Mai fir aaungi - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मैं फिर आऊंगी - 4 - इलाज या साजिश

तीन महीने बाद… आई क्लिनिक में ...

"डॉक्टर साहब… मेरी दीदी को बचा लो, आज सुबह से इन्हें कुछ साफ नहीं दिख रहा, कल सोई थी तब तो ठीक थी लेकिन न जाने रात भर में क्या हो गया, कह रहीं हैं कि मुझे कुछ दिख ही नहीं रहा है", एक किन्नर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा |
सुभाष ने उठकर देखा और बोला, "ओ हो.. तो तुम हो... क्या बोला था तुमने उस दिन कि मैं भी तुम्हारी तरह हूं, हां.."|
किन्नर -" अरे डॉक्टर साहब वह तो हम सब को मजबूरी में कहना पड़ता है, हमारी आदत है वरना खुशी खुशी हमें कौन पैसे देता है, हमारी रोजी-रोटी तो यही है, आप लोगों की खुशियों में नाच गाकर जो भी मिल जाता है उसी से पेट पालते हैं"|
सुभाष - "वो सब मैं कुछ नहीं जानता, तुम लोग अभी के अभी यहां से निकल जाओ और कहीं और दिखाओ जाकर मैं तुम लोगों का इलाज नहीं कर सकता" |
किन्नर शीला और अब्दुल के बहुत कहने पर सुभाष मान गया और उस किन्नर के पास गया जिसकी आंखों की रोशनी कम हो गई थी |
सुभाष -" तो क्या नाम है तुम्हारा"?
किन्नर - रज्जो, डाक्टर साहब न जाने क्या हो गया मेरी आंखों में, मैं कल सही सलामत रात को सोई थी और सुबह हुई तो…", यह कहकर रज्जो जोर जोर से रोने लगी |
सुभाष -" तुम्हें तो पैसे पर बड़ा घमंड था अब अपने यही पैसे लेकर चली जाओ यहां से" |

रज्जो जोर जोर से रोने लगी और माफी मांगने लगी, तभी शीला और अब्दुल भी हाथ जोड़कर बोले," मान जाइए ना डॉक्टर साहब, आप लोग तो भगवान का रुप होते हैं अरे गलतियां तो हो जाती है माफ कर दीजिए" |
सुभाष मान गया और रज्जो की आंखें चेक करके बताया कि "इनका आंख का ऑपरेशन करना पड़ेगा, लेकिन यह हुआ कैसे यह समझना मुश्किल है इनके ऑपरेशन में लाखों का खर्चा आएगा, लेकिन उसके बाद भी कुछ कहा नही जा सकता कि ये पहली की तरह देख पायेंगी या नही |
रज्जो बोली,"डॉक्टर साहब आप जितने बताएंगे उतने पैसे दूँगी लेकिन मेरी आंखे ठीक कर दीजिए ", शीला और अब्दुल एक दूसरे को देखने लगे | सुभाष यह कहकर अपने केबिन में आ गया तभी अब्दुल केबिन में आया और बोला कि,"डॉक्टर साहब इनकी आंखें ठीक तो हो जाएंगी ना"|
सुभाष - "देखिए हम पूरी कोशिश करेंगे कि उनकी रोशनी पहले की तरह आ जाए, पर मैं पूरी तरह से नहीं कह सकता" |
अब्दुल- "डॉक्टर साहब इसमें कितना खर्चा आएगा" |
सुभाष - "तीन से चार लाख तक का" |
तभी केबिन में शीला आई और अब्दुल की तरफ इशारा किया |
अब्दुल ने धीमी आवाज में कहा" रज्जो ने आपकी इतनी बेइज्जती की और फिर भी आप मान गए सच में आपका दिल बहुत बड़ा है, वरना उस मुंहफट रज्जो को तो कोई और डॉक्टर दूर से ही भगा देता"|
सुभाष ये सुनकर अपनी बेज्जती याद करने लगा और अपने दांत पीसने लगा तभी शीला बोली, "डॉक्टर साहब आप चाहे तो अपना बदला ले सकते हैं "|

सुभाष आश्चर्य से दोनों की तरफ देखने लगा तो दोनों सकपका गए |
सुभाष ने कुछ सोचकर कहा - "बदला….कैसे"?
अब्दुल -" आप ऑपरेशन से मना कर दीजिए, यह सारी उम्र अंधी रहेगी तो अक्ल ठिकाने आ जायेगी" तभी शीला बोली, "या फिर आप ऑपरेशन के छह लाख ले लो और ऐसा ऑपरेशन करो कि इसकी रोशनी बिल्कुल ही चली जाए और फिर तीन लाख आपके और तीन लाख हमारे" |

सुभाष कुछ मुस्कुराया और बोला," दूसरा वाला ऑप्शन ज्यादा सही है" यह सुनकर शीला और अब्दुल भी मुस्कुराने लगे लेकिन केबिन के बाहर बैठी रज्जो सब सुन रही थी | यह सब सुनकर उसका खून सूख गया लेकिन वह घबरा भी गई, उसे यकीन ही नहीं था कि उसके अपने उसके साथ ऐसा करेंगे, वह समझ गई थी कि यह दोनों उसको मारने का प्लान बना रहे हैं, वह जल्दी से बचते बचाते हॉस्पिटल से भाग गई, निहाल ने उसको पूछा और रोका लेकिन वह नहीं मानी, उसके बाद रज्जो कभी कहीं नहीं दिखी |