Muje tum yaad aaye - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

मुझे तुम याद आएं--भाग(१०)

कजरी कुएंँ पर पहुँची,मटके और पीतल के कलश को जमीन पर रखा,फिर कलश में रस्सी बाँधकर जैसे ही कुएँ में लटकाया तो किसी ने पीछे से पुकारा....
सुनिए! बहुत प्यास लगी है,थोड़ा पानी मिलेगा क्या?
कजरी ने पीछे पलटकर देखा तो कोई नवयुवक था,जो कि इस गाँव का नहीं लग रहा था,उसे देखकर कजरी बोली....
हाँ..हाँ..क्यों नहीं? मैं अभी कुएँ से पानी खींचकर आपको पिलाती हूँ,इतना कहकर कजरी ने कुएँ से पानी से भरा कलश खींचा और उस नवयुवक से कहा...
लीजिए,पानी लीजिए...
फिर कजरी कलश से नवयुवक की अंजुली में पानी भरने लगी और नवयुवक अंजुली मे पानी भरकर पीने लगा,पानी पीने का बाद उसने कजरी को धन्यवाद कहा और पूछा....
क्या आप सेठ रामलाल जी की हवेली का पता बता सकतीं हैं?
जी! यहाँ से सीधे जाकर आपको बरगद का पेड़ मिलेगा और वहाँ से दाएं जाकर दूसरी गली में ही उनकी हवेली है आपको दूर से ही दिख जाएंगी,कजरी ने रास्ता बताते हुए कहा...
जी आपका एक बार फिर से धन्यवाद और इतना कहकर वो नवयुवक कजरी के बताएं हुए रास्ते पर चला गया और कजरी पानी भरकर घर आ गई लेकिन सब्जियांँ तुड़वाना भूल गई....
पुरोहितन अम्मा बोली....
मैं जानती थी बिटिया कि तू ऐसा करेगी इसलिए मैने पहले ही सब्जी छौंक दी है।।
लेकिन घर में तो कुछ भी नहीं था अम्मा! तुमने बनाया क्या?कजरी ने पूछा।।
मूँग की बड़ियाँ पड़ी थीं थोड़ी सीं ,सिलबट्टे पर मसाला पीसा और छौंक दी,पुरोहितन बोली।।
तभी बाहर से पुरोहित आएं और बोले....
खुशखबरी लाया हूँ पुरोहितन!
खुशखबरी! मैं भी तो सुनूँ भला क्या खुशखबरी लाएं हो? पुरोहितन बोली।।
अरे,मैं सेठ रामलाल जी की हवेली से आ रहा हूँ,उन्होंने शहर से एक डाँक्टर को बुलाया है,वो डाक्टर उनके दूर का रिश्तेदार है,जो यही गाँव में रहकर गाँववालों का इलाज किया करेगा ,उसकी तनख्वाह और उसके रहने का इंतजाम सेठ जी ने अपनी हवेली में कर दिया है,बहुत ही पुण्यात्मा हैं सेठ जी,भगवान उनका भला करें,पुरोहित जी बोले।।
कहीं ये डाक्टर बाबू वही तो नहीं जो अभी कुएंँ पर मुझे मिले थे,उन्हें मैने पानी भी पिलाया,फिर उन्होंने सेठ जी की हवेली का पता भी पूछा,कजरी बोली।।
हाँ,वही होगें,वें कह भी रहे थे कि उन्हें किसी लड़की ने हवेली का रास्ता बताया था,पुरोहित जी बोले।।
ये तो बहुत अच्छी बात है,अगर इस गाँव में कोई डाक्टर आ जाएं तो ,कितनी असुविधा होती है गाँव के लोगों को डाक्टर के बिना,पुरोहितन बोली।।
हाँ,सच कहती हो भाग्यवान! डाक्टर बाबू के आने से मरीजों का इलाज समय पर हो जाया करेगा,पुरोहित जी बोले।।
डाक्टर बाबू भी भले इंसान मालूम होते हैं,नहीं तो यहाँ गाँव में हम गरीबों के बीच क्यों आते? शहर में तो उन्हें मरीजों का इलाज करने पर बहुत पैसे मिलते,पुरोहितन बोली।।
हाँ! वो मुझे भी भले लगे,तभी तो मैने डाक्टर बाबू की मदद करने के लिए हाँ कर दी,उन्होंने कहा कि आप भी मेरे साथ यहाँ पर आ जाया करो,मुझे थोड़ी मदद मिल जाया करेगी तो फिर मुझसे मना नहीं किया गया,पुरोहित जी बोले।।
ये अच्छा किया जी! तुमने हाँ करके,भलाई का काम है,लोगों की सेवा का मौका मिलेगा,पुरोहितन बोली।।
