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चल उड़ जा रे पंछी

सुनील को घर गए हुए साल भर हो गया था। इंदौर में प्राइवेट नौकरी कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। वह हर साल की तरह गेहूं की फसल आने पर घर जाने को तथा अपने माता - पिता से मिलने को व्याकुल हुआ जा रहा था। सुनील के जीजाजी दिवाकर भी इंदौर में ही प्राइवेट नौकरी कर रहे थे। दिवाकर भी सुनील से कुछ ही दूरी पर रहते थे। सुनील के भांजे अमन की 10 वीं बोर्ड की परीक्षा भी ख़तम हो चुकी थी। एक अलिखित नियम के अनुसार बच्चों की परीक्षा के बाद नाना - नानी के यहां जाना अवश्यंभावी होता था। इस तरह सुनील , अमन को लेकर अपने गांव रवाना हो गया।
सुनील दबे पांव घर में प्रवेश करते ही देखा, कि उसके पिता रामराज जी अपनी बैठक में फोन पे लगे हुए थे। नाना जी, अमन ने तेज आवाज में पुकारा। अरे! सुनील, मेरा प्यारा नाती अमन आया है, कहकर दोनों को गले लगाते हुए भाव विह्वल हो गए और असीम आनंद की अनुभूति करने लगे। सुनील के पिता बोले, मै अभी तुम लोगों को ही फोन लगा रहा था। मै भगवान से अभी यही पूंछ रहा था कि अभी तक मेरे बच्चों को भेजा क्यों नहीं और उसने मेरी बात सुन ली। बातचीत की आवाज सुनकर अंदर से सुनील की मां व अमन की नानी रागिनी जी तेज क़दमों से आईं और सुनील व अमन को अपनी बाहों में भरकर चूमने लगीं ।दोनों की बाहें रागिनी जी के आंसुओं से भीग चुकी थीं।
मां द्वारा सुनील को पता चला कि उसके पिता की तबियत पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं चल रही है। बेटे परेशान न हों इसलिए उन्होंने तुम लोगों को नहीं बताया। शायद हर पिता यही सोचता है कि उसके बेटों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो , भले ही खुद कितने भी परेशान हों , पर कभी जाहिर नहीं करते। रामराज जी ने शिक्षक की नौकरी करते हुए अपने तीनों बेटों को भरपूर सुख सुविधा प्रदान करते हुए पढ़ाया तथा उनकी हर वाजिब मांग पूरी की। सुनील उनका सबसे छोटा बेटा था।
सुनील अपने पिता से उनके स्वास्थ्य के बारे में जिक्र किया। पिता ने बताया की खाते समय जीभ के अंदरूनी भाग में कष्ट होता है, मगर घबराने की बात नहीं है। अपने चिंतामणि का लड़का है न , जो अभी होमियोपैथी डाक्टरी सीख के आया है, उसी से दवाई ले रहा हूं । ठीक हो जाएगा , तुम परेशान मत हो। बात टालने के अंदाज में सुनील के पिता ने ये बात कही। सुनील को पिता की बीमारी की गंभीरता का अहसास हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया था कि पिता जी का इलाज इंदौर के किसी अच्छे अस्पताल में करवाऊंगा।
छुट्टी समाप्त होने पर सुनील के इंदौर जाने का समय आ गया था। अपने साथ अपने पिता को भी इंदौर में इलाज कराने के लिए मना लिया था। अगले दिन सुनील, अमन व सुनील के पिता जी इंदौर के लिए रवाना हुए। घर से निकलते वक्त सुनील की मां सभी को विदा करते समय बहुत रोई। सुनील के लिए घर से विदाई का वक्त हमेशा से ही बड़ा दिल को झकझोरने वाला होता था। मां बार बार उसे चूमती जाती तथा अविरल अश्रुधारा बहती जाती। घर से निकलने के बाद पलट कर वह कभी भी दुबारा नहीं देखता था। उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी कि वो रोती हुई मां को देखे, वरना उसके कदम ही आगे नहीं बढ़ते।
