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वन लाइनर, फन लाइनर, गन लाइनर : फेस बुकी टुकड़े

--वन लाइनर ,फन लाइनर ,गन लाइनर :फेस बुकी टुकड़े

यशवंत कोठारी

1-इधर मैने किताब बेचने के बारे में नया सोचा -किसी संपादक को किताब दो,फिर धीरे से एक रचना खिसका दो ,रचना छपेगी, उसके पारिश्रमिक को किताब बेचना कह सकते है,-मैं ऐसा सा कर चुका हूँ.

२-मठाधिशों को मठ्ठाधिशों से बचाओ.

३-हिंदी व् मैथिली भाषा के बीच बहस जारी है,राजस्थानी भाषा वाले...-

४-एक बड़े मठाधीश हर साल एक ही नए प्रकाशक की पुस्तके अपने विभाग में खरीदते है,कुछ दिनों बाद उस संसथान से उनकी पुस्तक आती है ,यही बाजारवाद है .

५-वंश वाद संस्थाओं को नष्ट कर देता है, राजनीती हो या साहित्य ,कला संस्कृती.

६-खबरे बेचना प्याज बेचने से भी मुश्किल का म है .

७-दुनिया को अख़बार की खिड़की से नहीं छत से देखा करो प्यारे.

८ -एक अच्छा समाचार -कामवा ली बाई गाँव से आगई है ...

९-कभी किताब खरीद कर भी पढ़ा करो जानी .

१०-जो लोग हाई स्कूल में फेल हो जाते हैं वे बिल गेट्स व् जुकरबर्ग बनते हैं,जो आई आईटी व् आई आई एम् टॉप करते हैं वे इनके यहाँ नोकरी करते हैं.

११ -अगला विश्व युद्ध पार्किंग को लेकर होगा .

१२-एक हि विषय पर पर पचीस व्यंग्य , ये हो क्या रहा है?लगभग सब रिपीटी शन.

१३-लेखक के परम मित्र-परम शत्रु-संपादक-प्रकाशक .

१४- शीर्ष पर पहुचनें के बाद जो आत्म ग्लानि होती हें वो बड़ी भयंकर होती है , क्योकि शीर्षस्थ को वे सब तरीके रास्ते याद आतेहैं जिनके सहारे वो यहाँ तक पहुचा
उसने कितनों का हक मारा , कितनों की शेक्षणिक -राजनीतिक हत्याएँ की .
ओर यह सिलसिला शीर्ष पर बने रहने के लिए चलता रहता है .

१५-मार्क्स का चिंतन अब साहित्य में भी हाशियें की तरफ स्वयं मार्क्स वादियों द्वारा धकेला जारहा है.लेनिन को भी कोसर की ट्रेन की जरूरत पड़ी थी

१६ –मत बांटो हिंदी को .

१७-कुछ आलोचक निर्मल होते हैं ,कुछ निर्मम और कुछ केवल मल...

१८- अखिल भारतीय उपेक्षित व्यंग्यकार सम्मलेन का आयोजन शीघ्र जयपुर में किया जा रहा है,खाना-पीना किराया देय ,जल्दी करे स्थान सिमित नाम,पता, मोबाइल दे.

१९-इस बार होली पर साथियों पर भाईचारे के साथ बाण चलाये गए, यह शुभ है .अरविन्द तिवारी, सुरेश कान्त, शशि कान्त सिंह व् खाकसार ने मित्रों -दुश्मनों पर लिखा
यहिं प्यार चलता रहे, भाईचारा बना रहे.

२०-काम वाली बाई सातवाँ वेतन आयोग मांग रहीं हें,समझ में नहीं आ रहा क्या करूँ?

२१-लोकार्पण , लोकार्पण ओर लोकार्पण , एक ही पुस्तक का कई बार, बार बार लोकार्पण , लोकार्पण के लिए हाथो की कमी हो सकती हें पुस्तकों की नही, पिछ ली बार लोकार्पित किताबों का भी पुन्ह लोकार्पण लोकार्पण का शतक जमा चुके है लोग, वेसे मेरे एक मित्र का कहना पुस्तक लोकार्पाणों से नही बिकती . सेल के फंडे अल्ग हें.लोकार्पण करने वाले दाद्दुजी दादी को नहीं पहचानते ,किताब को क्या पहचानेंगे ?

२२-अहमदाबाद में विश्व कविता समारोह के बाद कविता की बहार है , अरुण जेटली बजट में कविता कर रहे हैं , राहुल गाँधी चुनाव सभा में कविता कर रहे हैं, नरेंद्र मोदी संसद में कविता पढ़ रहे हैं .मित्रो, कविता की यह सुखद वापसी,कविता के अच्छे दिन आगये .

२३ -राजस्थान ने भा ज पा को २५ में से २५ संसद दिए ,मगर एक भी काबिना मंत्री नहीं ,और ये राज्य मंत्री -स्वतंत्र प्रभार क्या है , जब उपमंत्री का पद समाप्त होगया तो राज्य मंत्री का पद भी समाप्त हो, सभी काबिना मंत्रि हो ताकि कम से कम के बिनेट मिटिंग में बेठ तो सके .

