Hame tumse pyar kitna... - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

हमे तुमसे प्यार कितना.. - 1 - गहरी दोस्ती

एक घर के हॉल में ज़ोर ज़ोर से हसने की आवाज़ आ रही थी। चार लोग चाय की चुस्कियां लेते हुए हसीं मज़ाक कर रहे थे। आपको नही पता मेघना भाभी ये शेखर(मेघना का पति) के किस्से पूरे कॉलेज में मशहूर थे। हर लड़की इसपे मरती थी। अक्सर लड़कियां आके मुझसे इसका नंबर मांगती थी इससे ज्यादा तोह में ही परेशान हो जाता था। मेघना शेखर की तरफ देखती है। शेखर सकपका जाता है और कहता है यार महेश क्या बोल रहा है तू कौनसी बात लेके बैठ गया तू मुझे मरवाएगा। वोह इसलिए क्योंकि एक भी लड़की ने आपसे आपका नंबर नहीं मांगा इसलिए आप शेखर भैया से परेशान रहते थे, इस बार महेश की पत्नी रूपाली बोली और सब ठहाका लगा के हस पड़े। रूपाली मेघना से तुम ज्यादा मत सोचना महेश जी ऐसे ही शेखर भईया और तुम्हे परेशान कर रहे है। हां मेघना भाभी में तो बस शेखर को छेड़ रहा था ना तोह कभी शेखर ने किसी लड़की से सामने से बात की ना अपना नंबर दिया ये तो बस पढ़ाई पर ही ध्यान देता था तभी तो देखो आज सरकारी नौकरी लेके बैठा मस्त कमा रहा है और एक में हू जो प्राइवेट नौकरी में थक्के खा रहा हु। चल चल ज्यादा नौटंकी मत कर तुझे तो हमेशा से ही अपने पिताजी का बिजनेस संभालना था तू नौकरी तो काम सीखने के लिए कर रहा है, शेखर ने कहा। महेश भईया में सब जानती हूं मुझसे कुछ नही छुपा है आप दोनो के दोस्ती के किस्से भी और आप दोनो के शरारतों के किस्से भी। फिर एक बार हसीं के ठहाको से घर गूंज उठा। आप दोनो की दोस्ती को किसी की नज़र ना लगे आप दोनो की वजह से आज में मेघना भी बहुत अच्छी सहेली बन गए हैं। चलिए अब सभा समाप्त करते हैं विराज(रूपाली और महेश का एक साल का बेटा) ना उठ गया हो, रूपाली ने कहा। हां अगर उठ गया तो मां अकेली नहीं संभाल पाएंगी, महेश ने कहा। रूपाली ने सोफे से उठते हुए कहा अब तुम्हे आराम करना चाहिए मेघना ऐसे वक्त में ज्यादा देर बैठना ठीक नही है। हां सही कहा रूपाली तुमने, शेखर भाभी का ख्याल रखना अब तो बस ३ महीने ही बचे हैं फिर ये डिलीवरी में, फिर कान में फुसफुसाते हुए वैसे मुझसे टिप्स भी ले सकता है। इसकी कोई जरूरत नहीं है में तेरी भाभी और अपनी पत्नी का अच्छे से ध्यान रखता हूं और आगे भी रखूंगा, शेखर भी वैसे ही महेश के कान में फुसफुसाते हुए कहता है। रूपाली और महेश का घर जो की थोड़ी दूरी पे ही है वहां से अपने घर चले जाते हैं।

अजी सुनिए.....

जी कहिए.....

आप की गर्लफ्रेंड की लिस्ट में मेरा कौनसा नंबर है...

अरे तुम उस महेश की बात पे मत ध्यान दो.....वोह तो कुछ भी बोलता रहता है....

लेकिन उन्होंने आज पहली बार तो ऐसा नहीं बोला आप के गर्लफ्रेंड के किस्से तो उन्होंने कई बार सुनाएं हैं जरूर कुछ तो सचाई होगी.....रूपाली ने घूर के देखते हुए कहा

अरे कैसी बात कर रही हो तुम उसके जाल में मत फसो... मेरी सिर्फ एक ही गर्लफ्रेंड थी और वो सिर्फ तुम हो...पहली भी और आखरी भी...क्योंकि उस के बाद तो मैंने तुमसे शादी कर ली थी....

