Pavitra Prem - last part books and stories free download online pdf in Hindi

पवित्र प्रेम (अंतिम किश्त)

हुमायूं के दिल मे लगी आग गुलनार को भी सुलगा रही है।वह दौड़ी हुई हुमायु के कक्ष में आयी।भागने की वजह से उसकी सांसे फूल गयी थी।
"क्या हुआ नादिरा?इस तरह दौड़ी हुई क्यो आयी हो?कही कुछ?
"हुजूर गज़ब हो गया?"
"कैसा गज़ब,"हुमायूं चोंक कर बोला"कही कुछ गड़बड़ तो नही हो गयी?'
"हुज़ूर यह मत पूछो की क्या हुआ है?"
"पहलियाँ ही बुझाती रहोगी।या कुछ बताओगी भी?"
"हुज़ूर गुलनार को भी आप से प्यार हो गया है।"
"सच," नादिरा की बात सुनकर हुमायूं बोला।
"सच कह रही हूँ।"और नादिरा ने हुमायूं को सारी बात बता दी।गुलनार के बारे में जानकर हुमायूं की खुशी का ठिकाना नही रहा।
हुमायूं अभी तक इसी असमंजस में था कि न जाने गुलनार के दिल मे क्या है?लेकिन उसके दिल का हाल मालूम होने पर हुमायूं के दिल मे गुलनार से मिलने की इच्छा बलवती हो उठी।वह नादिरा से बोला,"नादिरा तुम एक बार मेरी नादिरा से मुलाकात करवा दो।"
"आप गुलनार से मिलना चाहते है लेकिन आप अच्छी तरह जानते है।चप्पे चप्पे पर यहाँ प्रहरी तैनात है।"
"तभी तो तुम से कह रहा हूँ।जैसे उसके दिल का हाल जाना।ऐसे ही कोई ऐसी तरकीब निकालो की मेरी गुलनार से मुलाकात हो जाये।"
"आप कह रहे है तो सोचती हूँ कोई तरकीब"
नादिरा को जल्दी ही एक मौका हाथ लग गया।बाबर ने एक रात आलम खान के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया।इस भोज का जिम्मा उसने हुमायूं को दिया।
हुमायू ने राजमहल के एक बड़े हॉल को बड़ी ही खूबसूरती से सजवाया।इस हाल में सरदार,दरबारी व अन्य सभी लोगो के बैठने का इन्तजाम उनके पद के हिसाब से किया गया।शाम ढलते ही लोगो के आने का क्रम जारी हो गया।सूरा के साथ नर्तकियों के नाच गाने का भी प्रबन्ध किया गया।बाबर,आलम खान व अन्य लोग सूरा का सेवन करने के साथ नृत्य और गीतों का रंगा रंग कार्यक्रम देखने मे मसगूल थे।उसी अवसर पर नादिरा ने हुमायु की गुलनार से मुलाकात कराने का निश्चय किया।वह हुमायूं के पास जाकर बोली,"कुछ देर के लिए आप शाही बगीचे में पहुंच जाए।मैं गुलनार को लेकर आती हूँ।"
फिर वह गुलनार के पास जाकर बोली,"आओ शहज़ादी मैं आपको शाही बगीचे की सैर कराती हूँ।"
नादिरा,गुलनार को लेकर शाही बगीचे मे चली आयी।किले पर जगमगाती रोशनी से शाही बगीचा भी रोशन हो रहा था।नादिरा राजकुमारी गुलनार को शाही बगीचे में लगे पेडो के बारे मे बताते हुए आगे बढ़ने लगी।ज्यो ही वह गुलमोहर के पेड़ के पास पहुँची।उसे गुलाब के पौधों के पीछे से दो आंखे झांकती हुई नजर आयी।गुलनार को समझते देर नही लगी।वहाँ कोई है?कौन है?दोनों आंखे उसे मुस्कराती सी लगी।इन आँखों को कहीं देखा है।कहाँ?अचानक उसे याद आया जब वह हाथी से उतर रही थी तब बांदी के हाथ से परदा छूट गया था।
और उसे हुमायूं याद आ गया ।
हुमायू का नाम होठो पर आने पर गुलनार को समझते देर नही लगी कि नादिरा उसे हुमायूं से मिलाने के लिए चालाकी से शाही बगीचे में लायी है।वह बोली ,"तो तुम
"शहज़ादी दो प्रेमियों को मिलाने के लिए मुझे यह सब करना पड़ा"
"चल हट
गुलनार शरमाकर वहां से भाग गई।
हुमायू ,गुलनार से आमना सामना होने पर खुश था लेकिन उससे बात न कर पाने से दुखी भी था।उस रात गुलनार भी सो नही पायी।सारी रात हुमायूं के बारे में ही सोचती रही।उसे भी हुमायूं से इश्क हो गया था।इश्क परवान चढ़ता है तो उसकी मंज़िल होती है।मिलान।
बहुत से प्रेमी प्रेमिका इस मंजिल तक पहुंच पाते है।बहुत से बिछड़ जाते है।गुलनार भी अपने इश्क का अंजाम नही जानती थी।
प्रेम की राह में बदनामी भी है।हुमायू और गुलनार का प्रेम दुनियां की नज़रों से छुपा हुआ था लेकिन जग जाहिर होने पर बदनामी का कारण भी बन सकता था।
अगले दिन नादिरा फूलो का गुलदस्ता लेकर गुलनार के पास पहुंची।गुलनार समझ गयी कुछ किया नही गया तो यह आग सुलगती रहेगी।उनके प्यार के बारे में अभी सिर्फ नादिरा को पता है लेकिन औरो को भी पता लग सकता है।तब बदनामी ही सकती है।वह नही चाह्ती थी।उसका प्यार बदनाम हो इसलिए वह बोली,"ठहरो।"
वह अंदर गयी ।कुछ देर बाद लौटी तो उसके हाथ मे मखमली गुलाब का फूल था।वह नादिरा को देते हुए बोली,"अपने राजकुमार को दे देना।"
नादिरा ने फूल लाकर हुमायूं को दिया।हुमायूं खुश हुआ।मखमल का फूल ऐसा लगता था।सचमुच का हो और अभी डाली से तोड़ा हो।
हुमायू प्रेमिका द्वारा भेजा फूल निहारने लगा तभी उसकी नज़र पंखड़ियों पर लिखे अक्षरों पर पड़ी।तो वह चोंक गया क्या लिखा है?उसने ध्यान से पढ़ा।फ़ारसी भाषा मे लिखा था
मुहहबत किसी की रुसवाई नही चाहती,न ही किसी की रुसवाई उसे गवारा है।
गुलनार चाहती थी।उसके प्यार की पवित्रता बनी रहे।वह नही चाहती थी।उसका प्यार बदनाम हो।
और हुमायूं ने ऐसा ही किया