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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 14



अध्याय नौ
राज विद्या- राज रहस्य

अनुभव— जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तो क्या वे वैसे ही होंगे, जैसे हम या वे हम से अलग होते हैं ?

दादी जी— भगवान जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं तो उनकी लीला मनुष्य और भगवान दोनों तरह की होती हैं ।

अम्मा तुम्हें हिंदू धर्म के दो सिद्धांतों को समझाने की कोशिश करती हूँ । उदाहरण के लिये मेरी इस चेन , मेरी अंगूठी और इस सोने के सिक्के को देखो। ये सब सोने से बने हैं । तो तुम उन्हें सोने के रूप में देख सकते हो और तुम हर चीज़ को जो सोने से बनी है उसे सोने के रूप में देख सकते हो। वे सोने के अलग-अलग नाम और रूप है । किंतु तुम उनको अलग-अलग चीजों के रूप में भी देख सकते हो जैसे—चेन, अंगूठी और सिक्का का रूप । चेन , अंगूठी, सिक्का आदि सोने के ही अलग-अलग नाम और रूप है ।
इसीप्रकार हम भगवान और उसकी सृष्टि को स्वयं भगवान के विस्तार के रूप में देख सकते हैं । इस विचार(दृष्टिकोण)
को अद्वैत दर्शन कहा जाता है ।

दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार भगवान एक सत्य है और उसकी सृष्टि दूसरा अलग सत्य है, किंतु वह भगवान पर निर्भर है । यह द्वैत दर्शन जो चेन,अंगूठी और सिक्का आदि सोने से बनी चीज़ों को सोने से अलग मानता है ।

अनुभव— क्या यही वह बात है, जब लोग कहते है कि भगवान सब जगह और सब चीजों में है ?

दादी जी— हॉं अनुभव, परमात्मा सूरज है, चॉद है, वायु है, आग , पेड़,धरती और पत्थर है । उसी तरह जैसे सोने की बनी हर चीज़ सोना है । इसलिए हिंदू पत्थर में और पेड़ में भी भगवान को देखते और पूजते है , मानो उस रूप में वह स्वयं भगवान हो।

अनुभव— यदि प्रत्येक वस्तु भगवान से आती हैं, तो हर वस्तु क्या भगवान बन जायेगी,जैसे सोने की बनी हर वस्तुओं को सोने में पिघलाया जा सकता है ।

दादी जी— हॉ अनुभव, सृष्टि और प्रलय का चक्र चलता ही रहता है । यह वैसा ही है जैसे मेरी अपनी चेन , अंगूठी और सोने के सिक्के को पिघला कर सोने में बदलना और फिर सोने का प्रयोग नये आभूषण और सिक्के बनाने में करना । पिघलाने के काम को प्रलय कहते है । प्रलय के बाद सृष्टि का फिर से निर्माण होता है और यह प्रलय-निर्माण चक्र चलता रहता है ।

अनुभव— यदि भगवान हम ही हैं और हम सब भगवान से ही आते हैं, तब हर कोई भगवान से प्यार क्यों नहीं करता, क्यों उनकी पूजा नहीं करता?

दादी जी— जो सत्य को समझते हैं, भगवान की उपासना करते हैं । वे जानते हैं कि प्रभु हमारे स्वामी है और हमारी उत्पत्ति उन्हीं से व उन्हीं के लिए हुई है और हम सब उन्हीं पर निर्भर रहते हैं ।इसलिए वे प्रभु को प्यार करते हैं और उनकी उपासना करते हैं । किंतु अज्ञानी लोग नहीं समझते और ना ही सर्वव्यापी भगवान में पूर्ण विश्वास करते हैं ।

अनुभव— यदि मैं प्रतिदिन भगवान की पूजा करूँ, उन्हें प्यार करूँ और उन्हें फल-फूल चढ़ाऊँ, तो क्या वह मुझसे प्रसन्न होंगे और मेरी पढ़ाई में सहायता करेंगे ?