खूब समझती हूं में मुझे मत बहलाइए....मेघना अपने कमरे में जाते हुए कहती है।

ये महेश भी ना पता नही क्या मजा आता है इसे आग लगाने में(फुसफुसाते हुए)....मेघना के पीछे जाते हुए।
यार मेघना मेरी बात तो सुनो में ऐसा नही हू तुम तो जानती हो मुझे।

अरे अरे आप इतना परेशान क्यों हो रहें हैं में आपको भी अच्छे से जानती हूं और महेश भईया को भी... में तो बस मज़ाक कर रही थी...एक मज़ाक महेश भईया ने किया और एक मज़ाक मैने कर दिया।

मुझे लगा तुम....तो तुम सब के बीच इतनी चुप क्यों बैठी थी।

अरे वो तो मेरे कमर में बैठे बैठे दर्द हो रहा था तो बस शांत थी और आप सब की बातों के मज़े ले रही थी...मेघना ने बेड पर बैठते हुए कहा।

तुम भी ना मेघना ऐसी बात थी तो बताया क्यों नही....तुम पहले लेटो अभी थोड़ा आराम करो बाकी बातें बाद में ।

महेश का घर

मां जी विराज तो नही उठा....क्या वोह ठीक एस सो रहा है ना आपने देखा ना उसे...रूपाली ने घर में घुसते ही चिंतित होते हुए पूछा ।

सुनंदा शेखावत(महेश शेखावत की मां) ने अपनी बहु रूपाली को घूर के देखा जो की आंगन में चारपाई पे बैठी अपने लिए पान बना रही थी।
ये देख रूपाली की नज़र नीचे हो गई उसने कुछ कहना चाहा तभी सुनंदा जी की रौबदार आवाज़ सुनाई पड़ी,
रे म्हारा राम जी, जितनो फिकर तुझे है ना म्हारे लल्ला की उस्से कई ज्यादा म्हारे को है। अरे मयंक तो म्हारे कलेजे का टुकड़ों है तबी से तो वई सिरहाने बैठी थी अपनो लल्ला के अब पान बनाने भी ना आ सक्त हूं। वोह क्या कहत है हां दोनो ही म्हारी लाइफलाइन से।

रूपाली जानती थी की सुनंदा जी अपने पोते पे जान छिड़कती हैं और उनकी निगरानी में उनके पोते यानी रूपाली के नन्हे से मयंक पे एक खरोच भी नही आ सकती। पर फिर भी एक मां की फिक्र थी जो रूपाली मयंक का हाल पूछ बैठी। अब उसे समझ नही आ रहा था की अपनी सास की बातों से पीछा कैसे छुड़ाए नही तो आज भोली दादी रूपाली की क्लास लगाने के फुल तैयारी में है।

मां हम तो बस ऐसे ही पूछ रहे थे....रूपाली ने डरते डरते कहा।

अरे मां क्यों परेशान कर रहीं हैं आप अपनी बहु को....देखिए कैसे डर गई है....महेश ने पहले गाड़ी पार्क की फिर अंदर आते हुए जब अपनी मां को रूपाली पर मीठी झिड़क देते सुना तो कहा।

जाओ रूपाली मां के लिए एक कप चाय☕ तो बनाके लाओ....महेश ने रूपाली की तरफ मुस्कराते हुए कहा।

रूपाली भी मन ही मन अपने पति महेश का शुक्रिया करते हुए उन्हें एक नजर देखा फिर एक नजर अपनी सास पे डाली और अंदर चली गई। पहले उसने अपने बेटे मयंक को देख के तसल्ली की कि वो ठीक से सो रहा है इसके बाद अभी घटना याद करके मुस्कुराते हुए किचन में चली गई म्हारी भोली दादी के लिए चाय ☕ बनाने।

अरे मां आप भी जानती है और में भी जानता हूं की आप अपनी बहु से कितना प्यार करती हैं फिर भी एक भी मौका नहीं छोड़ती ताने मारने से...महेश ने अपनी मां के पास रखी हुई कुर्सी पे बैठते हुए कहा।

अरे म्हारी रूपाली तो लाखों में एक है म्हारा राम भी जानता है में अपनी बिंदनी को कितना प्यार करू लेकिन कभी कभी ऐसा करना पढ़ता है नही तो सासों की बिरादरी में म्हारी क्या इज्जत रह जाएगी ।😜😝🤪😛

अपनी मां की बात सुन के महेश ज़ोर ज़ोर से हस पड़ा ।😂😂😂😂😂

रसोई में रूपाली भी महेश की हसी सुन के समझ गई थी की जरूर उसकी भोली सास ने अपने भोलेपन में कुछ ऐसा कहा है की महेश जी भी अपनी खिलखिलाहट नही रोक पाए और ये विचार आते ही रूपाली भी मुस्कुराने😀 लगी और फिर दो कप कड़क अदरक वाली चाय ☕ के साथ हॉल में आ गई।