इसलिए तो हाँ कर दी,पुरोहित जी बोले।।

समय यूँ ही निरन्तर गति से चलता रहा,डाक्टर सोमनाथ ने कुछ ही महीनों में गाँव के लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली,वें मरीजों की सेवा के लिए रात-विरात भी ना देखते,जब भी मदद के लिए कोई भी उनके द्वार का दरवाजा खटखटाता तो वें मरीज देखने उसके घर चल पड़ते,उनका सेवाभाव देखकर गाँववाले उनकी इज्जत भी करते और कुछ ना कुछ उनकी पसंद का खाने को बनवाकर भी ले आते,वें बहुत सरल स्वाभाव के और दयालु थे,गुस्सा क्या होता है वो उन्हें पता ही नहीं था साथ में वें बहुत व्यवहार कुशल भी थे।।
पुरोहित जी भी उनके साथ लगें रहते थे उनकी सहायता के लिए,उन्हें अच्छा लगता था दूसरों की सेवा करके,घर आकर वो डाक्टर सोमनाथ की बहुत तारीफ किया करते।।
एक रात ना जाने कजरी ने ऐसा क्या खा लिया कि उसे लगातार उल्टियाँ शुरु हो गईं,दो तीन बार उल्टियाँ होतीं तो वो झेल भी जाती लेकिन उल्टियाँ की संख्या जब छः सात बार हो गई तो वो निढ़ाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी उसकी हालत देखकर पुरोहितन घबरा गई और पुरोहित जी से बोली.....
सुनो जी! अब जाग भी पड़ो देखो तो बिटिया की हालत कैसी हो गई है उल्टियाँ करते करते।।
अरे,तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं जगाया? मैं फौरन ही डाक्टर बाबू को बुला लाता,पुरोहित जी बोले।।
तो फौरन जाओ और उन्हें बुलाकर लाओ,देखो ना बिटिया कैसी निढ़ाल सी बिस्तर पर पड़ी है?पुरोहितन बोली।।
तुम हिम्मत रखो,बस मैं अभी डाक्टर बाबू को लेकर आया,पुरोहित जी बोले।।
और कुछ ही देर में पुरोहित जी सोमनाथ के संग घर में हाजिर हुए,पुरोहित जी सोमनाथ को कजरी के पास ले गए ,सोमनाथ ने कजरी की जाँच की और उसकी हालत देखकर बोले.....
लगता है शरीर में पानी की बहुत कमी हो गई है,आप जरा पानी उबालकर उसे ठण्डा करने रख दे,फिर हर आधा घण्टे में ये पाउडर घोल कर पिलाते रहे,मैं तब तक इन्जेक्शन लगा देता हूँ जल्दी आराम लग जाएगा,कुछ दवा भी दिए देता हूँ,इन्हें खिला दीजिएगा,हो सकें तो मूँग की पतली दाल हर एक घण्टे मे देते रहिएगा,सारी हिदायतें देने के बाद सोमनाथ ने कजरी को इन्जेक्शन लगा दिया और बोला....
घबराने की बात नहीं,अब ये बिल्कुल ठीक हैं,शरीर से पानी कम होने पर काफी कमजोरी आ गई है,बस खाने पीने पर ध्यान रखिएगा,मैने जो बताया वो जरूर खिलाते रहिएगा,मैं सुबह फिर एक बार इन्हें देख जाऊँगा और इतना कहकर सोमनाथ चला गया।।
रातभर पुरोहितन और पुरोहित कजरी की सेवा करते रहते,जब कजरी को आराम लग गया तो वो सो गई और कजरी के साथ वो दोनों भी वहीं जमीन पर सो गए,सुबह सुबह किसी ने दरवाजा खटखटाया तो पुरोहितन की आँख खुली और दरवाजा खोलकर देखा तो सोमनाथ खड़ा था,सोमनाथ को खड़ा हुआ देखकर पुरोहितन बोली....
डाक्टर बाबू! आप! आइए...आइए...भीतर आइए...
मैं तो मरीज को देखने चला आया था,फिर काम में फँस गया तो दिनभर निकल नहीं पाऊँगा,अब कैसीं हैं वो? सोमनाथ ने पूछा।।
अब तो ठीक है,सो रही है,पुरोहितन बोली।।
तो मैं फिर मैं जाता हूँ,उन्हें सोने दीजिए,शाम को देखने आ जाऊँगा और इतना कहकर सोमनाथ जाने लगा तो ...
पुरोहितन ने उसे टोकते हुए कहा....
