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तेरी कुर्बत में - (भाग-1)

संचिता जो कि 12थ क्लास में पढ़ने वाली लड़की है । छुट्टी की असमेंबली में खड़ी , एक लड़के को देख रही थी । असेंबली खत्म होते ही , वो उस लड़के के पास आई , जो लगभग नींद में चल रहा था । वो उसी की क्लास का लड़का था , लेकिन वो बी सेक्शन में था और संचिता ए सेक्शन में । लड़का किसी तरह भारी कदमों से चलते हुए गेट तक आया , पर उसका पैर अपने ही पैर में उलझ गया और वह गिरने को हुआ , कि उसी के पास आ रही संचिता ने उसे भाग कर पकड़ लिया और गिरने से बचा लिया । लड़का अधखुली आंखों से उसे देखने लगा और खुद को उसकी पकड़ से छुड़ाते हुए बोला ।

लड़का - प्लीज लीव मी । आई विल मैनेज ।

संचिता - ऋषि ....., ऐसे कैसे मैं तुम्हें छोड़ दूं?? तुम ठीक से चल भी नही पा रहे हो ।

ऋषि से इस वक्त कुछ बोला ही नहीं गया , क्योंकि उसे सच में नींद के झटके आ रहे थे । क्योंकि वो रात भर पढ़ाई कर रहा था , अपने आज के टेस्ट के लिए । दोनों ही काफी होशियार थे , हमेशा अपनी क्लास में अव्वल आने वाले । इस लिए ऋषि अपनी पोजीशन क्लास में बनाए रखने के लिए हमेशा से इतनी ही मेहनत करता था । इसी के चलते उसे खूब नींद आ रही थी , क्योंकि सोया तो वो कल से था नहीं । संचिता ने उसे चुप देखा, तो स्कूल के मेन गेट के बाहर लगी हुई सीमेंट की चेयर में उसे बैठा दिया । और अपने बैग से पानी की बॉटल उसकी तरफ बढ़ाई और कहा ।

संचिता - लो...., अच्छे से अपना मुंह धो लो , फ्रेश फील करोगे । पानी पीने लायक है , पी भी लेना । ठीक लगेगा तुम्हें ।

ऋषि ने ऐसा ही किया । मुंह धोकर पानी पीकर वह वापस चेयर में बैठ गया । संचिता ने अपना स्कार्फ अपने बैग से निकाला और उसके चेहरे का पानी साफ करने के लिए उसने अपने हाथ बढ़ाए , लेकिन उससे पहले ही ऋषि ने उसे हाथ दिखाकर रोक दिया । संचिता ने उसे सवालिया निगाहों से देखा , तो उसने अपनी जेब से अपना रुमाल निकालकर कहा ।

ऋषि - मैं खुद से ये कर सकता हूं । तुम अपने पास रखो अपना स्कार्फ , मेरे पास मेरी हैंकी है ।

संचिता ने कुछ नहीं कहा । लेकिन उसका मन जाने क्यों उदासी से घिर गया । ऋषि बहुत ही ज्यादा गंभीर और लड़कियों से हमेशा दूरी बनाकर रखने वाला लड़का था । वह न ज्यादा बोलता था और न ही ज्यादा किसी चीज में इंवॉल्व होता था । सिर्फ अपने काम से काम रखता था और खुद में ही रमा रहता था । उसे न किसी के साथ और न ही किसी के फ्रेंडशिप की जरूरत थी । कई लोग उसे रूड और घमंडी कहते थे , लेकिन उसे कभी कोई फर्क नही पड़ता था , या ये कहें उसने कभी लोगों की बातों पर ध्यान दिया ही नहीं था । उसे अपना काम खुद करना पसंद था , किसी की भी हेल्प लेना उसे पसंद नहीं था । ये आज पहली बार था , जब उसने किसी की हेल्प ली थी । शायद ये उसकी मजबूरी थी , लेकिन अब वह इससे ज्यादा हेल्प नही लेना चाहता था । इसी लिए उसने संचिता को मना कर दिया था । और लड़कियों से दूर भागने वाले लड़के , कभी भी लड़कियों से हेल्प लेना पसंद नहीं करते । क्योंकि शायद उन्हें लगता है , कि कहीं लड़कियां उनसे ज्यादा एक्सपेक्टेशंस न रख लें और वो उनकी एक्सपेक्टेशंस पर खरे न उतर पाएं । साथ ही कहीं वे अपने गुस्से और चिड़चिड़े पन के चलते उनकी इंसल्ट न कर दें , और सच कहूं...., ऐसे लड़कों से अगर किसी लड़की की इंसल्ट होती है न , तो वे खुद को कभी माफ नहीं कर पाते । इसी लिए वे हमेशा दूर भागते हैं ऐसी परिस्थितियों से । ऋषि भी संचिता से दूर भाग रहा था । लेकिन संचिता को उसे परेशान देख कर अच्छा नहीं लग रहा था । उसने हिम्मत कर ऋषि से कहा ।

