Mai fir aaungi - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मैं फिर आऊंगी - 8 - रज्जो का सच

रज्जो एक दम से शांत होकर बोली, "उस दिन तूने मेरा इलाज करने से मना कर दिया, मैं मन ही मन अपने आप को कोसने लगी कि मैंने एक डॉक्टर को ऐसे भला बुरा क्यों कहा था, पर तूने जब ऑपरेशन के लिए हां कर दी तो मैंने ना जाने तुझे कितनी दुआएं दी, अरे हमारा होता ही कौन है, मां-बाप पैदा होते ही कूड़े में डाल देते है, समाज गाली देता है और मजाक उड़ाता है, तुम ही लोगों की खुशियों में शामिल होकर हम कमाते खाते हैं, लोग हमें समाज का कचरा बताते हैं, अरे समाज का कचरा तो तुम लोग हो, रज्जो फिर भड़क उठी.. उस दिन उस शीला और अब्दुल ने तुमसे मेरी आंखों का सौदा किया तीन लाख उनके तीन लाख तेरे, मैंने सब सुन लिया था वह दोनों नमक हराम निकलेंगे मुझे पता ही नहीं था, मेरा बस चलता तो मैं उन दोनों को तेरे साथ ही मार देती, मैं वहां से घबराकर भाग गई, मैं जानती थी अब वह दोनों मुझे जबरदस्ती अस्पताल में लाकर मेरी आंखें और खराब कर देंगे और पता मुझे मार ही दे, घर पर मेरी सारी बहनें बाहर गई थी, मेरा दिल बहुत घबरा रहा था, मैं फोन भी करती तो कैसे मुझे इतना धुँधला दिखाई दे रहा था, मैं जैसे-तैसे अपने गुप्त लॉकर में सारे जेवर और पैसे रखने लगी ताकि यह अब्दुल और शीला के हाथ न लग जाए, मैं यह सब कुछ कर ही रही थी तभी मेरे सिर पर किसी ने लोहे की रॉड से जोरदार वार किया, मैं जमीन पर गिर पड़ी तो अब्दुल और शीला हंस रहे थे | शीला बोली, हाय.. हाय.. बहना यहां सब कुछ छुपा कर रखा था, अरे मुझे तो मालूम ही नहीं था, अकेले ही सब हड़प लेगी, अरे थोड़ा हमें भी तो दे दे, मेरे सर से बहुत खून बह रहा था, मेरा गला सूख रहा था तभी अब्दुल ने मेरे बाल पकड़े और बोला, हम तो सोच रहे थे तू अंधी बनकर जिए और सारा माल हमारा हो पर तू तो मरना ही चाहती है, मैंने बहुत कोशिश की खुद को बचाने की पर वह दोनों नहीं माने, वो जानते थे कि मैं जिंदा रही तो उनका असली चेहरा सामने आ जाएगा और यह सारे पैसे, जेवर मेरी बहनों को मिल जाएंगे, जो उन्होंने दिन रात मेहनत करके कमाए थे, तभी शीला मेरे पास आई और उसने मेरे सर पर लोहे की रॉड मारी, मैं समझ गई थी कि अब यह मेरा आखिरी पल है, मेरा सर फट चुका था, मेरी सांस रुकने लगी थी, शीला मेरे चेहरे के पास आकर बोली, गुड बाय दीदी.. तभी मैंने हिम्मत करके अपनी चाकू निकाली और शीला के सर में घुसा दी, शीला तुरंत मर गई ,मैं ताली बजा कर हंसने लगी हा हा हा.. और बोली अब्दुल मैं जरूर आऊंगी,मैं फिर आऊंगी और तुझे… मैंने इतना कहा कि अब्दुल ने शीला के सर से चाकू निकालकर मेरे सर में घोंप दिया और मैं मर गई, लेकिन मेरी आत्मा तड़पती रही अब्दुल से बदला लेने के लिए, अब्दुल बड़ी चालाकी से मेरा सारा पैसा जेवर लेकर भाग गया और शीला के खून का इल्जाम मेरे सर पर डाल दिया, उसने पुलिस को बताया कि मैं सारा माल लेकर कहीं भाग गई और शीला ने उसे रोका तो उसका खून कर दिया गया | पुलिस ने भी अब्दुल की बात मान ली, अब्दुल शहर छोड़ कर वापस चला गया लेकिन अब्दुल चालाक था, मुझे मारने के बाद सीधा वो पीर बाबा की मजार पर गया और वहां से उसने एक ताबीज बनवाया, जिससे मैं उसको मारना तो दूर छू तक नहीं सकती थी और अब्दुल आराम से शहर छोड़ कर चला गया | दो साल होने को आए और मैं तड़पती रही बदले की आग में"|
इतना कहकर रज्जो शांत हो गई |

सुभाष चिल्लाते हुए बोला, "अच्छा... मतलब तुझे मारा उस अब्दुल ने और बदला ले रही है मुझसे, उस दिन मैंने दोनों को अस्पताल से निकाल दिया था, तूने मुझे बेवजह ही परेशान किया "|
रज्जो ये सुनकर फिर ताली बजाने लगी और गोले की आग फिर तेज हो गई, वो बोली, "झूठ.. झूठ.. सब झूठ.. मैंने अपने कानों से सुना था और सुन रज्जो बेवजह किसी को भी परेशान नहीं करती, वैसे तो मैंने तुझे माफ कर दिया था, तुझे तो मैं भूल ही गई थी पर उस दिन तूने अब्दुल की आंखों का ऑपरेशन करके उसे ठीक कर दिया, एक खूनी, चोर और नमक हराम को ठीक कर दिया तूने(रज्जो दांत पीसते हुए बोली), मैंने फिर सोचा तुझे मैंने बेकार में छोड़ दिया, तुझे तो मैं कभी भी मार सकती थी, अब अब्दुल से पहले तू मरेगा और मैं तेरे पास आ गई, क्योंकि सब तेरी वजह से हुआ है, उस दिन तू पैसे के लिए ना बिका होता और तूने अस्पताल में मेरा इलाज कर दिया होता तो यह सब नहीं हो पाता "|
सुभाष सोच में पड़ गया, उस दिन आप्रेशन थियेटर में जो हो रहा था, उसके पीछे रज्जो थी, पर वो तो अब्दुल नहीं था, वह तो कोई और था तभी सुभाष फिर बोला," देखो मैं मानता हूं, तुम्हारे साथ जो हुआ वह गलत हुआ, इसका मुझे भी दुख है पर मैं सच कहता हूं, मैंने तुम्हें कभी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहा, मेरा यकीन करो और मुझे बस दो दिनों का समय दो, तुम्हारा असली गुनहगार तुम्हारे पास होगा" |
ये सुनते ही रज्जो शांत हो गई तभी बाबा ने कुछ मंत्र पढ़े और आग बुझ गई |

माँ जी उठ कर बैठ गई, सुभाष सब समझ गया था कि उसे क्या करना है, उसने बाबा से कुछ बात की और सीधा आई क्लीनिक आ गया और उस दिन हुए ऑपरेशन की डिटेल्स देखी तो दंग रह गया उसमें मरीज का नाम करीम लिखा था लेकिन संदेह तो सुभाष को भी हुआ था कि उस शख्स को पहले भी कहीं देखा है, वह समझ गया था कि अब्दुल अब इसी शहर में है और नाम बदलकर रह रहा है लेकिन उसे ढूंढना मुश्किल है, उसने निहाल को कुछ समझाया और घर चला गया |