२४-आज बस युहीं कोई पोस्ट नहीं , फेस बुक जिन्दगी नहीं पर जिन्दगी का अहम् हिस्सा तो है

२५-पहली रोटी गायकी ,आखरी कुत्ते की सबके खाने के बाद भी डबुसे में इतनी रोटियां होती थी की मेहमान आ जाते तो उनका का म चल जाता या सुबह का नाश्ता हो जाता या कोई मगता भिखारी आजा ता तो पेट भर लेता , अब मत पूछो ?

२६-राजस्थान में उच्च शिक्षा -1-अंबेडकर विश्व विधयालय बंद, हरिदेव जोशी विश्व विधयालय बंद, कुछ निजी विश्व विधयालयों की हालत दयनीय , कई यूनिवर्सिटीस में अयोग्य वी सी , कई मे पद खाली केसे चलेगा शिक्षा का रथ , कहा हें सारथि
प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा का तो भगवान ही मलिक.

२७-भू त प्रेतों की तरह अच्छी पत्नी भी एक वहम हे बस ,
वीरेंद्र सहवाग कपिल शर्मा के साथ बातचीत में

२८-हिन्दी साहित्य में हिन्दी में एम ए होना ही साहित्यकार होना है ,मुझे एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा-आप लोग तो दूसरे डिसिप्लिन के हैं आप का हिन्दी साहित्य से क्या लेने -देना आप लोग घुसपेठीयें हैं,आचार्य किशोरिदस जी ने इन विभागाधयोक्षों की खूब खबर अपने लेखों में ली हैं.
इन लोगो का बस चले तो सूर, मीरा ,तुलसी, कबीर को भी अपने अंडर में पी एच डी करवा कर उनको अपना शिष्य घोषित करदे.
सुर मीरा तुलसी कबीर भी प्रोफेसर का इंटरव्यू दे तो रह जाए ओर नियुक्ति झपक लाल की हो जाये .

29-राजस्थान सर् कार ने अन्नपूर्णा योजना शुरू की है जिसमे पा ञ्च रु. में नाश्ता व् 8रु. में खाने की सुविधा है ऐसे ही मटर गश्ती के दोरान गोविन्द देवजी मंदिर के बाहर व् पास में पेड़ के निचे ख ड़ी वैन का खाना टेस्ट कने हम लोग पहुचे , काउंटर पर लम्बी चो ड़ी लिस्ट मगर थाली में एक चमच खिचड़ी एक चमच बी स फ दाल, एक चमच कड़ी ,एक चमच कोई मीठी वस्तु, चपाती नहीं , चावल नहीं , इस से तो अक्षय पात्र का खाना अच्छा था बताया साथ के लोगो ने ,इस योजना का फायदा गाड़ी के चाल क,वेटर व् अफसर ही उठा रहे हैं.

30-जागो मोहन प्यारे जागो .

31-स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़े, स्वेच्छा से रेल का कंसेशन छोड़े , कल यह न कह दे स्वेच्छा से दुनिया छोड़े.

32-नया आदमी पद पर आता हे तो शुभचिंतको के विज्ञापन आ जाते हें , नए मंत्री के पूरे पेज के विज्ञापन आ...खिर यह पैसा आता कहा से है ,व् शुभ चिंतको को वापस क्या और कब तक मिलता हें?

33-तालाब से मगरमच्छ पकड़ने के लिए तालाब का सारा पानी निकाल दिया ,सब मछलिया मर गयी ,मगरमच्छ. चल कर दुसरे तालब में चलागया,तालाब में ज्योही पानी आया सब मेढंक टर्राने लगे .

34-चार किताबे अपने पेसे से छापी और अपने पैसे से विमोचन कराया और वरिष्ठ साहित्यकार एक साल में तेयार
दो ईनाम भी अपने पेसे से....

३५ -क्या गुलशन नंदा,मस्तराम, पम्मी दीवानी ,कुशवाहा कान्त , कर्नल रंजित,वेद प्रकाश,सुरेन्द्र मोहन पाठक व् एसे सेकड़ों अन्य लेखको को लुगदी साहित्यकार मान कर ख़ारिज किया जासकता हें ?

३६ -ये माज़रा क्या हें ?सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा करने की परम्परा रही हें ,अब सरकार सवालों की बोछार कर रहीं हें और आम आदमी लाइन में खड़ा खड़ा भीग रहा है .सरकार के सवाल ,सरकार के ही जवाब बस यहीं प्रजातंत्र रह गया है .सच्चे सवालों के झूठे जवाब .

36-जिस प्रान्त में पुरस्कार मिल रहे हो, उस प्रान्त का जनम प्रमाणपत्र किसी पंचायत-नगरपालिका से बनवा कर पुरस्कार ले ले ना चाहिए.

37-आज नाग पंचमी हैं सभी व्यंग्यकरों को प्रणाम दूध कहाँ मिलेगा?

