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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 16



अभ्यास दस

ब्रह्म-विभूति

अनुभव— यदि भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वे हमारी देखभाल करेंगे, यदि हम उनका स्मरण करें तो मैं भगवान को जानना और उनको प्यार करना चाहूँगा । मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ , दादी जी?

दादी जी— भगवान को प्यार करना भक्ति कहलाता है। यदि तुममें भगवान की भक्ति है तो वे तुम्हें, भगवान विषय में ज्ञान और समझ देंगे । जितना अधिक तुम भगवान की महिमा, शक्ति और महानता को जानोगे और उनका चिंतन करोगे , उतना ही अधिक भगवान के प्रति तुम्हारा प्यार होगा । इस प्रकार ज्ञान और भक्ति साथ-साथ चलते हैं ।

अनुभव— भगवान तो इतने महान और शक्तिशाली है, मैं उनको सत्य में कैसे जान सकता हूँ?

दादी जी— भगवान को पूरी तरह तो कोई नहीं जान सकता । वह सूर्य मंडल की ऊर्जा और शक्ति का मूल कारण है, ऐसा कारण जो एक महान रहस्य ही बना रहेगा ।
भगवान अजन्मा,अनादि और अनंत है ।भगवान को केवल भगवान ही सत्यत: जान सकता है । यदि कोई कहता है, मैं परमात्मा को जानता हूँ , तो वह व्यक्ति नहीं जानता है । जो भी सत् (भगवान) को जानता है वह कहता है—“मैं भगवान को नहीं जानता ।”

अनुभव , कभी-कभी हम किसी संकट में होते हैं तो ऑंख बंद करके प्रार्थना करते हैं कि भगवान संकट को दूर करें और भगवान हमारे संकट को दूर करने का सरलता से हल निकाल देते है और हमें पता भी नहीं लगता । किसी न किसी रूप में वह समस्या का हल निकाल ही देते हैं ।

अनुभव कभी-कभी हम किसी ऐसी समस्या में उलझ जाते है, जिसके हमारे पास दो या तीन, हल होते है । हम नहीं समझ पाते हम क्या करें तो हम भगवान को याद कर तीनों हल को लिखकर एक पर्ची निकालते हैं तो वह सही हल हमारे हाथ में पर्ची के माध्यम से आ जाता है ।तब उलझन सुलझाने में सहायता मिलती हैं ।

अनुभव ऐसा तभी संभव है जब हमें भगवान में पूरा विश्वास हो , न कि भगवान की परीक्षा लेने के लिए ।

अनुभव— तब हम भगवान के बारे में क्या जान सकते है दादी जी ?

दादी जी— भगवान सब कुछ जानते हैं, किंतु भगवान को कोई नहीं जान सकता । शंकराचार्य के अनुसार, सारी सृष्टि भगवान के दूसरे रूप के सिवा और कुछ नहीं है ।सृष्टि भगवान की ऊर्जा से उत्पन्न हुई है । जिसे माया भी कहते हैं। सब कुछ उसी से आता है,और अंत में वापिस उसी में चला जाता है ।भगवान एक है जो अनेक बन जाता है । वह सब जगह है और सब वस्तुओं में है ।

वह सब प्राणियों का रचेता ,पालक , पोषक और संहारक भी है । वह सब वस्तुओं की सृष्टि करता है— सूर्य की, चंद्रमा की, नक्षत्रों की, वायु की, जल की, अग्नि की, यहाँ तक कि हमारे विचारों, भावनाओं, बुद्धि और अन्य गुणों की भी । सारी सृष्टि में हम उसकी महिमा और महानता के दर्शन कर सकते हैं । यह सूर्य, जो तुम पृथ्वी और सब नक्षत्रों के साथ देखते हो, उनकी महिमा का एक छोटा सा अंश मात्र है । सब जगह भगवान को देखना हमारे मन को पवित्र बनाता है और हमें अच्छा व्यक्ति बनाता है ।

