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अनजान रीश्ता - 74

अविनाश गहरी नींद में सोया हुआ था की तभी कोई उसका नाम पुकार रहा है ऐसा उसे लग रहा था । लेकिन उसे लग रहा था कि शायद यह उसका सपना है । इसीलिए वह तकिया कान पर रखकर सो जाता है । लेकिन फिर भी आवाज बंद नहीं होती इसलिए वह आंखे खोलते हुए देखता है तो पारुल थी । जो उसे पुकार रही थी । अविनाश फिर से तकिए पर सिर रखते हुए आंखे बंद करते हुए कहता है ।

पारुल: शहहह!! ( उंगली से अविनाश को छूते हुए ) अविनाश... अविनाश... गधे कहीं के अपना ये हाथी जैसे हाथ उठाओ मेरी कमर से ।
अविनाश: क्या है! वाईफी क्यों इतनी सुबह सुबह अपनी बेसुरी आवाज से सबका दिन बिगाड़ रही हो!? ।
पारुल: ( गुस्से में तकिया अविनाश के सिर पर फेकते हुए बेड के साईड में खड़ी होते हुए कहती है ।) बेशर्म इंसान तुम्हारा हाथ मुझ पर था और पाव भी हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझे छूने की !!? ।
अविनाश: ( सोते हुए पारुल की ओर देखते हुए ) अच्छा! वो अब क्या है ना! नींद में तो पता नहीं चलता की मैं क्या कर रहा हूं वर्ना आई स्वेर!! मेरी पसंद इतनी खराब नहीं है की तुम्हे टच करना भी पसंद करू ( मासूम सी शक्ल बनाते हुए ) ।
पारुल: ( अविनाश की बात सुनकर पारुल का मुंह खुला का खुला रह जाता है। वह मानो उसे खींच के एक तमाचा मारना चाहती थी । वह अविनाश को घूरे जा रही थी मानो जैसे आंखो से किसी का खून होता तो अविनाश कब का मर चुका होता । ) ।
अविनाश: वाईफी माना की तुम्हारा पति हेंडसम है। पर इतनी सुबह सुबह रोमांटिक होना अच्छी बात नहीं है । ( अपने पास बेड पर हाथ पटकते हुए ) आओ अब सो जाओ !! ? ।
पारुल: ( अपने हाथ मुठ्ठी में बंद करते हुए ) घटिया इंसान तो तुम हो ही लेकिन निहायती बेहूदा भी हो।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए खड़े होते हुए ) ( आलस को दूर करते हुए ) आआहह!!! क्या वाईफी इतनी सुबह सुबह नींद खराब कर दी !!।
पारुल: ( आंखे आश्चर्य में बड़ी हो जाती है । अविनाश ने शर्ट नहीं पहना हुआ था । और पैंट भी घुटनो तक ही की थी । ) ( दूसरी ओर घूमते हुए ) ... बेशर्म इंसान... ये कौन-सा तरीका है ऐसे बिना कपड़े पहने आधे नंगे सोने का!?।
अविनाश: ( शयतानी मुस्कुराहट के साथ पारुल के करीब जाते हुए ) क्या!? इसमें क्या ही बुराई है!? इनफेक्ट काफी हॉट लग रहा हूं!? या फिर तुम जेलस हो की कहीं मुझे इस हॉट लुक मैं कोई देख ना ले!? ।
पारुल: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) हां हां! जैसे दूसरे लड़के तो मर ही गए है!! इस दुनिया में जो में देखूंगी!!।
अविनाश: ( मुस्कुराहट गायब हो जाती है! वह पारुल को पीछे से गले लगाते हुए , पारुल के कंधे पर सिर रखकर कहता है। ) वाईफी टू बेड! पहली बात अब तो तुम चाहकर भी किसी को देख नहीं सकती क्योंकि अविनाश खन्ना तुम्हारी लाइफ में है। दूसरी बात अपना मन बहला ने के लिए तुम मेरी हॉटनेस को नकार सकती हो बाकी ये बात हम दोनो ही जानते है की तुम्हारा दिल कितनी जोर से धड़कता है जब में करीब होता हूं । तुम कहो तो एक डेमो दिखा सकता हूं।
पारुल: ( अविनाश के हाथ कमर से हटाने की कोशिश करते हुए उसकी ओर देखती है तो वह पारुल की ओर ही देख रहा था। ) तू.... म.... मैं....।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) तुम... क्या!? ( आइब्रो ऊपर करते हुए ) ।

