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जुनून

जुनून शब्द का अर्थ कुछ लोग पागलपन से लगाते हैं। बात सही भी लगती है। जब तक किसी कार्य के प्रति पागलपन नहीं आएगा तब तक वह कार्य नहीं हो सकता। जुनून अंदर से ही आता है, इसका हुनर से कोई संबंध नहीं है। इसे तो आप खुद ही खोज लेंगे। मनुष्य के अंदर कहीं न कहीं यह उत्कंठा होनी चाहिए कि जैसे भी हो इस कार्य को करना ही है। करने से अर्थ यहाँ सर्वश्रेष्ठ तरीके से करना है।

गांधीजी या अन्य सफल व्यक्तियों के जीवन को हम देखते हैं तो उन सब में एक जुनून अवश्य था। गांधीजी चाहते तो अंग्रेजों से मिलकर आराम की जिन्दगी बिता सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। देश की आजादी को लेकर उनमे जुनून पैदा हुआ और देश को आजाद कराकर ही दम लिया। स्वामी विवेकानंद आदि इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने ‘सेवा’ को अपने जीवन का ध्येय बनाया। अपने अंदर जुनून पैदा किया। जिन्होंने भगवान को प्रत्यक्ष देखा है उसे वे अपना गुरु बनाने का संकल्प लिए थे। अब वे उस गुरु की खोज में लग गए। आखिर उनकी चाहत पूरी हुई तथा ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के रूप में उन्हें गुरु मिले।

गौतम बुद्ध को जीवन के रहस्य को जानने का जुनून पैदा हुआ। राज-पाट, पत्नी-बच्चे, सुख-सुविधा को छोड़कर वन में तपस्या करने चले गए। सांसारिक सुखों को उन्होंने सहजता से त्याग दिया। दुःख के कारण को जानने का जुनून उनमे जगा। वे तब तक नहीं रुके जब तक उनको ज्ञान प्राप्ति नहीं हुई। वे बिना रुके चलते गए। एक जीवन और एक ध्येय – यह जुनून तो होना ही चाहिए। इन सब लोगों को हम सफल कह सकते हैं। इन सबने धन को प्राथमिकता नहीं दी। ऐसा नहीं है कि हमारे महापुरुष भीड़ का हिस्सा बने। भीड़ उनके पास आयी। वे भीड़ के पास नहीं गए। जुनून किसी भी आयाम में हो सकता है- पढने, खेलने, गीत गाने, सेवा करने आदि।

हममें से कोई भी भीड़ में खोना नहीं चाहता। सभी किसी न किसी आयाम में सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं। हर किसी में सर्वश्रेष्ठ बनने की चाह होना चाहिए। अब जुनून के लोए शुरुआत करनी है। कहीं से भी कुछ भी करें लेकिन करें। कहीं न कहीं, जीवन के किसी न किसी आयाम में, जीवन के किसी न किसी पहलू में सर्वश्रेष्ठ होना ही होगा। इसी को जुनून कहते है। यह बाहर से नहीं आ सकता। जुनून माता-पिता के कहने या समझाने से नहीं आ सकता। दोस्तों के कहने से भी नहीं आ सकता।

किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि

खून में तेरे मिट्टी, मिट्टी में तेरा खून,

ऊपर अल्लाह, नीचे धरती, बीच में तेरा जुनून।

सैनिकों के दिलों में देशभक्ति के लिए जुनून भरा होता है। देश के लिए वे हर बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं। देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करते वक्त देश और केवल देश ही रहता है। उस वक्त किसी और का ध्यान नहीं रहता है। हँसते-हँसते अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देते हैं। इसे जुनून कहते हैं।

कोरोना महामारी को भगाने में लगे हमारे अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं में भी जुनून है। बीमारी से नहीं डरते हुए सुदूर पर्वतों के बीच कोरोना को भगाने के मुहिम में जुटे इन योद्धाओं का उत्साह और हौसला सकारात्मकता के शिखर पर होता है। कर्मरत इन योद्धाओं में पहाड़-सी निष्ठा और कोरोना को भगाकर शिखर पर पहुँचने का जुनून भरा होता है। ये नीले गगन की तरह ऊर्जा से भरपूर रहते हैं।