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तपस्या

चार वर्षीय सूरज के पिता दिव्यनाथ की असमय मौत से सूरज और उसकी मां जानकी पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। जानकी देवी अपने जीवन यापन और सूरज के पालन - पोषण को लेकर चिंतित रहने लगी। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जानकी ने सूरज को पढ़ा लिखाकर , स्वाबलंबी और एक बेहतर इंसान बनाने का निर्णय कर लिया।
अपने निर्णय को फलीभूत करने के लिए जानकी इस जीवन मझधार में सकारात्मक सोच के साथ कूद पड़ी। अपने लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए, अभावों और परेशानियों से दो - दो हाथ करते हुए कंटकाकीर्ण पथ पर अनवरत अग्रसर हो रही थी। गीता के वचन को तो जैसे उन्होंने अपने जीवन में उतार लिया हो, कर्म - कर्म और सिर्फ कर्म।
दिन,महीने और वर्ष बीतते देर ना लगी। अब सूरज पढ़ - लिखकर एक योग्य नौजवान का रूप ले चुका था। जानकी , सूरज के व्यक्तित्व को देखकर अपनी सारी परेशानियां भूल जाती थी। उसके मुख पर एक संतुष्टि का भाव उभर आता था। जीवन के संघर्ष के थपेड़ों को सहन करते - करते जानकी का शरीर भी जर्जर होने लगा था। सूरज एक संवेदनशील और आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था। उसके लिए आदि और अंत सिर्फ उसकी मां थी।
अपने शैक्षणिक योग्यताओं के चलते सूरज को पास के शहर में एक अच्छी नौकरी मिल गई। सूरज की मां जानकी देवी को अब जाकर सुकून मिला। उनकी जीवन की तपस्या सफल हुई। वो मन ही मन सूरज के सुखी जीवन की कामना भगवान से कर रही थीं तभी सूरज का आना हुआ। मां तुम अब इतना सारा काम मत किया करो। अब तुम्हारे आराम के दिन आ गए हैं। हां - हां मैं समझ रही हूं। अभी थोड़ी देर पहले तेरी वीणा चाची आई थी, तेरे लिए सुंदर रिश्ता लेकर। मैंने रिश्ता पक्का कर दिया है। अरे मां! एक बार अपनी होने वाली बहू को देख तो लेती। देखकर ही तो रिश्ता पक्का किया है। एक आंख से भेंगी है, मैंने कह दिया है , चलेगी। कहकर जानकी देवी खिलखिला पड़ती हैं। सूरज हंसते हुए... मुझे भी कोई आपत्ति नहीं। मेरी मां को पसंद है तो मुझे भी पसंद है। आखिर बहू से निबाहना तो आपको ही है। मां - बेटा दोनो हंस पड़ते हैं।
सुहाग रात को सूरज अपनी पत्नी रीना से कहता है... रीना ... मैं तुमसे एक वादा लेना चाहता हूं, मना मत करना। बदले में मैं तुम पर संसार की सारी खुशियां वार दूंगा। रीना... सूरज तुम्हे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। मैने शादी के पहले से ही तुम्हारी सारी परिस्थिति से अवगत हूं। सच कहूं तो यह शादी मैंने अपनी पसंद से की है। तुम्हारा आशंकित होना स्वाभाविक है, क्योंकि आज की स्थिति ही ऐसी बन पड़ी है जहां नवविवाहितों का काम ही घरों में दरार डालना, अविश्वास पैदा करना, कर्तव्यों को तिलांजलि देकर केवल अपने अधिकारों की बात करना तथा पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर विवाद करना ही रह गया हो, वहां सशंकित होना स्वाभाविक है। लेकिन मैं इन संकीर्णताओं से ऊपर उठकर सोचने वाली व चलने वाली लड़की हूं। महिलाएं शक्ति स्वरूपा होती हैं। इसका जीता - जागता उदाहरण मेरी सासू मां हैं। इसी बात से प्रेरित होकर मैंने तुम्हारी अर्धांगिनी बनना स्वीकार किया है। मैं अपनी सासू मां की छत्रछाया में रहकर दुनिया को यह बतलाना चाहती हूं की हर औरत शक्ति स्वरूपा होती है, जमाना इन्हे कम आंकने की भूल ना करे। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि अधिकांश औरतें अपनी शक्ति का उपयोग की बजाय दुरुपयोग जियादा कर रही हैं। आज के इस चलन को बदलना ही होगा।
सूरज का मस्तक गर्व से और ऊंचा हो गया। रीना से कहता है... रीना , तुमने मेरे दिल की बात कह दी।मुझे तुम जैसी जीवन संगिनी पाकर अपार खुशी और संतुष्टि का अनुभव हो रहा है। तुम्हे पाकर मुझे गर्व हो रहा है। तुम जैसी स्त्रियां ही तो भारत का उज्ज्वल भविष्य हैं।


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