पारुल कुछ बोलने ही वाली होती है की तभी दरवाजे के खटखटाने की आवाज आती है । जिससे पारुल अविनाश को कोहनी मारते हुए दूर हो जाती है ।

अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) कम इन... ।
रमा: सर वो मेम और आपके कपड़े आ गए है ।
अविनाश: ठीक है उन्हे अंदर भेज दो । रमा ये लहंगा चोली क्लीनिंग में भिजवा दो!!।
पारुल: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखते हुए सोचती है की लहंगा!! लेकिन लहंगा तो मैने!!!?) (अपने कपड़ों की ओर देखते हुए ) मेरे कपड़े किसने बदले!! डोंट टेल मि!! नो नो!!! ( आंखे बंद करते हुए ) ।
रमा: यस सर!! । ( कपड़े ले जाते हुए )।
अविनाश: जाते हुए दरवाजा बंद करती जाना ।
रमा: जी ।
पारुल: ( गुस्से में आग बबूला होते हुए ) मेरे! कपड़े किसने बदले!!? ।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए,कोई जवाब दिए बिना बाथरूम की ओर आगे बढ़ रहा था । ) ।
पारुल: ( अविनाश का हाथ थामते हुए ) उल्लू के पट्ठे मैं तुमसे बात कर रहीं हूं!! मैने कहां मेरे कपड़े किसने बदले!।
अविनाश: ( मासूम सा चेहरा बनाते हुए पारुल की ओर मुड़ता है। ) ओह! सॉरी मैने सुना नहीं! क्या कह रही थी तुम!?।
पारुल: ( गुस्से में अविनाश को थप्पड़ मारने ही वाली थी की ) तुम.... ।
अविनाश: ( पारुल के हाथ को थामते हुए पीछे की और मोड़ देता है। पारुल को अपनी ओर खींचते हुए ) क्या! वाईफी!! इतना हक तो बनता ही है की मैं तुम्हारे हर सुख दुःख में काम आऊ!! आखिर पति हूं तुम्हारा नहीं! मैं तो बस अपना वचन निभा रहा हूं!! ।
पारुल: ( हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए ) हाथ छोड़ मेरा कमीने!! फिर में बताती हूं की क्या पति धर्म और क्या पत्नी धर्म!! ।
अविनाश: उप्स!! बेब अभी मैंने अपनी कमीनेपंती दिखाई ही कहां है। मैं तो बस अपना फर्ज निभा रहा था । उसमे इतना गुस्सा!! ।
पारुल: ( दांत को भिस्ते हुए ) निहायती घटिया, बेशर्म,लीचड़ आदमी हो तुम!!।
अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) तारीफ ले लिए शुक्रिया! पर ये मत भूलो अब तुम भी इस लीचड़,घटिया,बेशर्म आदमी कि वाइफ हो.. तो।
पारुल: आई हेट यू... आई हेट यू..... इतना गिरा हुआ इंसान मैने आज तक नहीं देखा जो किसी की मजबूरी का फायदा उठाए... । ( आंखों में आंसू आ जाते है। )
अविनाश: ( चहेरे के भाव बदल जाते है। गुस्से को काबू में करते हुए ) और देखोगी भी नहीं! और याद रहे! आज विशी आ रहा है! अगर उसे या किसी को भनक भी लगी की मैने ये शादी जबजस्ती की है तो और बहुत कुछ हो सकता है। कल रात की बात तो सिर्फ ट्रेलर थी । ये अपने छोटे से दिमाग में बिठा लेना।

अविनाश इतना कहने के साथ वह फ्रेश होने चला जाता है। पारुल उसे वही खड़े हुए जाते देख रही थी। मानो इस इंसान के साथ उसकी सुबह और रात रोते हुए निकलती है। वह खुद को कोश रही थी की इस इंसान को क्यों मिली थी । काश! ये बचपन में ना मिला होता तो शायद ये परिस्थिति देखने को ना मिलता । काश! वह समय में पीछे जाकर ऐसा कुछ कर पाती। दूसरी ओर अविनाश नहाने के बाद टावल लपेटते हुए खुद को कोश रहा था । इडियट इतना भी क्या अकड़ने की जरूरत थी । इतनी गिरी हुई हरकत करने की क्या ज़रूरत थी । सीधा सीधा नहीं बता सकते थे की तुम्हारी आंखे बंद थी और डॉक्टर ने कहां था इस वजह से कपड़े बदलने पड़े । लेकिन अविनाश का मन ही जवाब देते हुए कहता है.. क्यों!? अकड़ देखी है उसकी!! इसी लायक है वो!! भले अब खुद को कोसती रहे!! । मुझे क्या फर्क पड़ता है। अच्छा तुम्हे फर्क नहीं पड़ता । तो फिर क्यों!? डॉक्टर को चेक अप के लिए क्यों कहां ! बोलो!? । वो... वो... तो उसने विशी को कॉल करने में मेरी मदद की थी इसीलिए... मुझे किसी के अहसान पसंद नहीं। और खास करके उसका तो बिलकुल ही नहीं। हां! हां! भागते रहो! जितना भाग सकते हो! लेकिन भाग ने सच जूठ नहीं बन जाता! ।

