Muje tum yaad aaye - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मुझे तुम याद आएं--भाग(८)

अब कजरी बिल्कुल अकेली हो चुकी थी,इसलिए उसे कुछ दिनों के लिए सिमकी काकी ने अपने घर में रख लिया,सिमकी काकी को बेचारी कजरी पर बहुत दया आती,एक तो अनाथ ऊपर से देख नहीं सकती,अब जाने क्या होगा इसका?वो यही सोचा करती।।
कजरी के बापू की मौत की ख़बर सुनकर कल्याणी भी उससे कभी कभी मिलने आ जाती और उसे सान्त्वना देती,लेकिन जब इन्सान मन दुखी होता है तो किसी की भी हमदर्दी उस के दुख को दूर नहीं कर सकती,जिसके ऊपर बीतती है केवल वही जानता है,वैसे इंसान को खुद ही अपने दुखो से उबरना होता है और इंसान जब तक खुद नहीं चाहता तो वो दुखो से नहीं उबर सकता।।
सत्या अब उसके साथ घण्टों नदी के किनारे जाकर बैठता,नदी पर रोज जाने से अब नदी का रास्ता कजरी को भी याद हो गया,सत्या ने उससे पूछा भी कि तुम्हें बिना देखें रास्ते कैसे याद हो जाते हैं,तुम बगिया भी चली जाती हो,फूल बेचने अकेले बाजार भी चली जाती हो....
वो कहती....
सुन्दर बाबू! अपने मन की आँखों से।।
ये भी ठीक है और तुम्हारे मन की आँखों को मैं कैसा दिखता हूँ?सत्या पूछता।।
तो कजरी शरमा जाती ....
कजरी के साथ सत्या हरदम रहता लेकिन उसका साथ भी उसे दिलासा ना दे पाता,उसके दुख को कम ना कर पाता,तब सत्या ने घर जाकर कल्याणी से कहा.....
माँ! मैं कजरी से शादी करना चाहता हूँ,वो अपने बापू की मौत के बाद टूट चुकी है,उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता,वो दिनबदिन उदासीन और कमजोर होती जा रही है।।
वो तो ठीक है लेकिन तुझे अपने बाबूजी की शर्त तो याद है ना! कल्याणी बोली।।
हाँ,माँ! मैं कल ही किसी अच्छे हाँस्पिटल में जाकर उसकी आँखों का चेकअप कराता हूँ,देखता हूँ आई डाक्टर क्या कहता है? सत्या बोला।।
ठीक है बेटा! मैं भी चाहती हूँ कि जल्द से जल्द कजरी हमारे घर बहु बनकर आ जाएं,कल्याणी बोली।।
हाँ,माँ! मैं शाम को बाबूजी से भी बात करता हूँ इस विषय पर सत्या बोला।।
शाम को जानकीदास जी आएं और बोलें....
खुशखबरी है.....
कल्याणी ने पूछा ,
क्या बात है जी? जरा मैं भी तो सुनूँ कि क्या खुशखबरी है?
वो बैंगलोर वाली डील पक्की हो गई है,कल सुबह ही निकलना होगा और इस बार मैं सत्या को भी साथ लेकर जाऊँगा,उसे भी तो पता होना चाहिये कि उसके बाप का व्यापार कहाँ तक फैला है,कल को सब कुछ उसे ही तो सम्भालना है।।
लेकिन बाबूजी! मैं तो कल बिजी हूँ,सत्या बोला।।
ऐसा क्या काम है तुझे जो बाप के संग जाने की फुरसत नहीं है,जानकीदास जी बोले।।
वो मुझे कल कजरी को लेकर आई हाँस्पिटल जाना है,कजरी की आँखें दिखाने,सत्या बोला।।
कोई बात नहीं,बस दो दिन ही तो बात है,दो दिन के बाद कजरी की आँखें दिखा लेना,जानकीदास जी बोले।।
आप कहते हैं तो ठीक है,सत्या बोला।।
और सत्या ने ड्राइवर के हाथों काशी को संदेशा भिजवा दिया कि वो किसी काम से दूसरे शहर जा रहा है दो दिन में लौटेगा ,कजरी का ख्याल रखिएगा और कजरी से भी कह दीजिएगा कि मैं दो दिन में लौंट आऊँगा.....
और दूसरे दिन ही सुबह सुबह दोनों बाप-बेटे बैगलोंर को रवाना हो गए ,उस दिन दोपहर के बाद जो बादल चढ़े तो बस बरसते ही रहे,उस दिन कजरी को अपने बापू की बहुत याद आ रही थी और वो बैठे बैठे अचानक रोने लगी तभी सिमकी ने देखा कि कजरी सुबक रही है।।
उसने उसके पास जाकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.....
