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पिता की खोज



" आज तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा अम्मी... कौन हैं मेरे अब्बू ? क्या नाम है उनका ? कहाँ रहते हैं ?.. और तुम अकेले क्यों रहती हो ?" बाईस वर्षीय नदीम ने लगभग चीखते हुए सवालों की झड़ी लगा दी।

"क्या बताऊँ बेटा ? कैसे कहूँ..... ?" लगभग पैंतीस वर्षीया रजिया कहते हुए सुबकने लगी थी।

"तुम क्या जानो अम्मी , मुझे किस जलालत का सामना रोज करना पड़ता है ? तंग आ गया हूँ मैं लोगों की फब्तियों और तानों से ! ऐसा लगता है अभी जाकर दरिया में कूद जाऊँ और खत्म कर लूँ अपनी इस बदजात जिंदगी को ! कब तक इस तरह घुट घुट कर जलालत की जिंदगी जिऊँ अम्मी ? आखिर तुम बता क्यों नहीं रही कि मेरे अब्बू कौन हैं ?" चीखते हुए नदीम अब लगभग रो ही पड़ा था।

उसकी तेज चीख सुनकर अंदर के कमरे में बैठकर अपनी किताबें पढ़ रहा बारह वर्षीय साहिल बाहर आ गया और अपने ही अंदाज में भोलेपन से बोला, "नदीम भाईजान ! मेरे अब्बू का नाम 'अहमद शेख' है और तुम मेरे बड़े भैया हो तो इस हिसाब से तुम्हारे अब्बू का नाम भी 'अहमद शेख' ही हुआ न ? कह दो न सबसे यही बात, क्यूँ अम्मी को परेशान कर रहे हो ?"

"तू चुप रह छोटे ! ये तेरे स्कूल की किताबों का हिसाब किताब नहीं, ये दुनियादारी की बातें हैं। अभी तेरे समझ में नहीं आएंगी !" नदीम ने बड़े भाई का हक जताते हुए बड़े इत्मीनान से कहा।

सुबकती हुई रजिया दोनों को चुप कराती हुई बोली, " तुम सही कह रहे हो नदीम बेटा ! मैं समझ सकती हूँ तुम्हें हो रही दुश्वारियों को ! वर्षों मैंने भी तो इस समाज की तीखी नजरों का सामना तड़प तड़प कर किया है। ये समाज का दस्तूर है कि गुनाह चाहे जिसने भी किया हो, गुनहगार वही समझा जाता है जो कमजोर हो। ...और अब तुम बड़े हो गए हो तो यह बताने की जरूरत नहीं कि समाज में औरतों की क्या हैसियत है। मैं भी इसी समाज में रही हूँ और इसी नाते मैंने उस गुनाह की सजा अकेले भुगती है जो किसी की शह पर मुझसे अंजाने में ही हो गई। और देखो ,समाज का दस्तूर ! जो असली गुनहगार है ,वह तो बाइज्जत समाज में मूँछें ऐंठकर घूम रहा है।"

"पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो अम्मी ? सीधे सीधे बताती क्यों नहीं ?" नदीम अधीरता से बोला।

"सीधे सीधे बात तेरे समझ में नहीं आएगी बेटे ! फिर भी तुझे मैं सब बताने की कोशिश करती हूँ।" कहते हुए रजिया अतीत में खोती चली गई।

" शमीम भाईजान ! मुझे थोड़ा हिसाब पढ़ा दोगे ? आज जनाब ने पढ़ाया लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया। कल पूछेंगे और नहीं बता पाई तो डाँट पड़ेगी।" किताबें हाथ में थामे बारह वर्षीया रजिया अपना दुपट्टा संभालते हुए पड़ोस में रहनेवाले अठारह वर्षीय शमीम के कमरे में दाखिल होते हुए बोली।

कमरे में शमीम जमीन पर बिछे गद्दे पर अधलेटा हुआ कोई किताब पढ़ रहा था। रजिया की आवाज सुनकर उसने उसकी तरफ देखा और किताब अलग रखते हुए बोला, "हाँ.. हाँ ! क्यों नहीं रजिया ! आ जा !"

