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पवित्र प्रेम (भाग1)

हुमायूं ने आगे बढ़कर आलम खान का स्वागत किया।आदर और सम्मान के साथ उसने आलम खान को राजमहल में पहुंचा दिया।
उसके बाद हुमायूं हाथियों के झुंड की तरफ बढ़ गया।उन हाथियों पर आलम खान के हरम की औरतें सवार थी।इन औरतो को ठहराने के लिए राज महल में अलग व्यवस्था की गई थी।हुमायूं कुछ दूर हटकर खड़ा हो गया।गुलाम औरतो और बांदियों ने कपड़े के पर्दे की आड़ खड़ी कर दी।इस आड़ में हाथियों से एक एक औरते उतारकर राजमहल में पहुंचायी जाने लगी।
सबसे आखिर में एक युवती उतरी।वह हाथी से उतरकर ज्यों ही नीचे आयी त्यों ही हवा का झोंका आया।एक बांदी के हाथ से कपड़ा छूट गया।युवती ने घबराकर नज़रे उठाकर देखा।उससे कुछ दूरी पर खड़े युवक से उसकी आंखें चार हुई।उसने शरमाकर नज़रे नीचे झुका ली।
राजकुमार हुमायूं की नज़र उस युवती पर पड़ी तो वह देखता ही रह गया।लम्बे छरहरे कद,,बड़ी बड़ी आंखे और तीखे नैंन नक्श की गौरी चिट्टी युवती लाल कपड़ो में गुलाब के फूल सी नज़र आ रही थी।
पहली नज़र में ही वह युवती हुमायूं को पसंद आ गयी।युवती राजमहल में चली गयी लेकिन हुमायूं को ऐसा लगा उसका दिल भी चुराकर अपने साथ ले गयी हो।।जब हरम कि सब औरते राजमहल में पहुँचा दी गयी। तब हुमायूं ने एक दासी को बुलाकर पूछा था,"वह कौन थी?"
"गुलनार,"दासी बोली,"राजकुमारी गुलनार थी।"
राजकुमारी गुलनार की सुंदरता से हुमायूं ऐसा प्रभावित हुआ कि वह पहली बार देखते ही उसे चाहने लगा।उसे उससे प्यार हो गया और उसे अपनी बनाने की इच्छा मन मे जाग्रत हो उठी।
हुमायूं खुशमिजाज स्वभाव का जिंदादिल इंसान होने के साथ बातूनी भी था वह हरएक से खुलकर बातें करता था।लेकिन गुलनार ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह गुमसुम और खोया खोया रहने लगा ।
वह हर समय इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि गुलनार तक अपने प्रेम सन्देश को कैसे पहुँछाया जाए।कैसे उसे बताये की वह उसे अपने दिल की रानी बनाना चाहता है।वह खूब सोच रहा था लेकिन उसे कोई उपाय नही सूझ रहा था।
हुमायूँ के स्वभाव में अचानक आये परिवर्तन का कारण जानने के लिए उसकी गुलाम नादिरा बोली,"आजकल हुज़ूर खोये खोये से और खामोश क्यो रहने लगे हैं?कोई तकलीफ हो तो इस नाज़नीन को बताए"।
"कोई बात नही है।बस वैसे ही।"हुमायूं ने नादिरा को टाल दिया।
नादिरा गुलाम ज़रूर थी लेकिन औरत होने के साथ जवान और सुंदर थी।वह नादान और मूर्ख नही थी।इसलिए ताड गयी कि कोई न कोई बात जरूर है।जो हुमायूं के दिल को छू गयी है।इसीलिए हर समय मुस्कराने खिलखिलाने वाले राजकुमार ने चुप्पी ओढ़ ली है।वह हर समय खोया खोया खामोश रहने लगा है।
नादिरा ने दिल ही दिल मे निर्णय कर लिया की वह हुमायूं से उसकी उदासी और खामोशी का राज जानकर ही रहेगी।कुछ दिन वह चुप रही।फिर एक दिन जब हुमायूं अपने कक्ष में अकेला था वह उसके पास जा पहुंची।
"क्या बात है शहज़ादे आप चुप और खामोश क्यो रहने लगे है?"
"कोई बात नही है"।
"हुज़ूर बात तो कोई न कोई ज़रूर है। आप बताना नही चाहते तो कोई बात नही है।"
"नादिरा कोई बात नही है।"हुमायूं, नादिरा की बात सुनकर बोला।
(आगे अगले भाग में)