क्या हुआ बिटिया? काहे रो रही है?
काकी! मुझे बापू की बहुत याद आ रही है,आज अपने घर जाने का मन कर रहा है,कजरी बोली।।
बिटिया! लेकिन अभी तो बारिश हो रही है,बारिश रूकते ही तुझे मैं छोड़ आती हूँ....
ठीक है काकी! आज मैं अपने घर पर ही सोउँगी,कजरी बोली।।
ठीक है आज तू वहीं सो जाना,बस थोड़ी देर रूक जा,सिमकी बोली।।
और थोड़ी देर में जैसे ही बारिश थमी तो सिमकी ,कजरी को उसके घर छोड़ने चल पड़ी,घर पहुँचकर सिमकी ,कजरी से बोली....
कजरी बिटिया! तू खाना मत बनाना,खाना बनते ही काका के हाथों पहुँचवा दूँगीं।।
ठीक है काकी! कजरी बोली।।
अच्छा!तो अब मैं जाती हूँ, तू अपना ख्याल रखना,सिमकी काकी बोली।।
ठीक है काकी!कजरी बोली।।
और सिमकी काकी अपने घर चली गई,सिमकी के जाते ही कजरी ने अपनी चारपाई डाली और लेट गई,उसे दरवाजा बंद करने की सुध ना रही,चारपाई पर लेटे लेटे उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
हल्की हल्की बूँदाबाँदी हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी,तभी एकाएक कजरी को महसूस हुआ कि उसके हाथ को कोई सहला रहा है,वो हड़बड़ा कर चरपाई से उठी और पूछा कौन है?
मैं हूँ मेरी जान! बाँकें! ,वो बाँकें था।।
तू! यहाँ क्या कर रहा है? कजरी ने पूछा।।
दरवाजा खुला था,दिए का उजाला देखा तो लगा कि आ गई होगी इसलिए हाल चाल पूछने चला आया,बाँकें बोला....
तू अभी जा! कल बात करूँगी,कजरी बोली।।
कल क्यों? मुझे तो अभी बात करनी है मेरी रानी! बाँकें बोला।।
बड़ा बेशरम है तू,बोला ना कल बात करूँगीं,अभी जा यहाँ से ,कजरी की आवाज़ में गुस्सा था।।
कजरी! मेरी रानी! देख ना कितना सुहावना मौसम है,हल्की हल्की फुहार और कड़कती बिजली,ऐसे में कौन कमबख्त घर जाना चाहेगा? बाँकें बोला।।
मत परेशान कर बाँकें! अभी जा यहाँ से,कजरी रूआंँसी सी हो आई।।
बहुत इन्तजार करवाया है मेरी जान! बड़े दिनों बाद मौका मिला है,बाँकें बोला।।
तू ऐसे नहीं मानेगा और इतना कहकर कजरी ने चूल्हे के बगल में पड़ी एक मोटी सी लकड़ी उठा ली और जैसे ही बाँकें उसकी ओर बढ़ा उसने उसके पैर पर जोर से वार किया,बाँकें के पैर पर चोट लगी और वो धरती पर गिर पड़ा,तब कजरी बाहर की ओर भागी,बाँकें ने भी फुर्ती दिखाई और वो भागा कजरी के पीछे....
तभी कजरी के लिए खाना ला रहे काशी काका ने बहुत दूर से देखा कि कजरी के पीछे पीछे कोई भाग रहा है,वो भी हल्की हल्की फुहार में उनके पीछे भागने लगे,उन्हें कजरी की चिंता थी.....
कजरी बस भागती जा रही थी.....बस भागती जा रही थी और जिस रास्ते पर वो भागी चली जा रही थी वो नदिया का रास्ता था जो कि उसे ठीक से याद था.....
और आज बाँकें की भी जिद थी कि आज रात वो कजरी को पाकर रहेगा ,उसके पैर पर चोट लगने के कारण उसकी रफ्तार धीमी थी...तभी बाँकें ने आवाज़ लगाई ...
रूक जा कजरी! आज तू बाँकें से नहीं बच सकती,कहाँ तक भागेगी?
बाँकें को ऐसा कहते जब काशी काका ने सुना तो उन्हें पूरा यकीन हो गया कि वो बाँकें ही है.....
काशी काका ने अपनी रफ्तार बढ़ाई ,लेकिन बूढ़ा शरीर ,भला हड्डियों में दम कैसे होगा? कोशिश करने पर भी वें उतना तेज नहीं भाग पाएं.....
बाँकें के इतना कहते ही कजरी ने अपनी रफ्तार बढ़ा ली और बोली....
