Meri Nazar se Dekho - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मेरी नजर से देखो - भाग 4 - समानता के अवसर या मौके का फायदा?

टिंग टोंग... लगता है मजबूरदास आ गया। मैने मेरी पत्नी को दरवाजे खोलने को रूक्का दिया। मेरी पत्नी ने अपने भाई की आवभगत की, फिर मैने पुछा ओर आजकल क्या चल रहा साले साहब । कहने लगे क्या बताए जीजाजी आपसे क्या कुछ छुपा है, पिछले साल दोनो बेटियों की शादी का खर्चा ज्यो त्यों निकाला था। अब इनकी माँ की क्या ही कहे... । एक लम्बी बातचीत के बाद मजबूरदास चला गया। और मेरी कलम का दौर अब यहाँ से आगे शुरू हुआ। सामाजिक मुद्दो की असहजता के बारे में, जिसकी वजह कभी कभी हम ही होते है।।

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मजबूरदास की दोनो बेटियाँ, पिछले ही साल ब्याही गई। एक का पति अकेला बेटा था, तो दूसरे के यहाँ जमीन-जायदाद के पाँच हिस्सेदार। खैर स्वाभाविकता है कि जो आप सोच रहे है कि एक के ठाठ-बाठ होगे, तो दूसरे के कर्म फूटे। मगर यहाँ कहानी कुछ ओर ही बयानं कर रही थी।

बडी बेटी संगीता के पति तनुज विद्यालय चलाते थे। रोजाना दफ्तर का आना-जाना होता था। अब पीछे से सारा काम संगीता ही देखती थी। वो क्या है कि तनुज की माँ को पैरो के दर्द ने ऐसा जकडा की वो ज्यादा चल फिर नही पाती थी। वैसे तो संगीता को इतना काम घर में नही था, क्योकिं घर में प्रत्येक काम के लिए कामवाली जो थी। मगर सास-ससुर की सेवा का कार्यभार क्या कम होता है। ओर संगीता कोई बेटी थोडी बनकर आई थी, वो बहु थी... बहु।

वैसे तनुज के माँ-बाप के बोल में मानो जैसे मिश्री घुली थी। जो कोई इन वृक्षों की आड में आकर बैठा, उनके समस्त दुख दूर हो गए। मगर हकीकत में देवी-देवता जैसे सास-ससुर पाकर भी संगीता को उनकी कदर ना थी। हर वक्त तनुज के जीवन को अलग होने की रट लगाए रखती थी। अन्यथा घर छोडकर जाने की धमकी दे देती थी।

असल में जहर के बीज हमारी सलज बो रही थी। वो अपनी बेटियों के ब्याह कर अपने दामाद को घर जमाई बनाने के ख्वाब जो रखती थी। वैसे हम इन्सानो नें सरलता के दौर में एक कमाल की चीज बनाई है, वो है मोबाइल। ये दूरियों को कुछ ज्यादा ही मिटा देता है।

पहले एक बार लडकी मायके जाती थी, तो समस्त सुख-दुख भोगती थी। कभी-कभार त्योहारो पर आना जाना होता था। मगर आज के दौर में बेटी के साथ माँ की पाठशाला भी विदा होती है। अब ऐसे में मेरी सलज को ही ले लो रोज एक-एक घंटा अपनी बेटियों से बात कर उस घर का पूरा ब्यौरा ले लेती है। ओर हमेशा अलग होने की शिक्षा देती है।

आज मजबूरदास भी जब आया तो कह रहा था कि सम्बंधी जी की काॅल आई थी। मामला कुछ ज्यादा ही खराब होता जा रहा था, संगीता ने परसो अपने आप को दहेज में मार डालने की धमकी में पुलिस को घर बुला लिया। मामले की गम्भीरता में तनुज के पिता ने बेटे को अलग हो जाने की सलाह दी। मगर तनुज को यह मंजूर ना था, ओर उसने संगीता को तलाक देने का फैसला कर लिया था। अब एक साल में नवविवाहित लडकी का घर बैठना कोई शोभा देता है।

मगर केवल यही वजह ना थी मजबूरदास की परेशानी की, दूसरी ओर हमारी सलज ने छोटी बेटी रजनी के घर में अलग कलेश मचा रखे थे। पाँच भाईयों में सबसे छोटे के ब्याही गई। घर में कभी फूट ना डली थी, मगर रजनी का जैसा नाम वैसा काम मान लो। रजनी के पैर रखते ही पूरे घर को दुखो के अन्धकार ने ऐसा ग्रसा की बस बात ही क्या करे। सलज की सीख से रोज पति को अलग होने के ताने बाने देती। ओर अपनी सास व जेठानियों को खरी खोटी कहती। राजन (रजनी का पति) को रोज रोज के कलेश से मानसिक नुकसान पहुँच रहा था। उसने पिछले एक साल मे दो बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की। भगवान की दया से अभी तक कोई अनहोनी नही हुई। मगर रजनी सुधरने का नाम ही ना ले। ओर भी सारे दिन राजन की माँ व भाभियों से लडती रहती है। वैसे तलाक के हालात को वहाँ भी बराबर से बना रखे है हमारी सलज ने। दामाद ना सही आधी जायदाद तो आएगी, कानून में हुए गत वर्षो के महिला सशक्तिकरण पर आए बदलावो से।।

वैसे सच में दोनो ही घरो को हमारी सलज की बेवकूफी ने ऐसा डस रखा है कि इस जहर की दवा किसी के पास ना थी।

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ये सब बताते ही रात हो गई, हमारी पत्नी जी का रूक्का आन पडा की खाना खा लिजिए, वरना ठंडा हो जाएगा। वैसे मजबूरदास जी की समस्या का हल तो मेरे बस में नही है। ओर ना ही कानून की नजर इसको देख पा रही है। ओर वैसे ये भी सच है कि हर वक्त एक पक्ष की बात देख, हमनेे अपने पतन के मार्ग खुद खोल लिए है। क्योकिं ऐसी लैंगिक समानता की दौड में हम समाज को ओर विकारों में डालते जा रहे है। एक ऐसा ही किस्सा मेरे ध्यान मे ओर आया है, जिसमें हम लैंगिक समानता में घिनौने अपराधो को बढावा देते जा रहे है। फिलहाल मै खाना खाने के बाद बताऊँगा, वरना पत्नी के रोष को आप में से कुछ सज्जन पुरूष जानते ही होगें।।