"शुक्रिया भाईजान !" कहती हुई रजिया उसके नजदीक बैठ गई।

शमीम शहर के कॉलेज में कॉमर्स का विद्यार्थी था सो उसे गणित में वैसे भी अधिक दिलचस्पी थी। उसने बड़ी आसानी से रजिया को सभी हिसाब हल करने का तरीका समझा दिया।

उस दिन के बाद से अब रजिया अक्सर शमीम के यहाँ पढ़ने के लिए आने लगी। रजिया की नजदीकी से युवा होता शमीम मन ही मन खुश होता और गाहेबगाहे उसे छूने का मौका तलाशता रहता जबकि कैशोर्य व युवावस्था की दहलीज पर खड़ी शमीम भोलेपन से उसकी हरकतों को बड़े भाई का स्नेह मानकर खुश होती लेकिन यह उसका भ्रम ही साबित हुआ। रजिया की खामोशी को रजामंदी समझकर उत्साहित शमीम ने एक दिन घर में किसी के न होने का फायदा उठाते हुए उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया और किसी से कुछ न बताने की धमकी भी दे डाली। अबोध रजिया मन मसोसकर खामोश रह गई।

कुछ दिन की चुप्पी के बाद पढ़ाई के सिलसिले में वह फिर से शमीम के घर जाने लगी। उसकी खामोशी को उसकी रजामंदी समझकर शमीम का हौसला और बढ़ गया और वह गाहेबगाहे मौका देखकर रजिया की मासूमियत का फायदा उठाने लगा। मासूम रजिया उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उससे शादी के सपने संजोने लगी और उसके साथ प्रेम पथ पर आगे बढ़ने लगी।

शमीम का बड़ा भाई फहीम जो कि अक्सर खेती में व्यस्त रहता था, एक दिन दोपहर में अचानक घर आ गया और संयोगवश दालान के साथ वाले कमरे में उसने शमीम व रजिया को आपत्तिजनक हालत में देख लिया।

उसे देखते ही रजिया अपने अस्तव्यस्त कपड़े समेट कर भाग खड़ी हुई लेकिन फहीम ने शमीम को जमकर डाँट पिलाई। उसने डाँट डपटकर शमीम से रजिया के शारीरिक संबंधों के बारे में जान लिया। उसे सबकुछ सच सच बताते हुए शमीम उसके पैरों में गिरकर गिड़गिड़ा पड़ा था। उसे गिड़गिड़ाते देखकर फहीम के मन में एक कुटिल योजना ने जन्म ले लिया। उसने शमीम को अपनी बात मानने की शर्त पर उसका यह राज, राज ही रहने देने का वादा किया।

मजबूरन शमीम को उसकी बात माननी ही पड़ी।

एक दिन फहीम की योजना के मुताबिक शमीम की मदद से रजिया को फहीम की हवस का शिकार होना पड़ा।

उस दिन के बाद तीनों के मध्य नैतिकता, सभ्यता व रिश्तों के लिहाज की चादर गाहे बगाहे तार तार होती रही।

दोनों भाइयों के मध्य वह कठपुतली बनकर रह गई। कई बार दोनों भाइयों ने एक साथ ही उसपर कहर ढाया लेकिन पता नहीं क्यों वह खामोश रही। किसी से कुछ नहीं बताया।
दिन बीतते रहे और रजिया की खामोशी के बावजूद कुदरत ने अपने स्वभाव अनुसार अपना कार्य जारी रखा।
अब रजिया के शरीर में काफी बदलाव आ गया था और एक दिन अचानक उसके अम्मी की नजर उसके बढ़े हुए पेट पर पड़ गई।

यह रजिया की जिंदगी में आनेवाले तूफान की दस्तक मात्र थी। तूफान तो अभी आनेवाला था।
मामूली डाँट फटकार से ही रजिया ने शमीम और फहीम की पूरी कारस्तानी बयान कर दी। फहीम और शमीम के अब्बू गाँव के चौधरी होने के साथ ही आर्थिक रूप से भी काफी सम्पन्न थे सो 'उनसे उलझ कर कोई फायदा नहीं उल्टे रजिया की ही बदनामी होगी और उसकी जिंदगी बेकार हो जाएगी। कौन करेगा उससे शादी ?' यही सोचकर रजिया की अम्मी ने उसके अब्बू को सब कुछ समझा बुझाकर रजिया को अपने भाई के घर भेज दिया।

