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अनोखी दुल्हन - (असलियत_८) 23

वो अपने कमरे मे बैठ अभी भी उस पर्ची को घुरे जा रहा था। एक अंगुठी, एक पर्ची, उस पर लिखा नाम और नंबर। सनी ९८६७****** और होठों का वो निशान। यमदूत ने उस पर्ची को अपने होठों पर लगाया।

कुछ वक्त पहले,

" चलो ठीक है। में इस अंगुठी के पैसे दूंगी और तुम अपनी रिसर्च के लिए उसे इस्तेमाल करोगे। कुछ दिन बाद जब तुम्हारा काम हो जाएं, मुझे वापस कर देना। डील।" उसने अपना हाथ आगे किया।

" डील।" कहते हुए यमदूत ने दोनो हाथ जोड़ शुक्रिया जताया।

सनी ने उसे वो अंगूठी दी और उस से फोन करने का वादा लिया।

यमदूत ने उस पर्ची को अपने होठों से दूर किया और ख्यालों की दुनिया से बाहर आया। आखिर उस से ये सब क्यों हो रहा है ? एक इंसान को देख कर आसूं आना ? ये कोई अच्छे लक्षण नहीं है, उस यमदूत के लिए। क्यो वो सनी की तरफ खींचा चला जा रहा है ??? आखिर ये कौनसा भाव है जो सनी उस मे जगा रही है ??? नही ये नही होना चाहिए। वो यमदूत है। उस मे कोई भाव नहीं है। ना ही कभी हो सकता है। ना ही होगा। पर ये अंगूठी??? किस की है ??? उसे इस बात की तह तक जाना ही होगा। सोच सोच कर उसका सर फट रहा था।

वो अपने कमरे से बाहर आया, फ्रिज से बीयर का कैन निकाला और डाइनिंग टेबल पर वीर प्रताप के सामने बैठ गया।

" यमदूत शराब भी पीते है।" वीर प्रताप ने उसे चिढ़ाने के हिसाब से पूछा।

" पिशाच पी सकते है। तो यमदूत को किस बात की परेशानी ?" यमदूत का भी जवाब तैयार था। " तुम ये अचानक क्यो पी रहे हो ? "

" तुम भी तो पी रहे हो ?" वीर प्रताप। " वैसे भी शराब पीने का कोई वक्त नहीं होता। दारू, मीट और औरत जब जितनी ज्यादा मिल जाए उतना अच्छा। जब में जनरल था, इस मामले मे बोहोत नसीबवाला था।" वीर प्रताप ने बीयर का एक घुट लेते हुए कहा।

" अच्छा तो तुम जनरल थे।" यमदूत।

" अगर में पहले जैसा होता और तुम जैसा कोई ऐसा सवाल पूछता ना तो पता है में उसके साथ क्या करता?" वीर प्रताप।

" पता है में कौन था ??" यमदूत।

" कौन ?" वीर प्रताप।

" छोड़ो जाने दो।" यमदूत।

" कही राजा तो नही बोलने वाले थे। हे....... झूठ के देवता।" वीर प्रताप ने हंसते हुए कहा।

" तुम्हारी गुमशुदा आत्मा को तुम्हारे औरतों के बारे मे खयाल पता है।" यमदूत।

" वो मेरा भूत था। मेरा वर्तमान साफ है। तो भला में क्यों डरूं ?" वीर प्रताप।

" सामान बांध लिया?" यमदूत

" ज्यादा कुछ नही है, बांधने के लिए।" वीर प्रताप।

" संभाल कर जाना।" यमदूत।

" जरूर। फोन करूंगा।" वीर प्रताप।

" मेरे पास मोबाइल नही है पता है ना तुम्हे ?" यमदूत।

" इसीलिए तो कहा।" वीर प्रताप।

दोनो कितनी देर पी रहे थे, कुछ पता नही। कुछ देर बाद समा इस तरह था, के यमदूत दरवाज़े के पास बैठ इंतेजार कर रहा था। जब की वीर प्रताप बार बार दरवाजे से अंदर बाहर आ जा रहा था।