चाय का घूट लेते ही सुनंदा जी और महेश दोनो के मुंह से वाह निकला ।

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कुछ दिनों बाद

रूपाली जब बाज़ार से सब्जी ले रही थी अनान्यास ही उसकी नजर मेघना पर पड़ी। वोह दौड़ती हुई मेघना के पास आई और उसे फटकार लगाई ।

ये क्या मेघना कितनी बार कहा है बाहर नही निकलना है तुम्हे वोह भी अकेले तो बिलकुल नहीं....पहले रूपाली ने ये सुनिश्चित किया की मेघना किसके साथ आई है और जब उसे ये पता चला की वोह अकेली है तो खूब झाड़ लगाई। अगर कुछ सामान लाना था तो मुझसे कह देती तुम अकेली क्यों बाहर निकली और शेखर भईया वोह तो सब समान पहले ही ला देते है फिर क्या जरूरत थी ऐसे समय में अकेले बाहर जाना ठीक नही पता है ना डिलीवरी नज़दीक है तुम्हारी ऊपर से ट्विंस है तुम्हे तुम इतनी लापरवा कैसे हो सकती हो।
रूपाली जितना सुना सकती थी सुना रही थी मेघना को बोलने का मौका ही नही दिया...ये एक सच्ची सहेली की फिक्र थी जो उसकी चिंता में भूल गई थी की वोह अभी भी सड़क के किनारे खड़ी है और सब आते जाते उन्हें ही देख रहे हैं।

शांत हो जाओ रूपाली....में ठीक हूं...सब हमे ही देख रहे हैं।

तो देखने दो...

लेकिन....

चुप रहो तुमने काम ही ऐसा किया है...

में तो बस घर में बैठे बोर हो रही थी सोचा आज की सब्जी में ही ले आऊं...तो....

तो बस निकल आई...एक बार भी नही सोचा कितना रिस्की है....

अरे माफ करदो ... मेरी पहली और आखरी गलती समझ के....मेघना ने प्यार से रूपाली की तरफ देखा....

रूपाली ने झट से उसे गले लगा लिया और अपने साथ अपने घर ले गई और मेघना की एक भी नही सुनी।

रूपाली जब मेघना को लेकर घर आई तो सुनंदा जी ने भी मेघना को गले लगा लिया और प्यार से बैठाया।
आज तो रूपाली के साथ साथ सुनंदा जी, महेश , शेखर सबकी मीठी डांट मेघना को सुन्नी पड़ी। और अब उसे अफसोस हो रहा था क्यों हो गई वोह ।

सबने मिलके एक साथ रात का खाना खाया और सुनंदा जी की ढेर सारी हिदायतों के साथ शेखर और मेघना घर वापिस आ गए।

शेखर राठौड़ और महेश शिखावत दोनो ही कॉलेज में पहली बार मिले थे उन्होंने अपनी बैचलर्स और मास्टर्स की डिग्री साथ साथ ही ली। इन पांच सालों में दोनो की दोस्ती गहरी हो गई थी दोनो के दोस्ती के चर्चे पूरे कॉलेज में मशहूर थे दोनो की शादी के बाद दोनो की पत्नियां भी अच्छी सहेली बन गई थी। दोनो के घर में भी ज्यादा दूरी नही थी और दिल तो एक ही थे।

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एक रात

रात के २ बज रहे थे.....एक आदमी किसीको फोन मिला रहा था....घंटी जा रही थी लेकिन कोई दूसरी तरफ से फोन नही उठा रहा था.... टू टू की आवाज से फोन कट हो गया....वोह आदमी परेशान हो गया....उसके हाथ पांव ठंडे हो गए.....उसे समझ नही आ रहा था की क्या करे....साथ साथ वोह बिस्तर पर लेटी दर्द से कराह रही अपनी पत्नी का सिर भी सहला रहा था....उसका दर्द उससे बर्दाश्त नही हो रहा था....उसकी आंख से आंसू की धारा बह गई....ईश्वर को याद करते हुए उसने एक बार फिर उसी नंबर पे कॉल करने का सोचा....क्योंकि हॉस्पिटल में वोह कॉल कर चुका था अपने आने की खबर देने एंबुलेंस उसने इसलिए नहीं बुलाया था क्योंकि उसमे वक्त लग जाता कब एंबुलेंस आती और कब वो जाता इससे अच्छा तो वो गाड़ी से ही निकल जाए...उसने जैसे ही हाथ में पकड़े हुए फोन को देखा वोह तुरंत बज पड़ा...फोन उठाते ही वो लंबी लंबी सांसे लेने लगा...और अटकते अटकते बोला यार महेश जल्दी आ तेरी भाभी को लेबर पेन शुरू हो गए हैं....मुझसे उसका दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा....दूसरी तरफ बिना कुछ बोले फोन कट हो गया...और गाड़ी लेकर महेश और रूपाली दोनो आ गए....सुनंदा जी भी आना चाहती थी लेकिन विराज की वजह से रुक गई इतना छोटे बच्चे को हॉस्पिटल लेजाना ठीक नही....

