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समाज और अपराध

जर जमीन जोरू
आपने सुना है।और आप समझ भी गए होंगे।
मैं सीरियल नही देखता।कहने को तो आजकल जो सीरियल टीवी पर आते है।उन्हें सामाजिक कह कर प्रचारित किया जाता है।उनमें कुछ तो सामाजिक कम क्राइम ज्यादा होता है।झूंठ,फरेब,धोखा,विश्वासघात,हत्या वो सब कुछ होता है।जो क्राइम सीरियल में होता है।
समाचार देखकर भी ऊब जाता हूँ।समाचार छोटा होता है लेकिन खींचकर इतना लंबा कर दिया जाता है कि सुननेवाला बोर होकर सुनता ही नही।
बहस का आलम ये है कि बहस कम शोरगुल ज्यादा होता है।बहस में भाग लेने वाले गड़े मुर्दे उखाडने में समय बर्बाद करते है या बड़ी ही बेशर्मयी से झूठ बोलते है।सत्य स्वीकार नही करते।
समाचार चैनलों की विज्ञापन दिखाने की मजबूरी है।दिखाने भी चाहिए।लेकिन एक नियम है TRAI का।उस नियम की कैसे धज्जियां उड़ाते है।टी वी चैनल
2 मिनट का विज्ञापन का नियम है TRAI का
पहले 5 या 10 मिनट तक खूब विज्ञापन दिखाते है चैनल फिर इनका 2 मिनट का ब्रेक चालू होता है।दुसरो पर उंगली उठाने वाला मीडिया कभी भी स्वंय अपने अंदर नही देखता।
एक घण्टे के प्रोग्राम में 20 मिनट तक विज्ञापन दिखाते है।इन्हें कौन रोकेगा।
हां तो मैं कह रहा था।मैं समाचार देखता हूँ लेकिन दिन भर नहीं।सीरियल नही देखता।क्राइम पेट्रोल,क्राइम पेट्रोल सतर्क, सावधान इंडिया,मौका ए वारदात इस तरह के सीरियल पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ।
साहित्य समाज का दर्पण है।जिस काल मे जैसा समाज होता है।वैसा ही साहित्य लिखा जाता है।
अपराध से समाज कभी अछूता नही रहा।अपराध हर काल मे होते रहे है।मेरा इरादा शोध का नहीं।शोध में तो पूरी दुनिया के अपराध पर खोज करनी पड़ेगी।मैं सिर्फ अपने देश और समाज पर ही बात करना चाहता हूँ।
यह कोई खोज या आंकड़ो पर आधारित नही है।पहले शायद रिश्तों में विश्वास था।आदर था।प्रेम था।रिश्तों की अहमियत थी।लोग रिश्तों का महत्व समझते थे।लोग समाज से डरते थे।वे कोई ऐसा काम नही करते थे।जिससे समाज मे उनकी बदनामी हो।
साहित्य समाज का दर्पण है।
और क्राइम सीरियल।इनमें भी एक कहानी होती है।अपराध की कहानी।आये दिन आपराधिक वारदाते होती रहती है।इनके समाचार छपते है।टी वी चेनलो पर भी आते है।पुलिस के पास जो केस पहुचते है और पुलिस उन्हें सुलझाती है।
इन क्राइम सीरियलों से यह बात साफ है।इनकी जड़ में वो ही तीन बातें है
जर,जमीन और जोरू
पहले आदमी सादा जीवन जीता था।उसकी ज़रूरते ज्यादा नही थी।भोग विलासिता का दायरा सीमित था।
अब युग बदल गया है।भोग विलासिता हावी हो गई है।भोग विलासिता के लिए पैसा चाहिए।आज आदमी पैसा कमाने के लिए शार्ट कट अपनाने के लिए भी तैयार है।पैसा आना चाहिए।चाहे वह हड़पकर आये या अपराध के रास्ते
पैसा होगा तो भोग भी होगा।मतलब शूरा सुंदरी।
आज विश्वास नही रहा।प्रेम नही रहा।रिश्ते बेमानी हो गए है।रिश्तों की कोई अहमियत नही रही।पत्नी पतिव्रता नही रही।पति वफादार नही रहा।
प्रेमी या दौलत के लिए बेटी मा बाप भाई का खून कर सकती है या करवा सकती है
पति पत्नी से पत्नी पति स बेवफ़ाई करके उसे मार या मरवा सकती है।
पूत तो कपूत होते है।लेकिन मा भी कुमाता होने लगी।पुत्र पितृहन्ता होते है लेकिन बाप भी बेटो का खून करने लगे।भाई राखी का बंधन नही निभाते और बहने भी
हमे समाज मे बढ़ रही इस अपराध की परवर्ती को रोकना होगा