वीर प्रताप दरवाजे से अंदर आया।

" वो लायब्रेरी मे भी नही है।" उसने उदासी से कहा।

" कौन ? क्या पीने के बाद तुम हमेशा ऐसे ही पेश आते हो ?" यमदूत।

" बिल्कुल नही। पर जब से वो जिंदगी मे आई है, मेरी हरकते अजीब सी हो गई है।" वीर प्रताप।

अब यमदूत समझ गया की वो किस की बात कर रहा है "क्या तुमने स्कूल मे देखा।"

" अब तक छुट गई होगि।" वीर प्रताप।

" उसके आखरी इंतेहान करीब आ रहे है। शायद कुछ एक्स्ट्रा क्लास ले रही हो। एक बार कोशिश कर लो।" यमदूत।

वीर प्रताप ने फिर से दरवाजा खोला और बाहर गया। कुछ देर बाद फिर से दरवाजा खुला। " मैने उसका पूरा स्कूल देख लिया वो कही नही है। अब मुझे काफी उदासी महसूस हो रही है। में भूतो का देवता। एक शक्तिशाली पिशाच। मैने अपनी पूरी ९०० साल की जिदंगी मे इतना निकम्मा कभी महसूस नहीं किया। एक १७ साल की लड़की को ढूंढ़ नही पा रहा हूं। अब लगता है ये शक्तियां सिर्फ खेलने और खाने के लिए ही अच्छी है।"

बाहर काले घने बादल जमा होना शुरू हो गए थे। बदलते मौसम के मिजाज को देख यमदूत ने वीर प्रताप को समझाने की कोशिश शुरू की।

" सही कहा। इन शक्तियों का कोई मतलब नहीं जब कोई मामूली इंसान भी हमे रुला देता है।" अब यमदूत को भी उदासी महसूस होने लगी थी। लेकिन फिर भी उसने उसे समझाने की कोशिश की। "रुको। इतनी जल्दी हार मत मानो। ठीक से याद करो। आज तक तुम दोनो कहा कहा मिले हो ? क्या तुमने सब जगह देखी।" यमदूत।

वीर प्रताप को अचानक उनकी पहली मुलाकात की जगह, समंदर का वो किनारा याद आया। उसने अपना छाता साथ लिया और फिर से दरवाजा खोल कही चला गया। यमदूत ने काफी देर उसकी राह देखी। " लगता है तुम्हे वो मिल गई दोस्त।"

स्कूल मे बिना मतलब की डाट सुनने के बाद जूही को काफी उदास लग रहा था। हर बार उसे ताने सुनने पड़ते, एक लावारिस होने की वजह से। उसकी टीचर हमेशा उसे नीचा दिखाती। समंदर का वो किनारा बोहोत खास था। वो अक्सर अपनी मां के साथ वहा जाति। जिसके वजह से वहा बैठ उसे अपनी मां के पास रहने का एहसास होता।

" मां। कैसी हो तुम ? जहा तुम हो वो यकीनन एक अच्छी जगह होगी। में बिल्कुल ठीक नही हु मां। ये जगह बिल्कुल अच्छी नहीं है। मुझसे कोई ठीक से बात नही करता। कोई ये तक नही पूछता के में कैसी हु ???" तभी अचानक बारिश शुरू हो गई। " ये बारिश तो मेरे नसीब मे बस सी गई है।" जुहिने रोते हुए कहा। तभी अचानक किसीने उसके ऊपर छाता पकड़ा। उसने आंखे पोछी और ऊपर देखा। वीर प्रताप को देख वो चौक गई। वो उसके सामने खड़ी हुई।
" तुम यहां कैसे ??"

" ये बात मुझे तुमसे पूछनी चाहिए ? यहां क्या कर रही हो ? क्या तुम ठीक हो ? " वीर प्रताप ने उस से पूछा।

जूही बस उसे घुरे जा रही थी। क्यो वो हमेशा उसके सवाल का जवाब बन कर आता है ? क्यो ?