रेल से इंदौर के लिए सभी ने प्रस्थान किया। सतना स्टेशन गुजरने के पश्चात सभी ने भोजन किया।सभी अपनी - अपनी सीट में सोने की तैयारी करने लगे। तभी सुनील की नज़र अपने पिता पर गई। उसने देखा कि उसके पिता खिड़की तरफ मुंह करके रो रहे थे। सुनील ने सोचा कि हो सकता है कि अपनी जन्मभूमि से दूर जाते हुए भावुक हो रहे होंगे, जो कि सभी अपनी गृहभूमि से बिछुड़ते हुए महसूस करते हैं। अगले ही पल सुनील ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पिताजी सोच रहें हों की अब दुबारा अपनी जन्मभूमि के दर्शन होंगे की नहीं। नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता , कहकर सुनील अपना मन बहलाने की कोशिश करने लगा। यही सब सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
सुबह आंख खुली तो पता चला कि भोपाल आ गया था। सभी उतरकर चाय नाश्ता किया तथा बस से इंदौर के लिए रवाना हो गए।
सुबह 11 बजे सभी लोग अपने ठिकाने पर पहुंच चुके थे। शाम को सुनील के यहां सभी भाई विहान व अजय जो सुनील से क्रमशः बड़े थे पिता जी के आने कि खुशी में एक साथ इकठ्ठे हुए। कुछ देर बाद सुनील की बड़ी बहन दुशाला व जीजा दिवाकर भी आ गए। सभी बच्चों को अपने बीच पाकर रामराज जी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। बातों ही बातों में दुशाला ने जिक्र किया की पिताजी फिल्म देखने के बहुत शौकीन थे तथा संगीत से बहुत लगाव था। कभी कभी मूड होने पर थाली चम्मच बजाकर रफी का प्रसिद्ध गाना चल उड़ जा रे पंछी... बहुत गाते थे। ये सुनकर सभी खिलखिला पड़े।
खाना खाने के बाद सभी भाई बहनों की गुफ्तगू ,पिताजी के तबियत के बारे हुई। निश्चय किया गया की अगले ही दिन डाक्टर को दिखाया जाय।
डॉक्टर ने चेकअप किया। कुछ बताने के लिए पिता जी के साथ गए सुनील के बड़े भैया की ओर मुखातिब हुए। इतने में रामराज जी बोल पड़े डॉक्टर ,जो भी बात हो निःसंकोच मुझे बताइए, मै घबराने वालों में से नहीं हूं। क्या हुआ है, कैंसर है? नहीं नहीं , अभी नहीं कह सकते, सब ठीक हो जाएगा, डॉक्टर ने अपनी लरजती हुई आवाज में बोला। डॉक्टर ने सुझाव दिया कि पहले बायोप्सी करानी पड़ेगी।
बायोप्सी के लिए सुनील के पिताजी को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया। 12 घंटे पहले रामराज जी को डॉक्टरों ने कुछ भी लेने से मना किया था। ऑपरेशन शुरू करने से पहले डॉक्टर ने रामराज जी पूछा , आपने कुछ लिया तो नहीं? लिया है डॉक्टर। ये सुनकर सभी डॉक्टर घबरा गए। डॉक्टर आगे कुछ बोलते ,रामराज जी बोल पड़े , डॉक्टर, भगवान का नाम लिया है। इतना सुनते ही सभी डॉक्टर खिलखिला पड़े तथा राहत की सांस ली। लेकिन सभी डॉक्टर , इस परिस्थिति में भी रामराज जी की जिजीविषा को देखकर उनके कायल हो गए। सफलता पूर्वक ऑपरेशन संपन्न हुआ। जाते जाते डॉक्टर सुनील को ये इशारा कर गए की जब भी मुख्य ऑपरेशन होगा काफी मेजर ऑपरेशन होगा।
