Teri Kurbat me - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-11)

संचिता की दोस्ती के प्रपोजल पर ऋषि उसे हैरानी से देखने लगा । तो संचिता को बड़ा अजीब लगा । वह बोली ।

संचिता - क्या हुआ??? ऐसे क्यों देख रहे हो???

ऋषि - नहीं , वो बस ....., कभी मैंने दोस्त नहीं बनाए न , तो इसी लिए शॉक्ड हूं थोड़ा ।

संचिता ( उदासी से अपना हाथ वापस खींचते हुए बोली ) - हम्मम , ये भी है । कोई नई...., चल जाएगा......।

वह अपना वाक्य पूरा करती , उससे पहले ही ऋषि ने उसका वापस जाता हाथ पकड़ लिया और कहा ।

ऋषि ( मुस्कुराते हुए ) - पर कहीं से तो शुरुवात करनी ही पड़ेगी , फिर क्यों न तुमसे ही सही ।

संचिता के उदास से चेहरे पर चमक आ गई , वह मुस्कुरा दी । उसने भी ऋषि से हाथ मिलाया ।

ऋषि - अब ठीक..???

संचिता ( मुस्कुराकर ) - हां...। वैसे अच्छा ही है न , जो हम अब दोस्त बन गए । अब बातें करना थोड़ा आसान हो जाएंगी ।

ऋषि ( झिझकते हुए बोला ) - मुझे दोस्ती निभानी नहीं आती , क्योंकि कभी भी मैंने दोस्त नहीं बनाए । और न ही मुझे फ्रेंडशिप के रूल्स पता हैं । तुम सिखाओगी न मुझे ये सब???

संचिता - ओफ्फो ऋषि । ये सब फालतू की बातें हैं । दोस्ती में कोई रूल रेगुलेशन नहीं होती , वरना वो दोस्ती नहीं बल्कि सौदा होता है । और मुझे दोस्ती में सौदा पसंद नहीं ।

ऋषि - ये भी बढ़िया है । लेकिन तब भी , कुछ तो मर्यादाएं होती होंगी , जैसे बाकी रिश्तों में होती हैं ।

संचिता ( उसकी तरफ देखकर ) - सच कहूं ऋषि !!??

ऋषि - हां , कहो ।

संचिता - मेरे हिसाब से दोस्ती जो होती है न , वो रिश्तों मर्यादाओं से काफी ऊपर होती है । ये एक ऐसी चीज है , जो न तो बंधनों में कैद है और न ही रिवाजों में । हम न दोस्ती में कभी खुद को बंद पिंजरे में कैद नहीं समझते , जैसे बाकी के रिश्तों में रहा जाता है । काफी हल्का सा लगता है हमें इस दोस्ती जैसी चीज़ में । हम जब किसी को दोस्त बनाते हैं न , तो उसे अगर दिल से दोस्त मानते हैं , तो उससे अपनी सारी मुश्किलें, सारी परेशानियां शेयर करते हैं । इसी तरह सारी खुशियां भी हम अपने दोस्त से शेयर करते हैं । दोस्ती रूल्स रेगुलेशन से कहीं ऊपर होती है ऋषि । ये न ...... हर रिश्ते में समा सकती है , लेकिन हर रिश्ता इसमें नहीं समा सकता । अगर आपको अपने मन के अंदर का गुबार निकालना हो न , तो हमेशा दोस्त का सहारा लो , वो आपके सारे मन के अंदर बिखरे टुकड़ों को संभालने की ताकत रखता है । और न.... एक सच्चा दोस्त किसी भी पल , किसी भी कीमत पर आपका साथ कभी नहीं छोड़ता । आप जब - जब जिंदगी में , अपने बगल में देखोगे न , तो आपको उस जगह हमेशा आपका दोस्त नज़र आएगा । एक सच्चा दोस्त अपनी जगह कभी नहीं छोड़ता ऋषि , कभी खाली नहीं होने देता वो अपनी पोजीशन को । और मुझे आज तक ऐसा कोई दोस्त मिला ही नहीं , और फ्यूचर का तो पता नहीं ।

ऋषि - तुम इतना सब दोस्ती के बारे में कैसे जानती हो???