" मेरी वजह से है।" वीर प्रताप।

" क्या ?" जूही कुछ समझ नही पाई।

" ये बारिश। जब में उदास होता हू। तब होती है। कुछ देर मे रुक जायेगी।" वीर प्रताप।

" अच्छा। तो तूफान लाने के लिए तुम्हे कितना उदास होना पड़ता है।" जूही ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

" तब में नही पूरी दुनिया उदास होती है।" वीर प्रताप ने कहा जूही पूरे समय मुस्कूराह रहीं थी। अचानक बारिश रुकने लगी।

" बारिश तो रुकने लगी है।" जुहि ने छाते से हाथ बाहर निकालते हुए कहा।

" मेरा मूड जो ठीक हो रहा है।" वीर प्रताप ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

" तुम्हे मुझे नही बताना चाहिए था। अब जब भी बारिश होगी मुझे लगेगा तुम उदास हो। आज से पहले मैंने किसी के बारे मे नही सोचा। पर अब में तुम्हारे बारे मे सोचूंगी।" जूही ने कहा।

" शर्म नहीं आती, इतनी छोटी उम्र मे ऐसी बाते। ये सब जाने दो तुम कुछ कह रही थी यहां बैठे वो पूरा करो।" वीर प्रताप।

" हा। में । तुम्हे पता है। जीवन के चार स्तर होते है। पहले मे बीज बोया जाता है। दूसरे मे पानी दिया जाता हुआ। तीसरे स्तर मे उसे बड़ा करते है और चौथे मे पौधे की कटाई होती है। मेरा जीवन तो पहले और दूसरे स्तर मे ही फसा हुआ है। लेकिन अब में इसकी जिम्मेदारी लूंगी और अच्छी तरह से उसका ख्याल रखूंगी।" जुहिने कहा।

" जीवन के इन स्तरों कि बाते वो यमदूत आत्मावोसे करता है। तुम्हे कैसे पता।" वीर प्रताप।

" अनोखी दुल्हन होने का फायदा।" जूही। " वैसे मैंने तो नही बुलाया तो तुम यहां कैसे ?"

" मुझे लगा तुम्हे मेरी जरूरत है।" वीर प्रताप बस एक नजर उसे देखे जा रहा था।

जूही रोना चाहती थी। क्या वो सच मे उसकी परेशानियां महसूस कर सकता है ?? वो नही रो सकती, वो उसे नही दिखा सकती के वो कमजोर पड़ जाती है। सिर्फ उसके सामने। उसने बात बदलने की कोशिश की " वो सब जाने दो।" जूही ने अपनी बैग मे से लैमिनेट किया हूवा वो पत्ता निकाल कर वीर प्रताप को दिया। " ये तुम्हारे लिए। तोहफा। खूबसूरत है ना।"

" हा। बोहोत खूबसूरत। " वीर प्रताप ने उसके सर पर हाथ रख सहलाया।

" ये क्या कर रहे हो ?" जूही।

" ये मेरा गुड बाय है कल जाने से पहले।" वीर प्रताप के मुंह से ये बात सुनते ही जूही की मुस्कान कही खो गई और कुछ ही देर मे रुकी हुई बारिश फिर से शुरू हो गई।



यमदूत और वीर प्रताप दोनो मुंह बनाकर सोफे पर बैठे थे।

" सामान बांध लिया ?" यमदूत।

" हा।।।। कितनी बार पूछोगे ?" वीर प्रताप।

" सुनकर अच्छा लगता है।" यमदूत।

तभी अचानक एक घंटी बजी।

" तुम्हारा फोन बज रहा है। उठा लो।" यमदूत।

" मेरे पास कोई मोबाइल नही है। बेवकूफ। ये दरवाजे की घंटी है, मोबाइल की नही। पिछले ६० साल से पहली बार मैने ये आवाज सुनी फिर भी पहचान लिया।" वीर प्रताप ने कहा।

दोनो अचानक से चौक गए।

" हा। ६० साल मे पहली बार.......... किसीने दरवाजे की घंटी बजाई है।"