Wo khoufnak barsaat ki raat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

वो खौफनाक बरसात की रात.. - भाग-२

"अच्छा अथर्व ! वो मैंने कल की मीडिया कवरेज 42 की रिपोर्ट काजल मैम को दे दी है और हाँ वो जो तेरा और शगुन का जोइंट आर्टिकल था वो मैंने अपने चम्पू द एडिटर की टेबल पर भिजवा दिया है बाकी आज मेरा कोई और कवरेज है नहीं तो बस अब मैं चली।कोई और बात हो तो मुझे कॉल करना...बाय!", अपनी डेस्क से अपनी गाड़ी की चाबी उठाकर चलते हुए शिवानी नें कहा।

शिवानी अपनी स्कूटी पर सवार होकर हवा से बातें करते हुए जल्दी ही मुंबई के ट्रैफिक को चीरती हुई चर्चगेट पहुंच गई जहाँ उसनें अपनी स्कूटी को अपने रोज के अड्डे पर लगाया और अब वो समर की स्पोर्ट्स बाइक में पीछे बैठकर उसके साथ जुहू चौपाटी पहुंच चुकी थी जहाँ उसनें समर को उसकी माँ के आने और उसके माँ - पापा के विचारों के बारे में बताया।

जान,तुम भी कमाल करती हो। इतना कुछ हुआ और तुमनें मुझे एक फोन करना भी ज़रूरी नहीं समझा! अरे मुझे बताती तो कि आँटी आयी हैं । मैं कल ही उनसे मिलने आता और उनसे तुम्हारे व मेरे बारे में सारी बात साफ - साफ कर लेता मगर तुम्हें तो अकेले ही नेता बनने का शौक है न तो कोई क्या कर सकता है मतलब कि चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता न !!

"यार , समर ये जो तुम्हारा शौर्ट टैम्पर्ड एटीट्यूड है न ! देखना एक दिन यही हमें मरवायेगा ! और तुम्हीं ने तो मुझसे कहा था कि कुछ फैमिली इशू है तुम्हारा जिसके लिए तुम दो दिनों के लिए पूने जा रहे हो और मैं तुम्हें कॉल कतई न करूँ बल्कि यदि बहुत ज़रूरी हो तो बस एक वॉट्सऐप मैसेज छोड़ दूं तुम्हारे लिए और समर मुझे नहीं लगता कि ये बात वॉट्सऐप पर बताने वाली थी", कहते हुए शिवानी गुस्से में वहाँ से जाने के लिए मुड़ने लगी और तभी समर नें पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया और फिर उसनें शिवानी को जबर्दस्ती अपनी तरफ़ करके अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये और अब समर शिवानी के होठों को बेतहाशा खुद में जब्त किये जा रहा था । कुछ ही देर में उन दोनों के बीच के झगड़े वाला माहौल अब बेहद रूमानियत में तब्दील हो चुका था ।

फिर न जाने कब वो दोनों प्रेम के पंछी एक - दूसरे में डूबे हुए होटल सनशाइन के कमरा नंबर तीन सौ दो के बेड पर तो कभी सोफे पर तो कभी चेयर पर एक दूसरे की प्यास के सागर को शांत कर रहे थे । करीब चार घंटे बाद जब उन दोनों की आँखों के सुर्ख लाल डोरे कुछ गुलाबी से सामान्य स्थिति तक पहुंचे तब समर नें शिवानी को कल उसके घर आकर उसकी माँ से मिलने का आश्वासन दिया ।

शिवानी बस अब अपने घर की ओर रवाना होने वाली ही थी कि तभी उसके मीडिया - हाउस से उसके कलीग अथर्व का कॉल आ गया और फिर उसे अर्जेंट ऑफिस में बुलाये जाने पर वो समर के साथ फटाफट से चर्च गेट पहुंच गई जहाँ उसकी स्कूटी पार्क थी ।

ऑफिस का काम निपटाते - निपटाते शिवानी को लगभग साढ़े ग्यारह बज गए जिसपर उसकी माँ ने उसके लिए फोन करके अपनी चिंता जताई मगर शिवानी का तो ये रोज का ही काम था तो उसनें अपनी माँ को निश्चिंत होकर खाना खाने व सोने के लिए कहा और उसनें अथर्व का घर उसी के फ्लैट की अगली वाली बिल्डिंग में होने की बात बताकर काफी हद तक उनकी चिंता दूर करने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश भी की !!

लगभग एक बजे शिवानी अपने घर पहुंची और फिर अगले दिन उसनें संगीता जी को अपने ऑफिस लंच के बाद जाने की बात बताई और साथ ही उसनें ये भी बताया कि कल सुबह समर उनसे मिलने आयेगा ।

समर नें आते ही पहले तो संगीता जी के बड़ी ही तहज़ीब से झुककर पाँव छुएं और फिर अपने हर एक शब्द को उसनें चाशनी में डुबोकर उनके सामने पेश किया। इसके बाद समर नें अपने हाथों से लंच भी बनाया जिसके बाद उससे किसी का भी प्रभावित होना लाज़िमी था मगर फिर भी न जाने क्यों संगीता जी के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो पाँच फुट ग्यारह इंच की लम्बाई,बलिष्ठ कदकाठी,गोरा रंग,तीखे नैन नक्श और उड़ते हुए घने बालों वाले समर की किसी को भी प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व से कहीं न कहीं प्रभावित होते - होते रह गई हैं। उनकी आँखों में बस एक ही सवाल के निशान तैर रहे थे कि कोई इतना अच्छा भला कैसे हो सकता है??? समर का अत्यधिक मीठा स्वभाव और उसका रूप - रंग संगीता जी को प्रभावित करने की बजाय समर को शंका के घेरे में घसीटता जा रहा था। जिसका एक कारण शायद संगीता जी की खुद की बेटी शिवानी का बेहद साधारण सा रूप - रंग और कदकाठी भी थी। हालांकि शिवानी योग्यता के मापदंड पर तो किसी भी योग्य से योग्य लड़की को भी काँटे की टक्कर देने व जीतने का पूरा सामर्थ्य रखती थी पर आजकल के समय में योग्यता देखता ही कौन है और यदि देखता भी है तो किसी न किसी स्वार्थ के वशीभूत होकर!!

और इस बात को संगीता जी भी बहुत अच्छे से जानती थीं। संगीता जी ने समर के सामने अपनी पारखी नज़र की परीक्षा के परिणाम में उसे लटका दिया है ये उन्होंने उसे ज़रा भी महसूस नहीं होने दिया। इसके बाद लंच करते ही समर और शिवानी एक साथ घर से निकल गए मगर संगीता जी अपने मन में चलने वाली उलझन से चाहकर भी नहीं निकल पायीं।

क्रमशः...
आपकी लेखिका...🌷निशा शर्मा🌷