बायोप्सी में पता चला कि कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच गया है। डॉक्टरों के अनुसार जल्दी से जल्दी ऑपरेशन कराना बहुत जरूरी था। डॉक्टर से सलाह लेकर, आर्थिक स्थिति का हवाला देकर ऑपरेशन कहां कराया जाय निश्चित किया गया। एक चेरिटेबल अस्पताल फाइनल किया गया।
आज 08 मई था, सुनील की शादी की दूसरी वर्षगांठ थी। सुनील की पत्नी ससुराल में थी। एक साल का बच्चा सुगम भी था, जिसका कुछ महीने पहले ही जन्मदिन काफी धूमधाम से मनाया गया था। सुनील के पिताजी चुटकी लेते हुए सुनील से मुस्कुराते हुए पूछा, क्यों सुनील कहीं फोन वोन किया की नहीं। उनके कहने का मतलब साफ था कि बहू को फोन किया की नहीं। मुझे बहू का फोन नंबर बताओ मै फोन लगाता हूं। सुनील ने तुरंत नम्बर बता दिया। रामराज जी ने सुनील की पुनः चुटकी ली, अरे वाह बहू का नंबर तो जैसे जुबान पर ही था, हम सबसे भोले बन रहे हो... कहकर हंसने लगे तथा दोनों को जी भरकर आशीर्वाद दिया।
आज रात में ही रामराज जी को लेकर अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। कल सुबह 06 बजे ऑपरेशन होना है। ऑपरेशन से 12 घंटे पहले कुछ भी नहीं लेने को कहा गया। रात में पिताजी के पास बड़े भाई अजय रुके थे। बाकी दोनों भाई विहान व सुनील कमरे पर लौट आए।
बड़े सबेरे दोनों भाई अस्पताल पहुंचे। पता चला पिताजी का ऑपरेशन शुरू हो चुका था। अस्पताल स्टाफ द्वारा सुबह की प्रार्थना चल रही थी। प्रार्थना में तीनों भाई भी शामिल हुए। तत्पश्चात् कैंटीन में नाश्ता किया।
थोड़ी देर पश्चात् ही रामराज जी का ऑपरेशन हो चुका था , तथा उन्हें प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। सभी भाई , पिताजी के वार्ड में शीघ्र पहुंचे। सुनील ने देखा कि पिताजी के गले से काफी खून रिस रहा था । सारी पट्टी लाल हो चुकी थी , तथा पिताजी दर्द से तड़प से रहे थे। यह दृश्य देखकर सुनील को चक्कर आ गया तथा अपनी कुर्सी में निढाल हो गया। सुनील के बड़े भाई घबराकर सुनील के पास पहुंचकर पानी के छींटे मारकर तथा हवा करके सुनील को होश में लाए। अजय समझ गया कि सुनील से पिता जी की स्थिति देखी नहीं गई। सुनील सबसे छोटा व सबका लाडला भी था। अजय ने सुनील को कुछ देर परिसर के बाहर हवा में बैठने के लिए बोला।
थोड़ी देर में सुनील की बड़ी बहन जो सुनील को मां जैसा प्यार करती थी, आती दिखी। सुनील की बहन , लुंज पुंज सा सुनील को देखकर थोड़ा घबरा गई। क्या हुआ सुनील बेटा, दुशाला ने पूछा। कुछ नहीं दीदी, अंदर चले जाओ, पिताजी का ऑपरेशन हो गया है।
कुछ देर बाद डॉक्टर ऑपरेशन कर निकाले गए जीभ के टुकड़े एक थैली में देकर जांच के लिए लैब ले जाने के लिए दिया। जिसे लेकर विहान व सुनील दोनों भाई साथ में गए। अस्पताल लौटते ही पता चला की पिताजी की हालत ज्यादा चिंताजनक हो गई है। ज्यादा खून निकलने से और हालत खराब हो गई। सभी भाई घबरा गए तथा किसी अनहोनी के चलते भयभीत हो गए। डॉक्टर ने अति शीघ्र खून की व्यवस्था करने के लिए बोला।