कल तो मैं आपको जलपान के लिए भी नहीं पूछ पाई,परिस्थिति ही ऐसी थी लेकिन अभी तो आपको जलपान करके ही जाना होगा,बस थोड़ी ही देर में बना जाता है,आप बस थोड़ी देर बैठिए।।
आप मेरी माँ समान हैं ,आपका कहा भला कैसे टाल सकता हूँ और इतना कहकर सोमनाथ भीतर आ गया...
पुरोहितन ने जल्दी से चूल्हा सुलगाया,मिट्टी की हाँण्डी में आलू की तरकारी छौकीं और दूसरे चूल्हे में कढ़ाई चढ़ाकर उसमें तेल डालकर आधा गूथने बैठ गई,थोड़ी ही देर में गरमागरम पूरियों के साथ आलू की तरकारी और आम के अचार के साथ डाक्टर बाबू की थाली सँज चुकी थी।।
तब तक पुरोहित जी भी जागकर डाक्टर बाबू के साथ बातें करने लगें थें,पुरोहितन थाली लेकर पहुँची तो डाक्टर बाबू बोले....
अम्मा जी! इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या जरूरत थी?
तकलीफ़ कैसी बेटा? तुम तो हम गाँववालों के लिए भगवान का रूप लेकर आएँ हो नहीं तो पहले ना जाने कितने ही लोंग बिना इलाज के भगवान के पास चले जाते थे,पुरोहितन बोली।।
अम्मा जी! ऐसा क्यों कहतीं हैं? ये तो मेरा सौभाग्य है कि आप लोगों की सेवा करने का मुझे मौका मिला है,डाक्टर बाबू बोले।।
अच्छा! पहले आप खाना शुरू कीजिए वरना सब ठण्डा हो जाएगा,पुरोहित जी बोले।।
और पुरोहित जी की बात सुनकर सोमनाथ खाने लगा फिर एकाएक बोला....
खाना तो बहुत अच्छा है अम्मा जी! लेकिन ध्यान रहें मरीज को अभी ये सब मत दीजिएगा।।
ठीक है बेटा,अभी दो दिन तक मैं उसे केवल मूँग की दाल,खिचड़ी और छाछ बस पिलाने वाली हूँ,पुरोहितन बोली।।
हाँ! अम्मा जी बिल्कुल सही,सोमनाथ बोला।।
तब तक कजरी भी जाग गई थी और सबकी बातें सुन रही थी और जागकर बाहर आकर बोली....
अम्मा! प्यास लगी है।।
हाँ! बेटी! अभी लाई,मैने पानी उबालकर उसे ठण्डा करके मटके में भर दिया था,तू अभी उबला हुआ पानी ही पी, ले पी ले,पुरोहितन मटके में से पानी निकालते हुए बोली।।
खाना खाकर डाक्टर बाबू ने कजरी की जाँच की तो बोले...
अब बिल्कुल ठीक है,बस दो दिन तक कुछ भी भारी खाना मत दीजिएगा,पानी वाली चींजें खिलाते और पिलाते रहिए ,कजरी की जाँच करने के बाद डाक्टर बाबू चले गए।।
कितने अच्छे इन्सान है,बोलते वक्त मुँह से तो जैसे फूल झड़ते हैं,पुरोहितन बोली।।
मैं ना कहता था कि बहुत ही अच्छे दिल के हैं डाक्टर बाबू,पुरोहित जी बोले।।
हाँ....हाँ....उनका बखान हो गया हो तो अपनी बेटी की भी कुछ फिकर कर लो,मेरा खाना भी बंद करवा कर चले गए,बड़े आए डाक्टर बने फिरते हैं,कजरी बोली।।
तू तो पगली है री! कुछ नहीं समझती,पुरोहितन बोली।।
हाँ....हाँ....मैं तो अब पगली ही लगूँगी,तुम्हें समझदार डाक्टर बाबू जो मिल गए हैं,कजरी बोली।।
कैसीं बातें करती है बिटिया! चलो अच्छा मैं कुएँ पर नहाकर आता हूँ,और पुरोहित जी इतना कहकर नित्यकर्म के लिए चले गए,उधर पुरोहितन भी बोली....
आज बिना नहाएं रसोई चढ़ा दी,भगवान माफ करना लेकिन डाक्टर बाबू को भी ऐसे नहीं जाने देना चाहती थी,वें क्या सोचते? और इतना कहकर पुरोहितन भी स्नान करने चली गई।।
कजरी जाकर फिर से अपनी चारपाई पर जाकर लेट गई और सोचने लगी....