एक कथा है, जो दर्शाती है कि हम भगवान के विषय में कितना कम जानते हैं ।

कहानी (13) चार अंधे आदमी

चार अंधे आदमी एक हाथी को देखने के लिए गये ।
एक ने हाथी के पैरों को छुआ और कहा—“हाथी एक खम्बे की भाँति है ।”

दूसरे ने उसकी सूँड़ को छुआ और कहा—“हाथी एक मोटी लाठी की तरह है ।”

तीसरे ने उसके पेट को छुआ और कहा— “हाथी एक विशाल घड़े की भाँति है ।”

चौथे ने उसके कानों को छुआ और कहा— “हाथी एक बड़े हाथ के पंखे की भाँति है ।”

इस प्रकार वह चारों आपस में हाथी की शक्ल को लेकर लड़ने लगे ।

एक व्यक्ति ने, जो उधर से गुजर रहा था, उन्हें इस प्रकार लड़ते हुए देख कर पूछा—“ तुम सब क्यों लड़ रहे हो ।”
उन्होंने अपनी समस्या उस व्यक्ति को बताई और उसे निर्णय देने को कहा ।

उस व्यक्ति ने कहा,— तुम में से किसी ने भी हाथी को नहीं देखा । हाथी खंभे की तरह नहीं है, इसके पैर खंभे की तरह है ।

यह मोटी लाठी जैसा नहीं है, इसकी सूँड़ मोटी लाठी की तरह है ।

यह बड़े घड़े जैसा नहीं है, इसका पेट बड़े घड़े जैसा है ।

यह पंखे की तरह नहीं है, इसके कान हाथ के पंखे की तरह है ।

हाथी यह सब है— पैर , सूँड़, पेट, कान और उनसे भी अधिक और बहुत कुछ ।

इसी प्रकार, जो भगवान की प्रकृति के बारे में वाद- विवाद करते हैं, वे उसकी वास्तविकता के केवल बहुत छोटे अंश को ही जानते हैं । इस लिए ऋषियों ने ‘नेति -नेति’ कहा है, अर्थात् भगवान न यह है न वह है ।

अनुभव— दादी जी, जिन लोगों का परमात्मा में विश्वास नहीं है,उनके बारे में आप क्या कहेंगी?

दादी जी— ऐसे लोगों को नास्तिक कहा जाता है । वे किसी सृष्टा के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते क्योंकि उनकी समझ में नहीं आ सकता कि ऐसा पुरुष या शक्ति कैसे हो सकती है ।इसलिए वे भगवान की सत्ता के विषय में प्रश्न करते हैं, संदेह करते हैं । किसी दिन उनके संदेहों का निराकरण हो जायेगा, जब भगवान की कृपा से उन्हें कोई सच्चा आध्यात्मिक गुरु मिल जायेगा । नास्तिक लोग वे है ,
जिनकी भगवान की दिशा में यात्रा अभी शुरू ही नहीं हुई है।
संदेह तो आस्तिकों के मन में भी उठते हैं, अंत: आस्था रखो,
भगवान में विश्वास करो और अपना कर्तव्य करते रहो।

अध्याय दस का सार— भगवान को , परमात्मा को कोई नहीं जान सकता क्योंकि वह सब प्राणियों का मूल है, सब कारणों का कारण है ।

हर वस्तु— हमारा शरीर, मन,विचार और भावनाओं सहित भगवान से ही आती हैं । वह सृष्टा है, पालक है और सबका संहारक है । वह अनंत है, अनादि है, अविनाशी है ।
सारा विश्व उसी की ऊर्जा के छोटे से अंश का विस्तार है।
सभी देवी- देवता उसकी विभिन्न शक्तियों के नाम मात्र है । किसी भी नाम, रूप और तरीक़े के साथ आस्थापूर्वक भगवान की पूजा करना हमें मनोवांछित फल देता है और हमें अच्छा और शांत बनने में सहायक होता है ।

क्रमशः ✍️