा यह स्वयं रचनात्मक काव्य ग्रंथ ना मानकर गद्य में रचित इतिहास अथवा तवारीख मानता है ।
इस ग्रंथ से यह भी प्रमाणित होता है कि नवल सिंह प्रधान कवि के साथ ही गद्यकार भी थे। उन्होंने यह ग्रंथ कविता में और हिंदी भाषा में संभवत इसलिए नहीं लिखा क्योंकि अंग्रेज भारत में पहले से चल रही दरबारी भाषा फारसी के कारण उर्दू से जितने परिचित हैं उतने हिंदी काव्य भाषा से नहीं। यह ग्रंथ मेजर डंकन माल्कम नामक अंग्रेज अधिकारी की इच्छा अनुसार लिखा गया यह तो पुस्पिका में लिखा ही है ,भले ही उसने इस रामकथा को कभी ना पढ़ा हो ।
लेखक के अनुसार इस उर्दू रामायण का उप जीव्य ग्रंथ "रघुवंश" है । वैसे तो रामकथा पर तब तक संस्कृत और भाषा में अनेक ग्रंथों की केवल रचना ही नहीं हुई थी बल्कि वे प्रचलित भी हो गए थे जैसे बाल्मीकि और तुलसीदास के ग्रंथ, फिर भी राम के परवर्ती वंशजों में अग्नि वर्ण राजा तक का नाम "रघुवंश " में ही होने के कारण लेखक ने अपनी पुस्तक को उस पर आधारित माना।"
आखीर में अग्निवर्ण नाम राजा हुआ ।।उस की रानी के हमल रहा।। लड़का होने ना पाया। अग्नि वर्ण का इंतकाल हो गया।। तब कार पर्दा जी ने उस रानी को गद्दी पर बैठा या। यहां तक राम के वंस का हाल रामायण में रघुवंश में लिखा है।। आ गए जो उस रानी के लड़का पैदा भैया होवेगा ।। तिसका हाल जहां लिखा होई।।तिससे मालूम परे।"(6)
यह "रामायण" सिर्फ वर्णन शैली में लिखी गई है। उसमें ना विवेचन की स्थिति है, ना चित्रण है ।वर्णन भी ऐसा इसमें कथा के प्रमुख स्थल ही आ पाए हैं। युद्ध जैसे स्थलों का वर्णन भी अत्यंत संक्षेप में किया गया है । ग्रंथ का प्रारंभ शंकर से किए गए पार्वती के इस प्रश्न से होता है कि श्री राम जी का अवतार किस वास्ते हुआ तब शंकरजी ने बताया कि सनकादिक को श्री नारायण के दर्शनों से रोकने के कारण उन्होंने जय विजय पहरेदारों को शाप दिया कि वे तीन जन्म तक राक्षसों के वंश में जन्म लेते रहेंगे। तब दोनों दरबान सनकादिको के पैरों में गिर पड़े । तकसीर वार हो जाने पर हाथ जोड़ कहा- जनाब अली हमारा उद्धार कैसे होगा हुईगा तब उसने राजी हो कह दिया- तुम्हारे वास्ते ऐसे नारायण अवतार लेकर आपके हाथों से मार के इसी हज को पहुँचायेगे ।।(7)
यही जय विजय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु हुए।यही जय विजय फिर रावण और कुंभकरण हुए। इन्हें नारायण के अवतारों ने ही मारा। इसी तरह पुस्तक में सीता की उत्पत्ति का भी प्रसँग आया है। जब रावण ने अपने राज्य क्षेत्र में रहने विषयों से किराया मांगा तो उन्होंने अपने रक्त से भरा एक घड़ा भिजवा दिया रावण ने तात्पर्य समझ कर वह घड़ा दूर तिरहुत राज्य की जमीन में गढ़वा दिया। राजा जनक ने जब यज्ञार्थ हल चलाया तो उस घड़े में से सीता का जन्म हुआ।
लेखक ने इस ग्रंथ को तवारीष कहा है। इसलिए उसने घटनाओं की तिथियां देकर उनकी प्रामाणिकता प्रकट की है । पौष कृष्ण पंचमी को राम ने समुद्र से रास्ता मांगा । पौष कृष्ण- चौदस को राम ने रामेश्वर महादेव की स्थापना की। पौष शुक्ल द्वितीया तक 4 दिन में राम की सेना उस पार उतर गई । तृतीया के दिन प्रातः से लंका की मोर्चाबंदी हुई । आठ दिन तक रावण अनभिज्ञ रहा। एकादशी को उसका एक गुप्तचर राम की सेना का पता लगाने आया। इसके बाद 2 दिन सुग्रीव ने सभी मोर्चों पर अपनी सेना की हाजिरी ली। त्रयोदशी को राम ने रावण को अप्सराओं का नाच देखते देखा। माघ कृष्ण प्रथमा को राम ने अंगद को शांति दूत की तरह भेजा । द्वितीया से सात दिन तक भीषण युद्ध हुआ। नवमी को मेघनाथ युद्ध में उतरा ।