38-40-45 सालों से लिख रहा हूँ आजकल अख़बारों में जगह की बड़ी समस्या है संपादक, प्रभारी संपादक, पेज इंचार्ज कभी 400शब्द, कभी 650 शब्द कभी 750 शब्दों कि सीमा बताते हें कई बार लेख शब्द सीमा के साथ ही समाप्त कर दिया जाता हें ,
कई बार लगता है सीमा के नाम पर आलेख को नुकसान हो रहा हें ,हल्की भाषा में कहे तो कब्र के नाप का मुर्दा लाओ, नाप बनाने के चक्कर में कभी सिर कट जाता हें कभी पाँव कट जातेहैं कभी लेख के हाथ बाहर रह जाते हैं .
कभी संपादन के नाम पर शीर्षक बदल जाते हैं क्योकि महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा हें-कुछ न कर सको तो शीर्षक बदल दो.

39-आप मेरी पुस्तक की अच्छी समीक्षा लिख दें,
में आपके कविता संकलन को महान बतादूँगा.


40-गर्मी के दीनो में दादा -दादी -नाना नानी के यहा जाकर रहने का आनंद ही कुच्छ ओर था. समय के साथ साथ सब कुच्छ बदल गया , कभी दादा-दादी नाना -नानी बच्चों के पास चले जाय या फिर एक दो दिन के लिए बच्चा आजाए, इसी में बूढ़े खुश हो जाते हैं .

४१-सर् कार के सलाह कार ही सरकार को डूबाते हैं.

42-कल हिन्दी के एक बड़े प्रोफेसर -लेखक के घर जाने का अवसर मिला, गर्व से उन्होने भव्य पुस्तालय दिखाया.
मेने मासूमियत से पुछा- इन पुस्तको मे से कितनी आपने खरीदी हें ओर कितने पढ़ी हैं ,
वे तब से नाराज़ हैं .
वास्तव में उनका पुस्तका लय सा दर भेट -समीक्षा- शोधार्थ -निशुल्क प्राप्त पुस्तको से भरा पड़ा हैं .

४३- एक लेखक की रचना एक संपादक ने प्रकाशित की
लेखक ने पूछ अगली रचना कब?
संपादक का जवाब - पहली का परिश्रमिक मिलने के बाद,
वेसे हम परिश्रमिक भेजते ही नहीं
हा हा हा .....

४४ -रोज रत को सोते समय यह सोचना की कल सुबह किस किस अख़बार में रचना छपने की संभावना है , फिर सुबह उठकर जल्दी से जल्दी नेट पर अख़बार देखना- मैं छपा हू या नहीं, अगर नहीं तो कोन छपा है , खुद नहीं छप् ने का इतना दुख नहीं जितना क , खा या ग के छप जाने का होता है . अरे यार इसी विषय पर तो मेने भी भेजा था, फिर इस का क्यों लगा , ज़रूर कोई बात है .
इसी उधेड़बुन में सांझ हो जाती है फिर अगले दिन वहीं कवायद. आशा अमर धन है दोस्तो लगे रहो .

४५- बी बी सी के बोल इंडिया बोल कार्यक्रम मे मुझे भी अवसर मिला. इस से पूर्व भी बी बी सी ने प्रिय वित्त मंत्री के नाम एक पत्र -प्रसारित प्रकाशित किया था.
कल के कार्यक्रम- विरासत पर सियासत मे मेने कहा-नेहरूजी, इंदिराजी, व अटल बिहारी जी के नाम नकार कर आज़ाद भारत के इतिहास की कल्पना मुश्किल है . सरकार को बड़ा दिल रखना चाहिए, सब का साथ सबका विकास तथा देश चलाने के लिए सब का सम्मान ज़रूरी है . इन राष्ट्रीय नेताओ को पार्टियो के दायरे मे बंद करना ग़लत है .
देश की अवाम की नज़रो मे शहीद दिवस का महत्व कम नही है .कार्यक्रम कल रत 7.30 पर प्रसारित हुआ .

४६ -सरकार के मंत्रियो को शर्म आ रही है की वे काम नहीं करा पा रहे हैं, और हमे शर्म आ रही है किनको चुन कर भेज दिया.

४७--अमेरिका की पुस्तकालय व्यवस्था की तारीफ करना चाहता हू यहा के पुस्तकालय से पुस्तक लेकर आप अमेरिका मे कही भी जमा करवा सकते हे. पुस्तकालय मे भीड़ देख कर भी खुशी होती हे यहा पुस्तक-प्रेमी दिनभर आते रहते हे.

४८--इस बार भी मुझे नहीं मिला, में कतार में था ,मुझे भी दो
जब सबको दे रहे हो तो मुझे भी दो, जुगाड़ की ट्रैनिंग कहाँ मिलती है?

४९-नोट बंदी ने ग़ालिब निक्कमा कर दिया ,वरना मैं भी आदमी था का म का .



५०--फेस बुक ने बताया की मेरी पोस्ट्स को ३५ हज़ार बार पसंद किया गया
आप सभी का आभार.

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