संचिता - तुम घर कैसे जाओगे..???

ऋषि - थोड़ी देर बाद जब ठीक महसूस होगा , तो चला जाऊंगा । बाइक रखी है मेरी पार्किंग में ।

संचिता ( उसकी हालत देखकर बोली ) - तुम्हें बुरी तरह नींद के झटके आ रहे हैं , लगता है तुम रात भर सोए नहीं हो । एक काम करो , मेरे साथ चलो , मैं तुम्हें ऑटो से तुम्हारे घर छोड़ दूंगी ।

ऋषि ( बिना उसकी तरफ देखे ) - इसकी जरूरत नहीं है । मैं खुद चला जाऊंगा , कुछ वक्त बाद ।

संचिता - ठीक है , तो मैं भी यही रहूंगी , जब तक तुम अपने घर नहीं चले जाते ।

ऋषि ( इरिटेट होकर ) - ये क्या है संचिता ..??? प्लीज डोंट डू दिस ।

संचिता - सॉरी ...। बट मैं किसी को तकलीफ में देखकर , उसे उसके हाल पर छोड़कर नहीं जा सकती ।

ऋषि ( चिढ़कर ) - फाइन । बैठो, मुझे क्या ।

संचिता कुछ नही बोली । लगभग पंद्रह से बीस मिनट तक दोनों एक दूसरे से दूरी बनाकर , उस बड़ी सी चेयर के दोनों छोर में बैठे रहे । ऋषि के लिए अब आखें खोलना मुश्किल हो रहा था और संचिता से ये देखा नही जा रहा था । उसने उठते हुए कहा ।

संचिता - तुम ऐसे कब तक बैठे रहोगे..??? तुमसे तो अपनी आखें तक नहीं खोली जा रहीं । मानो मेरी बात , मैं छोड़ देती हूं तुम्हें तुम्हारे घर ।

ऋषि ( नजरें जमीन में गड़ाए ) - नो....। मैं नहीं जाऊंगा तुम्हारे साथ ।

संचिता ( गुस्से से ) - क्यों..???? मेरे शरीर में कांटे लगे हैं या मेरी जुबान में..??? ( ऋषि कुछ नही बोला ) देखो...., तुम अब ज्यादा ही कुछ नखरे कर रहे हो । हम लड़कियां तो फालतू बदनाम हैं , सबसे ज्यादा नखरे तो तुम लड़कों के होते हैं ।

ऋषि ( चिढ़कर ) - मैं लेक्चर सुनने के मूड में बिल्कुल भी नही हूं ।

संचिता ( कुछ देर सोचकर ) - ओके..., फाइन । एक काम करो....., तुम मुझे अपने घर का नंबर दो । मैं अंदर किसी टीचर से या फिर ऑफिस में से किसी से तुम्हारे घर वालों को कॉल करवा देती हूं ।

ऋषि - कोई जरूरत नहीं है । मुझे किसी से हेल्प लेने की आदत नहीं ।

संचिता - मर जाओगे यहीं पड़े - पड़े । अगर तुम्हें मैं यहां अकेला छोड़ कर गई तो । वैसे भी बड़े लोगों की औलादों के सिर पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है । हो सकता है , तुम भी ऐसे ही किसी खतरे के शिकार न हो जाओ ।