हनुमान ने द्वादशी को धूम्राक्ष को और त्रयोदशी को अकंपन को मारा। माघ शुक्ल चतुर्थी से 4 दिन 4 रात कुंभकरण को जगाया गया। इस अवधि में युद्ध बंद रहा ।वह नवमी के दिन युद्ध में आया ।उसे मारने में राम को 6 दिन लगे ।राम और रावण का युद्ध 18 दिन और 18 रात तक चलता रहा। रावण की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्थी की रात में हुई। इसी तरह राम के वापस अयोध्या आने तक कई घटनाओं की तिथियां दी गई हैं राम अयोध्या में राम के पुनरागमन के बारे में लिखा है-
" हनुमान ने नंदीग्राम में ब्राह्मण के रूप सौ राम के आने की खबर सुना दी ।।भरत सौ मुफस्सल हाल रस्ता को बयान कर प्राग राज में भारद्वाज के आश्रम पर उतरे बताएं।। कहां थे के पाँचे के रोज यहां दाखिल होवेगे।।(8)
इस प्रकार लेखक ने बालकांड से उत्तरकांड तक की राम कथा का इस कृति में वर्णन किया है, लेखक ने यह नहीं लिखा कि उसने इन तिथियों की जानकारी कहां से प्राप्त की है।
नवल सिंह प्रधान तत्कालीन राज्यों के आश्रय में रह रहे थे, वे राज्यों की शासन प्रणाली उनका वैभव तथा उनकी दरबारी संस्कृति देख रहे थे ।अतः इस कृति में जब उन्हें इसी तरह का कोई वर्णन करना होता था है तो वह राम के समय को अपने समय के उपादानों से चित्रित करते हैं, मथुरा के राजा लवणासुर के अत्याचार करने पर शत्रुघ्न उसे मारते हैं ।यहां लेखक ने लिखा-
"तिनने उस लवणासुर को मार प्रजा को सुख दिया। मथुरा की आबादी कर अपना थाना कर श्री राम के पास आए।(9)
लेखक ने स्वयं इसे उर्दू रामायण कहकर इसकी भाषा की घोषणा कर दी है फिर भी इसे आमिश्रित या शुद्ध उर्दू नहीं कहा जा सकता । इसमें उर्दू भाषा के शब्द हैं तथा बमूजिब और पेश्तर बाद के साथ बनने वाले उर्दू के पदबंध भी हैं लेकिन इसमें उर्दू के साथ ही उस समय का प्रचलित गद्य रूप भी है जो काव्य कृति की टीकाओं में अथवा धार्मिक कथाओं के प्रवचन लेखन में प्रयुक्त होता था । यह गद्य रूप प्रमुखतःब्रज भाषा की प्रकृति से प्रभावित होता था नवल सिंह प्रधान बुंदेलखंड में रहे हैं। इसलिए उनकी भाषा में निकसबो जैसे बुंदेली शब्द भी आए हैं, अधिकतर वाक्यों में उर्दू और तत्कालीन काव्य भाषा का मिलाजुला रूप मिलता है।
" तब रावण ने फरेब कर कॉल नेम को रास्ता छेड़ करने वास्ते भेजा ।। तिसने हनुमान को फरेब सौ बातों में लगाए बिलमाए चाहा ।। (10)
भक्ति और रीति काल के टीका ग्रंथों में तथा अन्य ग्रंथों में जो गद्य रूप मिलता है उसकी एक विशेषता सरल और छोटे वाक्यों का प्रयोग है ।नवल सिंह प्रधान की स्थिति में भी मिश्रित और योगिक वाक्यों की जगह अधिकतर सरल वाक्य ही हैं।
इस प्रकार रामकथा का यह ग्रंथ अध्यात्म, दर्शन अथवा काव्यात्मक चित्रण की दृष्टि से भले ही उत्कृष्ट ना हो, लेकिन एक अन्य भाषा में लिखी गई रामकथा की दृष्टि से तो उसका महत्व है ही ।भारतीय संस्कृति साहित्य वांग्मय से अपरिचित और विशेष रूप से विदेशी पाठक के लिए तो यह रामकथा को जानने का बहुत उपयोगी माध्यम है।
संदर्भ
(1) हिंदी साहित्य का इतिहास रामचंद्र शुक्ल संस्करण संवत 2075 पृष्ठ 366
(2) ब्रजभूमि प्रकाश संपादक बाबूलाल गोस्वामी
(3) हिंदी साहित्य का इतिहास रामचंद्र शुक्ल संस्करण वही पृष्ठ वही
(4)ब्रजभूमि प्रकाश संपादक बाबूलाल गोस्वामी
(5) उर्दू रामायण नवल सिंह प्रधान हस्तलिखित प्रति पृष्ठ 761
(6) प्रश्न वही प्रश्न 7 60
(7) वही पृष्ठ 1
(8 )वही पृष्ठ 49 वही पृष्ठ एक
( 9) वही पृष्ठ 54
(10) वही पृष्ठ 44