तेरा सपना कभी पूरा नहीं होगा,तेरी घिनौनी हरकत को कभी अंजाम नहीं मिलेगा.....
और इतना कहते ही कजरी ने भागते...भागते नदिया में छलाँग लगा दी,बारिश के पानी से नदिया का बहाव बहुत तेज था,कजरी छलाँग लगाते ही नदिया की जलधारा में विलीन हो गई.....
बाँकें जब तक पहुँचा तो कजरी का नामोनिशान मिट चुका था,अब तो बाँकें के होश उड़ गए और उसने थोड़ी देर नदी में इधर उधर झाँका और वापस लौटने लगा.....
काशी काका ने भी कजरी को छलाँग लगाते देख लिया था और उन्हें पता था कि वें बाँकें से इस वक्त तो नहीं जीत सकते,इसलिए उससे ना बोलना ही मुनासिब होगा,कजरी का क्या हुआ? ये बताने के लिए तो उन्हें जिन्दा रहना पड़ेगा,छोटे मालिक तक तो ये बात पहुँचनी ही चाहिए और बाँकें को उसके किए की सजा सिर्फ़ वो ही दिलवा सकता है,ये सब सोचकर काशी काका एक झुरमुट के पीछे छुप गए,जब काशी चला गया तब वें बाहर निकलें और भागते हुए घर पहुँचे....
घर पहुँचते ही घुटनों के बल बैठकर घरवालों के सामने रोने लगें.....
उनको ऐसा रोते देख सिमकी ने पूछा कि
क्या बात है? कजरी तो ठीक है ना!
यही तो रोना है कि वो ठीक नहीं है,काशी काका बोले।।
क्या कहते हो? कहीं कजरी को बुखार ताप तो नहीं हो गया,सिमकी ने पूछा।।
आज उसने अपने सारे कष्टों से मुक्ति पा ली है सिमकी! काशी काका बोले।।
पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो? साफ साफ क्यों नहीं कहते? मेरा जी बैठा जा रहा है,सिमकी बोली।।
फिर काशी काका ने रोते हुए सारी घटना सिमकी को सुना दी,सिमकी भी करम पर हाथ धरकर बैठ गई और बोली...
काश,आज उसे मैं उसके घर ना जाने देती,तो ये अनर्थ ना होता,बेचारी काल के मुँह में चली गई.....
कहाँ ढू़ढ़ेगें उसे ऐसी अँधियारी रात में? चलो ना गाँव वालों से मिलकर बात करते हैं,शायद मिल जाएं बेचारी,सिमकी बोली।।
और वो बाँकें उसने हमें भी कुछ कर दिया तो....,काशी काका बोले।।
उसकी हिम्मत नही है कि हमारा कुछ भी बिगाड़ ले,गाँववाले हैं ना हमारे साथ,सिमकी बोली।।
औल उस रात काशी और सिमकी ने पूरी घटना गाँववालों को भी बता दी,गाँववाले कजरी को खोजने के लिए तैयार हो गए,जिससे जो बन पड़ा उसने वो किया,रात से सुबह और सुबह से दोपहर और दोपहर से फिर शाम हो चली लेकिन कजरी कहीं ना मिली....
लोगों ने कहा,पता नहीं किस गाँव बहकर चली गई या किसी जलीय जीव का शिकार हो गई हो.....
काशी और सिमकी अब हताश हो चुके थे कि वो छोटे मालिक से क्या कहेंगें?कि वे उनकी अमानत को सम्भाल कर नहीं रख पाएं।।
दो दिनों के बाद सत्या लौटा और कजरी से मिलने गाँव पहुँचा और जैसे ही उसने ये खबर सुनी तो वो गुस्से से पागल हो गया,उसने बाँकें को खोजना शुरु कर दिया,तीन चार दिन की मेहनत के बाद बाँकें मिल गया ....
उसे देखते ही सत्या उस पर झपट पड़ा दोनों के बीच खूब हाथापाई हुई,दोनों को खूब चोंट भी आईं लेकिन सत्या का उस पर अब काबू ना रह गया था,उसने बाँकें को जोर की पछाड़ लगाई और बाँकें जमीन पर जा गिरा लेकिन सत्या को ये नहीं पता था कि बाँकें का सिर जमीन में गड़े पत्थर से जा टकराएगा और वो वहीं ढे़र हो जाएगा।।
अब सत्या को पुलिस पकड़कर ले गई बाँकें के खून के जुर्म में,जैसे ही ये खबर जानकीदास जी ने सुनी तो उनको हृदयाघात हुआ और उनके प्राण पखेरु उड़ गए....
हाथों में हथकड़ी पहने पहने सत्या अपने पिता का अंतिम संस्कार किया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....


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