संचिता - बस यूं ही । मुझे नोवेल्स , मोटिवेशनल थॉट्स पढ़ने का बहुत शौक है । साथ ही नई - नई चीज़ें जानना भी बेहद पसंद है । बस जब उन सबको पढ़ने लगी , जानने लगी , तो उन्हें महसूस भी करने लगी । तब समझ आया , कि असल में दोस्ती होती क्या है , इसके मायने क्या हैं । और अजीब बात बताऊं तुम्हें , हर किसी को एक अच्छा दोस्त नसीब नहीं होता । बहुत भाग्य से कोई अच्छा दोस्त मिलता होगा इंसानों को और उसे भी हम अपने अहम में कई बार खो देते हैं । और उन्हीं सब को महसूस कर मैंने जाना , कि मेरी लाइफ में दोस्तों की स्कूल में फौज होने के बाद भी , मुझे आज तक इन खूबियों वाला दोस्त नहीं मिला ।

ऋषि संचिता की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था । उसने कहा ।

ऋषि - इतनी कम उम्र में काफी कुछ सीख गई हो तुम ।

संचिता - वक्त परिस्थितियां सबको सबकुछ एक सही उम्र में सिखा ही देती हैं । शायद मेरी सही उम्र यही थी , ये सब सीखने की । पर अभी तो हमने जिंदगी जीनी सीखी है , अभी तो बहुत कुछ है हमारे सीखने लायक ।

ऋषि - हां , इस बात से तो मैं भी इत्तेफाक रखता हूं तुम्हारी । अच्छा वैसे संचिता...., तुम ये सारी बुक्स थॉट्स पढ़ने का टाइम कब निकालती हो , जबकि मेरे पास तो अपनी स्टडी मैटेरियल से ही वक्त नहीं निकलता ।

संचिता - वक्त खोजना पड़ता है ऋषि । ये हमें फ्री में कभी नहीं मिलता । इसकी कीमत बहुत बड़ी होती है , बस अगर हम समझ पाएं तो । वैसे मैं तुम्हें बता दूं , ये सब मैं तब पढ़ती हूं , जब मैं हद से ज्यादा अपना स्टडी मैटेरियल पढ़ते - पढ़ते बोर हो जाती हूं ।

ऋषि ( आश्चर्य से ) - टॉपर्स अपनी स्टडी की बुक्स से भी बोर होते हैं कभी..???

संचिता - बाकियों का नहीं पता , लेकिन मैं तो होती हूं एक वक्त के बाद इन सारी चीज़ों से बोर । तब मैं माइंड फ्रेश करने के लिए यही सब पढ़ती हूं । और जब मैं हद से ज्यादा उदास रहती हूं , जो कुछ तुम्हें उस दिन बताया , वो सब जब सहन नहीं होता था , तो या तो सो जाती थी , या फिर मैं यही सब पढ़ती थी । तभी कुछ हद तक संभल जाती थी , इन सबको पढ़कर ।

ऋषि - हम्मम , मतलब कि रीडिंग तुम्हारी हॉबी है ।

संचिता - कह सकते हो । ( फिर अपनी हैंड वॉच देखकर ) आई थिंक अब हमें चलना चाहिए । एग्जाम ओवर हुए काफी वक्त हो गया है । मेरे घर वाले मेरी राह देख रहे होंगे ।

ऋषि - यू आर राइट । चलो चलते हैं ।

दोनों उठकर जाने लगे , लेकिन तब ही ऋषि रूककर बोला ।

ऋषि - वेट !!!

संचिता ( उसकी तरफ मुड़कर ) - क्या हुआ???

ऋषि - काफी अच्छा लगा तुमसे दोस्ती कर और दोस्ती के मायने जानकर । शायद ये दोस्ती मुझे बहुत कुछ सिखाएगी ।

संचिता ( मुस्कुराकर ) - मुझे भी तुमसे दोस्ती कर अच्छा लगा । एंड सेकंड लाइन शायद मेरे लिए भी फिट बैठे ...., आई थिंक शायद दोनों के लिए ।

ऋषि उसकी बात पर हंस दिया । दोनों अपने - अपने घर चले गए । दोनों के दिलों में आज सुकून था । एक का गिल्ट खत्म हो चुका था , तो दूसरा इतने दिनों बाद सामने वाले को देखकर ही खुश था , और वो थी संचिता । कितना परेशान थी वह पिछले दिनों , ऋषि से न मिल पाने की वजह से । लेकिन अब उससे बात करने के बाद , वह काफी लाइट फील कर रही । दिल की बेचैनी से अब थोड़ी राहत मिली थी उसे। टोटली कहा जाए , तो इन दो महीनों के बाद आज इन दोनों के चेहरों पर मुस्कान आई थी , वो भी सच्ची वाली । ऋषि तो वैसे ही कम मुस्कुराता था , लेकिन सच्चे दिल से ही हमेशा मुस्कुराता था और आज शायद उसके लिए वही दिन था , सच्चे दिल से मुस्कुराने का दिन ।

क्रमशः