संयोग से यह नए शैक्षणिक सत्र के शुरुआत का समय था सो गाँव में रजिया के बारे में पूछनेवालों को यह बता दिया गया कि आगे की पढ़ाई के लिए रजिया अपने मामू के यहाँ शहर गई हुई है। रजिया की अम्मी और अब्बू ने एक तरह से रजिया को समाज में जलील होने से बचा लिया था और अपनी इस अक्लमंदी पर बहुत खुश थे। उन्हें क्या पता था कि उनकी यह पलायनवादी सोच मासूम रजिया के जीवन में किस तरह की मुश्किलें खड़ी करनेवाली थी।

मामूजान के यहाँ रहते हुए रजिया ने उनके घर पर ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। स्नेहमय पारिवारिक माहौल में रजिया और उसके बच्चे की परवरिश होने लगी।

रजिया को मामू के यहाँ आए हुए लगभग एक साल हो गए। उसका बच्चा भी अब लगभग सात महीने का हो गया था। शैक्षणिक सत्र के मध्य अवकाश के दौरान वह कुछ दिनों के लिए अपने घर भी हो आई थी जिससे गाँव व समाज में यह संदेश गया कि 'सब ठीक है' व निर्विघ्न रजिया की पढ़ाई मामू के यहाँ रहकर होती रही।

एक एक कर दिन गुजरते रहे और इस वाकये को दो साल पूरे हो गए। मामू के यहाँ उसका बच्चा अब लगभग डेढ़ साल का हो गया था और उसे पहचानने व बोलने भी लगा था। उसे बढ़ते देखकर रजिया जो कि अब वक्त से पहले ही अधिक समझदार हो गई थी, सिहर उठती उसके भविष्य के बारे में सोचकर। भविष्य की कल्पना कभी कभी उसके मन में एक भयंकर तूफान पैदा कर देता और वह विचारों के बवंडर में खो जाती।

इस तूफान में उसे अपना वजूद खोता हुआ सा नजर आता और फिर वह बेतरह हिचकियाँ लेकर सिसक पड़ती। उसका अंतर्मन उसे धिक्कारता उस अपराध को सहज स्वीकार कर लेने के लिए जो उसने कभी किया ही नहीं। उस खामोशी के लिए उसका मन हरदम कचोटता जो हरदम उसके कानों में गूँजती रहती और पूछती उससे कि 'उसने खामोशी अख्तियार कर उन दोनों भाइयों के गुनाहों पर पर्दा डालने का काम क्यों किया ? क्यों उनके किये की सजा भुगतने को मजबूर है ? दो दागदार चेहरों को बचाने के लिए वह क्यों अपना चेहरा छिपाए हुए है ? क्यों नहीं नोंच लेती उन दो इंसानी भेड़ियों के चेहरों पर लगा शराफत का नकाब ? क्या गुनाह है उसका ?' ऐसे कई सवाल उसके कानों में शोर मचाने लगते और फिर वह फफक कर रो पड़ती।

सब कुछ देखते समझते अब वह वाकई अपनी उम्र से काफी बड़ी हो गई थी। मामू के यहाँ अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर वह अपने गाँव वापस आ गई। न चाहते हुए भी ढाई साल के मासूम नदीम को वह छोड़ आई थी अपने मामूजान के घर जो कि उसके गाँव से काफी दूर था।
उसकी अम्मी ने उसे अपना वास्ता देकर उसके साथ हुए इस सारे वाकये का जिक्र किसी से भी ना करने की सख्त ताकीद दी थी और अपने दुधमुँहे नदीम को भी भूल जाने की बात कही।

समय से पहले परिपक्व हो चुके उसके दिमाग ने भी उसके मन की भावनाओं का मखौल उड़ाते हुए उसकी अम्मी की ही बातों का समर्थन किया था और बेबस लाचार रजिया ने खुद को परिस्थितियों के हवाले कर के सब कुछ उस परवरदिगार पर छोड़ दिया जिसके बारे में कहा जाता है ' उसकी मर्जी बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता।'

वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहा और देखते ही देखते मासूम सी किशोरी रजिया इक्कीस बरस की एक खूबसूरत युवती में तब्दील हो गई। नन्हा नदीम अपनी माँ से दूर रजिया के मामूजान के यहाँ पलता रहा। दूर के एक रिश्तेदार की पहल पर रजिया की शादी नजदीक के शहर के एक कारोबारी के पच्चीस वर्षीय लड़के अहमद से हो गई।

रजिया की शादी को लगभग सात वर्ष हो चुके थे। अपने स्वभाव से रजिया ससुराल में सबकी चहेती बन गई थी। उसके शौहर अहमद भी उसे बहुत प्यार करते थे। उनके प्यार की निशानी साहिल अब लगभग पाँच बरस का हो चला था कि एक बार फिर एक बहुत बड़े तूफान ने रजिया की जिंदगी में दस्तक दिया।

हुआ यूँ कि एक बहुत बड़े चक्रवाती तूफान के अंदेशे के चलते प्रशासन ने एहतियातन शहर में कर्फ्यू लगा दिया था। निचले क्षेत्र में रहनेवाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने का कार्य जारी था। प्रशासन के साथ ही सक्षम नागरिक भी निचले क्षेत्र में रहनेवालों को यथासंभव पनाह देकर इंसानियत का रिश्ता निभा रहे थे।
किसी आवश्यक कार्य से दुकान पर गया हुआ अहमद अभी घर नहीं पहुँचा था। शहर में तूफान अपनी दस्तक दे चुका था। तेज हवाओं के साथ ही बरसात के बूँदों की धुन पर आसमान में कड़कती बिजली भी ताल मिलाने लगी। तेज हवाओं के थपेड़े संग झूमते पेड़ों को देखकर रजिया सिहर उठी और मन ही मन अहमद के जल्द व सुरक्षित घर आ जाने की दुआ करने लगी।

तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। रजिया ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर अहमद के साथ कोई अधेड़ व्यक्ति खड़ा था। रजिया ने स्वभाव अनुसार झुक कर उसे सलाम किया। अहमद ने बताया, उस व्यक्ति का नाम करीम है और वह उसकी दुकान के सामने एक रेहड़ी पर समोसे बनाकर बेचता है। दिन भर काम करके उसकी दुकान के चबूतरे पर ही सो जाता है रात में लेकिन अभी तूफान को देखते हुए उसका वहाँ रहना खतरनाक था इसलिए वह उसे अपने साथ घर ले आया है।
चाय नाश्ते के बाद करीम ने अचानक रजिया से पूछ लिया, "तुम्हारा बेटा नदीम अब कैसा है ?"
नदीम का नाम सुनते ही रजिया को मानो साँप सूंघ गया हो। ऐसा लगा हजारों बम एक साथ उसके कानों के समीप फट पड़े हों और मन के अंदर एक तूफान बाहर चल रहे तूफान से कहीं अधिक जोरों से मचलने लगा कि तभी अहमद ने करीम से कहा, " जनाब ! साहिल नाम है हमारे लख्ते जिगर का और खुदा की मेहरबानी से वह भला चंगा है।"

रजिया को घूरते हुए करीम ने उससे पूछा, "तुम खुदाबख्श की भांजी हो न ? मैं उसके मोहल्ले में ही रहता हूँ और अभी आठ दिन पहले ही वहाँ से आया हूँ। नदीम की तबियत बहुत बिगड़ गई थी, शायद तुम्हें न पता चल पाया हो।"

अहमद को रजिया के मामूजान का नाम याद था सो उसे करीम की बातों में सच्चाई नजर आई और उसने कड़ाई से रजिया से नदीम के बारे में पूछा। अब रजिया भला क्या करती ? सामने नजर आ रहे सच को वह कब तक और कैसे झुठलाती ? सो उससे नजरें चुराते हुए रजिया ने नदीम के पैदा होने की पूरी बात उसे बता दिया और उससे माफी की गुहार लगाई।