ना जाने उसके सुन्दरबाबू कैसें होगें? बिमारी में और भी ज्यादा उनकी याद आ रही है,काश मेरे पास पंख होते तो मैं उनके पास उड़कर पहुँच जाती,जेल में ना जाने उनके ऊपर क्या बीत रही होगी? मेरी खातिर उन्होंने अपनी जिन्दगी बर्बाद कर दी,वें ना बाँकें का खून करते और ना उन्हें जेल जाना पड़ता,मैं ही तो उनकी बरबादी का कारण हूँ,किस मुँह से मैं उनसे मिलने जाऊँ और ये सोचते सोचते,कजरी की आँखों की कोरें गीली हो आई फिर वो तकिया में मुँह छुपाकर फूट फूटकर रो पड़ी।।
कजरी अपना दुःख सबके सामने कभी भी जाहिर ना होने देती लेकिन अंदर ही अंदर उसके मन में गहरी पीड़ा रहती,जिसे वो हमेशा अपनी हंँसी में छुपाए रहती ।।

ऐसे ही एक रोज पुरोहित जी को ताप चढ़ आया,डाक्टर बाबू ने जाँच करते हुए कहा.....
आपको मलेरिया हो गया है,आप घर जाकर केवल आराम कीजिए,यहाँ के काम की चिन्ता मत कीजिए।।
लेकिन डाक्टर बाबू! आप अकेले सब कैसे सम्भाल पाएंगे? पुरोहित जी ने पूछा।।
मैं सब सम्भाल लूँगा,आप बस आराम कीजिए,सोमनाथ बोला।।
पुरोहित जी उदास से घर आ गए और पुरोहितन से बोले....
डाक्टर बाबू ने घर भेज दिया,बोले मलेरिया हुआ है आराम की सख्त जरूरत है।।
बेचारे डाक्टर बाबू वहाँ अकेले लगें रहेंगें,पुरोहितन बोली।।
अब क्या करूँ? मजबूरी है,पुरोहित जी बोले।।
तो ऐसा क्यों नहीं करते? कजरी को उनके साथ काम पर लगा दो,जब तक तुम ठीक नहीं हो जाते,पुरोहितन बोली।।
कैसी बातें करती हो?सयानी लड़की का वहाँ जाना ठीक नहीं लगेगा,लोंग हजार तरह की बातें करने लगेगें,पुरोहित जी बोले।।
ये भी तुम ठीक कहते हो,पुरोहितन बोली।।
वैसे भी डाक्टर बाबू ने कहा है कि वें सम्भाल लेंगें,पुरोहित जी बोले।।
ऐसे ही एक दो रोज बीते थे कि पुरोहित जी खुद की जाँच करवाने डाक्टर बाबू के पास पहुँचे तो देखते हैं कि सब अस्त-ब्यस्त पड़ा है,कोई भी दवाई की शीशी करीने से नहीं लगी है,डाक्टर बाबू मरीजों को सम्भालें कि सामान लगाएं,पुरोहित जी को ये सब देखकर बिल्कुल भी अच्छा ना लगा और घर आकर कजरी से बोले....
बेटी! तू दो चार रोज के लिए डाक्टर बाबू की मदद कर दें,वें अकेले सम्भाल नहीं पा रहे हैं,बस तू दवाइयांँ ही करीने से लगा दिया कर ,थोड़ी सफाई कर दिया कर तो उनकी काफी मदद हो जाएगी।।
पुरोहित जी की बात सुनकर कजरी वहाँ जाने को राजी हो गई,वो पूरे दिन तो वहाँ ना रहती लेकिन शाम सुबह चली जाती और सामान को करीने से लगा आया करती,दवाइयों की शीशियाँ ब्यवस्थित कर देती,सफाई कर देती,इतनी मदद सोमनाथ के लिए काफी थी....
एक रोज कजरी मरीजों के बैठने वाली बेंच पर चढ़कर अलमारी में सामान लगा रही थी,उसने ये ध्यान नहीं दिया कि बेंच का एक पायाँ कमजोर है,वो जमीन पर ठीक से टिकता भी नहीं था,बस फिर क्या था पायें पर जोर पड़ा और वो चट्ट की आवाज़ के साथ टूट गया,कजरी जमीन पर आ गिरी और उसके पाँव में चोट लग गई,तब डाक्टर बाबू बाहर बैठे थे आवाज सुनकर भीतर आएं और गुस्से में बोलें...
जरा सी अकल नहीं है,बेंच पर चढ़कर सामान रख रही थीं,कुर्सी भी तो पड़ी थी उस पर भी तो चढ़कर काम किया जा सकता था....
कजरी ने डाँट सुनी तो उसकी आँखों से झरझर आँसू बह निकले , उसने वहाँ से जाने के लिए उठने की कोशिश की लेकिन दर्द से कराह उठी और वो फिर वहीं जमीन पर जा बैठी....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....