गाड़ी में पीछे रूपाली की गोद में सिर रख के लेटी मेघना दर्द से तड़प रही थी....रूपाली उसको शांत करा रही थी और बार बार सिर सहला रही थी....
आगे बैठा शेखर अपनी पत्नी हाथ पकड़े उसे सांत्वना दे रहा था....बस हॉस्पिटल नज़दीक ही है हम पहुंचने वाले है....डॉक्टर को तो पहले ही सूचित कर दिया था वो भी आधी रात को हॉस्पिटल आ गई थी और डिलेवरी की तयारी में लगी थी.... महेश गाड़ी चला रहा था उसका ध्यान सिर्फ सड़क पे था बस जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचना था।

थोड़ी देर बाद....

डिलीवरी रूम के बाहर शेखर चक्कर काट रहा था....उसे मेघना की बहुत चिंता हो रही थी वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था....उसके दर्द में तड़प उसके दिमाग से निकल ही नही रही थी रूपाली और महेश भी चिंतित रूम के बाहर खड़े थे। बार बार घर से सुनंदा जी का भी फोन आ रहा था खुश खबरी सुनने। लेकिन अभी वक्त था।
शेखर की मां गांव में रहती थी लेकिन किसी कारण वर्ष वोह मेघना की देखभाल के लिए आ नही पाई....लेकिन उन्हें अभी मेघना के हॉस्पिटल में होने की खबर मिल चुकी थी वो भी ईश्वर से मेघना और उसके बच्चों के स्वस्थ होने की कामना कर रही थी।

तभी डिलेवरी रूम का दरवाज़ा खुला और डॉक्टर सुलोचना राव बाहर निकली और शेखर को बधाई देते हुए कहा....मां और बच्चे तीनो स्वस्थ है और आपको जुड़वा बेटियां हुई है....शेखर खुशी से झूम उठा और महेश के गले लग गया.... उन दिनों बेटे और बेटियों में बहुत फर्क किया जाता था.... सबको बस लड़के की आस रहती थी....ससुराल वालों से ताने भी औरतों को ही सुनने पढ़ते थे....लेकिन शेखर उनसे अलग एक सुलझा हुआ और समझदार व्यक्ति था....उसे लड़का हो या लड़की दोनो ही प्यारे थे....उसे विराज बेटे के रूप में मिल ही गया था अब बेटी भी मिल गई थी....विराज से वोह खूब लाड़ लगाता था अब अपनी बेटियों से भी लगाने वाला था.....शेखर के साथ साथ सभी खुश थे.....शेखर ने जब अपनी दोनो बच्चियों को पहली बार देखा था तो खूब रोया था कितना दर्द सहा था उसकी पत्नी ने और उसके फलस्वरूप दो अनमोल तोफे उसकी झोली में डाल दिए थे उसकी पत्नी ने। मेघना की तरह उसकी दोनो बच्चियां भी बहुत सुंदर थी। दोनो में ढाई मिनट का अंतर था। मेघना और दोनो बच्चों के स्वागत में महेश और रूपाली ने घर को फूलों और गुबारों से सजाया था। शेखर की मां भी गांव से आ गई थे अपनी बहु और पोतियों से मिलने हालांकि उन्हें भी पोते की आस थी पर ऐसा नहीं है उन्हें पोतियों नही चाहिए थी....वोह अपनी पोतियों को भी खूब ही लाड़ लगती और बहु के खाने पीने का भी ध्यान रखती। रूपाली, सुनंदा जी और विराज सारा दिन मेघना के घर ही रहते क्योंकि जुड़वा बच्चों की देखभाल आसान नहीं होने वाला था विराज भी छोटी बच्चियों को देख के बहुत खुश होता था और हाथ पकड़ के बैठा रहता था और शाम में शेखर और महेश के ऑफिस से लौटने और शाम की चाय पीने के बाद ही सब अपने घर जाते। सुनंदा जी के मन में कुछ चल रहा था लेकिन वो किसी से कुछ कह नहीं पा रही थी।





कहानी अभी जारी है.....


धन्यवाद 🙏


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