डॉक्टर ने बोला कि आने वाले 72 घंटे तुम्हारे पिता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर ये समय अच्छे से गुजर गया तो कोई खतरा नहीं होगा। रामराज जी को एक नई परेशानी ने घेर लिया। उनके खून जमने का गुण काम नहीं कर रहा था। लगातार खून बह रहा था। खून के लिए दोस्तों यारों को बोला गया। सभी भले लोग खून देने के लिए लाइन लगा दिए। ये देखकर तीनों भाई नतमस्तक हो गए।
पिताजी की गंभीर हालत को देखते हुए सभी को खबर दे दी गई। खासतौर पर रामराज जी के बड़े भाई रामसिया जी को खबर के साथ पैसे की भी व्यवस्था करने को कहा गया। रामसिया जी ने तुरंत अपने बेटे राजर्षी को पैसे के साथ तुरंत इंदौर रवाना किया।
अगले दिन सुनील के चचेरे भाई राजर्षी भी अस्पताल पहुंच गया। आईसीयू में जाकर देखा कि रामराज जी एक पैर बार बार मोड़ रहे हैं , सीधा कर रहे हैं। उनकी आंख से लगातार आंसू बह रहे थे। जैसे कि वो बड़े दुखी होकर कुछ कहना चाह रहे हों।

ऐसी परिस्थिति में आंखों में नींद कहां। मन में अनेकों प्रकार के विचार आते रहे । सुनील के दोनों बड़े भाई व जीजा अस्पताल में ही रुके थे तथा सुनील चचेरा भाई राजर्षी कमरे में लौट आए थे। रात भर सुनील हनुमान जी के नाम का जाप करता रहा। सुनील के पिताजी हनुमान भक्त थे। रोज शाम को स्थानीय प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में दर्शन को जाते थे।
रात एक बजे फोन कि घंटी बजी। सुनील किसी अनहोनी से घबरा गया व पसीने पसीने हो गया। सुनील ने फोन उठाया ,उधर से विहान कि आवाज़ थी। विहान कुछ देर खामोश रहने के बाद बोला की राजर्षी को फोन दो। विहान कि राजर्षी से बात हुई। सुनील , राजर्षी से घबराहट में पूंछा , क्या हुआ भैया? राजर्षी ने सुनील को फोन थमा दिया। उधर से विहान बोला , सुनील मेरे भाई थोड़ा दिल मजबूत कर बात सुनना... पिता जी नहीं रहे। सुनते ही सुनील को लगा जैसे वो ज़मीन में गड़ गया हो, हांथ पैर कुछ भी करने में असमर्थ हो गए हों। जैसे उसका सब लुट गया हो, उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था, जैसे उसका सारी दुनिया से विश्वास उठ गया हो। तभी सुनील की बहन दुशाला पूंछ बैठी क्या हुआ? तभी राजर्षी बोल पड़ा , अब क्या अब गांव चलने की तैयारी करो। इतना सुनते ही दुशाला दहाड़ मारकर रोने लगी। वहां पर बहुत ही दारुण दृश्य उपस्थित हो गया।
थोड़ी देर बाद सुनील में न जाने कहां से इतनी हिम्मत आ गई।शायद भगवान ऐसे समय में इस घनघोर दुख में ऐसी हिम्मत देता रहा है तथा ढांढ़स बन्धाता रहा है। सुनील व राजर्षी तुरंत अस्पताल रवाना हो गए।
अस्पताल पहुंचते ही बड़े भाई अजय ने सुनील व राजर्षी को बाहों में भर लिया, लेकिन रोया कोई नहीं। सभी अपने अपने को बहुत हिम्मत से संभाल के रखा था। जरा भी कोई कमजोर पड़ता तो तुरंत ही वहां पर गंगा - यमुना का सैलाब उमड़ पड़ता। इसीलिए सुनील की हिम्मत ही नहीं हुई की पिता की निर्जीव देह को निहार सके।
