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बिका हुआ ज़मीर

सन्नाटा था। दूर कहीं झींगुरों की आवाज आ रही थी। अनुभव बस स्टैंड पे खड़ा, रात 11 बजे किसी गाड़ी का इंतजार कर रहा था। आज इस रास्ते पहली बार आया था। सूनसान जगह थी काफी। एक चाय की दुकान भी नहीं कि कुछ खा पी लेता। कोई गाड़ी भी नहीं आ रही थी। सन्नाटा काट सा रहा था। चांद की रौशनी जैसे दुख व हिंसा से लिप्त आत्माओं का आवाह्न कर रही थी। बार बार अनुभव अपनी घड़ी की ओर देख रहा था। मानो घड़ी देखने से समय कुछ जल्दी बीत जाए और कोई गाड़ी मिल जाए।
अचानक से झींगुरों की कर्कश आवाज के बीच कुछ पायल जैसी झंकार सुनाई दी। सामने से घूंघट में, नया सा शादी का जोड़ा पहने, धीमी गति से आती एक लड़की।

हवा में कुछ अजीब सी सिहरन फैल गई थी। सन्नाटा सही रूप में छा गया। झींगुरो ने भी आवाज बंद कर दी। बस "छन छन" पायल की आवाज़।
मोबाइल हाथ में लिया अनुभव ने। डरावनी कहानियां बहुत पढ़ी थीं उसने। कुछ ऐसा हुआ तो तुरंत फोन करेगा। लोगों को बतेयागा कहां है। फोन में मित्र का नंबर लगाया। नेटवर्क नहीं। ये भी अभी होना था ?
वो नजदीक आ चुकी थी। अनुभव शांत था। कुछ कहा नहीं जा रहा था। उसकी ओर देखने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। आसपास नजरें घुमाई कोई और दिखा भी नहीं।

"ज़िंदगी में कभी खोने का डर होता है, कभी डर से इंसान खो देता है। पर ज़मीर बेचकर जिंदगी मिली तो क्या? अपने बिके जमीर में कहीं मासूमों का नुकसान किया तो क्या?" मीठी सी आवाज में उसने कहा।

अनुभव चौंक गया। ये क्या था? अपने आप से बोल रही थी या उससे ? उसकी धड़कन बढ़ गई। आखिरकार एक बस आई। अनुभव उसमे चढ़ा तो पीछे मुड़ के देखा भी नहीं।
कंडक्टर बोला,"साब कहां जाओगे?"
"यहीं रायबरेली तक।"अनुभव ने धीरे से कहा।
बस चल पड़ी। शीशे से देखा तो वो लड़की स्टैंड पे नहीं थी।
"कहानियों में अक्सर ऐसा ही पढ़ा था", हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला।
"क्या पढ़ा था साब?" कंडक्टर ने पूछा।
"अरे कुछ नही ऐसे ही वो लड़की लाल साड़ी में ..." कहते हुए बस स्टैंड पे इशारा किया।
कंडक्टर की आंखे चौड़ी हो गईं। मानो उसने कोई भूत देख लिया हो।
"क.. क... कुछ.. कुछ.. कहा उसने ?"
"क्यों तुम्हें क्या मतलब?"
"कुछ नहीं साब, कोई मतलब नहीं। बस एक मशवरा है, यहां रात में मत आया करो। शापित है ये जगह। यहां मुर्दे खिंचे चले आते हैं।" कहकर ड्राइवर के बगल सीट पे बैठ गया।
"अनपढ़ है।" मन ही मन सोचकर अनुभव अपनी सीट पे बैठ गया।
घर पहुंचा, आंख लगी, सो गया। सपने में कुछ अजीबोगरीब दृश्य देख रहा था। जमीर बेचकर जिंदगी मिली तो क्या ? ऐसा कुछ कहा था उसने शायद।
सवेरे उठा तो, मोबाइल, अखबार, टीवी चारों ओर एक खबर,"दिग्गज बिजनेसमैन सूर्यप्रताप राठौर की बेटी ने शादी से पहले आठवीं मंजिल से कूद कर दी जान।"
राठौर की कंपनी को तो वो आज अदालत में अनाथालय की जमीन हड़पने के केस में मदद करने जा रहा था।
मासूमों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा था उसका बिका हुआ जमीर।