सच्चाई पता चलते ही अहमद आपे से बाहर हो गया और करीम की उपस्थिति का लिहाज किए बिना ही टूट पड़ा रजिया के जिस्म पर। लात घूँसों की बरसात करके जब थक गया तो बुरी तरह हाँफते हुए वह बोला, " बदचलन ,बदजात गुस्ताख़ औरत ! तुझे मेरा ही घर बर्बाद करना था ? अब मैं तुझे एक पल भी अपनी नजरों के सामने नहीं देखना चाहता हूँ। दफा हो जा मेरी नजरों के सामने से।"
इस बीच रजिया उसके पैरों में गिर पड़ी, गिड़गिड़ाई, अपने अच्छे खुशनुमा दाम्पत्य जीवन का हवाला दिया लेकिन अहमद का दिल नहीं पसीजना था सो नहीं पसीजा और गुस्से में उसके मुँह से एक साथ निकल पड़ा, "तलाक..तलाक..तलाक !"

दोनों हथेलियों से अपने कानों को बंद करती हुई रजिया बुरी तरह बिलख उठी कि तभी उसे भान हुआ नदीम उसके सामने खड़ा उसकी ही तरफ देख रहा था। उसकी भी पलकें गीली थीं। अपने आँसू पोंछते हुए वह आगे बोली, " बेटा ! उस दिन जो तूफान बाहर तबाही मचा रहा था उससे कई गुना ज्यादा तबाही मेरी जिंदगी में मेरे मन के अंदर उठे तूफान ने मचा दिया था। मेरी बसी बसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी। अहमद ने साहिल को भी किसी का पाप कहकर अपनाने से इंकार कर दिया था। मेरी वफादारी और मोहब्बत का यही सिला दिया था अपने आपको मर्द कहनेवाले उस बदजात अहमद मियाँ ने। अब मुझे मर्दों से घृणा हो गई थी सो दूसरी शादी करने के अम्मी अब्बू के फरमान की परवाह न करते हुए मैंने मामूजान के यहाँ से तुझे अपने पास बुलवा लिया।.. लेकिन यहाँ भी मुझसे गलती हो ही गई। मैं भूल गई कि अपनी ममता के चलते मैं तुझे तो अपना लूँगी लेकिन तेरे लिए एक अदद बाप के नाम का जुगाड़ कैसे करूँगी ?" कहते हुए रजिया फफक पड़ी।

अपने हाथों से उसके आँसू पोंछते हुए नदीम ने कहा, " मत रोओ अम्मी ! मैं हूँ न ...मैं तुम्हें इंसाफ दिलवाऊंगा।"

अगले दिन नदीम रजिया को लेकर थाने गया। थानेदार से मिलकर उसे पूरी बात बताते हुए शमीम और फहीम के खिलाफ नामजद शिकायत दर्ज करने का निवेदन किया लेकिन थानेदार ने उनका मखौल उड़ाते हुए डपटकर भगा दिया। उसके अनुसार सबूतों के अभाव में दोनों भाइयों का कोई गुनाह साबित नहीं किया जा सकता था। उसने नदीम और रजिया को यह सारा वाकया भूल जाने की भी नसीहत दी।

स्वभाव से जिद्दी नदीम यहीं हार माननेवाला नहीं था। उसने एक समाजसेवी सहृदय वकील से संपर्क किया। उस वकील की तहरीर पर थानेदार को शमीम और फहीम के खिलाफ नामजद मुकदमा पंजीकृत करना पड़ा।

अदालत में कई दौर की लंबी चली सुनवाई के बाद जज ने दोनों भाइयों को रजिया का गुनहगार मान लिया और उन्हें सात सात साल के कड़े कारावास की सजा सुनाई। उन्हें सजा होने के बाद रजिया को जहाँ आत्मिक खुशी मिली, नदीम की खोज अभी भी मुकम्मल नहीं हुई थी।

उसने शमीम और फहीम के डीएनए की जाँच कराने का आदेश पारित करने की अदालत से गुहार लगाई। उसकी अर्जी अदालत में विचाराधीन है और जारी है नदीम की अपने पिता की खोज ..! उसके मन के अंदर तूफान चरम पर था।

एक सत्य घटना पर आधारित मौलिक कहानी
राजकुमार कांदु