Anokhi Dulhan - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

अनोखी दुल्हन - ( छोड़ी हुई दुल्हन_३) 33

भरी दोपहरी, जब सर पर सूरज देव तांडव कर रहे थे। ऐसी गर्मी में भी यमदूत को ठंडी हवाएं महसूस हो रही थी। वो एक चेहरा जो वो इतने दिनो से देखने के लिए तड़प रहा था। आखिरकार दिखा। यमदूत ने तुरंत एक मंत्र बोला और अपने आप को अदृश किया। माना वो सनी से मिलना चाहता था, लेकिन सनी उसके बारे में क्या सोचती है, ये उसे अब तक पता नहीं है।

सनी को मानो अपने आस पास किसी के होने का एहसास हुआ हो। वो यमदूत के पास आकर रूकी। उसने अपने आस पास देखा। पर वहा कोई नही था। उसने उदासी से एक सांस छोड़ी। " कही धोका तो नही दिया तुमने। कहा था फोन करुंगा लेकिन अब तक नहीं किया।"

सनी की बात सुन यमदूत के चेहरे पर मुस्कान तो छाई लेकिन उसका कोई मतलब नहीं था। आखिर में सनी एक इंसान है, और सामने वाला दैवी शक्तियों वाला। जिसे न इंसान कह सकते है, ना जानवर। किस वर्ग में मोड़ा जाए उसकी भी कोई कल्पना नहीं। यमदूत अपने खयालों में उलझा हुआ था। तभी सनी वहा से जाने लगी। यमदूत भी उसके साथ चल रहा था, उसे जानना था आखिर सनी जाती कहा है। ताकि उसे जब भी देखने का मन करे वो उसे मिलने जा पाए।

अचानक सनी का पैर फिसला, और वो गिरने ही वाली थी। लेकिन तभी यमदूत ने उसका हाथ पकड़ उसे अपनी बाहों में थाम लिया। किसी यमदूत का इंसान को छूना गलत है, ये पता होने के बावजूद भी उसने सनी को बचाया।
सनी ने अपनी आंखे बंद रखी थी, वो अपने बदन में दर्द महसूस करने का इंतजार कर रही थी। लेकिन ५ मिनिट बाद भी जब उसे कुछ महसूस नहीं हुवा, उसने अपनी आखें खोली और अपने आप को हवा में पाया। नतीजा वो जोर से चीखी। यमदूत ने तुरन्त उसे नीचे उतार अपनी जगह पर खड़ी किया। लेकिन सनी इस कदर डर गई थी बस पूछो मत। उसने बस एक नजर अपने आस पास डाली और वो वहा से भागी। यमदूत उसे और डराना नही चाहता था। इसलिए उसने सनी का पीछा नहीं किया।

आखिर वो ऐसा क्यों है ? उसने उसे क्यों डरा दिया ? आ........ सारी बाते सोच सोच अब उसे भी सरदर्द महसूस होने लगा था।

दूसरी तरफ वीर प्रताप सोच सोच कर थक गया की अब क्या किया जाए। जब वीर प्रताप और यमदूत घर आए दोनों के चेहरे उतरे हुए थे। दोनों एक दूसरे के आसपास डाइनिंग टेबल पर बैठे। उन्होंने बीयर कैन निकाला।

" क्या हुआ?" वीर प्रताप।

" बहुत कुछ हो रहा है इस बार। अजीब। गलत। लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा हूं। जितना उस इंसान से दूर जाना चाहता हूं, उतना किस्मत मुझे उसके पास ढकेल रही है। अजीब कशमकश में उलझा हुआ हूं। इंसान नहीं हूं फिर भी जज्बात उमड़ रहे हैं।" यमदूत ने बीयर का एक घूंट लेते हुए कहा।