दादी जी— भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है—अपने सब भक्तों की— जो दृढ़ विश्वास और प्रेम भरी भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं—वे उनकी स्वयं देखभाल करते हैं।

अनुभव— क्या इसका ये अर्थ है कि भगवान केवल उन्हें ही प्यार करते हैं, जो उनकी प्रार्थना और पूजा करते हैं ?

दादी जी— भगवान हम सब को एक सा ही प्यार करते हैं, किंतु यदि हम उनका स्मरण करते हैं और उनकी प्रार्थना करते हैं, तो हम भगवान के ज़्यादा समीप आते हैं । इसलिए हम सब को उनका स्मरण करना चाहिए । उनकी उपासना करनी चाहिए, उनका ध्यान करते हुए श्रद्धा -भक्ति और प्रेम से उनके सम्मुख नतमस्तक होना चाहिए ।

अनुभव— मैं भगवान श्री कृष्ण के समीप आना चाहूँगा, दादी जी । मैं उनमें और अधिक आस्था कैसे रख सकता हूँ, कैसे उन्हें और अधिक प्यार कर सकता हूँ ?

दादी जी— उन सब अच्छी चीजों के बारे में विचार करो, जो भगवान हमारे लिए करते हैं ।वे हमें इतनी अलग-अलग खाने की चीजें देते हैं,जिनका हम सुख भोगते हैं ।
उन्होंने हमें गर्मी और प्रकाश के लिए सूरज दिया, जिसके बिना हमारा जीवन बहुत ही मुश्किल है ।चॉद -तारों और रात में बादलों से भरा सुंदर आकाश देखो। ये सब उनकी सुंदर सृष्टि है, तो फिर सोचो उनको बनाने वाला स्वयं कितना सुंदर होगा । प्रभु की उपासना उनकी दी हुई कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद देना है । प्रार्थना में उन वस्तुओं को मॉगना है, जो हमें भगवान से चाहिए । और ध्यान- योग सर्वशक्तिमान के साथ जुड़ना है, सहायता और मार्गदर्शन के लिए ।

अनुभव— जब भगवान एक ही है, जो हमें सब कुछ देते हैं, तो दादी मॉं , आप अपने पूजा -घर में इतने देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ क्यों रखती हैं ? केवल एक भगवान (श्री कृष्ण) की ही पूजा क्यों नहीं करतीं ?

दादी जी—भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, “वे जो अन्य देवी- देवताओं की पूजा करते हैं, उन देवी-देवताओं के द्वारा मुझे ही पूजते हैं ।” हम किसी भी देवी-देवता की, जिसके साथ समीपता का अनुभव करते हैं , पूजा कर सकते हैं । वह हमारा इष्टदेव कहलाता है । अपना निजी देवता, जो हमारा व्यक्तिगत और रक्षक का काम करता है ।अनेक देवी-देवताओं की पूजा एक साथ करने की प्रथा सराहनीय नहीं हो सकती ।

अनुभव— हम भगवान को फल-फूल क्यों चढ़ाते है?

दादी जी— भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि जो कोई भी उन्हें एक पत्र, एक पुष्प, एक फल , जल अथवा कोई भी वस्तु श्रद्धा-भक्ति से अर्पण करता है, वेन केवल उसे स्वीकार करते हैं वरन् उसका भोग भी करते हैं ।इसलिए हम खाने से पहले प्रार्थना के साथ सदा अपना भोजन भगवान को अर्पित करते हैं । भगवान को अर्पण किया गया पदार्थ, प्रसाद या प्रसादम् कहलाता है । कोई भी व्यक्ति भगवान को प्राप्त कर सकता है, जो उनकी पूजा विश्वास, प्रेम और भक्ति के साथ करता है । भक्ति का यह मार्ग हम सब के लिए खुला है ।

आस्था- विश्वास की शक्ति की एक कथा मैं तुम्हें कल सुनाऊँगी अनुभव ।

क्रमशः ✍️




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