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मैं तेरा राज दुलारा

मैं ढग-ढग उछलते सागर सा हूं,

उसकी आंखों का तारा हूं

मुझे रोक मत तू मेरी मंजिल से

मैं पाषाण की तरह कठोर हुं!

हिंद मेरी छवि हैं,

मैं उस मां भारती का सपूत,

अंबर को छु ने निकला हूं आज

धरती से दूर निकला हूं

तू रोकना पर मैं रुकूंगा नही

किसी के आगे झुकूंगा नही,

मैं थक कर विराम मांगू पर तू देना नहीं

मै हार के आगे जीत मांगू इतना दे देना,

रिश्तो की छाया मुझे मत देना

सूर्य की किरणों सा बना देना,

कर रही हैं, पुकार मेरी धरती मुझसे।

उसके कर्ज की बारी आई है।।

चला हु सुरक्षा की मिशाल बनने ,

मैं विलीन हो जाऊ उस अमर ज्योति मैं।

मैं ज़िंदगी का वो मुकाम लाऊ,।

सूरज , चांद सी शान मैं पाऊं

नज़र न हटे कभी इस मंजिल से,

उस मंजिल का पथिक बन जाऊ,

मै किनसे जाकर भिड गया था,

आज समझ है आया !!

कच्ची डोर के रिश्ते थे जिनके,

ये मंजर देख पाया

नया मुझ मैं कुछ नही ,

सीखा वो ही जो देख पाया!!

ज्ञान की शिला फिर उठी है, तेज़ से

किसको सारथी मैने बनाया

मेरे अल्फाज़ मुझसे बिगड़ रहे है

शब्दो की सुंदरता बना ने मैं

घर की याद ना आय इसलिए लिखता हु

अपनो के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता अब

झूठ की इन चार दिवारी से निकल कर

सत्य के आकाश पे चढ़ा हु,

मन की चाह मैं मैने सत्य को खो दिया

वो मैं तेरा लाल नही जो इन रिश्तों मैं डूब गया,

मेरा रक्त अब उफान पर है आया

तेरे दर्द पर अब वो काम है आया

रुख मोड़ लिए मेने मेरी चाहतो का

मैं वो नही जो तेरे काम ना आऊ

तेरे ममता की मिट्टी को ओढ मैं चला

जहा तेरे सिवा अब कोई और ना आया ,

तनहाई के बगीजे मैं ,, मै खो गया

अब एक खुशी का बिच तू बो देना

मैं पग पग तेरे चौकसी करने वाला

हिंद की छवि तू मेरे सीने मैं लगा देना

मैं डग-डग उछलते सागर सा हूं,

उसकी आंखों का तारा हूं

मां भारती मै हिन्द फोज का राज दुलारा हूं!||