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होना बादशाह का कथा नायक

ताज़ा व्यंग्य -कथा

होना बादशाह का कथा नायक

यशवंत कोठारी

खलक ख़ुदा का !

मुलक बादशाह का !!

शहर कोतवाल का!!!

बा अदब बा मुलाहिज़ा होशियार !!!!

हर ख़ास ओ आम को इत्तिलाह की जाती है की बादशाह ने तय किया है की उसे लोक कथा का नायक बनाया जाय.

आज से सब लोक कथाओं का नायक बादशाह को ही बनाया जायगा . जो ऐसा नहीं करेगा उसका सर कलम कर दिया जायगा.

तड़ तड़ा तड़…. तड़ तड़ ... तड़ तड़ा तड़…. तड़ तड़ ...डून्डी पिटी.

जो हुकम मेरे आका .मेरे मालिक ,जनता बोली मगर बात बनी नहीं .

बादशाह ने वजीर को दौड़ाया ,सचिव दोड़े पूरा महकमा- खास चिंता करने लगा बादशाह हुक्म को लोक कथा में जगह मिलनी चाहिए.लेखकों कवियों को हुक्म तो सुना दिया मगर ये कवि सुनते ही किसकी है?

पुरानी पोथियाँ बिखेरी गयी, वेद पुराण उपनिषद खंगाले गए. इसके बाद साहित्य ,कला सब को ऊँचा नीचा किया जाने लगा.मगर हुकूमत की तमाम कोशिशों के बाद भी लोक नायक बनना संभव नहीं हुआ.

हैरान परेशान अहलकारों ने एक पीर औलिया की सेवा लेने का निश्चय किया मगर औलिया ने बादशाह को घास डालने से मना कर दिया ,याने उसने बादशाह को जनता की कथा में जगह देने से मना कर दिया बादशाह सलामत के वजीर, नव रत्न सब रास्ता ढूंढने में लग गए .एक कारकून ने कहा-बादशाह सलामत के लिए सोने के तार से महीन पौशाक बनाई जाय इसे पहनने के बाद जहाँ पनाह को सभी कथाओं में जगह मिल जायगी .

एक चमचे बुद्धिजीवी नेकहा-क्या राजा को नायक मान लिया जायगा.

तुम चुप रहो -रायता मत फैलाओ.

सरकारी खजाने से सोना लिया गया कारकून ,दरजी,धागेवाले ,स्टोरकीपर सब मिल कर खा गए.बादशाह लोक कथा के अनुसार नंगा ही रह गया..नायक बनने का यह प्रयास भी अधूरा रहा.

वजीर , सचिवों की फिर मीटिंग हुई .एक दो सामान विचारधाराओं वाले बुद्धिजीवियों को भी बुला लिया गया.

समस्या वही बादशाह को लोक कथा में अमर होना है ताकि आने वाले हजारों सालों तक लोग जब भी बात करे इसी बादशाह की बात करे,बस हमारा बादशाह हर कथा का नायक होगा न इस बादशाह के पहले कोई था न बाद में कोई बना. लेकिन समाज, देश, काल, कवि, कलाकार माने तब तो बात बने .

इस बार एक फ़क़ीर भी था उसने अपनी रो में खंजरी बजाते हुए कहा -

कथा नायक सरकारों से नहीं बनते .व्यवस्था यह काम नहीं कर सकती.लोक कथाएं जनता बनाती हैं.लोक रचना किसी की बपोती नहीं होती है.लेखक ने लिख कर जनता को दे दी ,न कोई नायक न महानायक.न नवाब न राजा न बादशाह सब जनता के समंदर में समा गया.

हे ! नवाब तुम जिद छोडो .

इस काम के लिए तुम हवा ,पानी,वन, समंदर, नदी, सूरज, चाँद, सितारों, पेड़ों, चिड़िया, दिशाओं से बात करो गाँव के बड़े बूढ़े से पूछों किसी स्त्री से बात करो किसी पण्डे पुजारी मौलवी से पूछों जंगल में बैठे किसी संत महात्मा से पूछो.

इन सबसे बात करो ये ही रास्ता बताएँगे.और सुनो, बादशाह अमर तभी होगा जब मरेगा बादशाह की हत्या करनी होंगी तभी कोई लोक कथाकार बादशाह को अपनी कथा में जगह देगा.लेकिन क्या बादशाह यह सब करेगा महल को छोड़ कर जंगल जंगल जायेगा.बात करेगा ,आवारा घूमेगा अगर करेगा तो क्या होगा?

फ़क़ीर एक बड़ा प्रश्न छोड़ कर अपनी खंजरी बजाता हुआ चल दिया

मंत्री सचिव सोचने लगे सोचने का नाटक चलने लगा .बादशाह को अमर होने की जल्दी थी .अहलकारों को कोई जल्दी नहीं थी.पूरी सेना ,मंत्री सचिव सब के सब लोक कथा में घुसने को लालायित बादशाह की सोचने लगे ,प्रजा का खाना पीना हराम हो गया .बेगम तक इस गम में दुबली होने लगी.मैं नवाब हूँ मेरा लोक कथा में होना जरूरी है,मेरे बिना कैसे कथा चलेगी ?

मगर जनश्रुति में घुसना आसान नहीं है मालिक .

अगर मैं नहीं तो जहाँ भी नहीं ,चाहे कुछ हो मुझे कथा नायक होना बेगमों ने भी राजा याने नवाब याने बादशाह की हाँ में हाँ मिलाई सर कलम करवाने से तो हजूर की बात को सहमती देना ठीक है.

लेकिन फ़क़ीर ने जो कहा उसका क्या हो ?

राजा के कारिंदे हवा पानी आकाश पेड़ पोधों से पूछने गए मगर किसी ने भी नवाब को लोक कथा के नायक बनने की इजाजत नहीं दी .स्त्री ने बादशाह को पहचानने से मना कर दिया .

सूरज चाँद सितारों ने बादशाह का मखोल उड़ाया -हजारों आए हजारों गए लाखों अभी आयेंगे जायेंगे अगर सभी नायक होने लगे तो नायक और लोक कथा का महत्व ही ख़तम हो जायगा.

चिड़िया ने साफ मना कर दिया मैं नवाब को कथा नायक नहीं मानती.नवाब के कारिंदों को गुस्सा आ गया उन्होंने चिड़िया का सर कलम कर दिया .

नवाब के चाटुकार बेचारे बुरे फंसे ,क्या करे कोई बादशाह को नायक ही मानने को तेयार नहीं.

समंदर और पानी ने भी कहा नायक तो हम हैं हमसे है जमाना , हम ज़माने से नहीं.समय तय करेगा कथा नायक कौन होगा ,बादशाह नहीं होगा बस. तब से हर बादशाह लोक कथा में घुसने की कोशिश कर रहा है.हर बादशाह सोचता है मैं बूढ़ा हो रहा हूँ मेरा नायक बनना जरूरी है इस युग को मेरे नाम से जाना जाय मगर बादशाह नायक नहीं बन पाया . बादशाह अधूरे सपने के साथ मर गया .खलक खुदा का ........

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यशवंत कोठारी,८६ ,लक्ष्मी नगर ,ब्रह्मपुरी जयपुर -302002 ,मो 9414461207