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वन रक्षक तिकड़ी

पलाश वन में अगर किसी घोड़े की पीठ पर बंदर और बंदर के सिर पर कौवा बैठा दिख जाए तो इसका मतलब है कोई मुसीबत में है और यह तिकड़ी उसे बचाने के लिए जा रही है.

बरसों पहले टपटप घोड़े, जंपू बंदर और तेज कौवे ने मिलकर यह टीम बनायी थी. अब तक वे कई पशु-पक्षियों की जान बचा चुके थे और अनेक खतरों को टालने में कामयाब हुए थे.

दरअसल तेज कौवे का एक व्यापक सूचना तंत्र था, जिसमें जंगल के सभी कौवेतथा चमगादढ़ व उल्लू सहित दूसरे पक्षी शामिल थे. जंगल में जैसे ही कोई दुर्घटना घटती, ये पक्षी फौरन तेज कौवे के पास खबर पहुंचा देते. तेज कौवा तुरंत जंबू बंदर के पास पहुंचता और जंपू बंदर अपना प्राथमिक उपचार बैग गले में टांग कर टपटप घोड़े के पास पहुंचता. टपटप घोड़ा अपनी पीठ पर टंपू बंदर को बिठाता, तेज कौवा झट से जंपू बंदर के कंधे या सिर पर बैठ जाता और जोर-जोर से कांव-कांव करना शुरू कर देता.

टपटप घोड़ा मदद पहुंचाने की दिशा में तेजी से दौड़ते लगता.

‘कांव-कांव’ के सायरन, घोड़े की ‘टप-टप’ और बीच-बीच में जंपू बंदर की ‘हट-हट’ सुन सभी पशु-पक्षी रास्ता दे देते. साथ ही साथ कई जानवर अपनी तरफ से तैयारियां भी शुरू कर देते. इन में हाथी सबसे आगे रहते. कहीं आग बुझानी हो तो नदी से सूंड में पानी भर-भर कर आग पर फेंकते.

किसी को मलबे से निकालना हो तो अपनी ताकत दिखाते.

एक दूसरे की सहायता करने में पलाश वन के सभी पशु-पक्षी हमेशा आगे रहते. इसीलिए यहां भाईचारे का माहौल रहता.

फिर भी कभी दूसरे वनों के कुछ दुष्ट प्राणी आकर यहां की शांति को भंग करने की कोशिश करते.

उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ.

रात के अंधेरे में एक चौकन्ने उल्लू ने काले वन से एक विशाल अजगर को पलाश वन में घुसते देखा. उसने खतरे को भांपते हुए उस पर नजर रखी.

अजगर धीरे-धीरे सरकते हुए जंगली सुअर के डेरे की तरफ बढ़ने लगा. उल्लू ने फौरन चार चमगादड़ों को इसकी खबर दी. चमगादड़ों ने भी पास जाकर देखा, तो उन्हें भी यकीन हो गया कि अजगर ज़रूर किसी सोते हुए सुअर पर हमला करेगा. इसलिए उन्होंने उस पर नजर रखते हुए तेज कौवे को खबरदार करना उचित समझा.

इधर जब तक अजगर एक सुअर को अपने पाश में लपेटने की कोशिश करता, एक पक्षी से दूसरे पक्षी तक होकर खबर तेज कौवे तक पहुंच चुकी थी. फिर तेज कौवा तुरंत जंपू बंदर के पास पहुंचा और जंपू बंदर टपटप घोड़े के पास.

अजगर द्वारा सुअर को दबोचने से पहले टपटप घोड़े, जंपू बंदर और तेज कौवे की राहत टीम सुअर डेरे की तरफ खाना हो चुकी थी.

तेज कौवे की तेज ‘कांव-कांव’ से सारा जंगल जाग उठा. रात का समय था, इसलिए जुगनुओं ने फौरन उनके रास्ते को रोशन करना शुरू कर दिया. दूसरे जानवरों ने भी दिए या पे जलाकर उजाला कर दिया ताकि यह राहत टीम जल्दी से मंजिल तक पहुंच सके. रास्ते में तेज कौव्वे ने जंबू बंदर को बता दिया कि एक भयानक अजगर एक सुअर को दबोचने जा रहा है. यह सुनकर जंपू बंदर योजना बनाने लगा कि सुअर को कैसे बचाया जाए.

जब तक सुअरों के डेरे में पहुंचे, दुष्ट अजगर एक सुअर को अपने पाश में लपेट चुका था और वह सुअर जोर-जोर से चींख रहा था. दूसरे सुअर भी जाग कर आसपास इकट्‍ठा हो गए थे, मगर वे लाचार थे. उनके पास अजगर का मुकाबला करने का कोई उपाय नहीं था.

जंपू बंदर छलांग लगाकर टपटप घोड़े की पीठ से उतरा और पास जाकर सुअरों से बोला, अपने-अपने घरों से सरसों का तेल ले आओ और सुअर भाई के ऊपर डालो. तब तक मैं इस दुष्ट अजगर की आंखों में मिर्च का पाउडर छिड़कता हूं.

जंपू ने अपने बैग से एक लाल डिब्बा निकाला और सुअर से लिपटे अजगर के पास जाकर, फुर्ती से उसे अजगर के सर पर उलट दिया. आंखों में मिर्च का पाउडर पड़ने से अजगर तड़फ उठा और चींखने लगा. इसी बीच सुअरों ने दो बाल्टी तेल अपने साथी सुअर के ऊपर उलट दिया. एक तो आंखों में तेज जलन और उस पर तेल फिसलन. दो तरफा मार से अजगर के लिए संभलना मुश्किल हो गया. इधर उसकी जकड़न ढीली हुई कि उधर सुअर उसकी पकड़ से निकल भागा. उसके सुरक्षित दूरी पर पहुंचते ही जंपू बंदर बोला, ‘‘ दोस्तो, अब इस दुष्ट को इसके किए की सजा देने का वक्त है. मुझे एक जलती मशाल पकड़ाओ’’

और जलती मशाल हाथ में आते ही जंपू से उसे अजगर के ऊपर फेंक दिया. तेल से भीगे अजगर के शरीर ने तुरंत आग पकड़ ली.

वह किसी तरह आधी आंख खोलकर तेजी से काले वन की ओर भागा. पता नहीं वह अपने जंगल में पहुंचकर जिंदा रहा या आग से झुलसकर गया.

लेकिन पलाश वन के पशु-पक्षियों ने एक बार फिर राहत की सांस ली. और वन रक्षक की इस तिकड़ी के कारनामों में एक और कहानी जुड़ गयी.

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