ऋषि अब भी कुछ न बोला । क्योंकि शायद वो भी कुछ हद तक संचिता की बातों से इत्तेफाक रखता था । संचिता अब इरिटेट हो रही थी और ऋषि को इस हालत में छोड़कर जाने का उसका बिल्कुल भी मन नहीं था । ऋषि के साइड से जब कोई जवाब न आया , तो उसने कहा ।

संचिता - तुम बैठो यहीं । तुम्हारे घर वालों का नंबर तो होगा ही स्कूल में रजिस्टर्ड , तो मैं ऑफिस जाकर कॉल करवाती हूं । क्योंकि दिनभर तो तुम यहां नहीं बैठे रह सकते , वो भी इस हाल में ।

संचिता अपनी बात कहकर स्कूल के अंदर की तरफ बढ़ गई । मुश्किल से दो या तीन कदम ही चली होगी , के तभी उसके कानो में ऋषि की आवाज़ पड़ी ।

ऋषि - मेरे लिए इतना सब करने की कोई सटीक वजह ????

ऋषि की बात सुनकर संचिता के कदम एकाएक रुक गए । दिल में एक हलचल सी मच गई । ऐसा लगा , जैसे बहुत बड़ा कोई तूफान उसके सीने में चल रहा हो और जो खुद उससे ये सवाल कर रहा हो और वो क्या जवाब दे अपने अंतर्मन को , समझ नही आया उसे । कुछ पल रुकने के बाद उसने कहा ।

संचिता - दोस्त की मदद करने के लिए किसी वजह की जरूरत नहीं होती ।

ऋषि - लेकिन हमारा दोस्ती का रिश्ता कब बना???

संचिता ( उसकी ओर पलटकर ) - इंसानियत का रिश्ता तो है न हमारे बीच??? जो हर इंसान निभा सकता है !

ऋषि उसकी बात सुनकर चुप पड़ गया । उसके जवाब ने ऋषि को निःशब्द कर दिया था । संचिता ने एक नज़र उसे देखा और फिर स्कूल के अंदर पहुंच गई । ऑफिस में कुछ टीचर थे । उसने ऋषि के क्लास टीचर को देखा , तो उनके पास गई और उन्हें ऋषि की हालत का हवाला देकर उसके घर कॉल करवाया । ऋषि की मम्मी ने कॉल उठाया , तो संचिता ने सारी बातें उन्हें बता दीं और कहा , कि "जल्द से जल्द उसे लेने के लिए भेजिए किसी को" । संचिता बाहर आ गई और ऋषि से आते ही कहा ।

संचिता - तुम्हारी मां को सब बता दिया है मैंने , वो भेजती ही होंगी किसी को ।

ऋषि - तो फिर अब तुम जा सकती हो ।

संचिता - जब तक तुम्हें लेने कोई आ नही जाता , मैं नहीं जाऊंगी ।

ऋषि - पर क्यों???

संचिता ( दोबारा चेयर के दूसरे कोने में बैठते हुए बोली ) - हर क्यों का जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझती । और जिस तरह के तुम इंसान हो और जैसा रिएक्ट कर रहे हो , सब अच्छे से समझती हूं । बस मैं बेवजह बहस नहीं करना चाहती । भलाई इसी में है तुम्हारी , तुम चुप चाप बैठे रहो ।

ऋषि ( कुढ़ कर बड़बड़ाया ) - अजीब जबरदस्ती है ।

संचिता बस मन ही मन मुस्कुरा दी , क्योंकि उसका बड़बड़ाना उसने सुन लिया था । कुछ देर बाद ऋषि के यहां से कार आई और उसमें से एक ड्राइवर ने आकर, सहारे से ऋषि को उठाया और ले गया । जब तक ऋषि की कार संचिता के आंखों से ओझल नहीं हो गई , तब तक वो उसे जाते देखती रही । फिर अपने घर चली गई ।

क्रमशः