कागजी कार्रवाई के बाद शव को ताबूत में रखवाया गया तथा एक बड़ी एम्बुलेंस में शव लेकर सभी लोग गृहग्राम के लिए रवाना हो गए। इसकी सूचना गांव में तथा सभी संबंधियों को दे दी गई।
गांव में सूचना पहुंचते ही शोक की लहर छा गई। सुनील के घर में तो कोहराम ही मच गया। रामराज जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि कैसा भी इंसान हो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। रामराज जी मास्टर के नाम से मशहूर थे। वो बहुत ही हाज़िर जवाब थे। जहां कहीं भी खिलखिलाहट सुनाई दे रही हो तो लोग समझ जाते की मास्टर जी की मंडली जरूर बैठी होगी। रामराज जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। हर जरूरतमंद की मदद करना, ढोंग ढकोसलों से दूर रहना उन्हें पसंद था। स्थानीय रामलीला मंडली में तरह तरह के भावपूर्ण पात्रों को निभाते थे। आज उनके घर पर सारा गांव इकठ्ठा था।
बीच - बीच में एम्बुलेंस रोककर ताबूत के अंदर बर्फ के टुकड़े रखते जाते थे, जिससे शव को कोई नुकसान न हो। खिड़की किनारे बैठा सुनील रास्ते भर अपने पिता को याद कर - कर के रोता रहा। उसके आंसू एक पल के लिए भी नहीं रुके। अपने पिताजी की तरह सुनील को भी लेखन व संगीत में गहरी रुचि थी। उसके पिता लेखन के क्षेत्र में उसका हौसला बढ़ाते रहते थे। जब सुनील की नौकरी का समाचार उसके पिता को मिला तो वो उस समय एक होटल में बैठे थे। खुशी से गदगद होकर सुनील के पिता ने होटल में बैठे सभी लोगों को अपनी तरफ से भरपेट नाश्ता कराया था। सुनील के बड़े भैया अजय बड़प्पन का धर्म निभाते हुए सभी के दुखी मन को हल्का करने का प्रयास रास्ते भर करते रहे। आखिर अब सभी भाई बहनों के गार्जियन वही तो थे।
एम्बुलेंस गांव के नजदीक पहुंच गई थी। अजय ने समय की नज़ाकत को पहचानते हुए एम्बुलेंस चालक से कहा, भाई अब घर आने वाला है, अपना हिसाब ले लो। घर पहुंचने के बाद न हमें होश रहेगा और न तुम ही मांगने का साहस कर पाओगे । इसलिए भैया अभी हम सभी होश में है , अपना पैसा ले लो। यह सुनकर चालक भी अपने आंसू रोक नहीं सका।
जैसे ही एम्बुलेंस दिखी , पूरे मुहल्ले में कोहराम मच गया, चीख पुकार मच गई। एम्बुलेंस से उतरते ही मां ने सभी भाइयों को सीने से चिपकाकर दहाड़े मारकर रोने लगी। अब किसको पापा कहोगे, मैने तो इन्हे ठीक होने के लिए भेजा था ये क्या हो गया। करुण क्रंदन से पूरा माहौल गूंज उठा। सुनील के बड़े पिता रामसिया जी तीनों भाइयों को सीने से लगाकर फूट - फूट कर रो रहे थे। रामराज जी की बड़ी बहन दहाड़े मार मार कर रो रही थी तथा बार बार बेहोश हो जाती।रामराज जी की शवयात्रा में जैसे पूरा गांव जन सैलाब बनकर उमड़ पड़ा।
तीनों भाई सामाजिक कर्मो को निभाकर पुनः अपने - अपने नीड़ की ओर चल दिए । क्योंकि कितना भी दुख आए, पेट तो भरना ही है और यही दुनिया कि रीति भी है। सभी भाई अपनी मां को साथ लेकर इंदौर अपनी जीवन यात्रा को सतत् रखते हुए चले जा रहे थे और पार्श्व में गाने की आवाज़ स्पष्ट सुनाई दे रही थी....चल उड़ जा रेे पंछी........

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