अविनाश: ( चिल्लाते हुए ) शट अप इडियट दिमाग कहीं के!! चुप हो जा इतनी सुबह सुबह दिन बिगाड़ने का काम ना करो!! ।

वह बाथरूम से बाहर आता है तो देखता है पारुल कमरे में नहीं थी तो वह बालकनी की ओर देखता है। फिर अपने लॉन में लेकिन वहां पर भी नहीं थी। रूम का दरवाजा खोलते हुए... वह हॉल की और देखता है तो विशी और पारुल कुछ बाते कर रहे थे। और पारुल हंस रही थी । अविनाश आंखे बंद करके फिर से देखता है की कही ये उसका वहम तो नहीं की वह हंस रही है। लेकिन जब फिर से देखता है तो वह विशी के कंधे पे एक मुक्का मारते हुए उसे कुछ बात करते हुए मुस्कुरा रही थी। अविनाश के लिए ये नजारा तो जैसे कांटो भरा था । उसकी आंखे बिल्कुल डार्क हो गई थी। वह विशी और पारुल को ही देखे जा रहा था । जब ये नजारा बर्दाश्त के बाहर हो रहा था तब वह चिल्लाते हुए कहता है।

अविनाश: विशी!!! ।
विशी: ( पारुल और विशी दोनो ऊपर आवाज की दिशा में देखते हुए ) हेय! ब्रो!!! ।
अविनाश: ( हाथ के इशारे से ऊपर बुलाते हुए अपने कमरे में चला जाता है । ) ।
विशी: ( अविनाश के कमरे में आते हुए ) क्या! है भाई क्यों बुलाया मैं अच्छा खासा... ( अपनी बात करते हुए रुक जाता है। अविनाश की ओर देखते ही रह जाता है। वह बिल्कुल राक्षस की तरह मंडरा रहा था । मानो जैसे अभी किसी का खून कर देगा । ) ।
अविनाश: ये सुबह सुबह क्या खिलखिलाते हुए बाते चल रहीं थी! तुम्हे और कोई काम धंधा नहीं है। जो इतनी सुबह फालतू की बातें करने बैठ गए ।
विशी: ( अविनाश की ओर मुस्कुराते हुए देखता है ।) वैसे अवि!! कहीं से जलने की बदबू आ रही है । नहीं!? ।
अविनाश: ( मुंह बिगाड़ते हुए ) हांअ!? क्या बकवास कर रहे हो!? ।
विशी: माय! माय! मैने ये नहीं सोचा था! की अविनाश खन्ना भी कभी इनसिक्योर! फिल करेगा! ।
अविनाश: बातो को घुमाना बंद करो!! और सीधा मुद्दे पे आओ!।
विशी: मतलब यू आर डीपली इन लव ब्रो!! तुम तो गए काम से । वैसे कल रात तुमने कहां था तब मुझे कुछ गडबड लग रही थी पर नाऊ आई बिलीव यू मेन!! ।
अविनाश: ( गुस्से में ) अनाप शनाप बातें बंद करो और गाड़ी निकलवाओ!! मैं पांच मिनिट में नीचे आ रहा हू।
विशी: पर!?।
अविनाश: ( आंखो से विशी की ओर देखता है। जिससे वह अपना मुंह बंद करते हुए कमरे से बाहर चला जाता है। )।

अविनाश गुस्से में खुद को कोशते हुए कहता है। संभालो खुद को अविनाश खन्ना!! भूलो मत की तुमने किस वजह से शादी की है। बदला!! सिर्फ और सिर्फ बदला! तो उसके अलावा और कोई भी भाव नहीं होना चाहिए । हंसते हुए... हाहाहाहाहा... वैसे कुछ नुकसान भी तो नहीं हुआ है । एटलिस्ट विशी का शक दूर तो हो गया चलो अच्छा ही हुआ ।