" यमदूत होने के बाद भी इतना प्रेशर।" वीर प्रताप ने अपनी बीयर का एक घूंट लिया। " मेरी बात मानो दूर रहो। तुम समझते नहीं हो इन इंसानों को। हम कुछ भी कर ले लेकिन इन्हें पसंद करने से अपने आप को रोक नहीं पाएंगे। हजार साल इंतजार किया मैंने की मुझे इस दुनिया से और अपनी लंबी जिंदगी से मुक्ति मिल जाएं। और आज जब वो मेरे सामने होती है मुझे इस दुनिया को नहीं छोड़ना। मेरा बस चले ना तो उसकी उस हंसी के सहारे और हजारों साल गुजार दूं। लेकिन नहीं। मैंने तय कर लिया है। यह मेरा अंत है। मुझे उसके लिए उससे दूर जाना होगा।"

" तो क्या तुम सच में मर जाओगे ?" यमदूत ने पूछा।

" उसके साथ जीने की और ख्वाहिशें जगे, उससे पहले मेरा मर जाना ही सही होगा।" वीर प्रताप ने यमदूत को देखा। यमदूत ने वीर प्रताप को देखा। दोनों के चेहरे पहले से ज्यादा उदास थे।

जूही बस स्कूल से लौटी ही थी, उसे काफी उदास महसूस हो रहा था। उसने कमरे को घुरा। इतने बड़े कमरे में वो अकेली थी। आज भी उसके पास परिवार कहने वाला कोई नहीं था। उसने अपने टेबल पर सजाई हुई मोमबत्तियां देखी।

उसने अपने आंसू पोंछे। ' ठीक है। अगर ऐसे ही वह आएगा तो ऐसे ही सही।' उसने सोचा। और एक-एक कर सारी मोमबत्तियां जलाने की शुरूआत की।

जूही सारी मोमबत्तियां चला चुकी थी। उसमें से एक को बुझाना था। लेकिन वह उसे बुझाए उससे पहले उसके दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। उसने दरवाजा खोला, वीर प्रताप उसके सामने खड़ा था।

" तुम ? यहां क्या कर रहे हो मैंने तो अब तक तुम्हें बुलाया ही नहीं।" जुही ने कहा।

" क्या तुम मुझे बुलाने वाली थी ?" वीर प्रताप के चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

" हां।" जुहीने कहा।

" आज के बाद तुम्हें मुझे बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" उसकी बात सुन जूही के दिल की धड़कन ‌ रुकने वाली थी। "क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।" वीर प्रताप ने बिना किसी भाव के पूछा।

" ऐसा क्यों?" जूही ने पूछा।

" क्योंकि तुम ही हो अनोखी दुल्हन। मेरी दुल्हन। चलो घर चलते हैं।" वीर प्रताप।

" कौन से घर?" जूही ने पूछा।

" मेरे घर। जहां मैं रहता हूं।" वीर प्रताप।

" क्या तुम मुझसे प्यार करते हो ?" जूही।

" तुम चाहो तो वह भी कर लूंगा। आई लव यू।" यह वो तीन शब्द थे। जो जूही हमेशा से वीर प्रताप के मुंह से सुनना चाहेगी। लेकिन आज उसके मुंह से बिना किसी भाव के यह शब्द सुन जूही की आंखों में आंसू आ गए।

बाहर जोरो की बारिश शुरू हो गई। जूही ने अपने कमरे की खिड़की से बाहर एक नजर डाली।

" इतनी नफरत।" उसके आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। " पता नहीं कितनी नफरत करते हो तुम मुझसे जो तुम इतने उदास हो। देखो बाहर बारिश शुरू हो गई है।" जूही ने अपने आंसू पोछे। " लेकिन मैं फिर भी आऊंगी। अभी मेरे पास कोई रास्ता नहीं है। ना ही कोई और पर्याय कि मैं अपनी मर्जी चलाऊ। तुम जहां ले जाओगे मैं तुम्हारे साथ आऊंगी। और मुझे यह तलवार भी तो तुमसे अलग करनी है।" जूही ने झूठी मुस्कान दिखाते हुए कहा।

वीर प्रताप मिंटो मिनटों में बदल रहे उसके चेहरे के भाव को देख रहा था। " सही कहा तुम्हें मुझ से तलवार अलग करनी है।"